12- आपका इरशादे गिरामी
जब परवरदिगार ने आपको अस्हाबे जमल पर कामयाबी अता फ़रमाई और आपके बाज़ असहाब ने कहा के काश हमारा अफ़लाल भाई भी हमारे साथ होता तो वह देखता के परवरदिगार ने किस तरह आपको दुश्मन पर फ़तह इनायत फ़रमाई है तो आपने फ़रमाया क्या तेरे भाई की मोहब्बत भी हमारे साथ है? उसने अर्ज़ की बेशक। फ़रमाया तो वह हमारे साथ था और हमारे इस लश्कर में वह तमाम लोग हमारे साथ थे जो अभी मर्दों के सुल्ब और औरतों के रह्म में हैं और अनक़रीब ज़माना उन्हें मन्ज़रे आम पर ले आएगा और उनके ज़रिये ईमान को तक़वीयत हासिल होगी। -1-
13- आपका इरशादे गिरामी
(जिसमें जंगे जमल के बाद अहले बसरा की मज़म्मत फ़रमाई है)
अफ़सोस तुम लोग एक औरत के सिपाही और एक जानवर के पीछे चलने वाले थे जिसने बिलबिलाना ‘ाुरू किया तो तुम लब्बैक -2- कहने लगे और वह ज़ख़्मी हो गया तो तुम भाग खड़े हुए। तुम्हारे इख़लाक़ेयात पस्त तुम्हारा अहद नाक़ाबिले एतबार तुम्हारा दीन निफ़ाक़ और तुम्हारा पानी ‘ाूर है। तुम्हारे दरम्यान क़यामक रने वाला गोया गुनाहों के हाथों रेहन है और तुमसे निकल जाने वाला गोया रहमते परवरदिगार को हासिल कर लेने वाला है। मैं तुम्हारी इस मस्जिद को उस आलम में देख रहा हूँ जैसे किश्ती का सीना। जब ख़ुदा तुम्हारी ज़मीन पर ऊपर और नीचे हर तरफ़ से अज़ाब भेजेगा और सारे अहले ‘ाहर ग़र्क़ हो जाएंगे।
दूसरी रिवायत में है ख़ुदा की क़सम तुम्हारा ‘ाहर ग़र्क़ होने वाला है-3- यहां तक के गोया मैं इसकी मस्जिद को एक किश्ती के सीने की तरह या एक बैठे हुए ‘ाुतुरमुर्ग़ की ‘ाक्ल में देख रहा हूँ।
तीसरी रिवायत में है जैसे परिन्दा का सीना समन्दर की गहराईयों में।
एक रिवायत में आपका यह इरशाद वारिद हुआ है- तुम्हारा ‘ाहर ख़ाक के एतबार से सबसे ज़्यादा बदबूदार है के पानी से सबसे ज़्यादा क़रीब है और आसमान से सबसे ज़्यादा दूर है। इसमें ‘ार के दस हिस्सों में से नौ हिस्से पाए जाते हैंं। इसमें मुक़ीम गुनाहों के हाथों में गिरफ्तार है।
((-1- यह दीने इस्लाम का एक मख़सूस इम्तियाज़ है के यहां अज़ाब बद अमली के बग़ैर नाज़िल नहीं होता है और सवाब का इस्तेहक़ाक़ अमल के बग़ैर भी हासिल हो जाता है और अमले ख़ैर का दारोमदार सिर्फ़ नीयत पर रखा गया है बल्कि बाज़ औक़ात तो नीयत मोमिन को उसके अमल से भी बेहतर क़रार दिया गया है के अमल में रियाकारी के इमकानात पाए जाते हैं और नीयत में किसी तरह की रियाकारी नहीं होती है और ‘ाायद यही वजह है के परवरदिगार ने रोज़े को सिर्फ़ अपने लिए क़रार दिया है और उसके अज्र व सवाब की मख़सूस ज़िम्मेदारी अपने ऊपर रखी है के रोज़े में नीयत के अलावा कुछ नहीं होता है और नीयत में एख़लास के अलावा कुछ नहीं होता है और एख़लास नीयत का फ़ैसला करने वाला परवरदिगार के अलावा कोई नहीं है।
-2- अहले बसरा का बरताव अमीरूल मोमेनीन (अ) के साथ तारीख़ का हर तालिबे इल्म जानता है और जंगे जमल इसका बेहतरीन सबूत है लेकिन अमीरूल मोमेनीन (अ) के बरताव के बारे में डाक्टर तह हुसैन का बयान है के आपने एक करीम इन्सान का बरताव किया और बैतुलमाल का माल दोस्त और दुश्मन दोनों के मुस्तहक़ीन में तक़सीम कर दिया और ज़ख़ीमों पर हमला नहीं किया और हद यह है के क़ैदियों को कनीज़ नहीं बनाया बल्कि निहायत एहतेराम के साथ मदीना वापस कर दिया। - अलीयुन वबनोवा तह हुसैन-))
और उससे निकल जाने वाला अज़वे इलाही में दाखि़ल हो गया। गोया मैं तुम्हारी इस बस्ती को देख रहा हूँ के पानी ने इसे इस तरह ढांप लिया है के मस्जिद के कनगरों के अलावा कुछ नज़र नहीं आ रहा है और वह कनगरे भी जिस तरह पानी की गहराई में परिन्दे का सीना।
14- आपका इरशादे गिरामी
(ऐसे ही एक मौक़े पर)
तुम्हारी ज़मीन पानी से क़रीबतर और आसमान से दूर है। तुम्हारी अक़्लें हल्की और तुम्हारी दानाई अहमक़ाना है। -1- तुम हर तीरन्दाज़ का निशाना, हर भूके का लुक़्मा और हर शिकारी का शिकार हो। -2-
15- आपके कलाम का एक हिस्सा
(इस मौज़ू से मुताल्लिक़ के आपने उस्मान की जागीरों को मुसलमानों को वापस दे दिया)
ख़ुदा की क़सम अगर मैं किसी माल को इस हालत में पाता के उसे औरत का मेहर बना दिया गया है या कनीज़ों की क़ीमत के तौर पर दे दिया गया है तो भी उसे वापस कर देता इसलिये के इन्साफ़ में बड़ी वुसअत पाई जाती है और जिसके लिये इन्साफ़ में तंगी हो उसके लिये ज़ुल्म में तो और भी तंगी होगी।
16- आपके कलाम का एक हिस्सा
(उस वक़्त जब आपकी मदीना में बैअत की गई और आपने लोगों को बैअत के मुस्तक़बिल से आगाह करते हुए उनकी क़िस्में बयान फ़रमाईं)
मैं अपने क़ौल का ख़ुद ज़िम्मेदार और उसकी सेहत का ज़ामिन हूँ और जिस ‘ा़ख़्स पर गुज़िश्ता अक़वाम की सज़ाओं ने इबरतों को वाज़ेअ कर दिया हो उसे तक़वा ‘ाुबहात में दाखि़ल होने से यक़ीनन रोक देगा। आगाह हो जाओ आज तुम्हारे लिये वह आज़माइशी दौर पलट आया है जो उस वक़्त था जब परवरदिगार ने अपनु रसूल (स) को भेजा था। क़सम है उस परवरदिगार की जिसने आप (अ) को हक़ के साथ मबऊस किया था के तुम सख़्ती के साथ तहो बाला किये जाओगे। -3-
((-1- इससे ज़्यादा हिमाक़त क्या हो सकती है के कल जिस ज़बान से क़त्ले उस्मान का फ़तवा सुना था आज उसी से इन्तेक़ामे ख़ूने उस्मान की फ़रियाद सुन रहे हैं और फ़िर भी एतबार कर रहे हैं। इसके बाद एक ऊंट की हिफ़ाज़त पर हज़ारों जानें क़ुरबान कर रहे हैं और सरकारे दोआलम (स) के इस इरशादे गिरामी का एहसास तक नहीं है के मेरी अज़वाज में से किसी एक की सवारी को देख कर हदाब के कुत्ते भौकेंगे और वह आएशा ही हो सकती हैं।
-2- तारीख़ का मसलमा है के अमीरूल मोमेनीन (अ) जब बैतुलमाल में दाखि़ल होते थे तो सूई तागा और रोटी के टुकड़े तक तक़सीम कर दिया करते थे और उसके बाद झाड़ू देकर दो रकअत नमाज़ अदा करते थे ताके यह ज़मीन रोज़े क़यामत अली(अ) के अद्ल व इन्साफ़ की गवाही दे और इस बुनियाद पर आपने उस्मान की अताकरदा जागीरों को वापसी का हुक्म दिया और सदक़े के ऊंट उस्मान के घर से वापस मंगवाए के उस्मान किसी क़ीमत पर ज़कात के मुस्तहक़ नहीं थे। अगरचे बाज़ हवाख़्वाहान बनी उमय्या ने यह सवाल उठा दिया है के यह इन्तेहाई बेरहमाना बरताव था जहाँ यतीमों पर रहम नहीं किया गया और उनके क़ब्ज़े से माल ले लिया गया। लेकिन उसका जवाब बिल्कुल वाज़े है के ज़ुल्म और ‘ाक़ावत का मुज़ाहिरा उसने किया है जिसने ग़ुरबा व मसाकीन का हक़ अपने घर में जमा कर लिया है और माले मुस्लेमीन पर क़ब्ज़ा कर लिया है। फिर यह कोइ नया हादसा भी नहीं है। कल पहली खि़लाफ़त में यतीमाए रसूले अकरम (स) पर कब रहम किया गया था जो वाक़ेअन फ़िदक की हक़दार थीं और उसके बाबा ने उसे यह जागीर हुक्मे ख़ुदा से अता कर दी थी। औलादे उस्मान तो हक़दार भी नहीं हैं और क्या औलादे उस्मान का मरतबा औलादे रसूल (स) से बलन्दतर है या हर दौर के लिये एक नयी ‘ारीअत मुरत्तब की जाती है और इसका महवर सरकारी मसालेह और जमाअती फ़वाएद ही होते हैं।))
तुम्हें बाक़ाएदा छाना जाएगा और देग की तरह चमचे से उलट-पलट किया जाएगा यहाँ तक के असफ़ल आला हो जाए और आला असफ़ल बन जाए और जो पीछे रह गए हैं वह आगे बढ़ जाएं और जो आगे बढ़ गए हैं वह पीछे आ जाएं। ख़ुदा गवाह है के मैंने न किसी कलमे को छिपाया है और न कोई ग़लत बयानी की है और मुझे उस मन्ज़िल और उस दिन की पहले ही ख़बर दे दी गई थी।
याद रखो के ख़ताएं वह सरकश सवारियां हैं जिन पर अहले ख़ता को सवार कर दिया जाए और उनकी लगाम को ढीला छोड़ दिया जाए और वह सवार को ले कर जहन्नुम में फान्द पड़ें और तक़वा उन रअम की हुई सवारियों के मानिन्द है जिन पर लोग सवार किये जाएं और उनकी लगाम इनके हाथों में दे दी जाए तो वह अपने सवारों को जन्नत तक पहुँचा दें।
दुनिया में हक़ व बातिल दोनों हैं और दोनों के अहल भी हैं। अब अगर बातिल ज़्यादा हो गया है तो यह हमेशा से होता चला आया है और अगर हक़ कम हो गया है तो यह भी होता रहा है और उसके खि़लाफ़ भी हो सकता है। अगरचे ऐसा कम ही होता है के कोई ‘ौ पीछे हट जाने के बाद दोबारा मन्ज़रे आम पर आजाए। -1-
सय्यद रज़ी- इस मुख़्तसर से कलाम में इस क़दर ख़ूबियां पाई जाती हैं जहां तक किसी की दाद व तारीफ़ नहीं पहुँच सकती है और इसमें हैरत व इस्तेजाब का हिस्सा पसन्दीरगी की मिक़दार से कहीं ज़्यादा है। इसमें फ़साहत के वह पहलू भी हैं जिनको कोई ज़बान बयान नहीं कर सकती है और उनकी गहराईयों का कोई इन्सान इदराक नहीं कर सकता है और इस हक़ीक़त को वही इन्सान समझ सकता है जिसने फन्ने बलाग़त का हक़ अदा किया हो और उसके रगो रेशे से बाख़बर हो। और उन हक़ाएक़ को अहले इल्म के अलावा कोई नहीं समझ सकता है।
इसी ख़ुत्बे का एक हिस्सा जिसमें लोगों को तीन हिस्सों पर तक़सीम किया गया है-
वह ‘ाख़्स किसी तरफ़ देखने की फ़ुरसत नहीं रखता जिसकी निगाह में जन्नत व जहन्नम का नक़्शा हो। तेज़ रफ़तारी से काम करने वाला निजात पा लेता है और सुस्त रफ़तारी से काम करके जन्नत की तलबगारी करने वाला भी उम्मीदवार रहता है लेकिन कोताही करने वाला जहन्नम में गिर पड़ता है। दाहिने बाएं गुमराहियों की मंज़िलें हैं और सीधा रास्ता सिर्फ़ दरमियानी रास्ता है इसी रास्ते पर रह जाने वाली किताबे ख़ुदा और नबूवत के आसार हैं और इसी से ‘ारीअत का नेफ़ाज़ होता है और इसी की तरफ़ आक़ेबत की बाज़गश्त है। ग़लत अद्आ करने वाला हलाक हुआ और इफ़तरा करने वाला नाकाम व नामुराद हुआ। जिसने हक़ के मुक़ाबले में सर निकाला वह हलाक हो गया और इन्सान की जेहालत के लिये इतना ही काफ़ी है के इसे अपनी ज़ात का भी इरफ़ान न हो। जो बुनियाद तक़वा पर क़ाएम होती है उसमें हलाकत नहीं होती है और इसके होते हुए किसी क़ौम की खेती प्यास से बरबाद नहीं होती है। अब तुम अपने घरों में छिप कर बैठ जाओ -2- और अपने बाहेमी उमूर की इस्लाह करो। तौबा तुम्हारे सामने है -3-। तारीफ़ करने वाले का फर्ज़ है के अपने रब की तारीफ़ करे और मलामत करने वाले को चाहिए के अपने नफ़स की मलामत करे।
((-1-मालिके कायनात ने इन्सान को बेपनाह सलाहियतों का मालिक बनाया है और इसकी फ़ितरत में ख़ैर व ‘ार का सारा इरफ़ान वदलीत कर दिया है लेकिन इन्सान की बदक़िस्मती यह है के वह उन सलाहियतों से फ़ाएदा नहीं उठाता है और हमेशा अपने को बेचारा ही समझता है जो जेहालत की बदतरीन मन्ज़िल है के इन्सान को अपनी ही क़द्र व क़ीमत का अन्दाज़ा न हो सके। किसी ‘ााएर ने क्या ख़ूब कहा हैः
अपनी ही ज़ात का इन्सान को इरफ़ाँ न हुआ;
ख़ाक फिर ख़ाक थी औक़ात से आगे न बढ़ी ))
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