Saturday, April 30, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 198-208 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 198-208

198- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें ख़ुदा के आलिमे जुजि़्यात होने पर ताकीद की गई है और फिर तक़वा पर आमादा किया गया है)

वह परवरदिगार सहराओं में जानवरों की फ़रयाद को भी जानता है और तनहाइयों में बन्दों के गुनाहों को भी, वह गहरे समन्दरों में मछलियों के रफ़्त व आमद से भी बाख़बर है और तेज़ व तन्द हवाओं से पैदा होने वाले तलातुम से भी। और मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद (स0) ख़ुदा के मुन्तख़ब बन्दे, उसकी वही के सफ़ीर और उसकी रहमत के रसूल हैं।
अम्माबाद! मैं तुम सबको उसी ख़ुदा से डरने की नसीहत कर रहा हूँ जिसने तुम्हारी खि़लक़त की इब्तेदा की है और उसी की बारगाह में तुम्हें पलट कर जाना है, उसी के ज़रिये तुम्हारे मक़ासिद की कामयाबी है और उसी की तरफ़ तुम्हारी रग़बतों की इन्तेहा है। उसी की सिम्त तुम्हारा सीधा रास्ता है और उसी की तरफ़ तुम्हारी फ़रयादों का निषाना है।
यह तक़वाए इलाही तुम्हारे दिलों की बीमारी की दवा है और तुम्हारे क़ुलूब के अन्धेपन की बसारत, यह तुम्हारे जिस्मों की बीमारी की षिफ़ा का सामान है और तुम्हारे सीनों के फ़साद की इस्लाह, यही तुम्हारे नुफ़ूस की गन्दगी की तहारत है और यही तुम्हारी आंखों के चुन्धियाने की जला, इसी में तुम्हारे दिल के इज़्तेराब का सुकून है और यही ज़िन्दगी की तारीकियों की ज़िया है, इताअते ख़ुदा को अन्दर का “ाोआर बनाओ सिर्फ़ बाहर का नहीं, और उसे बातिन में हासिल करो सिर्फ़ ज़ाहिर में नहीं। अपनी पस्लियों के दरम्यान समो लो और अपने जुमला उमूर का हाकिम क़रार दो, तष्नगी में विरूद के लिये चष्मा तसव्वुर करो और मन्ज़िले मक़सूद तक पहुंचने के लिये वसीला क़रार दो। अपने रोज़े फ़ुरूअ के लिये सिपर बनाओ और अपनी तारीक क़ब्रों के लिये चिराग़, अपनी तूलानी वहषते क़ब्र के लिये मोनिस बनाओ और अपने रन्ज व ग़म के मराहेल के लिये सहारा, इताअते इलाही तमाम घेरने वाले बरबादी के असबाब, आने वाले ख़ौफ़नाक मराहेल और भड़कती हुई आग के “ाोले के लिये हरज़बान है। जिसने तक़वा को इख़्तेयार कर लिया उसके लिये सख़्ितयां क़रीब आकर दूर चली जाती हैं और उमूरे ज़िन्दगी तल्ख़ (बदमज़ा) होने के बाद “ाीरीं हो जाते हैं। मौजें तह ब तह हो जाने के बाद भी हट जाती हैं और दुष्वारियां मषक़्क़तों में मुब्तिला कर देने के बाद भी आसान हो जाती हैं। क़हत के बाद करामतों की बारिष “ाुरू हो जाती है और सहाबे रहमत हट जाने के बाद फिर बरसने लगता है और नेमतों के चष्मे जारी जो जाते हैं, फ़ुवार की कमी के बाद बरकत की बरसात “ाुरू हो जाती है।

(((-इस मुक़ाम पर मौलाए कायनात ने इस नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो करना चाहा है के तक़वा का फ़ायदा सिर्फ़ आखि़रत तक महदूद नहीं है के तुम यहाँ गुनाहों से परहेज़ करो, मालिक वहां तुम्हें आतिषे जहन्नम से महफ़ूज़ कर देगा बल्कि यह तक़वा आखि़रत के साथ दुनिया के हर मरहले पर काम आने वाला है और किसी मरहले पर इन्सान को नज़रअन्दाज़ करने वाला नहीं है। मुष्किलात से निजात दिलाना इसी तक़वा का कारनामा है और तूफ़ान का मुक़ाबला इसी तक़वा की ताक़त से होता है, रहमत के चष्मे इसी से जारी होते हैं और फ़़ल व करम के बादल इसी की बरकत से बरसते हैं और “ाायद यह इस नुक्ते की तरफ़ इषारा ह के इन्सानी ज़िन्दगी की सारी परेषानियां उसके आमाल की कमज़ोरियों से पैदा होती हैं, जब इन्सान तक़वा के ज़रिये किरदार को मज़बूत करेगा तो हर परेषानी से मुक़ाबला आसान हो जाएगा।
इसका यह मतलब हरगिज़ नहीं है के मुत्तक़ीन की ज़िन्दगी में परेषानी नहीं होती है और वह चैन और सुकून की ज़िन्दगी गुज़ारते हैं, ऐसा होता तो सब्र का कोई काम न होता और मुत्तक़ीन का सिलसिला साबेरीन से अलग हो जाता, बल्कि इसका मतलब सिर्फ़ यह है के तक़वा सब्र का हौसला पैदा करता है और तक़वा के ज़रिये मसाएब से मुक़ाबला करने का हौसला पैदा हो जाता है और उसकी बरकत से रहमतों का नुज़ूल “ाुरू हो जाता है-)))

अल्लाह से डरो जिसने तुम्हें नसीहत से फ़ायदा पहुंचाया है और अपने पैग़ाम के ज़रिये नसीहत की है और अपनी नेमत से तुम पर एहसान किया है, अपने नफ़्स को उसकी इबादत के लिये हमवार करो और उसके हक़ की इताअत से ओहदा बरआ होने की कोषिष करो, और इसके बाद याद रखो के यह इस्लाम वह दीन है जिसे मालिक ने अपने लिये पसन्द फ़रमाया है और अपनी निगाहों में इसकी देख भाल की है और इसे बेहतरीन ख़लाएक़ के हवाले किया है और अपनी मोहब्बत पर इसके सुतूनों को क़ायम किया है। इसकी इज़्ज़त के ज़रिये अदयान को सरनिगों किया है और इसकी बलन्दी के ज़रिये मिल्लतों की पस्ती का इज़हार किया है। इसके दुष्मनों को इसकी करामत के ज़रिये ज़लील किया है और इससे मुक़ाबला करने वालों को इसकी नुसरत के ज़रिये रूसवा किया है इसके रूकन के ज़रिये ज़लालत के अरकान को मुनहदिम किया है और इसके हौज़ से प्यासों को सेराब किया है और फ़िर पानी उलचने वालों के ज़रिये इन हौज़ों को भर दिया है।
इसके बाद इस दीन को ऐसा बना दिया है के इसके बन्धन टूट नहीं सकते हैं, इसकी कड़ियां खुल नहीं सकती हैं, इसकी बुनियाद मुनहदिम नहीं हो सकती है, इसके सुतून गिर नहीं सकते हैं, इसका दरख़्त उखड़ नहीं सकता है, उसकी मुद्दत तमाम नहीं होे सकती है, उसके आसार मिट नहीं सकते हैं (न उसके क़वानीन महो होते हैं) उसकी “ााख़ेंक ट नहीं सकती हैं उसके रास्ते तंग नहीं हो सकते हैं। उसकी आसानियां दुष्वार नहीं हो सकती हैं, उसकी सफ़ेदी में स्याही नहीं है और उसकी इस्तेक़ामत में कजी नहीं है, इसकी लकड़ी टेढ़ी नहीं है और इसकी वुसअत में दुष्वारी नहीं है। इसका चिराग़ बुझ नहीं सकता है और इसकी हिलावत में तल्ख़ी नहीं आ सकती है। इसके सुतून ऐसे हैं जिनके पाये हक़ की ज़मीन में नस्ब किये गये हैं और फिर इसकी असास को पाएदार बनाया गया है। इसके चष्मों का पानी कम नहीं हो सकता है और इसके चिराग़ों की लौ मद्धम नहीं हो सकती है। इसके मिनारों से राहगीर हिदायत पाते हैं और इसके निषानात को राहों में निषाने मन्ज़िल बनाया जाता है। इसके चष्मों से प्यासे सेराब होते है और परवरदिगार ने इसके अन्दर अपनी रिज़ा की इन्तेहाई रखी, अपने बलन्दतरीन अरान और अपनी इताअत का उरूज क़रार दिया है। यह दीन उसके नज़दीक मुस्तहकम अरकान वाला बलन्दतरीन बुनियादों वाला हक़ीक़ी (बलन्द) दलाएल वाला, रौषन ज़ियाओं वाला, ग़ालिब सलतनत वाला, बलन्द बुनियाद वाला और नामुमकिन तबाही वाला है। इसके “ारफ़ का तहफ़्फ़ुज़ करो, इसके एहकाम का इत्तेबाअ करो, उसके हुक़ूक़ को अदा करो और उसे उसकी वाक़ई मन्ज़िल पर क़रार दो।

(((-दीने इस्लाम का सबसे बड़ा इम्तेयाज़ यह है के इसके क़वानीन ख़ालिक़े कायनात ने बनाए हैं और हर क़ानून को फ़ितरते बषर से हमआहंग बनाया है उसने इसकी तषरीह में अपने महबूबतरीन बन्दे को भी दख़ील नहीं किया है और न किसी को इसके क़वानीन में तरमीम करने का हक़ दिया है। ज़ाहिर है के जो क़ानूने ख़ालिक़ व मालिक के कलाम के नतीजे में मन्ज़रे आम पर आएगा उसकी बक़ा की ज़मानत उसके दफ़आत के अन्दर ही होगी और जब तक यह कायनात बाक़ी रहेगी इसके मामलात में तग़य्युर व तबद्दुल की ज़रूरत न होगी।
इस्लाम के दीने पसन्दीदा होने का असर है के इसके सामने तमाम अदयाने आलम हक़ीर इसके मुक़ाबले में तमाम दुष्मनाने मज़हब ज़लील हैं। मालिक ने इसकी बुनियाद मोहब्बत पर रखी है और इसकी असास रहमत और रूबूबीयत को क़रार दिया है। इसका तसलसुल नाक़ाबिले इख़्तेताम है और इसके हलक़े नाक़ाबिले इन्फ़ेसाम। इसी में इन्सानियत की प्यास बुझाने का सामान है और इसी में हिदायत के तलबगारों के लिये बेहतरीन वसीलाए रहनुमाई है। रिज़ाए इलाही का सामन यही है इसके बग़ैर हिदायत का तसव्वुर मोहमिल है और इसके अलावा हर दीन नाक़ाबिले क़ुबूल है।-)))

इसके बाद मालिक ने हज़रत मोहम्मद (स0) को हक़ के साथ मबऊस किया जब दुनिया फ़ना की मन्ज़िल से क़रीबतर हो गई और आखि़रत सर पर मण्डलाने लगी, जब उजाला अन्धेरों में तबदील होने लगा और वह अपने चाहने वालों के लिये एक मुसीबत बनकर खड़ी हो गई, इसका फ़र्ष खुरदुरा हो गया और फ़ना के हाथों में अपनी मेहार देने के लिये तैयार हो गई। इस तरह के इसकी मुद्दत ख़ातमे के क़रीब पहुंच गई। इसकी फ़ना के आसार क़रीब आ गए। इसके अहल ख़त्म होने लगे, इसके हलक़े टूटने लगे, इसके असबाब मुन्तषिर होने लगे, इसके निषानात मिटने लगे, इसके ऐब खुलने लगे और इसके दामन सिमटने लगे।
अल्लाह ने इन्हें पैग़ाम रसानी का वसीला, उम्मत की करामत, अहले ज़माना की बहार, आवान व अन्सार की बलन्दी का ज़रिया और मददगार व अन्सार अफ़राद की इज़्ज़त व “ाराफ़त का वास्ता क़रार दिया है।
इसके बाद इन पर उस किताब को नाज़िल किया जिसकी कन्दील बुझ नहीं सकती है और जिसके चिराग़ की लौ मद्धम नहीं पड़ सकती है वह ऐसा समन्दर है जिसकी थाह मिल नहीं सकती है और ऐसा रास्ता है जिस पर चलने वाला भटक नहीं सकता है। ऐसी “ाुआअ जिसकी ज़ौ तारीक नहीं हो सकती है और ऐसा हक़ व बातिल का इम्तियाज़ जिसका बरहान कमज़ोर नहीं हो सकता है। ऐसी वज़ाहत जिसके अरकान मुनहदिम नहीं हो सकते हैं और ऐसी षिफ़ा जिसमें बीमारी का कोई ख़ौफ़ नहीं है। ऐसी इज़्ज़त जिसके अन्सार पस्पा नहीं हो सकते हैं और ऐसा हक़ किसके आवान बेयार व मददगार नहीं छोड़े जा सकते हैं।
यह ईमान का मअदन व मरकज़, इल्म का चष्मा और समन्दर, अदालत का बाग़ और हौज़, इस्लाम का संगे बुनियाद और असास, हक़ की वादी और इसका हमवार मैदान है। यह वह समन्दर है जिसे पानी निकालने वाले ख़त्म नहीं कर सकते हैं और वह चष्मा है जिसे उलचने वाले ख़ुष्क नहीं कर सकते हैं। वह घाट है जिस पर वारिद होने वाले इसका पानी कम नहीं कर सकते हैं और वह मन्ज़िल है जिसकी राह पर चलने वाले मुसाफ़िर भटक नहीं सकते हैं। वह निषाने मन्ज़िल है जो राहगीरों की नज़रों से ओझल नहीं हो सकता है और वह टीला है जिसका तसव्वुर करने वाले आगे नहीं जा सकते हैं।
परवरदिगार ने इसे ओलमा की सेराबी का ज़रिया, फ़ोक़हा के दिलों की बहार, स्वलहा के रास्तों के लिये “ााहेराह क़रार दिया है।

(((-कितना हसीन दौर था जब अम्बियाए कराम का सिलसिला क़ायम था, किताबें और सहीफ़े नाज़िल हो रहे थे, मुबल्लिग़ीने दीन व मज़हब अपने किरदार से इन्सानियत की रहनुमाई कर रहे थे और ज़मीन व आसमान के रिष्ते जुड़े हुए थे फिर यकबारगी क़ेरत का ज़माना आ गया और यह सारे सिलसिले टूट गए, दुनिया पर जाहेलियत का अन्धेरा छा गया और इन्सानियत ने अपनी ज़माम क़यादत जेहल व जाहेलीयत के हवाले कर दी।
ऐसे हालात में अगर सरकारे दो आलम (स0) का विरूद न होता तो यह दुनिया घटाटोप अन्धेरों ही की नज़र हो जाती और इन्सानियत को कोई रास्ता नज़र न आता। लेकिन यह मालिक का करम था के उसने रहमतुल लिलआलमीन को भेज दिया और अन्धेरी दुनिया को फिर दोबारा नूरे रिसालत से मुनव्वर कर दिया और आप के साथ एक नूर और नाज़िल कर दिया जिसका नाम क़ुराने मजीद था और जिसकी रौषनी नाक़ाबिले इख़्तेताम थी। यह बयकवक़्त दस्तूर भी था और एजाज़ भी, समन्दर भी था और चिराग़ भी। हक़ व बातिल का फ़ुरक़ान भी था और दीन व ईमान का बरहान भी, इसमें हर मर्ज़ का इलाज भी था और हर बीमारी का मदावा भी।
इसे मालिक ने सेराबी का ज़रिया भी बनाया था और दिलों की बहार भी। निषाने राह भी क़रार दिया और मन्ज़िले मक़सूद भी, जो “ाख़्स जिस नुक़्तए निगाह से देखे उसकी तस्कीन का सामान क़ुराने हकीम में मौजूद है और एक किताब सारी कायनात जिन व इन्स की हिदायत के लिये काफ़ी है बषर्ते के इसके मतालिब उन लोगों से उख़ज़ किये जाएं जिन्हें रासख़ोन फ़िल इल्म बनाया गया है और जिनके इल्मे क़ुरान की ज़िम्मेदारी मालिके कायनात ने ली है-)))
वह सरासर शिफ़ा है जिसके बाद कोई मर्ज़ नहीं रह सकता और वह नूर है जिसके बाद किसी ज़ुल्मत का इमकान नहीं है। वह रीसमान है जिसके हलक़े मुस्तहकम हैं और वह पनाहगाह है जिसकी बलन्दी महफ़ूज़ है। चाहने वालों के लिये इज़्ज़त, दाखि़ल होने वालों के लिये सलामती, इक़्तेदा करने वालों के लिये हिदायत, निस्बत करने वालों (जो इसे अपनी तरफ़ निस्बत दे उस) के लिये हुज्जत, बोलने वालों के लिये बुरहान (जो इसकी रू से बात करे उसके लिये दलील) और मनाज़िरा करने वालों के लिये ‘ााहिद है। बहस करने वालों की कामयाबी का ज़रिया है इसका बार उठाने वालों के लिये बोझ बटाने वाला, अमल करने वालों के लिये बेहतरीन सवारी, हक़ीक़त शिनासों के लिये बेहतरीन निशानी और असलहे सजने वालों के लिये सिपर है। फ़िक्र करने वालों के लिये इल्म और रिवायत करने वालों के लिये हदीस और क़ज़ावत करने वालों के लिये क़तई हुक्म और फ़ैसला है।

199-आपका इरशादे गिरामी(जिसकी असहाब को वसीयत फ़रमाया करते थे)

देखो नमाज़ की पाबन्दी और उसकी निगेहदाश्त करो, ज़्यादा से ज़्यादा नमाज़ें पढ़ो और उसे तक़र्रुबे इलाही का ज़रिया क़रार दो के यह साहेबाने ईमान के लिये वक़्त की पाबन्दी के साथ वाजिब की गई है। क्या तुमने अहले जहन्नम का जवाब नहीं सुना है के जब उनसे सवाल किया जाएगा के तुम्हें किस चीज़ ने यहां तक पहुंचा दिया है तो कहेंगे के हम नमाज़ी नहीं थे। यह नमाज़ गुनाहों को इस तरह झाड़ती है जिस तरह दरख़्त के पत्ते झड़ जाते हैं और इसी तरह गुनाहों से आज़ादी दिलाती है जिस तरह जानवर आज़ाद किये जाते हैं। रसूले अकरम (स0) ने इसे उस गर्म चश्मे से तश्बीह दी है जो इन्सान के दरवाज़े पर हो और वह रोज़ाना उसमें पांच मरतबा ग़ुस्ल करे। ज़ाहिर है के इसपर किसी कसाफ़त के बाक़ी रह जाने का इमकान नहीं रह जाता है।
इसके हक़ को वाक़ेअन उन साहेबाने ईमान ने पहचाना है जिन्हें ज़ीनते मुताअे दुनिया या तिजारत और कारोबार कोई ‘ौ भी यादे ख़ुदा आौर नमाज़ व ज़कात से ग़ाफ़िल नहीं कर सकते हंै। रसूले अकरम (स0) इस नमाज़ के लिये अपने को ज़हमत में डालते थे हालांके उन्हें जन्नत की बशारत दी जा चुकी थी इसलिये के परवरदिगार ने फ़रमा दिया था के अपने अहल (घर वालों) को नमाज़ का हुक्म दो और ख़ुद भी इसकी पाबन्दी करो तो आप अपने अहल को हुक्म भी देते थे और ख़ुद ज़हमत भी बरदाश्त करते थे।
इसके बाद ज़कात को नमाज़ के साथ मुसलमानों के लिये वसीलाए मुक़र्रब क़रार दिया गया है, जो इसे तय्यब ख़ातिर से अदा करेगा उसके गुनाहों के लिये यह कफ़्फ़ारा बन जाएगी और उसे जहन्नम से बचा लेगी, ख़बरदार कोई ‘ाख़्स इसे अदा करन के बाद इसके बारे में फ़िक्र न करे और न अफ़सोस करे के जो ‘ाख़्स दिली लगन के बग़ैर इसे अदा करता है और फ़िर इससे बेहतर अज्र व सवाब की उम्मीद करता है (उससे बेहतर चीज़ के लिये चश्मे बराह रहता है) वह सुन्नत से बेख़बर और अज्र व सवाब के एतबार से ख़सारे में है और उसका आमाल बरबाद है और उसकी निदामत दाएमी है।

(((- इसमें कोई ‘ाक नहीं है के सरकारे दो आलम (स0) ने नमाज़ क़ायम करने की राह में बेपनाह ज़हमतों का सामना किया है। रात रात भर मुसल्ले पर क़याम किया है और तरह-तरह की दुश्मनों की अज़ीयतों को बरदाश्त किया है लेकिन मालिके कायनात ने इसका अज्र भी बेहिसाब इनायत किया है के नमाज़ सरकार की याद का बेहतरीन ज़रिया बन गई है और इसके ज़रिये सरकार की ‘ाख़्सीयत और रिसालत को अबदी हैसियत हासिल हो गई है। नमाज़ी अज़ान व अक़ामत ही से सरकार का कलमा पढ़ना ‘ाुरू का देता है आौर फ़िर तशहुद व सलाम तक यह सिलसिला जारी रहता है और इस तरह तमाम उम्मतों का रिश्ता इनके पैग़म्बरों से टूट चुका है लेकिन उम्मते इस्लामियाा का रिश्ता सरकारे दो आलम (स0) से नहीं टूट सकता है और यह नमाज़ बराबर आपकी याद को ज़िन्दा रखेगी और मुसलमानों को हुस्ने किरदार की दावत देती रहेगी।
ज़कात को नमाज़ के साथ बयान करने का ज़ाहेरी फ़लसफ़ा यह है के नमाज़ अब्द व माबूद के दरम्यान का रिश्ता है और ज़कात बन्दों और बन्दों के दरम्यान का ताल्लुक़ है आौर इस तरह इस्लाम का निसाब मुकम्मल हो जाता है के मुसलमान अपने मालिक की इताअत भी करता है और अपने बनी नौअ के कमज़ोर अफ़राद का ख़याल भी रखता है और उनकी शिरकत के बग़ैर ज़िन्दा नहीं रहना चाहता है।)))

इसके बाद अमानतों की अदायगी का ख़याल रखो के अमानतदारी न करने वाला नाकाम होता है। अमानत को बलन्दतरीन आसमानों, फ़र्श ‘ाुदा ज़मीनों और बलन्द व बाला पहाड़ों के सामने पेश किया गया है जिनसे बज़ाहिर तवील व अरीज़ और आला व अरफ़ा कोई ‘ौ नहीं है और अगर कोई ‘ौ अपने तूल व अर्ज़ (लम्बाई, चैड़ाई या क़ूवत और ग़लबे) और ताक़त की बिना पर अपने को बचा सकती है तो यही चीज़ है। लेकिन यह सब ख़यानतत के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हो गए और इस नुक्ते को समझ लिया है जिसको इनसे ज़ईफ़तर इन्सान ने नहीं पहचाना के वह अपने नफ़्स पर ज़ुल्म करने वाला और नावाक़िफ़ था।
परवरदिगार पर बन्दों के दिन व रात के आमाल में से कोई ‘ौ मख़फ़ी नहीं है। वह लताफ़त की बिना पर ख़बर रखता है और इल्म के एतबार से अहाता रखता है। तुम्हारे आज़ा ही उसके गवाह हैं और तुम्हारे हाथ पांव ही उसके लश्कर हैं। तुम्हारे ज़मीर उसके जासूस हैं और तुम्हारी तन्हाइयां भी उसकी निगाह के सामने हैं।

200-आपका इरशादे गिरामी(माविया के बारे में)

ख़ुदा की क़सम माविया मुझसे ज़्यादा होशियार नहीं है लेकिन क्या करूं के वह मक्रो फ़रेब और फ़िस्क़ व फ़ुजूर भी कर लेता है और अगर यह चीज़ मुझे नापसन्द नहीं होती तो मुझसे ज़्यादा होशियार कौन होता लेकिन मेरा नज़रिया यह है के हर मक्रो फ़रेब गुनाह है आौर हर गुनाह परवरदिगार के एहकाम की नाफ़रमानी है। हर ग़द्दार के हाथ में क़यामत के दिन एक झण्डा दे दिया जाएगा जिससे उसे अरसए महशर में पहचान लिया जाएगा। ख़ुदा की क़सम मुझे न इन मक्कारियों से ग़फ़लत में डाला जा सकता है और न इन सख़्ितयों से दबाया जा सकता है।

201-आपका इरशादे गिरामी
(जिसमें वाज़ेह रास्तों पर चलने की नसीहत फ़रमाई गई है)

अय्योहन्नास! देखो हिदायत के रास्ते पर चलने वालों की क़िल्लत की बिना पर चलने से मत घबराओ के लोगों ने एक ऐसे दस्तरख़्वान पर इज्तेमाअ कर लिया है जिसमें सेर होने की मुद्दत बहुत कम है और भूक की मुद्दत बहुत तवील है।
लोगों! याद रखो के रज़ामन्दी और नाराज़गी ही सारे इन्सानों को एक नुक्ते पर जमा कर देती है, नाक़ाए स्वालेह के पैर एक ही इन्सान ने काटे थे लेकिन अल्लाह ने अज़ाब सब पर नाज़िल कर दिया के बाक़ी लोग इसके अमल से राज़ी थे और फ़रमाया के इन लोगों ने नाक़े के पैर काट डाले और आखि़र में मज़ामत का शिकार हो गए। इनका अज़ाब यह था के ज़मीन झिटके से घड़घड़ाने लगी जिस तरह के ज़म ज़मीन में लोहे की तपती हुई फाली चलाई जाती है।
लोगों! देखो जो रौशन रास्ते पर चलता है वह सरचश्मे तक पहुंच जाता है और जो इसके खि़लाफ़ करता है वह गुमराही में पड़ जाता है।

(((- खुली हुई बात है के जिसे परवरदिगार ने नफ़्से रसूल (स0) क़रार दिया हो और ख़ुद सरकारे दो आलम (स0) ने बाबे मदीनतुल इल्म क़रार दिया हो उससे ज़्यादा होशियार, होशमन्द और साहेबे इल्म व हुनर कौन हो सकता है। लेकिन इसके बावजूद बाज़ नादान अफ़राद का ख़याल है के माविया ज्यादा होशियार और ज़ीरक था और इसीलिये उसकी सियासत ज़्यादा कामयाब थी, हालांके इसका राज़ होशियारी और होशमन्दी नहीं है, बल्कि इसका राज़ मक्कारी और ग़द्दारी है के माविया मक़सद के हुसूल के लिये हर वसीले को जाएज़ क़रार देता था और इसका मक़सद भी सिर्फ़ हुसूले इक़्तेदार और तख़्ते हुकूमत था और मौलाए कायनात की निगाह में न मक़सद वसीले के जवाज़ का ज़रिया था और न आपका मक़सद इक़तेदारे दुनिया का हुसूल था। आपका मक़सद दीने ख़ुदा का क़याम था और इस राह में इन्सान को हर क़दम फूंक-फूंक कर उठाना पड़ता है और हर सांस में मर्ज़ीए परवरदिगार का ख़याल रखना पड़ता है।))).

202-आप का इरषादे गिरामी

कहा जाता है के यह कलेमाते सय्येदतुल निसाइल आलमीन फ़ातेमा ज़हरा (स0) के दफ़्न के मौक़े पर पैग़म्बरे इस्लाम (स0) से राज़दाराना गुफ़्तगू के अन्दाज़ से कहे गये थे।
सलाम हो आप पर ऐ ख़ुदा के रसूल (स0)! मेरी तरफ़ से और आपकी उस दुख़्तर की तरफ़ से जो आपके जवार में नाज़िल हो रही है और बहुत जल्दी आप से मुलहक़ हो रही है।
या रसूलल्लाह! मेरी क़ूवते सब्र आपकी मुन्तख़ब रोज़गार (बरगुज़ीदा) दुख़्तर के बारे में ख़त्म हुई जा रही है और मेरी हिम्मत साथ छोड़े दे रही है सिर्फ़ सहारा यह है के मैंने आपके फ़िराक़ के अज़ीम सदमे और जानकाह हादसे पर सब्र कर लिया है तो अब भी सब्र करूंगा के मैंने ही आपको क़ब्र में उतारा था और मेरे ही सीने पर सर रखकर आपने इन्तेक़ाल फ़रमाया था। बहरहाल मैं अल्लाह ही के लिये हूँ और मुझे भी उसी की बारगाह में वापस जाना है।
आज अमानत वापस चली गई और जो चीज़ मेरी तहवील में थी वह मुझसे छुड़ा ली गई। अब मेरा रंज व ग़म दाएमी है और मेरी रातें नज़रबेदारी हैं जब तक मुझे भी परवरदिगार उस घर तक न पहुंचा दे जहाँ आपका क़याम है।
अनक़रीब आपकी दुख़्तरे नेक अख़्तर उन हालात की इत्तेलाअ देगी के किस तरह आपकी उम्मत ने उस पर ज़ुल्म ढाने के लिये इत्तेफ़ाक़ कर लिया था। आप उससे मुफ़स्सिल सवाल फ़रमाएं और जुमला हालात दरयाफ़्त करें।
अफ़सोस के यह सब उस वक़्त हुआ है जब आपका ज़माना गुज़रे देर नहीं हुई है और अभी आपका तज़किरा बाक़ी है। मेरा सलाम हो आप दोनों पर, उस “ाख़्स का सलाम जो रूख़सत करने वाला है और दिले तंग व मलोल नहीं है। मैं अगर इस क़ब्र से वापस चला जाऊं तो यह किसी दिले तंगी का नतीजा नहीं है और अगर यहीं ठहर जाऊं तो यह उस वादे के बेएतबारी नहीं है जो परवरदिगार ने सब्र करने वालों से किया है।

203- आपका इरषादे गिरामी(दुनिया से परहेज़ और आख़ेरत की तरग़ीब के बारे में)

लोगों! यह दुनिया एक गुज़रगाह है क़रार की मन्ज़िल आखि़रत ही है लेहाज़ा इस गुज़रगाह से वहाँ का सामान लेकर आगे बढ़ो और उसके सामने अपने परदए राज़ को चाक मत करो जो तुम्हारे इसरार से बाख़बर है। दुनिया से अपने दिलों को बाहर निकाल लो क़ब्ल इसके के तुम्हारे बदन को यहाँ से निकाला जाए, यहाँ सिर्फ़ तुम्हारा इम्तेहान लिया जा रहा है वरना तुम्हारी खि़लक़त किसी और जगह के लिये है। कोई भी “ाख़्स जब मरता है तो इधर वाले यह सवाल करते हैं के क्या छोड़कर गया है और उधर के फ़रिष्ते यह सवाल करते हैं के क्या लेकर आया है? अल्लाह तुम्हारा भला करे। कुछ वहां भेज दो जो मालिक के पास तुम्हारे क़र्ज़े के तौर पर रहेगा और सब यहीं छोड़कर मत जाओ के तुम्हारे ज़िम्मे एक बोझ बन जाए।

204-आपका इरषादे गिरामी(जिसके ज़रिये अपने असहाब को आवाज़ दिया करते थे)

ख़ुदा तुम पर रहम करे, तैयार हो जाओ के तुम्हें कूच करने के लिये पुकारा जा चुका है और ख़बरदार दुनिया की तरफ़ ज़्यादा तवज्जो मत करो, जो बेहतरीन ज़ादे राह तुम्हारे सामने है उसे लेकर मालिक की बारगाह की तरफ़ पलट जाओ के तुम्हारे सामने एक बड़ी दुष्वारगुज़ार घाटी है और चन्द ख़तरनाक और ख़ौफ़नाक मन्ज़िलें हैं जिनपर बहरहाल वारिद होना है और वहीं ठहरना भी है।

(((-इस्लाम का मुद्दआ तर्के दुनिया नहीं है और न वह यह चाहता है के इन्सान रहबानियत की ज़िन्दगी गुज़ारे, इस्लाम का मक़सद सिर्फ़ यह है के दुनिया इन्सान की ज़िन्दगी का वसीला रहे और इसके दिल का मकीन न बनने पाए वरना हुब्बे दुनिया इन्सान को ज़िन्दगी के हर ख़तरे से दो-चार कर सकती है और उसे किसी भी गढ़े में गिरा सकती है-)))

और यह याद रखो के मौत की निगाहें तुमसे क़रीबतर हो चुकी हैं और तुम उसके पन्जों में आ चुके हो जो तुम्हारे अन्दर गड़ाए जा चुके है। मौत के “ादीदतरीन मसाएल और दुष्वारतरीन मुष्किलात तुम पर छा चुके हैं, अब दुनिया के ताल्लुक़ात को ख़त्म करो और आखि़रत के ज़ादेराह तक़वा के ज़रिये अपनी ताक़त का इन्तेज़ाम करो।
(वाज़ेह रहे के इससे पहले भी इस क़िस्म का एक कलाम दूसरी रिवायत के मुताबिक़ गुज़र चुका है)

205- आपका इरषादे गिरामी
(जिसमें तल्हा व ज़ुबैर को मुख़ातिब बनाया गया है जब इन दोनों ने बैयत के बावजूद मष्विरा न करने और मदद न मांगने पर आपसे नाराज़गी का इज़हार किया)

तुमने मामूली सी बात पर तो ग़ुस्से का इज़हार कर दिया लेकिन बड़ी बातों को पसे पुष्त डाल दिया, क्या तुम यह बता सकते हो के तुम्हारा कौन सा हक़ ऐसा है जिससे मैंने तुमको महरूम कर दिया है? या कौन सा हिस्सा ऐसा है जिसपर मैंने क़ब्ज़ा कर लिया है? या किसी मुसलमान ने कोई मुक़द्दमा पेष किया हो और मैं उसका फ़ैसला न कर सका हूँ या उससे नावाक़िफ़ रहा हूँ या इसमें किसी ग़लती का षिकार हो गया हूँ।
ख़ुदा गवाह है के मुझे न खि़लाफ़त की ख़्वाहिष थी और न हुकूमत की एहतियाज, तुम्हीं लोगों ने मुझे इस अम्र की दावत दी और इस पर आमादा किया। इसके बाद जब यह मेरे हाथ में आ गई तो मैंने इस सिलसिले में किताबे ख़ुदा और इसके दस्तूर पर निगाह की और जो उसने हुक्म दिया था उसी का इत्तेबाअ किया और इस तरह रसूले अकरम (स0) की सुन्नत की इक़्तेदा की। जिसके बाद न मुझे तुम्हारी राय की कोई ज़रूरत थी और न तुम्हारे अलावा किसी की राय की और न मैं किसी हुक्म से जाहिल था के तुमसे मषविरा करता या तुम्हारे अलावा दीगर बरादराने इस्लाम से, और अगर ऐसी कोई ज़रूरत होती तो मैं न तुम्हें नज़रअन्दाज़ करता और न दीगर मुसलमानों को। रह गया यह मसला के मैंने बैतुलमाल की तक़सीम में बराबरी से काम लिया है तो यह न मेरी ज़ाती राय है और न इस पर मेरी ख़्वाहिष की हुक्मरानी है बल्कि मैंने देखा के इस सिलसिले में रसूले अकरम (स0) की तरफ़ से हमसे पहले फ़ैसला हो चुका है तो ख़ुदा के मुअय्यन किये हुए हक़ और उसके जारी किये हुए हुक्म के बाद किसी की कोई ज़रूरत ही नहीं रह गई है।
ख़ुदा “ााहिद है के इस सिलसिले में न तुम्हें षिकायत का कोई हक़ है और न तुम्हारे अलावा किसी और को, अल्लाह हम सबके दिलों को हक़ की राह पर लगा दे और सबको सब्र व “ाकीबाई की तौफ़ीक़ अता फ़रमाए।
ख़ुदा उस “ाख़्स पर रहमत नाज़िल करे जो हक़ को देख ले तो उस पर अमल करे या ज़ुल्म को देख ले तो उसे ठुकरा दे और साहेबे हक़ के हक़ में इसका साथ दे।

(((- अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने इन तमाम पहलुओं का तज़किरा इसलिये किया है ताके तल्हा व ज़ुबैर की नीयतों का मुहासेबा किया जा सके और उनके अज़ाएम की हक़ीक़तों को बेनक़ाब किया जा सके के मुझसे पहले ज़मानों में यह तमाम नक़ाएस मौजूद थे, कभी हुक़ूक़ की पामाली हो रही थी, कभी इस्लामी सरमाये को अपने घराने पर तक़सीम किया जा रहा था। कभी मुक़द्देमात में फ़ैसले से आजिज़ी का एतराफ़ था और कभी सरीही तौर पर ग़लत फ़ैसला किया जा रहा था। लेकिन इसके बावजूद तुम लोगों की रगे हमीयत व ग़ैरत को कोई जुम्बिष नहीं हुई और आज जबके ऐसा कुछ नहीं है तो तुम बग़ावत पर आमादा हो गए हो। इसका मतलब यह है के तुम्हारा ताल्लुक़ दीन और मज़हब से नहीं है। तुम्हें सिर्फ़ अपने मफ़ादात से ताल्लुक़ है जब तक यह मफ़ादात महफ़ूज़ थे, तुमने हर ग़लती पर सुकूत इख़्तेयार किया और आज जब मफ़ादात ख़तरे में पड़ गए हैं तो “ाोरष और हंगामे पर आमादा हो गए हो।-)))

206-आपका इरषादे गिरामी(जब आपने जंगे सिफ़्फ़ीन के ज़माने में अपने बाज़ असहाब के बारे में सुना के वह अहले “ााम को बुरा भला कह रहे हैं)

मैं तुम्हारे लिये इस बात को नापसन्द करता हूँ के तुम गालियां देने वाले हो जाओ, बेहतरीन बात यह है के तुम उनके आमाल और हालात का तज़किरा करो ताके बात भी सही रहे और हुज्जत भी तमाम हो जाए और फिर गालियां देने के बजाए यह दुआ करो के ख़ुदाया! हम सबके ख़ूनों को महफ़ूज़ कर दे और हमारे मुआमलात की इस्लाह कर दे और उन्हें गुमराही से हिदायत के रास्तु पर लगा दे ताके नावाक़िफ़ लोग हक़ से बाख़बर हो जाएं और हर्फ़े बातिल कहने वाले अपनी गुमराही और सरकषी से बाज़ आ जाएं।

(((-यह उस अम्र की तरफ़ इषारा है के मकान की वुसअत ज़ाती अग़राज़ के लिये हो तो उसका नाम दुनियादारी है, लेकिन अगर इसका मक़सद मेहमान नवाज़ी, सिलाए रहम, अदाएगीए हुक़ूक़, हिफ़ज़े आबरू, इज़हारे अज़मत व मज़हब हो तो इसका कोई ताल्लुक़ दुनियादारी से नहीं है और यह दीन व मज़हब ही का एक “ाोबा है, फ़र्क़ सिर्फ़ यह है के यह फ़ैसला नीयतों से होगा और नीयतों का जानने वाला सिर्फ़ परवरदिगार है कोई दूसरा नहीं-)))

207- आपका इरषादे गिरामी
(जंगे सिफ़्फ़ीन के दौरान जब इमाम हसन (अ0) को मैदाने जंग की तरफ़ सबक़त करते हुए देख लिया)
देखो! इस फ़रज़न्द को रोक लो कहीं इसका सदमा मुझे बेहाल न कर दे, मैं इन दोनों (हसन (अ0) व हुसैन (अ0)) को मौत के मुक़ाबले ज़्यादा अज़ीज़ रखता हूँ। कहीं ऐसा न हो के इनके मर जाने से नस्ले रसूल (स0) मुन्क़ता हो जाए।
सय्यद रज़ी - ‘‘अमलको आनी हाज़ल ग़ुलाम’’ अरब का बलन्दतरीन कलाम और फ़सीहतरीन मुहावरा है।

208-आपका इरषादे गिरामी(जो उस वक़्त इरषाद फ़रमाया जब आपके असहाब में तहकीम के बारे में इख़्तेलाफ़ हो गया था)

लोगों! याद रखो के मेरे मामलात तुम्हारे साथ बिल्कुल सही चल रहे थे जब तक जंग ने तुम्हें ख़स्ताहाल नहीं कर दिया था, इसके बाद मुआमलात बिगड़ गए हालांके ख़ुदा गवाह है के अगर जंग ने तुमसे कुछ को ले लिया और कुछ को छोड़ दिया तो इसकी ज़द तुम्हारे दुष्मन पर ज़्यादा ही पड़ी है।
अफ़सोस के मैं कल तुम्हारा हाकिम था और आज महकूम बनाया जा रहा हूँ। कल तुम्हें मैं रोका करता था और आज तुम मुझे रोक रहे हो। बात सिर्फ़ यह है के तुम्हें ज़िन्दगी ज़्यादा प्यारी है और मैं तुम्हें किसी ऐसी चीज़ पर आमादा नहीं कर सकता हूँ जो तुम्हें नागवार और नापसन्द हो।

Friday, April 29, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 195-197 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 195-197

195-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये जिसने अपनी सल्तनत के आसार और किबरियाई के जलाल को इस तरह नुमायां किया है के अक़्लों की निगाहें अजायबे क़ुदरत से हैरान हो गई हैं और नुफ़ूस के तसव्वुरात व इफ़्कार उसके सिफ़ात की हक़ीक़त के इरफ़ान से रूक गए हैं।
मैं गवाही देता हूँ के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और यह गवाही सिर्फ़ ईमान व यक़ीन, इख़लास व एतेक़ाद की बिना पर है और फिर मैं गवाही देता हूँ के मोहम्मद (स0) उसके बन्दे और रसूल हैं, उसने इन्हें उस वक़्त भेजा है जब हिदायत के निषानात मिट चुके थे और दीन के रास्ते बेनिषान हो चुके थे। उन्होंने हक़ का वाषिगाफ़ अन्दाज़ से इज़हार किया। लोगों को हिदायत दी और सीधे रास्ते पर लगाकर मयानारवी का क़ानून बना दिया।
बन्दगाने ख़ुदा, याद रखो परवरदिगार ने तुमको बेकार नहीं पैदा किया है और न तुमको बेलगाम छोड़ दिया है। तुमको दी जाने वाली नेमतों के हुदूद को जानता है और तुम पर किये जाने वाले एहसानात का “ाुमार रखता है लेहाज़ा उससे कामरानी और कामयाबी का तक़ाज़ा करो, उसकी तरफ़ दस्ते तलब बढ़ाओ और उससे अताया का मुतालेबा करो, कोई हेजाब तुम्हें इससे जुदा नहीं कर सकता है और कोई दरवाज़ा उसका तुम्हारे लिये बन्द नहीं हो सकता है, वह हर जगह और हर आन मौजूद है, हर इन्सान और हर जिन के साथ है, न अता उसके करम में रख़ना डाल सकती है और न हिदाया उसके ख़ज़ाने में कमी पैदा कर सकते हैं। कोई साएल इसके ख़ज़ाने को ख़ाली नहीं कर सकता है और कोई अतिया उसके करम की इन्तेहा को नहीं पहुंच सकता है। एक “ाख़्स की तरफ़ तवज्जो दूसरे की तरफ़ से रूख़ मोड़ नहीं सकती है और आवाज़ दूसरी आवाज़ से ग़ाफ़िल नहीं बना सकती है। इसका अतिया छीन लेने से मानेअ नहीं होता है और इसका ग़ज़ब रहमत से मषग़ूल नहीं करता है। रहमते इताब से ग़फ़लत में नहीं डाल देती है और हस्ती का पोषीदा होना ज़हूर से मानेअ नहीं होता है और आसार का ज़हूर हस्ती की परदावारी को नहीं रोक सकता है, वह क़रीब होके भी दूर है और बलन्द होकर भी नज़दीक है, वह ज़ाहिर होकर भी पोषीदा है और पोषीदा होकर भी ज़ाहिर है। वह जज़ा देता है लेकिन उसे जज़ा नहीं दी जाती है, उसने मख़लूक़ात को सोच बिचार करके नहीं बनाया है और न ख़स्तगी (तकान) की बिना पर उनसे मदद ली है।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूँ के यही हर ख़ैर की ज़माम और हर नेकी की बुनियाद है, इसके बन्धनों से वाबस्ता रहो और इसके हक़ाएक़ से मुतमस्सिक रहो, यह तुमको राहत की महफ़ूज़ मन्ज़िलों और वुसअत के बेहतरीन इलाक़ों तक पहुंचा देगा, तुम्हारे लिये महफ़ूज़ मुक़ामात होंगे और बाइज़्ज़त मनाज़िल, उस दिन जिस दिन आंखें फटी की फटी रह जाएंगी और एतराफ़ अन्धेरा छा जाएगा। बोटियां मोअत्तल कर दी जाएंगी (दस-दस महीने की गाभिन ऊंटनियांं बेकार कर दी जाएंगी) और सूर फूंक दिया जाएगा। उस वक़्त सबका दम निकल जाएगा और हर ज़बान गूंगी हो जाएगी। बलन्दतरीन पहाड़ और मज़बूत तरीन चट्टानें रेज़ा रेज़ा हो जाएंगी, पत्थरों की चट्टानें चमकदार सराब की “ाक्ल में तब्दील हो जाएंगी और उनकी मन्ज़िल एक साफ़ चटियल मैदान हो जाएगी, न कोई “ाफ़ीअ “िाफ़ाअत करने वाला होगा और न कोई दोस्त काम आने वाला होगा, और न कोई माज़ेरत व दिफ़ाअ करने वाली होगी।
(((- जिन लोगों के सिफ़ात व कमालात पर मिज़ाज या आदात की हुकमरानी होती है, इनके कमालात में इस तरह की यकसानियत पाई जाती है के मेहरबान होते हैं और मेहरबान ही होते हैं और ग़ुस्सावर ही होते हैं। लेकिन मालिके कायनात के औसाफ़ व कमालात इससे बिलकुल मुख़्तलिफ़ हैं उसके औसाफ़ व कमालात का सरचष्मा इसका मिज़ाज या उसकी तबीअत नहीं है। बल्कि उनका वाक़ेई सरचष्मा इसकी हिकमत और मसलेहत है, लेहाज़ा उसके बारे में ऐन मुमकिन है के एक ही वक़्त में मेहरबान भी हो और ग़ज़बनाक भी, नेमतें अता भी कर रहा हो और सल्ब भी कर रहा हो, उसके कमाल का ज़हूर भी हो और पर्दा भी हो, वह दूर भी नज़र आए और क़रीब भी, इसलिये के मसालेह का तक़ाज़ा हमेषा अफ़राद के एतबार से मुख़्तलिफ़ होता है। एक “ाख़्स का किरदार रहमत चाहता है और दूसरे का ग़ज़ब, एक के हक़ में मसलेहत अता कर देना है और दूसरे के हक़ में छीन लेना, एक जज़ा और ईनाम का सज़ावार है और दूसरा सज़ा व इताब का हक़दार। तू हकीम अललइतलाक़ का फ़र्ज़ है के एक ही वक़्त में हर “ाख़्स के साथ वैसा ही बरताव करे जिसका वह अहल है और एक बरताव उसे दूसरे बरताव से ग़ाफ़िल न बना सके-)))
196-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें सरकारे दो आलम (स0) की मद्हा की गई है)

प्रवरदिगार ने आपको उस वक़्त मबऊस किया जब न कोई निषाने हिदायत क़ायम रह गया था और न कोई मिनारए दीन रौषन था और न कोई रास्ता वाज़ेह था।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूँ और दुनिया से होषियार कर रहा हूँ के यह कूच का घर और बदमज़गी का इलाक़ा है, इसका बाषिन्दा हर हाल सफ़र करने वाला है और इसका मुक़ीम बहरहाल जुदा होने वाला है। यह अपने अहल को लेकर इस तरह लरज़ती है जिस तरह गहरे समन्दरों में तन्द व तेज़ हवाओं की ज़द पर किष्तियां, कुछ लोग ग़र्क़ और हलाक हो जाते हैं और कुछ मौजों के सहारे पर बाक़ी रह जाते हैं। तेज़ हवाएं उन्हें अपने दामन में लिये फ़िरती रहती हैं और अपनी हौलनाक मन्ज़िलों की तरफ़ ले जाती रहती हैं। जो ग़र्क़ हो गया वह दोबारा पाया नहीं जा सकता (हाथ नहीं आ सकता) और जो बच गया है उसका रास्ता हलाकत की ही तरफ़ जा रहा है।
बन्दगाने ख़ुदा! अभी बात को समझ लो और जबके ज़बानें आज़ाद हैं और बदन सही व सालिम हैं। आज़ा में लचक बाक़ी है और आने-जाने की जगह वसीअ और काम का मैदान तवील व अरीज़ है। क़ब्ल इसके के मौत नाज़िल हो जाए और अजल का फन्दा गले में पड़ जाए, अपने लिये मौत की आमद को यक़ीनी समझ लो और उसके आने का इन्तेज़ार न करो।

197- आपका इरषादे गिरामी(जिसमें पैग़म्बरे इस्लाम (स0) के अम्र व नहीं और तालीमात को क़ुबूल करने के ज़ैल में फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया गया है)

असहाबे पैग़म्बर (स0) में “ारीअत के अमानतदार अफ़राद इस हक़ीक़त हैं के मैंने एक लम्हे के लिये भी ख़ुदा और रसूल (स0) की बात को रद नहीं किया और मैंने पैग़म्बरे अकरम (स0) पर अपनी जान उन मुक़ामात पर क़ुरबान की है जहां बड़े-बड़े बहादुर भाग खड़े होते हैं और उनके क़दम पीछे हट जाते हैं, सिर्फ़ इस बहादुरी की बुनियाद पर जिससे परवरदिगार ने जुझे सरफ़राज़ फ़रमाया था।
रसूले अकरम (स0) उस वक़्त दुनिया से रूख़सत हुए हैं जब उनका सर मेरे सीने पर था और उनकी रूहे अक़दस मेरे हाथों पर जुदा हुई है तो मैंने अपने हाथों को चेहरे पर मल लिया, मैंने ही आपको ग़ुस्ल दिया है जब मलाएका मेरी इमदाद कर रहे थे और घर के अन्दर और बाहर एक कोहराम बरपा था, एक गिरोह नाज़िल हो रहा था और एक वापस जा रहा था। सब नमाज़े जनाज़ा पढ़ रहे थे और मैं मुसलसल उनकी आवाज़ें सुन रहा था, यहां तक के मैंने ही हज़रत को सुपुर्दे लहद किया है। तो अब बताओ के ज़िन्दगी और मौत में मुझसे ज़्यादा उनसे क़रीबतर कौन है? अपनी बसीरतों के साथ और सिद्क़े नीयत के एतमाद पर आगे बढ़ो, अपने दुष्मन से जेहाद करो, क़सम है उस परवरदिगार की जिसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है के मैं हक़ के रास्ते पर पर हूँ और वह लोग बातिल की लग़्िज़षों की मन्ज़िल में, मैं जो कह रहा हूँ वह तुम सुन रहे हो और मैं अपने और तुम्हारे दोनों के लिये ख़ुदा की बारगाह में अस्तग़फ़ार कर रहा हूँ।
(((-मौलाए कायनात (अ0) की पूरी हयात इस इरषादे गिरामी का बेहतरीन मुरक़्क़ा है जहां हिजरत की रात से लेकर फ़तहे मक्का तक और उसके बाद तबलीग़े बराअत तक कोई मौक़ा ऐसा नहीं था जहां आपने सरकारे दो आलम (स0) और उनके मक़सद की ख़ातिर अपनी जान को ख़तरे में न डाल दिया हो और उस वहदत ज़ात व इताअत का सुबूत न दिया हो जिसकी तरफ़ ख़ुद हज़रत ने मैदाने ओहद में इषारा किया था जब जिबराईले अमीन (अ0) ने अज़ की के हुज़ूर अली (अ0) की मवासात को देख रहे हैं? तो आपने फ़रमाया के इसमें हैरत की बात क्या है ‘‘अली (अ0) मुझसे है और मैं अली (अ0) से हूँ’’।
इसके बाद इन्तेक़ाल से लेकर दफ़्न के आखि़री मरहले तक हर क़दम पर हुज़ूर के उमूर के ज़िम्मेदार रहे जबके मोअर्रेख़ीन के बयान की बिना पर बड़े बड़े सहाबाए कराम दफ़न में षिरकत की सआदत हासिल न कर सके और खि़लाफ़त साज़ी की मुहिम में मसरूफ़ रह गए।-)))

Thursday, April 28, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 192-194 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 192-194

192-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(ख़ुत्बए क़ासअ)

(इस ख़ुत्बे में इबलीस के तकब्बुर की मज़म्मत की गई है और इस अम्र का इज़हार किया गया है के सबसे पहले तास्सुब और ग़ुरूर का रास्ता इसी ने इख़्तेयार कया है लेहाज़ा इससे इजतेनाब ज़रूरी है)
सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये हैं जिसका लिबास इज़़्त और किबरियाई है और उसने इस कमाल में किसी को “ारीक नहीं बनाया है। उसने दोनों सिफ़तों को हर एक के लिये हराम और ममनूअ क़रार देकर सिर्फ़ अपनी इज़्ज़त व जलाल के लिये मुन्तख़ब कर लिया है और जिसने भी इन दोनों सिफ़तों में उससे मुक़ाबला करना चाहा है उसे मलऊन क़रार दे दिया है। इसके बाद इसी रूख़ से मलाएका मुक़र्रबीन का इम्तेहान लिया है ताके तवाज़ोह करने वालों और ग़ुरूर रखने वालों में इम्तियाज़ क़ायम हो जाए और इसी बुनियाद पर उस दिलों के राज़ और ग़ैब के इसरार से बाख़बर परवरदिगार ने यह एलान कर दिया के ‘‘मैं मिट्टी से एक बषर पैदा करने वाला हूँ और जब इसका पैकर तैयार हो जाए और मैं इसमें अपनी रूहे कमाल फूंक दूं तो तुम सब सजदे में गिर पड़ना’’ जिसके बाद तमाम मलाएका ने सजदा कर लिया, सिर्फ़ इबलीस ने इन्कार कर दिया’’ के उसे तास्सुब लाहक़ हो गया और उसने अपनी तख़लीक़ के माद्दे से आदम पर फ़ख़्र किया और अपनी असल की बिना पर इस्तकबार का षिकार हो गया। जिसके बाद यह दुष्मने ख़ुदा तमाम मुतास्सुब अफ़राद का पेषवा और तमाम मुतकब्बिर लोगों का मोरिसे आला बन गया। उसी ने असबियत की बुनियाद क़ायम की और उसी ने परवरदिगार से जबरूत की रिदा में मुक़ाबला किया और अपने ख़याल में इज़्ज़त व जलाल का लिबास ज़ेबे तन कर लिया और तवाज़ोअ का नक़ाब उतार कर फ़ेंक दिया।
अब क्या तुम नहीं देख रहे हो के परवरदिगार ने किस तरह उसे तकब्बुर की बिना पर छोटा बना दिया है और बलन्दी के इज़हार की बुनियाद पर पस्त कर दिया है। दुनिया में इसे मलऊन क़रार दे दिया है और आख़ेरत में उसके लिये आतिषे जहन्नम का इन्तेज़ाम कर दिया है।
अगर परवरदिगार यह चाहता के आदम (अ0) को एक ऐसे नूर से ख़ल्क़ करे जिसकी ज़िया आंखों को चकाचैंद कर दे और जिसकी रौनक़ अक़्लों को मबहूत कर दे या ऐसी ख़ुषबू से बनाए जिसकी महक सांसों को जकड़ ले तो यक़ीनन कर सकता था और अगर ऐसा कर देता तो यक़ीनन गर्दनें उनके सामने झुक जातीं और मलाएका का इम्तेहान आसान हो जाता लेकिन वह उन चीज़ों से इम्तेहान लेना चाहता था जिनकी असल मालूम न हो ताके इसी इम्तेहान से इनका इम्तियाज़ क़ायम हो सके और उनके इस्तेकबार का इलाज किया जा सके और उन्हें ग़ुरूर से दूर रखा जा सके।
तो अब तुम परवरदिगार के इबलीस के साथ बरताव से इबरत हासिल करो के उसने इसके तवील अमल और बेपनाह जद्दो जेहद को तबाह व बरबाद कर दिया जबके वह छः हज़ार साल इबादत कर चुका था।
(((-इसमें कोई “ाक नहीं है के मलाएका की इस्मत बषर जैसी इख़्तेयारी नहीं है जहां इन्सान सारे जज़्बात व ख़्वाहिषात से टकराकर इस्मते किरदार का मुज़ाहिरा करता है। लेकिन इसमें भी कोई “ाक नहीं है के मलाएका बिल्कुल जमादात व नबातात जैसे नहीं हैं के उन्हें किसी तरह का इख़्तेयार हासिल न हो। वरना अगर ऐसा होता तो न तकलीफ़ के कोई मानी होते और न इम्तेहान का कोई मक़सद होता। इनमें जज़्बात व एहसासात हैं लेकिन बषर जैसे नहीं हैं। उन्हें फ़ेल व तर्क का इख़्तेयार हासिल है लेकिन बिल्कुल इन्सानों जैसा नहीं है। इसी बिना पर इनका इम्तेहान लिया गया और इम्तेहान सिर्फ़ जज़्बा हब ज़ात और अनानीयत से मुताल्लिक़ था के यह जज़्बा मलक के अन्दर भी बज़ाहिर पाया जाता है।  और इसी जज़्बे की आज़माइष के लिये आदम (अ0) को बज़ाहिर ‘‘पस्त तरीन अनासिर’’ से पैदा किया गया जिसे आम तौर से पैरों से रौन्द दिया जाता है लेकिन इसी पैकरे ख़ाकी में रूहे कमाल को फूंक कर इतना बलन्द बना दिया के मलाएका के मसजूद बनने के लाएक़ हो गए और क़ुदरत ने इन्सानों को भी मुतवज्जो कर दिया के तुम्हारा कमाल तुम्हारी असल से नहीं है, तुम्हारा कमाल हमारे राबते और ताल्लुक़ से है, लेहाज़ा जब तक यह राबेता बरक़रार रहेगा तुम साहेबे कमाल रहोगे और जिस दिन यह राबेता टूट जाएगा, तुम ख़ाक का ढेर हो जाओगे और बस!-)))

जिनके बारे में किसी को मालूम नहीं है के वह दुनिया के साल थे या आख़ेरत के मगर एक साअत के तकब्बुर ने सबको मलियामेट कर दिया तो अब इस (इबलीस) के बाद कौन रह जाता है जो ऐसी मासियत के अज़ाबे इलाही से महफ़ूज़ रह सकता है।
यह हरगिज़ मुमकिन नहीं है के जिस जुर्म की बिना पर मलक को निकाल बाहर किया उसके साथ बषर को दाखि़ले जन्नत कर दे जबके ख़ुदा का क़ानून ज़मीन व आसमान के लिये एक ही जैसा है और अल्लाह और किसी ख़ास बन्दे के दरम्यान कोई ऐसा ख़ास ताल्लुक़ नहीं है के वह उसके लिये इस चीज़ को हलाल कर दे जो उसने सारे आलमीन के लिये हराम क़रार दी है।
बन्दगाने ख़ुदा! इस दुष्मने ख़ुदा से होषियार रहो, कहीं तुम्हें भी अपने मर्ज़ में मुब्तिला न कर दे और कहीं अपनी आवाज़ पर खींज न ले और तुम पर अपने सवारों और प्यादे लष्कर से हमला न कर दे। इसलिये के मेरी जान की क़सम उसने तुम्हारे लिये “ारांगेज़ी के तीर को चिल्लए कमान में जोड़ लिया है और कमान को ज़ोर से खींच लिया है और तुम्हें बहुत नज़दीक से निषाना बनाना चाहता है। उसने साफ़ कह दिया है (अल्लाह ने उसकी ज़बानी फ़रमाया है) के ‘‘परवरदिगार जिस तरह तूने मुझे बहका दिया है अब मैं भी इनके लिये गुनाहों को आरास्ता कर दूंगा और इन सबको गुमराह कर दूंगा’’ हालांके यह बात बिल्कुल अटकल पच्चू में कही थी और बिल्कुल ग़लत अन्दाज़े की बिना पर ज़बान से निकाली थी लेकिन ग़ुरूर की औलाद, तास्सुब की बिरादरी और तकब्बुर व जाहेलीयत के “ाहसवारों ने इसकी बात की तस्दीक़ कर दी। यहां तक के जब तुम में से मुंहज़ोरी करने वाले उसके मुतीअ हो गए और उसकी तमअ तुम में मुस्तहकम हो गई तो बात परदए राज़ से निकल कर मन्ज़रे आम आ गई। उसने अपने इक़तेदार को तुम पर क़ायम कर लिया और अपने लष्करों का रूख़ तुम्हारी तरफ़ मोड़ दिया। फ़ित्नों ने तुम्हें ज़िल्लत के ग़ारों में ढकेल दिया और तुम्हें क़त्ल व ख़ून के भंवर में फंसा दिया और मुसलसल ज़ख़्मी करके पामाल कर दिया। तुम्हारी आंखों में नैज़े चुभो दिये, तुम्हारे हल्क़ पर ख़न्जर चला दिये और तुम्हारी नाक (नथनों) को रगड़ (पारा-पारा कर) दिया, तुम्हारे जोड़ बन्द को तोड़ दिया और तुम्हारी नाक में तस्लत व ग़लबे की नकेलें डाल कर तुम्हें उस आग की तरफ़ खींच लिया जो तुम्हारे ही वास्ते मुहैया की गई है । वह तुम्हारी दीन को इन सबसे ज़्यादा मजरूह करने वाला और तुम्हारी दुनिया में उन सबसे ज़्यादा फ़ित्ना व फ़साद की आग भड़काने वाला है जिनसे मुक़ाबले की तुमने तैयारी कर रखी है और जिनके खि़लाफ़ तुमने लष्कर जमा किये हैं। लेहाज़ा अब अपने ग़ैज़ व ग़ज़ब का मरकज़ उसी को क़रार दो और सारी कोषिष उसी के खि़लाफ़ सर्फ़ करो।
ख़ुदा की क़सम उसने तुम्हारी असल पर अपनी बरतरी का इज़हार किया है और तुम्हारे हसब में ऐब निकाला है और तुम्हारे नसब पर ताना दिया है और तुम्हारे खि़लाफ़ लष्कर जमा किया है और तुम्हारे रास्ते को अपने प्यादों से रौंदने का इरादा किया है। जो हर जगह तुम्हारा षिकार करना चाहते हैं और हर मक़ाम पर तुम्हारे एक-एक उंगली के पोर ज़र्ब लगाना चाहते हैं और तुम न किसी हीले से अपना बचाव करते हो और न किसी अज़्म व इरादे से अपना दिफ़ाअ करते हो, दरआन्हालीके तुम ज़िल्लत के भंवर, तंगी के दाएरे, मौत के मैदान और बलाओं की जूला निगाह में हो।

(((- इस मक़ाम पर यह सवाल ज़रूर पैदा होता है के सूरए कहफ़ की आयत नम्बर 5 में इबलीस को जिन्नात में क़रार दिया गया है तो इस मक़ाम पर इसे मलक के लफ़्ज़ से किस तरह ताबीर किया गया है। इसका जवाब बिल्कुल वाज़ेह है के मक़ामे तकलीफ़ में हमेषा ज़ाहिर को देखा जाता है और मक़ामे जज़ा में हक़ीक़त पर निगाह की जाती है, ईमान के एहकाम उन तमाम अफ़राद के लिये हैं जिनका ज़ाहिर ईमान है लेकिन ईमान की जज़ा और उसका इनआम सिर्फ़ उन अफ़राद के लिये है जो वाक़ेई साहेबाने ईमान हैं।
यही हाल मलाएका और जिन्नात का है के मलाएका के एहकाम में वह तमाम अफ़राद “ाामिल हैं जो अपने मलक होने के दावेदार हैं चाहे वाक़ेअन क़ौमे जिन से ताल्लुक़ रखते हों और मलाएका की अज़मत व “ाराफ़त सिर्फ़ उन अफ़राद के लिये है जो वाक़ेअन मलक हैं और उसका क़ौमे जिन से कोई ताल्लुक़ नहीं है।-)))

अब तुम्हारा फ़र्ज़ है के तुम्हारे दिलों में जो अस्बियत और जाहेलियत के कीनों की आग भड़क रही है उसे बुझा दो के यह ग़ुरूर एक मुसलमान के अन्दर “ौतानी वसवसों, फ़ितना अंगेज़ियों और फ़सोकारियों का नतीजा है (क्योंके मुसलमान में यह ग़ुरूर ख़ुद पसन्दी “ौतान की वसवसा अन्दाज़ी, नख़वत पसन्दी, फ़ित्ना अंगेज़ी और फसांेकारी ही का नतीजा होती है अज्ज़ व फ़रवतनी का सरताज बनाए कब्र व ख़ुद बीनी को पैरों तले रौंदने और तकब्बुर व रऊनत का तौक़ गर्दन से उतारने का अज़म बिल जज़्म कर लो) अपने सर पर तवाज़ोह का ताज रखने का अज़म करो और तकब्बुर को पैरों तले रख कर कुचल दो, ग़ुरूर के तौक़ को अपनी गर्दनों से उतार कर फेंक दो और अपने दुष्मन इब्लीस और उसके लष्करों के दरम्यान तवाज़ोह व इन्केसार का मोर्चा क़ायम कर लो के उसने हर क़ौम में अपने लष्कर, मददगार, प्यादे, सवार सब का इन्तेज़ाम कर लिया है और तुम उस “ाख़्स के जैसे न हो जाओ जिसने अपने माँजाए के मुक़ाबले में ग़ुरूर किया बग़ैर इसके के अल्लाह ने उसे कोई फ़ज़ीलत अता की हो, अलावा इसके के हसद की अदावत ने उसके नफ़्स में अज़मत का एहसास पैदा करा दिया और बेजा ग़ैरत ने उसके दिल में ग़ज़ब की आग भड़का दी। “ौतान ने इसकी नाक में तकब्बुर की हवा फूंक दी और अन्जामकार निदामत ही हाथ आई0आर0सी0 और क़यामत तक के तमाम क़ातिलों का गुनाह इसके सर आ गया के इसने क़त्ल की बुनियाद क़ायम की है।
याद रखो तुमने अल्लाह से खुल्लम खुल्ला दुष्मनी और साहेबाने ईमान से जंग का एलान करके ज़ुल्म की इन्तेहा कर दी है और ज़मीन में फ़साद बरपा कर दिया है। ख़ुदारा ख़ुदा से डरो, तकब्बुर के ग़ुरूर और जाहेलियत के तफ़ाख़र के सिलसिले में के यह अदावतों के पैदा करने की जगह और “ौतान की फ़सोंकारी की मन्ज़िल है। (तुम ज़माने जाहिलीयत वाली ख़ुदबीनी की बिना पर फ़ख़्र व ग़ुरूर करने से अल्लाह का ख़ौफ़ खाओ क्योंके यह दुष्मनी व अनाद का सरचष्मा और “ौतान की फ़सोंकारी का मरकज़ है, जिससे उसने गुज़िष्ता उम्मतों और पहली क़ौमों को वरग़लाया, यहाँ तक के वह इसके ढकेलने और आगे से खींचने पर बे चूँ व चरा जेहालत की अन्ध्यारियों और ज़लालत के गढ़ों में तेज़ी से गिर पड़े हैं। ऐसी सूरत से जिसमें ऐसे लोगों के तमाम दिल मिलते-जुलते हुए हैं और सदियों का हाल एक ही सा रहा है और ऐसा ग़ुरूर जिसके छिपाने से सीनों की वुसअतें तंंग होती हैं।
आगाह हो जाओ! अपने उन सरदारों और बड़ों (बुज़ुर्गों) की इताअत से मोहतात रहो जिन्होंने अपने हसब पर ग़ुरूर किया और अपने नसब की बलन्दियों की बुनियाद पर ऊंचे बन गए। बदनुमा चीज़ों को अल्लाह के सर डाल दिया और उसके एहसानात का सरीही इन्कार कर दिया। उन्होंने उसके क़ज़ा व क़द्र से टक्कर लेने और उसकी नेमतों पर ग़लबा पाने के लिये उसके एहसानात से यकसर इन्कार कर दिया। यही वह लोग हैं जो अस्बियत की बुनियाद के सुतुन (फ़ितने के काख़ व ऐवान के सुतून) और जाहेलीयत के नसबी तफ़ाख़ुर की तलवारें हैं।
अल्लाह से डरो और ख़बरदार उसकी नेमतों के दुष्मन और उसके दिये हुए फ़ज़ाएल के हासिद न बनो। इन झूठे मदइयाने इस्लाम का इत्तेबाअ न करो जिनके गन्दे पानी को अपने साफ़ पानी में मिलाकर पी रहे हो और जिनकी बीमारियों को तुमने अपनी सेहत के साथ मख़लूत कर दिया है और जिनके बातिल को अपने हक़ में “ाामिल कर लिया है, यह लोग फ़िस्क़ व फ़ुजूर की बुनियाद हैं और नाफ़रमानियों के साथ चिपके हुए हैं।

(((- माँजाये से हाबील और क़ाबील की तरफ़ इषारा है जहां क़ाबील ने सिर्फ़ हम्द और तास्सुब की बुनियाद पर अपने हक़ीक़ी भाई का ख़ून कर दिया और अल्लाह की पाकीज़ा ज़मीन को खून ब हक़ से रंगीन कर दिया और इस तरह दुनिया में क़त्ल व ख़ून का सिलसिला “ाुरू हो गया जिसके हर जुर्म में क़ाबील का एक हिस्सा बहरहाल रहेगा।
किसी क़ौम की तबाही और बरबादी में सबसे बड़ा हाथ उन रईसों और सरदारों का होता है जिनकी हैसियत कुछ नहीं होती है लेकिन अपने को इस क़द्र अज़ीम बनाकर पेष करते हैं जिसका अन्दाज़ा करना मुष्किल होता है। उनके पास तास्सुब, अनाद, ग़ुरूर और तकब्बुर के अलावा कुछ नहीं होता है और ग़रीब बन्दगाने ख़ुदा को यह समझाना चाहते हैं के अल्लाह ने हमको बलन्द बनाया है और उसी ने तुम्हें पस्त क़रार दिया है लेहाज़ा अब तुम्हारा फ़र्ज़ है के उसके फ़ैसले पर राज़ी रहो और हमारी इताअत की राह पर चलते रहो, बग़ावत का इरादा मत करो के यह क़ज़ा व क़द्रे इलाही से बग़ावत है और यह “ााने इस्लाम के खि़लाफ़ है-)))

इबलीस ने उन्हें गुमराही की सवारी बनाया है और ऐसा लष्कर क़रार दे लिया है जिसके ज़रिये लोगों पर हमला करता है और यही उसके तर्जुमान हैं जिनकी ज़बान से वह बोलता है। तुम्हारी अक़्लों को छीनने के लिये तुम्हारी आंखों में समा जाने के लिये और तुम्हारे कानों में अपनी बातों को फूंकने के लिये उसने तुम्हें अपने तीरों का निषाना और अपने क़दमों की जुला निगाह और अपने हाथों का खिलौना बना लिया है।
देखो तुमसे पहले इस्तेकबार करने वाली क़ौमों पर जो ख़ुदा का अज़ाब, हमला, क़हर और इताब नाज़िल हुआ है उससे इबरत हासिल करो। इनके ख़सारों के भल लेटने और पहलुओं के भल गिरने से नसीहत हासिल करो, अल्लाह की बारगाह में तकब्बुर की पैदावार की मन्ज़िलों से इस तरह पनाह मांगो जिस तरह ज़माने के हवादिस से पनाह मांगते हो। अगर परवरदिगार तकब्बुर की इजाज़त किसी बन्दे को दे सकता तो सबसे पहले अपने मख़सुस अम्बिया और औलिया को इजाज़त देता लेकिन उस बेनियाज़ ने इनके लिये भी तकब्बुर को नापसन्दीदा क़रार दिया है और उनकी भी तवाज़ोह ही से ख़ुष हुआ है। उन्होंने अपने रूख़सारों को ज़मीन से चिपका दिया था और अपने चेहरों को ख़ाक पर रख दिया था और अपने “ाानों को मोमेनीन के लिये झुका दिया था।
यह सब समाज के वह कमज़ोर बना दिये जाने वाले अफ़राद थे जिनका ख़ुदा ने भूक से इम्तेहान लिया, मसाएब से आज़माया ख़ौफ़नाक मराहेल से इख़्तेयार किया और नाख़ुषगवार हालात में उन्हें तहो बाला करके देख लिया। ख़बरदार ख़ुदा की ख़ुषनूदी और नाराज़गी का मेयार माल और औलाद को क़रार न देना के तुम फ़ित्ने की मन्ज़िलों को नहीं पहचानते हो और तुम्हें नहीं मालूम है के ख़ुदा मालदारी और इक़्तेदार से किस तरह इम्तेहान लेता है। उसने साफ़ एलान कर दिया है ‘‘क्या इन लोगों का ख़याल है के हम उन्हें माल व औलाद की फ़रावानी अता करके उनकी नेकियों में इज़ाफ़ा कर रहे हैं, हक़ीक़त यह है के उन्हें कोई “ाऊर नहीं है।’’
अल्लाह अपने को ऊंचा समझने वालों का इम्तेहान अपने कमज़ोर क़रार दिये जाने वाले औलिया के ज़रिये लिया करता है।
देखो मूसा बिन इमरान अपने भाई हारून के साथ फ़िरऔन के दरबार में इस “ाान से दाखि़ल हुए के उनके बदल पर ऊन का पैराहन था और उनके हाथ में एक असा था, इन हज़रात ने इससे वादा किया के ‘‘अगर इस्लाम क़ुबूल करेगा तो उसके मुल्क और उसकी इज़्ज़त को दवाम व बक़ा अता कर देंगे तो उसने लोगों से कहा’’ क्या तुम लोग इन दोनों के चाल पर ताज्जुब नहीं कर रहे हो जो इन फ़क्ऱ-व-फ़ाक़ा की हालत में मेरे पास आए हैं और मेरे मुल्क को दवाम की ज़मानत दे रहे हैं, अगर यह ऐसे ही ऊंचे हैं तो इन पर सोने के कंगन क्यों नहीं नाज़िल हुए?’’ उसकी नज़र में सोना और इसकी जमा आवरी एक अज़ीम कारनामा था और ऊन का लिबास पहनना ज़िल्लत की अलामत था। हालांके अगर परवरदिगार चाहता तो अम्बियाए कराम की बअसत के साथ ही उनके लिये सोने के ख़ज़ाने, तलाए ख़ाहज़ के मआवन, बाग़ात के कष्तज़ारों के दरवाज़ों के दरवाज़े खोल देता और उनके साथ फ़िज़ा में परवाज़ करने वाले परिन्दे और ज़मीन के चैपायों को उनका ताबेअ फ़रमान बना देता, लेकिन ऐसा कर देता तो आज़माइष ख़त्म हो जाती और इनआमात का सिलसिला भी बन्द हो जाता।

(((-वाक़ेअन अजीब व ग़रीब मन्ज़र रहा होगा जब अल्लाह के दो मुख़लिस बन्दे मामूली लिबास पहले हुए फ़िरऔन के दरबार में खड़े होंगे और उसे दीने हक़ की दावत दे रहे होंगे और उससे जज़ा व इनआम का वादा कर रहे होंगे और वह मुस्कुराकर दरबारियों की तरफ़ देख रहा होगा, ज़रा इन दोनों की जराअत तो देखो, ख़ुदाए वक़्त को दावते बन्दगी दे रहे हैं और फिर हौसले तो देखो, बोसीदा लिबास के बावजूद इनामात का वादा कर रहे हैं और मामूली हैसियत के साथ अज़ाबे अलीम से डरा रहे हैं।
लेकिन जनाबे मूसा (अ0) ने इन हालात की कोई परवाह नहीं की और निहायत सुकून व वेक़ार के साथ अपना पैग़ाम सुनाते रहे के अल्लाह वाले सल्तनत व जबरूत से मरऊब नहीं होते हैं और बेहतरीन जेहाद यही है के सुलतान जाबिर के सामने कलमए हक़ बलन्द कर दिया जाए और हक़ की आवाज़ को दबने न दिया जाय।-)))

आसमानी ख़बरें भी बेकार व बरबाद हो जातीं। न मसाएब को क़ुबूल करने वालों को इम्तेहान देने वाले का अज्र मिलता और न साहेबाने ईमान को ऐसे (फ़िरऔन जैसे) किरदारों जैसा इनाम मिलता और न अलफ़ाज़ मानी का साथ देते।
अलबत्ता परवरदिगार ने अपने पुरसलीन को इरादों के एतबार से इन्तेहाई साहबे क़ूवत क़रार दिया है अगरचे देखने में हालात के एतबार से बहुत कमज़ोर हैं उनके पास वह क़नाअत है जिसने लोगों के दिल व निगाह को उनकी बे नियाज़ी से मामूर कर दिया है और वह ग़ुरबत है जिसकी बिना पर लोगों की आंखों और कानों को अज़ीयत होती है।
अगर अम्बियाए कराम ऐसी क़ूवत के मालिक होते जिसका इरादा भी न किया जा सके और ऐसी इज़्ज़त के दारा होते जिसको ज़लील न किया जा सके और ऐसी सल्तनत के हामिल होते जिसकी तरफ़ गर्दनें उठती हों और सवारियों के पालान कसे जाते हों तो यह बात लोगों की इबरत हासिल करने के लिये आसान होती और उन्हें इस्तकबार से बा-आसानी दूर कर सकती और सब के सब क़हर आमेज़ ख़ौफ़ और लज़्ज़त आमेज़ रग़बत की बिना पर ईमान ले आते, सब की नीयतें एक जैसी होतीं और सबके दरम्यान नेकियां तक़सीम हो जातीं। लेकिन उसने यह चाहा के उसके रसूलों का इत्तेबाअ और उसकी किताबों की तस्दीक़ और उसकी बारगाह में ख़ुज़ू और उसके सामने फ़रवतनी और उसके एहकाम की फ़रमाबरदारी और उसकी इताअत सब उसकी ज़ाते अक़दस से मख़सूस रहें और इसमें किसी तरह की मिलावट न होने पाए और ज़ाहिर है के जिस क़दर आज़माइष और इम्तेहान में षिद्दत होगी उसी क़द्र अज्र व सवाब भी ज़्यादा होगा।
क्या तुम यह नहीं देखते हो के परवरदिगारे आलम ने आदम (अ0) के दौर से आज तक अव्वलीन व आख़ेरीन सबका इम्तेहान लिया है उन पत्थरों के ज़रिये जिनका बज़ाहिर न कोई नफ़ा है और न नुक़सान, न उनके पास बसारत है और न समाअत, लेकिन उन्हीं से अपना वह मोहतरम मकान बनवा दिया है जिसे लोगों के क़याम का ज़रिया क़रार दे दिया है और फिर उसे ऐसी जगह क़रार दिया है जो रूए ज़मीन पर इन्तेहाई पथरीली व बलन्द ज़मीनों में इन्तेहाई मिटटी वाली वादियों में एतराफ़ के एतबार से इन्तेहाई तंग है उसके एतराफ़ सख़्त क़िस्म के रेतीले मैदान, के पानी वाले चष्मे और मुनतषिर क़िस्त की बस्तियां हैं जहां न ऊंट परवरिष पा सकते हैं और न गाय और न बकरियां।
इसके बाद उसने आदम (अ0) और उनकी औलाद को हुक्म दे दिया के अपने कान्धों को उसकी तरफ़ मोड़ दें और इस तरह उसे सफ़रों से फ़ायदा उठाने की मन्ज़िल और पालानों के उतारने की जगह बना दिया जिसकी तरफ़ लोग दौरे इफ़तादा बेआब-व-ग्याह बियाबानों, दूर-दराज़ घाटियों के नषेबी रास्तों, ज़मीन से कटे हुए दरियाओं के जज़ीरों से दिल व जान से मुतवज्जो होते हैं ताके ज़िल्लत के साथ अपने कान्धों को हरकत दें और उसके गिर्द अपने परवरदिगार की उलूहियत का एलान करें और पैदल इस आलम में दौड़ते रहें के उनके बाल बिखरे हुए हों और सर पर ख़ाक पड़ी हुई हो। अपने पैराहनों को उतार कर फेंक दें।

(((-यह उस अम्र की तरफ़ इषारा है के तामीरे ख़ानए काबा का ताल्लुक़ जनाबे इबराहीम (अ0) से नहीं है बल्कि जनाबे आदम (अ0) से है। सबसे पहले उन्होंने हुक्मे ख़ुदा से उसका घर बनाया और उसका तवाफ़ किया और फिर अपनी औलाद को तवाफ़ का हुक्म दिया और यह सिलसिला यूँ ही चलता रहा यहाँ तक के तूफ़ाने नूह (अ0) के मौक़े पर इस तामीर को बलन्द कर लिया गया और इसके बाद जनाबे इबराहीम (अ0) ने अपने दौर में इसकी दीवारों को बलन्द करके एक मकान की हैसियत दे दी जिसका सिलसिला आजतक क़ायम है और सारी दुनिया से मुसलमान इस घर का तवाफ़ करने के लिये आ रहे हैं जबके इसकी तामीरी हैसियत लाखों मकानों से कमतर है लेकिन मसल इसकी माद्दी हैसियत का नहीं है, मसला इसकी निस्बत का है जो परवरदिगार ने अपनी तरफ़ दे दी है और इसे मरजअ ख़लाएक़ बना दिया है जिस तरह के सरकारे दो आलम (स0) ने ख़ुद मौलाए कायनात को ‘‘अन्ता बेमन्जे़लतिल काबते’(काबा)’’ कह के मरजअ अवाम व ख़वास बना दिया है के इससे इन्हेराफ़ की कोई गुन्जाइष नहीं रह गई है।’’-)))

और बाल बढ़ाकर अपने हुस्न व जमाल को बदनुमा बना लें यह एक अज़ीम इब्तिला, “ादीद इम्तेहान और वाज़ेह इख़्तेयार है जिसके ज़रिये अबदीयत की मुकम्मल आज़माइष हो रही है, परवरदिगार ने इस मकान को रहमत का ज़रिया और जन्नत का वसीला बना दिया है। वह अगर चाहता तो इस घर को और उसके तमाम मषाएर को बाग़ात और नहरों के दरम्यान नर्म व हमवार ज़मीन पर बना देता जहां घने दरख़्त होते और क़रीब क़रीब फ़ल। इमारतें एक दूसरे से जुड़ी होतीं और आबादियाँ एक दूसरे से मुत्तसिल, कहीं सुरख़ी माएल गन्दुम के पौदे होते और कहीं सरसब्ज़ बाग़ात, कहीं चमन ज़ार होता और कहीं पानी में डूबे हुए मैदान, कहीं सरसब्ज़ व “ाादाब किष्तज़ार होते और कहीं आबाद गुज़रगाहें लेकिन इस तरह आज़माइष की सहूलत के साथ जज़ा की मिक़दार भी घट जाती।
और अगर जिस बुनियाद पर इस मकान को खड़ा किया गया है वह सब्ज़ ज़मदावर सुखऱ् याक़ूत जैसे पत्थरों और नूर व ज़िया की ताबानियों से इबारत होती तो सीनों पर “ाुकूक के हमले कम हो जाते और दिलों से इबलीस की मेहनतों का असर ख़त्म हो जाता और लोगों के ख़लजाने क़ल्ब का सिलसिला ख़त्म हो जाता। लेकिन परवरदिगार अपने बन्दों को सख़्त तरीन हालात से आज़माना चाहता है और उनसे संगीनतरीन मषक़्क़तों के ज़रिये बन्दगी कराना चाहता है और उन्हें तरह-तरह के नाख़ुषगवार हालात से आज़माना चाहता है ताके उनके दिलों से तकब्बुर निकल जाए और उनके नुफ़ूस में तवाज़ोअ और फ़रवतनी को जगह मिल जाए और इसी बात को फ़ज़्ल व करम के खुले हुए दरवाज़ों और अफ़ू व मग़फ़ेरत के आसानतरीन वसाएल में क़रार दे दे।
देखो दुनिया में सरकषी के अन्जाम, आख़ेरत में ज़ुल्म के अज़ाब और तकब्बुर के बदतरीन नतीजे के बारे में ख़ुदा से डरो के यह तकब्बुर “ौतान का अज़ीमतरीन जाल और बुज़ुर्गतरीन मक्र है जो दिलों में इस तरह उतर जाता है जैसे ज़हरे क़ातिल के न इसका असर ज़ाएल होता है और न इसका वार ख़ता करता है, न किसी आलिम के इल्म की बिना पर और न किसी नादार पर इसके फटे कपड़ों की बिना पर।
और इसी मुसीबत से परवरदिगार ने अपने साहेबाने ईमान बन्दों को नमाज़ और ज़कात और मख़सूस दिनों में रोज़े की मषक़्क़त के ज़रिये बचाया है के उनके आज़ा व जवारेह को सुकून मिल जाए, निगाहों में ख़ुषू पैदा हो जाए, नफ़्स में एहसासे ज़िल्लत पैदा हो, दिल बारगाहे इलाही में झुक जाएं और उनसे ग़ुरूर निकल जाए और इस बुनियाद पर के नमाज़ में नाज़ुक चेहरे तवाज़ोअ के साथ ख़ाक आलूद किये जाते हैं और मोहतरम आज़ा व जवारेह को ज़िल्लत के साथ ज़मीन से मिला दिया जाता है और रोज़े में एहसासे आजिज़ी के साथ पेट पीठ से मिल जाते हैं और ज़कात में ज़मीन के बेहतरीन नताएज को फ़ोक़रा व मसाकीन के हवाले कर दिया जाता है।

(((- इन्सान की सबसे बड़ी मुसीबत “ौतान का इत्तेबाअ है और “ौतान का सबसे बड़ा जरबा फ़साद और इस्तेकबार है इसलिये परवरदिगार ने इन्सान को इस हमले से बचाने के लिये नमाज़, रोज़ा और ज़कात को वाजिब कर दिया के नमाज़ के ज़रिये ख़ुज़ू व ख़ुषू का इज़हार होगा। रोज़ा के ज़रिये मषक़्क़त बरदाष्त करने का जज़्बा पैदा होगा और ज़कात के ज़रिये अपनी मेहनत के नताएज में फ़ोक़रा और मसाकीन को मुक़द्दम करने का ख़याल पैदा होगा और इस तरह वह ग़ुरूर निकल जाएगा जो इस्तेकबार की बुनियाद बनता है और जिसकी बिना पर इन्सान “ौतनत से क़रीबतर हो जाता है-)))
और देखो के इन आमाल में किस तरह तफ़ाख़ुर के आसार को जड़ से उखाड़ कर फेंक दिया जाता है और तकब्बुर के नुमायां होने वाले आसार को दबा दिया जाता है।
मैंने तमाम आलमीन को परख कर देख लिया है, कोई “ाख़्स ऐसा नहीं है जिसमें किसी “ौ का तास्सुब पाया जाता हो और उसके पीछे कोई ऐसी इल्लत न हो जिसमें जाहिल धोका खा जाएं या ऐसी दलील न हो जो अहमक़ों की अक़्ल से चिपक जाए, अलावा तुम लोगों के के तुम ऐसी चीज़ का तास्सुब रखते हो जिसकी कोई इल्लत और जिसका कोई सबब नहीं है, देखो इबलीस ने आदम (अ0) के मुक़ाबले में असबियत का इज़हार किया तो अपनी असल की बुनियाद पर उनकी तख़लीक़ पर तन्ज़ किया और यह कह दिया के मैं आग से बना हूँ और तुम ख़ाक से बने हो।
इसी तरह उम्मतों के दौलतमन्दों ने अपनी नेमतों के आसार की बिना पर ग़ुरूर का मुज़ाहिरा किया और यह एलान कर दिया के ‘‘हम ज़्यादा माल व औलाद वाले हैं लेहाज़ा हम पर अज़ाब नहीं हो सकता है’’ लेकिन तुम्हारे पास तो ऐसी कोई बुनियाद भी नहीं है। लेहाज़ा अगर फ़ख़्र ही करना चाहते हो तो बेहतरीन आदात, क़ाबिले तहसीन आमाल और हसीनतरीन ख़साएल की बिना पर करो जिनके बारे में अरब के ख़ानदानों, क़बाएल के सरदारों के बुज़ुर्ग और “ारीफ़ लोग किया करते थे, यानी पसन्दीदा एख़लाक़, अज़ीम व दानाई, आला मरातब और क़ाबिले तारीफ़ कारनामे।
तुम भी इन्हीं क़ाबिले सताइष आमाल पर फ़ख़्र करो, हमसायों का तहफ़्फ़ुज़ करो, अहद व पैमान को पूरा करो, नेक लोगों की इताअत करो, सरकषों की मुख़ालफ़त करो, फ़ज़्ल व करम को इख़्तेयार करो, ज़ुल्म व सरकषी से परहेज़ करो, ख़ूंरेज़ी से पनाह मांगो, ख़ल्क़े ख़ुदा के साथ इन्साफ़ करो, ग़ुस्से को पी जाओ, फ़साद फ़िल अर्ज़ से इज्तेनाब करो के यही सिफ़ात व कमालात क़ाबिले फ़ख्ऱ व मुबाहात हैं।
बदतरीन आमाल की बिना पर गुज़िष्ता उम्मतों पर नाज़िल होने वाले अज़ाब से अपने को महफ़ूज़ रखो, खै़ैर व “ार हर हाल में इन लोगों को याद रखो और ख़बरदार उनके जैसे बदकिरदार न हो जाना।
अगर तुमने उनके अच्छे बुरे हालात पर ग़ौर कर लिया है तो अब ऐसे उमूर को इख़्तेयार करो जिनकी बिना पर इज़्ज़त हमेषा इनके साथ रही। दुष्मन उनसे दूर-दूर रहे, आफ़ियत का दामन उनकी तरफ़ फ़ैला दिया गया, नेमतें उनके सामने सर निगूं हो गईं और करामत व “ाराफ़त ने उनसे अपना रिष्ता जोड़ लिया के वह इफ़तेराक़ से बचे, मोहब्बत के साथ, इसी पर दूसरों को आमादा करते रहे और इसी की आपस में वसीयत और नसीहत करते रहे।
और देखो हर उस चीज़ से परहेज़ करो जिसने इनकी कमर को तोड़ दिया, उनकी ताक़त को कमज़ोर कर दिया, यानी आपस का कीना, दिलों की अदावत, नफ़्सों का एक-दूसरे से मुंह फेर लेना और हाथों का एक-दूसरे की इमदाद से रूक जाना।
ज़रा अपने पहले वाले साहेबाने ईमान के हालात पर भी ग़ौर करो के वह किस तरह बला और आज़माइष की मन्ज़िलों में थे, क्या वह तमाम मख़लूक़ात में सबसे ज़्यादा बोझ के मुतहम्मिल और तमाम बन्दों में सबसे ज़्यादा मसाएब में मुब्तिला नहीं थे और तमाम अहले दुनिया सबसे ज़्यादा तन्गी में बसर नहीं कर रहे थे, फ़राअन ने उन्हें ग़ुलाम बना लिया था और तरह-तरह के बदतरीन अज़ाब में मुब्तिला कर रहे थे, उन्हें तल्ख़ घूंट पिला रहे थे और वह इन्हीं हालात में ज़िन्दगी गुज़ार रहे थे के हलाकत की ज़िल्लत भी थी और तग़लुब की क़हर सामानी भी, न बचाव का कोई रास्ता था और न दिफ़ाअ की कोई सबील।
(((-तारीख़ किरदारसाज़ी का बेहतरीन ज़रिया है और इससे इस्तेफ़ादा करने का बुनियादी उसूल यह है के इन्सान दोनों तरह की क़ौमों के हालात का जाएज़ा ले, इन क़ौमों को भी देखे जिन्होंने सरफ़राज़ी और बलन्दी हासिल की है और उन क़ौमों के हालात का भी मुतालेआ करे के जिन्होंने ज़िल्लत और रूसवाई का सामना किया है। ताके इन अक़वाम के किरदार को अपनाए जिन्होंने अपने वजूद को सरमाया तारीख़ बना दिया है और उन लोगों के किरदार से परहेज़ करे जिन्होंने अपने को ज़िल्लत के ग़ार में ढकेल दिया है।-)))

यहाँ तक के जब परवरदिगार ने देख लिया के उन्होंने उसकी मोहब्बत में तरह-तरह की अज़ीयतें बरदाष्त कर ली हैं और उसके ख़ौफ़ से हर नागवार हालात का सामना कर लिया है तो उनके लिये इन तंगियों में वुसअत का सामान फ़राहम कर दिया औश्र उनकी ज़िल्लत को इज़्ज़त में तब्दील कर दिया, ख़ौफ़ के बदले अम्न व अमान अता फ़रमा दिया और वह ज़मीन के हाकिम और बादषाह, क़ाएद और नुमायां अफ़राद बन गए, इलाही करामत ने उन्हें इन मन्ज़िलों तक पहुंचा दिया जहां तक जाने का उन्होंने तसव्वुर भी नहीं किया था।
देखो जब तक इनके इज्तेमाआत यकजा रहे उनके ख़्वाहिषात में इत्तेफ़ाक़ रहा, उनके दिल मोतदिल रहे, उनके हाथ एक-दूसरे की इमदाद करते रहे, इनकी तलवारें एक-दूसरे के काम आती रहीं, इनकी बसीरतें नाफ़िज़ रहीं और इनके अज़ाएम में इत्तेहाद रहा, वह किस तरह बाइज़्ज़त रहे, क्या वह तमाम एतराफ़े ज़मीन के अरबाब और तमाम लोगों की गर्दनों के हुक्काम नहीं थे।
लेकिन फ़िर आखि़रकार इनका अन्जाम क्या हुआ जब इनके दरम्यान इफ़तेराक़ पैदा हो गया और मोहब्बतों में इन्तेषार पैदा हो गया, बातों और दिलों में इख़्तेलाफ़ पैदा हो गया और सब मुख़्तलिफ़ जमाअतों और मुतहारिब गिरोहों में तक़सीम हो गए, तो परवरदिगार ने इनके बदन से करामत का लिबास उतार लिया और उनसे नेमतों की “ाादाबी को सल्ब कर लिया और अब उनके क़िस्से सिर्फ़ इबरत हासिल करने वालों के लिये सामाने इबरत बन कर रह गए हैं।
लेहाज़ा अब तुम औलादे इस्माईल और औलादे इस्हाक़ व इसराईल (याक़ूब) से इबरत हासिल करो के सबसे हालात किस क़द्र मिलते हुए और कैफ़ियात किस क़द्र यकसाँ हैं, देखो इनके इन्तेषार व इफ़तेराक़ के दौर में इनका क्या आलम था के क़ैसर व कसरा इनके अरबाब बन गए थे, और इन्हें एतराफ़े आलम के सब्ज़ा ज़ारों, इराक़ के दरयाओं, और दुनिया की “ाादाबियों से निकाल कर ख़ारदार झाड़ियों और आन्धियों की बेरोक गुज़रगाहों और मईषत की दुष्वार गुज़ार मन्ज़िलों तक पहुंचाकर इस आलम में छोड़ दिया था के वह फ़क़ीर व नादार, ऊंट की पुष्त पर चलने वाले और बालू के ख़ेमों में क़यामक रने वाले हो गए थे, घर बार के एतबार से तमाम क़ौमों से ज़्यादा ज़लील और जगह के एतबार से सबसे ज़्यादा ख़ुष्क सालियों का षिकार थे, न उनकी आवाज़ थी जिनकी पनाह लेकर अपना तहफ़्फ़ुज़ कर सकें और न कोई उलफ़त का साया था जिसकी ताक़त पर भरोसा कर सकें, हालात मुज़तरिब, ताक़तें मुन्तषिर, कसरत में इन्तेषार, बलाएं सख़्त, जेहालत तह ब तह, ज़िन्दा दरगोर बेटियां, पत्थर पर सतष के क़ाबिल, रिष्तेदारियां टूटी हुई और चारों तरफ़ से हमलों की यलग़ार।

(((- आलमे इस्लाम को बनी इसराईल के हालात से इबरत हासिल करना चाहिये के उन्हें क़ैसर व कसरा और दीगर सलातीने ज़माना ने किस क़द्र ज़लील किया और कैसे-कैसे बदतरीन हालात से दो चार किया, सिर्फ़ इसलिये के इनके दरम्यान इत्तेहाद नहीं था और वह ख़ुद भी बुराइयों में मुब्तिला थे और दूसरों को भी बुराइयों से रोकने का ख़याल नहीं रखते थे, नतीजा यह हुआ के परवरदिगार ने उन्हें इस अज़ाब में मुब्तिला कर दिया औश्र इनका यह तसव्वुर महमिल होकर रह गया के हम अल्लाह के मुन्तख़ब बन्दे और उसकी औलाद का मरतबा रखते हैं, दौरे हाज़िर में मुसलमानों का यही आलम है के सिर्फ़ उम्मते दस्त के नाम पर झूम रहे हैं, इसके अलावा इनके किरदार में किसी तरफ़ से एतदाल की कोई झलक नहीं है। हर तरफ़ इन्हेराफ़ ही इन्हेराफ़ और कजी ही कजी नज़र आती है, न कहीं वहदते कलमा है और न कहीं इत्तेहादे कलाम। इख़्तेलाफ़ात का ज़ोर है और दुष्मनों की हुक्मरानी, आपस का झगड़ा है और ग़ैरों की ग़ुलामी, इन्नालिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन!-)))

इसके बाद देखो के परवरदिगार ने उनपर किस क़द्र एहसानात किये जब इनकी तरफ़ एक रसूल भेज दिया जिसने अपने निज़ाम से इनकी इताअत का पाबन्द बनाया और अपनी दावत पर इनकी उलफ़तों को मुत्तहिद किया और इसके नतीजे में नेमतों ने इन पर करामत के बालो पर फैला दिये और राहतों के दरया बहा दिये। “ारीयत ने उन्हें अपनी बरकतों के बेषक़ीमत फ़वाएद में लपेट लिया, वह नेमतों में ग़र्क़ हो गए और ज़िन्दगी की “ाादाबियों में मज़े उड़ाने लगे, एक मज़बूत फ़रमान्दवा (इस्माल के ज़ेरे साया उनकी ज़िन्दगी) के ताम “ाोबे (नज़म व तरतीब) क़ायम हो गए (हालात साज़गार हो गए) और हालात ने ग़लबा व बुज़ुर्गी के पहलू में जगह दिलवा दी और एक मुस्तहकम मुल्क की बुलन्दियों पर दुनिया व दीन की सआदतें उनकी तरफ़ झुक पड़ीं, वह आलमीन के हुकाम हो गए और एतराफ़े ज़मीन के बादषाह “ाुमार होने लगे जो कल उनके उमूर के मालिक थे आज वह उनके उमूर के मालिक हो गए और अपने एहकाम उन पर नाफ़िज़ करने लगे, जो कल अपने एहकाम इन पर नाफ़िज़ कर रहे थे के न इनका दम ख़म निकाला जा सकता था और न इनका ज़ोर ही तोड़ा जा सकता था।
देखो तुमने अपने हाथों को इताअत के बन्धनों से झाड़ लिया है और अल्लाह की तरफ़ से अपने गिर्द खिंचे हुए हिसार में जाहेलीयत के एहकाम की बिना पर रख़ना पैदा कर दिया है। अल्लाह ने इस उम्मत के इज्तेमाअ पर यह एहसान किया है के उन्हें उलफ़त की ऐसी बन्दिषों में गिरफ़्तार कर दिया है के इसी के ज़ेरे साया सफ़र करते हैं और इसी के पहलू में पनाह लेते हैं और यह वह नेमत है जिसकी क़द्र व क़ीमत को कोई “ाख़्स नहीं समझ सकता है इसलिये के यह हर क़ीमत से बड़ी क़ीमत और हर “ारफ़ व करामत से बालातर करामत है।
और याद रखो के हिजरत के बाद फ़िर सहराई बद्दू हो गए हो और बाहमी दोस्ती के बाद फ़िर गिरोहों में तक़सीम हो गए हो, तुम्हारा इस्लाम से राबता सिर्फ़ नाम का रह गया है और तुम ईमान में से सिर्फ़ अलामतों को पहचानते हो और रूहे मज़हब से बिल्कुल बेख़बर हो।
तुम्हारा कहना है के आग बर्दाष्त कर लेंगे मगर ज़िल्लत नहीं बदाष्त करेंगे, गोया के इस्लाम के हुदूद को तोड़ कर और इसके उस अहद व पैमान को पारा-पारा करके जिसे अल्लाह ने ज़मीन में पनाह और मख़लूक़ात में अमन क़रार दिया है। इस्लाम को उलट देना चाहते हो, हालांके अगर तुमने इस्लाम के अलावा किसी और तरफ़ रूख़ भी किया तो अहले कुफ्ऱ तुमसे बाक़ाएदा जंग करेंगे और उस वक़्त न जिब्राईल आएंगे न मीकाईल, न महाजिर तुम्हारी इमदाद करेंगे और न अन्सार, सिर्फ़ तलवारें खड़खड़ाती रहेंगी यहाँतक के परवरदिगार अपना आखि़री फ़ैसला नाफ़िज़ कर दे।
तुम्हारे पास तो ख़ुदाई इताब व अज़ाब और हवादिस व हलाकत के नमूने मौजूद हैं लेहाज़ा ख़बरदार उसकी गिरफ्त से ग़ाफ़िल होकर दूर न समझो और उसके हमले को आसान समझ कर उसकी सख़्ती से ग़ाफ़िल होकर अपने को मुतमईन न बना लो।
देखो परवरदिगार ने तुमसे पहले गुज़र जाने वाली क़ौमों पर सिर्फ़ इसी लिये लानत की है के उन्होंने अम्र बिल मारूफ़ और नहीं अनिल मुनकिर तर्क कर दिया था जिसके नतीजे में जेहला पर मआसी के इरतेकाब की बिना पर लानत हुई और दानिष्मन्दों पर उन्हें न मना करने की बिना पर
(((-अफ़सोस जिस क़ौम ने चार दिन पहले इज़्ज़त के दिन देखे हों, अपने इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़ और अपनी इताअत “ाआरी के असरात का मुषाहेदा किया हो, वह यकबारगी इस तरह मुन्क़लिब हो जाए और राहत पसन्दी उसे दोबारा ढकेलकर माज़ी के गढ़े में ढाल दे और ज़िल्लत व रूसवाई उसका मुक़द्दर बन जाए।
(2) यह नुकता हर दौर के लिये क़ाबिले तवज्जो है के दीने ख़ुदा में लानत का इस्तेहक़ाक़ सिर्फ़ जेहालत और बदअमली ही से नहीं पैदा होता है बल्कि अकसर औक़ात उसके हक़दार अहले इल्म और दीनदार हज़रात भी बन जाते हैं, जब उनके किरदार में अनानीयत पैदा हो जाती है और वह दूसरों की तरफ़ से यकसर ग़ाफ़िल हो जाते हैं, न नेकियों का हुक्म देते हैं और न बुराइयों से रोकते हैं, दीने ख़ुदा की बरबादी की तरफ़ से उसी तरह आंखें बन्द कर लेते हैं जैसे किसी ग़रीब का सरमाया लुट रहा है और हमसे इसका कोई ताल्लुक़ नहीं जबके दीने इस्लाम हर मुसलमान का सरमायाए हयात है और इसके तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी हर साहेबे ईमान पर आएद होती है-)))

आगाह हो जाओ के तुमने इस्लाम की पाबन्दियों को तोड़ दिया है, उसके हुदूद को मोअत्तल कर दिया है और उसके एहकाम को मुर्दा बना दिया है परवरदिगार ने मुझे हुक्म दिया है के मैं बग़ावत करने वाले अहद षिकन और मुफ़सेदीन (ज़मीन में फ़साद बरपा करने वालों) से जेहाद करूं। चुनांचे मैं अहद व पैमान तोड़ने वालों (असहाबे जमल) से जेहाद कर चुका ना फ़रमानों (अहले सिफ़्फ़ीन) से मुक़ाबला कर चुका और बेदीन ख़वारिज (ख़वारिजे नहरवान) को मुकम्मल तरीक़े से ज़लील कर चुका। रह गया गढ़े में गिरने (गिरकर मरने) वाला “ौतान तो उसका मसला उस चिंघाड़ से हल हो गया जिसके दिल की धड़कन और सीने की थरथराहट की आवाज़ मेरे कानों में पहुच रही थी। अब सिर्फ़ बाग़ियों में थोड़े से अफ़राद बाक़ी रह गए हैं के अगर परवरदिगार उन पर हमला करने की इजाज़त दे दे तो उन्हें भी तबाह करके हुकूमत का रूख़ दूसरी तरफ़ मोड़ दूंगा फिर वही लोग बाक़ी रह जाएंगे जो मुख़्तलिफ़ “ाहरों (की दूर दराज़ हुदूद) में बिखरे पड़े हैं।
(मुझे पहचानो) मैंने कमसिनी ही में अरब के सीनों को ज़मीन से मिला दिया था और रबीया व मुज़िर (के क़बीलों) की सींगों को तोड़ दिया था। तुम्हें मालूम है के रसूले अकरम (स0) से मुझे किस क़द्र क़रीबी क़राबत और मख़सूस मन्ज़िलत हासिल है। उन्होंने बचपने से मुझे अपनी गोद में इस तरह ले लिया था के मुझे अपने सीने से लगाए रखते थे। अपने बिस्तर पर जगह देते थे, अपने कलेजे से लगाकर रखते थे ौर मुझे मुसलसल अपनी ख़ुषबू से सरफ़राज़ फ़रमाया करते थे और ग़िज़ा को अपने दांतों से चबाकर मुझे खिलाते थे, न उन्होंने मेरे कसी बयान में झूठ पाया और न मेरे किसी अमल में ग़लती देखी।
और अल्लाह ने दूध बढ़ाई के दौर ही से उनके साथ एक अज़ीम तरीन मलक को कर दिया था जो उनके साथ बुजु़र्गियों के रास्ते और बेहतरीन एख़लाक़ के तौर तरीक़े पर चलता रहता था और “ाब व रोज़ यही सिलसिला रहा करता था, और मैं भी उनके साथ उसी तरह रहता था जिस तरह बच्चा नाक़ा अपनी माँ के हमराह चलता है। वह रोज़ाना मेरे सामने अपने एख़लाक़ का एक निषाना पेष करते थे और फिर मुझे उसकी इक़तेदा करने का हुक्म दिया करते थे।
वह साल में एक ज़माना ग़ारे हिरा में गुज़ारा करते थे जहां सिर्फ़ मैं उन्हें देखता था और कोई दूसरा न होता था, उस वक़्त रसूले अकरम (स0) और ख़दीजा के अलावा किसी घर में इस्लाम का गुज़र न हुआ था और इनमें का तीसरा मैं था। मैं नूरे वहीए रिसालत का मुषाहेदा किया करता था और ख़ुषबूए रिसालत से दिमाग़ को मोअत्तर रखता था।
मैंने नुज़ूले वही के वक़्त “ौतान की चीख़ की आवाज़ सुनी थी और अर्ज़ की थी या रसूलल्लाह! यह चीख़ किसकी है? तो फ़रमाया के यह “ौतान है जो आज अपनी इबादत से मायूस हो गया है, तुम वह सब देख रहे हो जो मैं देख रहा हूँ और वह सब सुन रहे हो जो मैं सुन रहा हूँ। सिर्फ फ़र्क यह है के तुम नबी नहीं हो, लेकिन तुम मेरे वज़ीर भी हो और मन्ज़िले ख़ैर पर भी हो।
मैं उस वक़्त भी हज़रत के साथ था जब क़ुरैष के सरदारों ने आकर कहा था के मोहम्मद (स0)! त्ुमने बहुत बड़ी बात का दावा किया है जो तुम्हारे घरवालों में किसी ने नहीं किया था। अब हम तुमसे एक बात का सवाल कर रहे हैं, अगर तुमने सही जवाब दे दिया और हमें हमारे मुदआ को दिखला दिया तो हम समझ लेंगे के तुम नबीए ख़ुदा और रसूले ख़ुदा हो वरना अगर ऐसा न कर सके तो हमें यक़ीन हो जाएगा के तुम जादूगर और झूठे हो, तो आपने फ़रमाया था तुम्हारा सवाल क्या है? उन लोगों ने कहा के आप उस दरख़्त को दावत दे ंके वह जड़ से उखड़ कर आ जाए और आपके सामने खड़ा हो जाए? आपने फ़रमाया के परवरदिगार हर “ौ पर क़ादिर है अगर उसने ऐसा कर दिया तो क्या तुम लोग ईमान ले आओगे? और हक़ की गवाही दे दोगे! डन लोगों ने कहा बेषक। आपने फ़रमाया के मैं अनक़रीब यह मन्ज़र दिखला दूँगा लेकिन मुझे मालूम है के तुम कभी ख़ैर की तरफ़ पलट कर आने वाले नहीं हो। तुममें वह “ाख़्स भी मौजूद है जो कुंवे में फेंका जाएगा और वह भी है जो जो एहज़ाब क़ायम करेगा। यह कहकर आपने दरख़्त को आवाज़ दी के अगर तेरा ईमान अल्लाह और रोज़े आखि़रत पर है और तुझे यक़ीन है के मैं अल्लाह का रसूल हूँ तो जड़ से उखड़ कर मेरे सामने आजा और इज़्ने ख़ुदा से खड़ा हो जा। क़सम है उस ज़ात की जिसने उन्हें हक़ के साथ मबऊस किया है के दरख़्त जड़ से उखड़ गया और इसी आलम में हुज़ूर के सामने आ गया के इसमें सख़्त खड़खड़ाहट थी और परिन्दों के परों जैसी फड़फड़ाहट भी थी। उसने (कुछ)एक “ााख़े सरकार के सर पर साया फ़िगन कर दी और (कुछ)एक मेरे कान्धे पर, जबके मैं आपके दाहिने पहलू में था।
उन लोगों ने जैसे ही यह मन्ज़र देखा निहायत दरजए सरकषी और ग़ुरूर के साथ कहने लगे के अच्छा अब हुक्म दीजिये के आधा हिस्सा आप के पास आ जाए और आधा रूक जाए, आपने यह भी कर दिया और आधा हिस्सा निहायत दरजा-ए-हैरत के साथ और सख़्त तरीन खड़खड़ाहट के साथ आ गया और आपका हिसार कर लिया। उन लोगों ने फ़िर बरबिनाए कुफ्ऱ व सरकषी यह मुतालबा किया के अच्छा अब इससे कहिये के वापस जाकर दूसरे निस्फ़ हिस्से से मिल जाए (जैसा पहले था), आपने यह भी करके दिखला दिया तो मैंने आवाज़ दी के मैं तौहीदे इलाही का पहला इक़रार करने वाला और इस हक़ीक़त का पहला एतराफ़ करने वाला हूँ के दरख़्त ने अम्रे इलाही से आपकी नबूवत की तस्दीक़ की और आपके कलाम की बलन्दी (दिखाने) के लिये (जो कुछ किया वह अम्रे वाक़ेई है) आपके हुक्म की मुकम्मल इताअत कर दी।
लेकिन सारी क़ौम ने आपको झूठा और जादूगर क़रार दे दिया के इनका जादू अजीब भी है और बारीक भी है और ऐसी बातों की तस्दीक़ ऐसे ही अफ़राद कर सकते हैं, हम लोग नहीं कर सकते हैं। लेकिन मैं बहरहाल उस क़ौम में “ाुमार होता हूँ जिन्हें ख़ुदा के बादे में किसी मलामत करने वाले की मलामत की परवाह नहीं होती है। जिनकी निषानियां सिद्दीक़ीन जैसी हैं और जिनका कलाम नेक किरदार अफ़राद जैसा, यह रातों को आबाद रखने वाले और दिनों के मिनारे हैं। क़ुरान की रस्सी से मुतमस्सिक हैं और ख़ुदा व रसूल की सुन्नत को ज़िन्दा रखने वाले हैं, उनके यहाँ न ग़ुरूर है और न सरकषी, न ख़यानत है और न फ़साद, उनके दिल जन्नत में लगे हुए हैं और उनके जिस्म अमल में मसरूफ़ हैं।
(((-अगरचे कुफ़्फ़ार व मुष्रेकीन ने यह बात बतौर तमस्ख़ुर व इस्तेहज़ा कही थी लेकिन हक़ीक़ते अम्र यह है के ऐसे हक़ाएक़ का इक़रार ऐसे ही अफ़राद कर सकते हैं और ईमान की दौलत से सरफ़राज़ होना हर एक के बस की बात नहीं है। इस दौलत से महरूम आजके वह दानिषवर भी हैं जिनकी समझ में मोजिज़ा ही नहीं आता है और वह मोजिज़े को खि़लाफ़े क़ानून तबीअत क़रार देकर रद कर देते हैं और उनका ख़याल यह है के क़ानून साहबे क़ानून पर भी हुकूमत कर रहा है और साहबे क़ानून को भी यह हक़ नहीं है के वह अपने किसी बन्दे के मन्सब की तस्दीक़ के लिये अपने क़ानून में तबदीली कर दे जबके इसकी हज़ारों मिसालें तारीख़ में मौजूद हैं और वह जेहला और मुतास्सुब अफ़राद भी हैं जिनकी समझ में “ाक़्क़ुल क़मर और रद्दे “ाम्स जैसा रौषन मोजिज़ा नहीं आता है तो क़ुरान मजीद की बारीकियों और दीगर करामात की नज़ाकतों को क्या समझेंगे और किस तरह ईमान ला सकेंगे।-)))

193- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें साहेबाने तक़वा की तारीफ़ की गई है)

कहा जाता है के अमीरूल मोमेनीन (अ0) के एक आबिद व ज़ाहिद सहाबी जिनका नाम हमाम था, एक दिन हज़रत से अर्ज़ करने लगे के हुज़ूर मुझसे मुत्तक़ीन के सिफ़ात कुछ इस तरह बयान फ़रमाएं के गोया मैं उनको देख रहा हूँ, आपने जवाब से गुरेज़ करते हुए फ़रमाया के हमाम अल्लाह से डरो और नेक अमल करो के अल्लाह तक़वा  और हुस्ने अमल वालों को दोस्त रखता है (अल्लाह उन लोगों के साथ है जो मुत्तक़ी और नेक किरदार हैं)। हमाम इस मुख़्तसर बयान से मुतमईन न हुए तो हज़रत ने हम्द व सनाए परवरदिगार और सलवात व सलाम के बाद इरषाद फ़रमाया-
अम्माबाद! परवरदिगार ने तमाम मख़लूक़ात को इस आलम में पैदा किया है के वह उनकी इताअत से मुस्तग़नी और उनकी नाफ़रमानी से महफ़ूज़ था, न उसे किसी नाफ़रमान की मासीयत नुक़सान पहुंचा सकती थी और न किसी इताअत गुज़ार की इताअत फ़ायदा दे सकती थी।
उसने सबकी माषियत को तक़सीम कर दिया, और सबकी दुनिया में एक मन्ज़िल क़रार दे दी, इस दुनिया में मुत्तक़ी अफ़राद वह हैं जो साहेबाने फ़ज़ाएल व कमालात होते हैं के उनकी गुफ़्तगू हक़ व सवाब, उनका लिबास मोतदिल, उनकी रफ़्तार मुतवाज़ेअ होती है। जिन चीज़ों को परवरदिगार ने हराम क़रार दे दिया है उनसे नज़रों को नीचा रखते हैं और अपने कानों को उन उलूम के लिये वक़्फ़ रखते हैं जो फ़ायदा पहुंचाने वाले हैं। उनके नुफ़ूस बला व आज़माइष में ऐसे ही रहते हैं जैसे राहत व आराम में, अगर परवरदिगार ने हर षख़्स की हयात की मुद्दत मुक़र्रर न कर दी होती तो इनकी रूहें इनके जिस्म में पलक झपकने के बराबर भी ठहर नहीं सकती थीं के उन्हें सवाब का “ाौक़ है और अज़ाब का ख़ौफ़। ख़ालिक़ इनकी निगाह में इस क़द्र अज़ीम है के सारी दुनिया निगाहों से गिर गई है। जन्नत उनकी निगाह के सामने इस तरह है जैसे इसकी नेमतों से लुत्फ़ अन्दोज़ हो रहे हों और जहन्नुम को इस तरह देख रहे हैं जैसे इसके अज़ाब को महसूस कर रहे हों। उनके दिल नेकियों के ख़ज़ाने हैं और इनसे “ार का कोई ख़तरा नहीं है। इनके जिस्म नहीफ़ और लाग़र हैं और इनके ज़रूरियात निहायत दर्जए मुख़्तसर और इनके नुफ़ूस भी तय्यबो ताहिर हैं। इन्होंने दुनिया में चन्द दिन तकलीफ़ उठाकर अबदी राहत का इन्तेज़ाम कर लिया है और ऐसी फ़ायदा बख़्ष तिजारत की है जिसका इन्तेज़ाम इनके परवरदिगार ने कर दिया था। दुनिया ने उन्हें बहुत चाहा लेकिन उन्होंने इसे नहीं चाहा और इसने उन्हें बहुत गिरफ़्तार करना चाहा लेकिन उन्होंने फ़िदया देकर अपने को छुड़ा लिया।
रातों के वक़्त मुसल्ला पर खड़े रहते हैं, ख़ुष अलहानी के साथ (ठहर-ठहर कर) तिलावते क़ुरान करते रहते हैं। अपने नफ़्स को महज़ून रखते हैं और इसी तरह अपनी बीमारीए दिल का इलाज करते हैं। जब किसी आयत तरग़ीब से गुज़रते हैं तो इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो जाते हैं और जब किसी आयते तरहीब व तख़वीफ़ से गुज़रते हैं तो दिल के कानों को इसकी तरफ़ यूं मसरूफ़ कर देते हैं जैसे जहन्नुम के “ाोलों की आवाज़ और वहां की चीख़ पुकार मुसलसल इनके कानों तक पहुंच रही हो, यह रूकूअ में कमर ख़मीदा और सजदे में पेषानी, हथेली, अंगूठों और घुटनों को फ़र्षे ख़ाक किये रहते हैं। परवरदिगार से एक ही सवाल करते हैं के इनकी गर्दनों को आतिषे जहन्नुम से आज़ाद कर दे। इसके बाद दिन के वक़्त यह ओलमा और दानिषमन्द, नेक किरदार और परहेज़गार होते हैं जैसे उन्हें तीरअन्दाज़ के तीर की तरह ख़ौफ़े ख़ुदा ने तराषा हो।

(((- यूँ तो तिलावते क़ुरान का सिलसिला घरों से लेकर मस्जिदों तक और गुलदस्तए अज़ान से लेकर टीवी इस्टेषन तक हर जगह हावी है और जुस्ने क़राअत के मुक़ाबलों में ‘‘अल्लाह-अल्लाह’’ की आवाज़ भी सुनाई देती है लेकिन कहां हैं वह तिलावत करने वाले जिनकी “ाान मौलाए कायनात ने बयान की है के हर आयत उनके किरदार का एक हिस्सा बन जाए और हर फ़िक़रा दर्दे ज़िन्दगी के एक इलाज की हैसियत पैदा कर ले। आयते नेमत पढ़ें तो जन्नत का नक़्षा निगाहों में खिंच जाए और तमन्नाए मौत में बेक़रार हो जाएं और आयत ग़ज़ब की तिलावत करें तो जहन्नुम के “ाोलों की आवाज़ कानों में गूंजने लगे और सारा वजूद थरथरा जाए।
दरहक़ीक़त यह अमीरूलमोमेनीन (अ0) ही की ज़िन्दगी का नक़्षा है जिसे हज़रत ने मुत्तक़ीन के नाम से बयान किया है वरना दीदा तारीख़ ऐसे मुत्तक़ीन की ज़ियारत के लिये सरापा इष्तियाक़ है-)))

देखने वाला इन्हें देखकर बीमार तसव्वुर करता है हालांके यह बीमार नहीं हैं और इनकी बातों को सुनकर कहता है के इनकी अक़्लों में फ़ितूर है हालांके ऐसा क़तई नहीं है। बात सिर्फ़ यह है के इन्हें एक बहुत बड़ी बात ने मदहोष बना रखा है के यह न क़लीले अमल से राज़ी होते हैं और न कसीर अमल को हक़ीर समझते हैं। हमेषा अपने नफ़्स ही को मुतहम करते रहते हैं (कोताहियों का इलज़ाम रखते हैं) और अपने आमाल से ख़ौफ़ ज़दा रहते हैं जब इनमें से किसी एक को (सलाह व तक़वा की बिना पर) सरापा जाना जाता है (तारीफ़ की जाती है) तो वह अपने हक़ में कही हुई बात से ख़ौफ़ज़दा हो जाते हैं और कहते हैं के मैं ख़ुद अपने नफ़्स को दूसरों से बेहतर पहचानता हूँ और मेरा परवरदिगार तो मुझसे भी बेहतर जानता है।
ख़ुदाया! मुझसे उनके अक़वाल का मुहासेबा न करना और मुझे उनके हुस्ने ज़न से भी बेहतर क़रार दे दुनिया और फिर उन गुनाहों को माफ़ भी कर देना जिन्हें यह सब नहीं जानते हैं।
उनकी एक अलामत यह भी है के इनके पास दीन में क़ुवत, नर्मी में षिद्दते एहतियात, यक़ीन में ईमान, इल्म के बारे में तमअ, हिल्म की मंज़िल में इल्म, मालदारी में मयानारवी, इबादत में ख़ुषू-ए-क़ल्ब, फ़ाक़े में ख़ुद्दारी, सख़्ितयों में सब्र, हलाल की तलब, हिदायत में निषात, लालच से परहेज़ जैसी तमाम बातें पाई जाती हैं। वह नेक आमाल भी अन्जाम देते हैं तो लरज़ते हुए अन्जाम देते हैं। “ााम के वक़्त इनकी फ़िक्र “ाुक्रे परवरदिगार होती है और सुबह के वक़्त ज़िक्रे इलाही। ख़ौफ़ज़दा आलम में रात करते हैं और फ़रह व सुरूर में सुबह, जिस ग़फ़लत से डराया गया है उससे मोहतात रहते हैं और जिस फ़ज़्ल व रहमत का वादा किया गया है उससे ख़ुष रहते हैं। अगर नफ़्स नागवार अम्र के लिये सख़्ती भी करे तो इसके मुतालबे को पूरा नहीं करते हैं इनकी आंखों की ठण्डक लाज़वाल नेमतों में है और इनका परहेज़ फ़ानी अष्यिा के बारे में है। यह हिल्म को इल्म से और क़ौल को अमल से मिलाए हुए हैं। तुम हमेषा इनकी उम्मीदों को मुख़्तसर, दिल को ख़ाषा (मुतवाज़ेअ), नफ़्स को क़ानेअ, खाने को मामूली, मुआमलात को आसान, दीन को महफ़ूज़, ख़्वाहिषात को मुर्दा और ग़ुस्से को पिया हुआ देखोगे।
उनसे हमेषा नेकियों की उम्मीद रहती है और इन्सान इनके “ार की तरफ़ से महफ़ूज़ रहता है। यह ग़ाफ़िलों में नज़र आएं तो भी यादे ख़ुदा करने वालों में कहे जाते हैं और याद करने वालों में नज़र आए तो भी ग़ाफ़िलों में “ाुमार नहीं होते हैं। ज़ुल्म करने वाले को माफ़ कर देते हैं, महरूम रखने वाले को अता कर देते हैं, क़तए रहम करने वालों से ताल्लुक़ात रखते हैं, लग़्िवयात से दूर, नर्म कलाम, मुनकिरात ग़ाएब, नेकियां हाज़िर, ख़ैर आता हुआ, “ार जाता हुआ, ज़लज़्ालों में बावक़ार, दुष्वारियों में साबिर, आसानियों में “ाुक्रगुज़ार, दुष्मन पर ज़ुल्म नहीं करते हैं चाहने वालों की ख़ातिर गुनाह नहीं करते हैं। गवाही तलब किये जाने से पहले हक़ का एतराफ़ करते हैं, अमानतों को ज़ाया नहीं करते हैं, जो बात याद दिलाई जाए उसे भूलते नहीं हैं और अलक़ाब के ज़रिये एक-दूसरे को चिढ़ाते नहीं हैं और हमसाये को नुक़सान नहीं पहुंचाते हैं।

(((-ख़ुदा गवाह है के एक-एक लफ़्ज़ आबे ज़र से लिखने के क़ाबिल है और इन्सानी ज़िन्दगी में इन्क़ेलाब पैदा करने के लिये काफ़ी है। साहेबाने तक़वा की वाक़ेई निषान यही है के इनसे हर ख़ैर की उम्मीद की जाए और इनके बारे में किसी “ार का तसव्वुर न किया जाए। वह ग़ाफ़िलों के दरम्यान भी रहें तो ज़िक्रे ख़ुदा में मषग़ूल रहें और बेईमानों की बस्ती में भी आबाद हों तो ईमान व किरदार में फ़र्क़ न आए। नफ़्स इतना पाकीज़ा हो के हर बुराई का जवाब नेकी से दें और हर ग़लती को माफ़ करने का हौसला रखते हों, गुफ़्तगू, आमाल, रफ़्तार, किरदार हर एतबार से तय्यब व ताहिर हों और कोई एक लम्हा भी ख़ौफ़े ख़ुदा से ख़ाली न हो।
तलाष कीजिये आज के दौर के साहेबाने तक़वा और मदअयाने परहेज़गारी की बस्ती में, कोई एक “ाख़्स भी ऐसा जामेअ सिफ़ात नज़र आता है और किसी इन्सान के किरदार में भी मौलाए कायनात के इरषाद की झलक नज़र आती है, और अगर ऐसा नहीं है तो समझिये के हम ख़यालात की दुनिया में आबाद हैं और हमारा वाक़ेयात से कोई ताल्लुक़ नहीं है-)))

जो मसाएब में किसी को ताने नहीं देते हैं, हर्फ़े बातिल में दाखि़ल नहीं होते हैं और कलमए हक़ से बाहर नहीं आते हैं, यह चुप रहें तो उनकी ख़ामोषी हम व ग़म की बिना पर नहीं है और यह हंसते हैं तो आवाज़ बलन्द नहीं करते हैं, इन पर ज़ुल्म किया जाए तो सब्र कर लेते हैं ताके ख़ुदा इसका इन्तेक़ाम ले। इनका अपना नफ़्स हमेषा रन्ज में रहता है और लोग इनकी तरफ़ से हमेषा मुमतईन रहते हैं इन्होंने अपने नफ़्स को आखि़रत के लिये थका डाला है और लोग इनके नफ़्स की तरफ़ से आज़ाद हो गए हैं। दूर रहने वालों से इनकी दूरी ज़ोहद और पाकीज़गी की बिना पर है और क़रीब रहने वालों से इनकी क़ुरबत नर्मी और मरहमत की बिना पर है, न दूरी तकब्बुर व बरतरी का नतीजा है और न क़ुरबत मकरो फ़़रेब का नतीजा।
रावी कहता है के यह सुनकर हमाम ने एक चीख़ मारी और दुनिया से रूख़सत हो गए।
तो अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने फ़रमाया के मैं इसी वक़्त से डर रहा था के मैं जानता था के साहेबाने तक़वा के दिलों पर नसीहत का असर इसी तरह हुवा करता है। यह सुनना था के एक “ाख़्स बोल पड़ा के फिर आप पर ऐसा असर क्यों नहीं?
तो आपने फ़रमाया के ख़ुदा तेरा बुरा करे, हर अजल के लिये एक वक़्त मुअय्यन है जिससे आगे बढ़ना नामुमकिन है और हर “ौ के लिये एक सबब है जिससे तजावुज़ करना नामुमकिन है, ख़बरदार अब ऐसी गुफ़्तगू न करना, यह “ौतान ने तेरी ज़बान पर अपना जादू फूंक दिया है।

194- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें मुनाफ़ेक़ीन के औसाफ़ बयान किये गए हैं)

हम उस परवरदिगार का “ाुक्र अदा करते हैं के उसने इताअत की तौफ़ीक़ अता फ़रमाई और मासीयत से दूर रखा और फिर उससे एहसानात के मुकम्मल करने और उसकी रीसमाने हिदायत से वाबस्ता रहने की दुआ भी करते हैं। और इस बात की “ाहादत देते हैं के मोहम्मद (स0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्होंने उसकी रिज़ा की ख़ातिर हर मुसीबत में अपने को डाल दिया और हर ग़ुस्से के घूंट को पी लिया। क़रीब वालों ने उनके सामने रंग बदल दिया और दूर वालों ने उन पर लष्कर कषी कर दी। अरबों ने अपनी ज़माम का रूख़ उनकी तरफ़ मोड़ दिया और अपनी सवारियों को उनसे जंग करने के लिये महमीज़ कर दिया यहां तक के अपनी औरतों को दूर दराज़ इलाक़ों और दूर इफ़तादा सरहदों से लाकर उनके सहन में उतार दिया।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वा इलाही की वसीयत करता हूं और तुम्हें मुनाफ़ेक़ीन से होषियार कर रहा हूँ के यह गुमराह भी हैं और गुमराह कुन भी, मुनहरिफ़ भी हैं और मुनहरिफ़साज़ भी, यह मुसलसल रंग बदलते रहते हैं और तरह-तरह के फ़ितने उठाते रहते हैं, हर मक्रो फ़रेब के ज़रिये तुम्हारा ही क़स्द करते हैं और हर घात में तुम्हारी ही ताक में बैठते हैं। इनके दिल बीमार हैं और इनके चेहरे पाक व साफ़, अन्दर ही अन्दर चाल चलते हैं और नुक़सानात की ख़ातिर रेंगते हुए क़दम बढ़ाते हैं। इनका तरीक़ा दवा जैसा और इनका कलाम षिफ़ा जैसा है लेकिन इनका किरदार नाक़ाबिले इलाज मर्ज़ है, यह राहतों में हसद करने वाले, मुसीबतों में मुब्तिला कर देने वाले और उम्मीदों को नाउम्मीद बना देने वाले हैं। जिस राह पर देखो इनका मारा हुआ पड़ा है और जिस दिल को देखो वहाँ तक पहुंचने का एक सिफ़ारिषी ढूंढ रखा है।

(((-अगर सारी दुनिया के जराएम की फ़ेहरिस्त तैयार की जाए तो इसमें सरे फेहरिस्त निफ़ाक़ ही का नाम होगा जिसमें हर तरह की बुराई और हर तरह का ऐब पाया जाता है। निफ़ाक़ अन्दर से कुफ्ऱ व षिर्क की ख़बासत रखता है और बाहर से झूठ और ग़लत बयानी की कसाफ़त रखता है और इन दोनों से बदतरीन दुनिया का कोई जुर्म और कोई ऐब नहीं है।
दौरे हाज़िर का दक़ीक़तरीन जाएज़ा लिया जाए तो अन्दाज़ा होगा के इस दौर में आलमी सतह पर निफ़ाक़ के अलावा कुछ नहीं रह गया है। हर “ाख़्स जो कुछ कर रहा है उसका बातिन उसके खि़लाफ़ है और हर हुकूमत जिस बात का दावा कर रही है उसकी कोई वाक़ईयत नहीं है। तहज़ीब के नाम पर फ़साद, मवासलात के नाम पर तबाहकारी, अमने आलम के नाम पर असलहों की दौड़, तालीम के नाम पर बद एख़लाक़ी और मज़हब के नाम पर लामज़हबीयत ही इस दौर का का तरहे इम्तेयाज़ है और इसी को ज़बाने “ारीअत में निफ़ाक़ कहा जाता है-)))

हर रन्ज व ग़म के लिये आंसू तैयार रखे हुए हैं, एक दूसरे की तारीफ़ में हिस्सा लेते हैं और इसके बदले के मुन्तज़िर रहते हैं। सवाल करते हैं तो चिपक जाते हैं और बुराई करते हैं तो रूसवा करके ही छोड़ते हैं और फ़ैसला करते हैं तो हद से बढ़ जाते हैं।
हर हक़ के लिये एक बातिल तैयार कर रखा है और हर सीधे के लिये एक कजी का इन्तेज़ाम कर रखा है। हर ज़िन्दा के लिये एक क़ातिल मौजूद है और हर दरवाज़े के लिये एक कुन्जी बना रखी है और हर रात के लिये एक चिराग़ मुहैया कर रखा है। तमअ के लिये नामूस को ज़रिया बनाते हैं ताके अपने बाज़ार को रवाज दे सकें और अपने माल को राएज कर सकें। जब बात करते हैं तो मुष्तबा क़िस्म की और जब तारीफ़ करते हैं तो बातिल को हक़ का रंग देकर। उन्होंने अपने लिये रास्ते को आसान बना लिया है और दूसरों के लिये तंगी पैदा कर दी है। यह “ौतान के गिरोह हैं और जहन्नुम के “ाोले , यही हिज़्बुष्षैतान के मिसदाक़ हैं और हिज़्बुष्षैतान का मुक़द्दर सिवाए ख़सारे के कुछ नहीं है।
(((-हक़ीक़ते अम्र यह है के मुनाफ़िक़ीन का कोई अम्र क़ाबिले एतबार नहीं होता और इनकी ज़िन्दगी सरापा ग़लत बयानी होती है। तारीफ़ करने पर आ जाते हैं तो ज़मीन व आसमान के क़लाबे मिला देते हैं और बुराई करने पर तुल जाते हैं तो आदमी को आलमी सतह पर ज़लील करके छोड़ते हैं। इसलिये के इनका न कोई ज़मीर होता है और न कोई मेयार, इन्हें सिर्फ़ मौक़े परस्ती से काम लेना है और इसी के एतबार से ज़बान खोलना है।
ख़ुत्बे के उनवान से यह अन्दाज़ा हुआ था के यह समाज के चन्द अफ़राद का एक गिरोह है जिसके किरदार वाज़ेह किया जा रहा है ताके लोग इस किरदार से होषियार रहें और अपनी ज़िन्दगी को निफ़ाक़ से बचाकर ईमान व तक़वा के रास्ते पर लगा दें, लेकिन तफ़सीलात को देखने के बाद महसूस होता है के यह पूरे समाज का नक़्षा है और सारा आलमे इन्सानियत इसी रंग में रंगा हुआ है। ज़िन्दगी का कोई “ाोबा ऐसा नहीं है जिसमें निफ़ाक़ की हुकमरानी न हो और इन्सान के किरदार का कोई रूख़ ऐसा नहीं है जिसमें वाक़ईयत और हक़ीक़त पाई जाती हो और जिसे निफ़ाक़ से पाक व पाकीज़ा क़रार दिया जा सके।
ऐसे हालात में तो हर “ाख़्स को अपने नफ़्स का जाएज़ा लेना चाहिये और मुनाफ़ेक़ीन के बारे में बयान किये हुए सिफ़ात से इबरत हासिल करनी चाहिये।-)))

Tuesday, April 26, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 186-191 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 186-191

186- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(तौहीद के बारे में और उसमें वह तमाम इल्मी मतालिब पाए जाते हैं जो किसी दूसरे ख़ुत्बे में नहीं हैं)

वह उसकी तौहीद का क़ायल नहीं है जिसने उसके लिये कैफ़ियात का तसव्वुर पैदा कर लिया और वह उसकी हक़ीक़त से नाआष्ना है जिसने उसकी तमसील क़रार दे दी। उसने उसका क़स्द ही नहीं किया जिसने उसकी “ाबीह बना दी और वह उसकी तरफ़ मुतवज्जो ही नहीं हुआ जिसने इसकी तरफ़ इषारा कर दिया या उसे तसव्वुर का पाबन्द बना देना चाहा। जो अपनी ज़ात से पहचाना जाए है वह मख़लूक़ है और जो दूसरे के सहारे क़ायम हो वह उस इल्लत का मोहताज है। परवरदिगार फ़ाएल है लेकिन आज़ा के हरकात से नहीं और अन्दाज़े मुक़र्रर करने वाला है लेकिन फिक्र की जूलानियों से नहीं। वह ग़नी है लेकिन किसी से कुछ लेकर नहीं, ज़माना उसके साथ नहीं रह सकता और आलात उसे सहारा नहीं दे सकते। उसका वजूद ज़माने से पहले है और इसका वजूद अदम से भी साबिक़ और उसकी अज़लियत इब्तेदा से भी मुक़द्दम है। इसके हवास को ईजाद करने से अन्दाज़ा हुआ के वह हवास से बेनियाज़ है और उसके अष्याअ के दरम्यान ज़दयत क़रार देने से मालूम हुआ के उसकी कोई ज़िद नहीं है और उसके अष्याअ में मुक़ारनत क़रार देने से साबित हुआ के उसका कोई क़रीन और साथी नहीं है। उसने नूर को ज़ुल्मत की, वज़ाहत को इबहाम की, ख़ुष्की को तरी की और गरमी को सरदी की ज़िद क़रार दिया है। वह एक दूसरे की दुष्मन अष्याअ को जमा करने वाला, एक-दूसरे से जुदागाना अष्याअ का साथ कर देने वाला, बाहमी दूरी रखने वालों को क़रीब बना देने वाला और बाहेमी क़ुरबत के हामिल उमूर का जुदा कर देने वाला है। वह न किसी हद के अन्दर आता है और न किसी हिसाब व “ाुमार में आ सकता है के जिस्मानी क़ूवतें अपनी जैसी अष्याअ ही को महदूद कर सकती हैं और आलात अपने इमसाल ही की तरफ़ इषारा कर सकते हैं। इन अष्याअ को लफ़्ज़ मुन्ज़ो (कब) ने क़दीम होने से रोक दिया है और हर्फ़ क़द (हो गया) ने अज़लियत से अलग कर दिया है और लौला ने उन्हें तकमील से जुदा कर दिया है। उन्हें अष्याअ के ज़रिये बनाने वाला अक़्लों के सामने जलवागर हुआ है और उन्हीं के ज़रिये आंखों की दीद से बरी हो गया है। इसपर हरकत व सुकून का क़ानून जारी नहीं होता है के उसने ख़ुद हरकत व सुकून के निज़ाम को जारी किया है और जिस चीज़ की इब्तिदा उसने की है वह उसकी तरफ़ किस तरह आएद हो सकती है या जिसको उसने ईजाद किया है वह उसकी ज़ात में किस तरह “ाामिल हो सकती है। ऐसा हो जाता तो उसकी ज़ात भी तग़य्युर पज़ीद हो जाती।

(((-मालिके कायनात ने तख़लीक़े कायनात में ऐसे ख़ुसूसियात को वदीअत कर दिया है जिनके ज़रिये उसकी अज़मत का बख़ूबी अन्दाज़ा किया जा सकता है। सिर्फ़ इस नुक्ते की तरफ़ तवज्जो देने की ज़रूरत है के जो “ौ भी किसी की ईजाद कर्दा होती है उसका इतलाक़ मौजद की ज़ात पर नहीं हो सकता है लेहाज़ा अगर उसने हवास को पैदा किया है तो इसके मानी यह हैं के उसकी ज़ात हवास से बालातर है और अगर उसने बाज़ अष्याअ में हमरंगी और बाज़ में इख़्तेलाफ़ पैदा किया है तो यह इस बात की अलामत है के उसकी ज़ाते अक़दस न किसी की हमरंग है और न किसी से ज़िदयत की हामिल है। यह सारी बातें मख़लूक़ात के मुक़द्दर में लिखी गई हैं और ख़ालिक़ की ज़ात इन तमाम बातों से कहीं ज़्यादा बलन्द व बाला है।-)))

इसकी हक़ीक़त भी क़ाबिले तजज़िया हो जाती और इसकी मानवीयत भी अज़लियत से अलग हो जाती और इसके यहां भी अगर सामने की जहत होती तो पीछे की सिम्त होती और वह भी कमाल का तलबगार होता अगर उसमें नुक़्स पैदा हो जाता, उसमें मसनूआत की अलामतें पैदा हो जाती और वह मदलोल (सारी चीज़े उसकी हस्ती की दलील) होने के बाद ख़ुद दूसरे की तरफ़ (दलील बन जाने) रहनुमाई  करने वाला हो जाता। (हालांकि वह इस अम्रे मुसल्लेमा की रू से के इसकें मख़लूक़ की सिफ़तों का होना ममनूअ है,) वह अपने इम्तेनाअ व तहफ़्फ़ुज़ की ताक़त की बिना पर इस हद से बाहर निकल गया है के कोई ऐसी ‘ौ इस पर असर करे जो दूसरों पर असरअन्दाज़ होती है। इसके यहां न तग़य्युर है और न ज़वाल और न उसके आफ़ताबे वजूद के लिये कोई ग़ुरूब है। वह न किसी का बाप है के उसका कोई फ़रज़न्द हो और न किसी का फ़रज़न्द है के महदूद होकर रह जाए। वह औलाद बनाने से भी बे नियाज़ और औरतों को हाथ लगाने से भी बलन्द व बाला है। औहाम उसे पा नहीं सकते हैं के उसका अन्दाज़ा मुक़र्रर करें और होषमन्दियां उसका तसव्वुर नहीं कर सकती हैं के इसकी तस्वीर बना सकें। हवास इसका इदराक नहीं कर सकते हैं के उसे महसूस कर सकें और हाथ उसे छू नहीं सकते हैं के मस कर लें। वह किसी हाल में मुतग़य्यर नहीं होता है  और मुख़्तलिफ़ हालात में बदलता (मुन्तक़िल होता) भी नहीं है। “ाब व रोज़ उसे पुराना नहीं कर सकते हैं और तारीकी व रोषनी उसमें तग़य्युर नहीं पैदा कर सकती हैं। वह न अजज़ाअ से मौसूफ़ होता है और न जवारेह व आज़ा से, न किसी अर्ज़ से मुत्तसिफ़ होता है और न ही क़ुरबत और जुजि़्ज़यत से (उसे अजज़ाअ व जवारेह सिफ़ात में से किसी सिफ़त और ज़ात के अलावा किसी भी चीज़ और हिस्सों से मुत्तसिफ़ नहीं किया जा सकता)। उसके लिये न हद और इन्तेहा का लफ़्ज़ इस्तेमाल होता है और न इख़्तेताम और ज़वाल का। न अष्याअ उस पर हावी हैं के जब चाहें पस्त कर दें या बलन्द कर दें, और न कोई चीज़ उसे उठाए हुए है के जब चाहे सीधा कर दे या मोड़ दे। वह न अष्याअ के अन्दर दाखि़ल है और न उनसे ख़ारिज है। वह कलाम करता है मगर ज़बान और तालू के सहारे नहीं और सुनता है लेकिन कान के सूराख़ और आलात के ज़रिये नहीं। बोलता है लेकिन तलफ़्फ़ुज़ से नहीं और हर चीज़ को याद रखता है लेकिन हाफ़ेज़ा के सहारे नहीं। इरादा करता है लेकिन दिल से नहीं और मोहब्बत व रिज़ा रखता है लेकिन नर्मी क़ल्ब के वसीले से नहीं और बुग़्ज़ व ग़ज़ब भी रखता है लेकिन ग़म व ग़ुस्से की तकलीफ़ से नहीं। जिस चीज़ को ईजाद करना चाहता है उससे कुन कह देता है और वह हो जाती है। न कोई आवाज़ कानों से टकराती है और न कोई निदा सुनाई देती है। उसका कलाम दरहक़ीक़त उसका फ़ेल है जिसको उसने ईजाद किया है और उसके पहले से होने का कोई सवाल नहीं है वरना वह भी क़दीम और दूसरा ख़ुदा हो जाता।
उसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता है के वह अदम से वजूद में आया है के इस पर हादस सिफ़ात का इतलाक़ हो जाए और दोनों में न कोई फ़ासला रह जाए और न उसका हवादिस पर कोई फ़ज़ल रह जाए और फ़िर सानेअ व मसनूअ दोनों बराबर हो जाएं और मसनूअ सनअत के मिस्ल हो जाए। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी दूसरे के छोड़े हुए नमूने के बनाया है और इस तख़लीक़ में किसी की मदद भी नहीं ली है। ज़मीन को ईजाद किया और उसमें उलझे बग़ैर उसे रोक कर रखा और फ़िर बग़ैर किसी सहारे के गाड़ दिया और बग़ैर किसी सुतून के क़ायम कर दिया और बग़ैर खम्बों के बलन्द भी कर दिया। उसे इस तरह की कजी और टेढ़ेपन से महफ़ूज़ रखा और हर क़िस्म के षिगाफ़ और इन्तेषार से बचाए रखा। उसमें पहाड़ों की मीख़ें गाड़ दीं और चट्टानों को मज़बूती से नस्ब कर दिया। चष्मे जारी कर दिये और पानी की गुज़रगाहों को षिगाफ़्ता कर दिया। उसकी कोई सनअत कमज़ोर नहीं है और उसने जिसको क़ूवत दे दी है वह ज़ईफ़ नहीं है। वह हर “ौ पर अपनी अज़मत व सल्तनत की बिना पर ग़ालिब है।

(((-इसमें कोई “ाक नहीं है के परवरदिगार का इरफ़ान उसके सिफ़ात व कमालात ही से होता है और उसकी ज़ाते अक़दस भी मुख़तलिफ़ सिफ़ात से मुत्तसिफ़ है। बात सिर्फ़ यह है के सिफ़ात हादिस नहीं हैं, बल्कि ऐन ज़ात हैं और एक ज़ाते अक़दस है जिससे उसके तमाम सिफ़ात का अन्दाज़ा होता है और उसकी तरह के तादद का कोई इमकान नहीं है।-)))

वह इल्म व इरफ़ान की बिना पर अन्दर तक की ख़बर रखता है। जलाल व इज़्ज़त की बिना पर हर “ौ से बलन्द व बाला है और अगर किसी “ौ को तलब करना चाहे तो (वह उसके दस्तरस से बाज़ नहीं) कोई “ौ उसे आजिज़ नहीं कर सकती है और उससे इन्कार नहीं कर सकती है के इस पर ग़ालिब आ जाए। तेज़ी दिखलाने वाले उससे बच कर आगे नहीं जा सकते हैं और वह किसी साहेबे सरवत की रोज़ी का मोहताज नहीं है। तमाम अष्याअ उसकी बारगाह में ख़ुज़ूअ करने वाली और इसकी अज़मत के आगे ज़लील हैं। कोई चीज़ उसकी सलतनत से फ़रार करके दूसरे की तरफ़ नहीं जा सकती है के उसके नफ़े व नुक़सान से महफ़ूज़ हो जाए। न उसका कोई कफ़ू (हमसर) है के हमसरी करे और न कोई मिस्ल है के बराबर हो जाए। वह हर “ौ को वजूद के बाद फ़ना करने वाला है के एक दिन फिर ग़ायब हो जाए (यहां तक के मौजूद चीज़ें उन चीज़ों की तरह हो जाएं के जो कभी थीं ही नहीं) और उसके लिये दुनिया का फ़ना कर देना इससे ज़्यादा हैरत अंगेज़ नहीं है के जब उसने इसकी अख़्तेराअ व ईजाद की थी। भला यह कैसे हो सकता है जबके सूरते हाल यह है के अगर तमाम हैवानात परिन्दे और चरिन्दे रात को मन्ज़िल पर वापस आने वाले और घरों में रह जाने वाले, तरह-तरह के अनवाअ व इक़साम वाले और तमाम इन्सान ग़बी और होषमन्द सब मिलकर एक मच्छर को ईजाद करना चाहें तो नहीं कर सकते हैं और न उन्हें यह अन्दाज़ा होगा के इसकी ईजाद का तरीक़ा और रास्ता क्या है बल्कि उनकी अक़्लें इसी राह में भटक (हैरान हो) जाएंगी और उनकी ताक़तें जवाब दे जाएंगी और आजिज़ व दरमान्दा होकर मैदाने अमल से वापस आ जाएंगी और उन्हें महसूस हो जाएगा के उनपर किसी का ग़लबा है और उन्हें अपनी आजिज़ी का इक़रार भी होगा और उन्हें फ़ना कर देने के बारे में भी कमज़ोरी का एतराफ़ होगा।
बेषक, वह ख़ुदाए पाक व पाकीज़ा ही है जो दुनिया के फ़ना हो जाने के बाद भी रहने वाला है और उसके साथ रहने वाला कोई नहीं है। वह इब्तेदा में भी ऐसा ही था और इन्तेहा में भी ऐसा ही होने वाला है। उसके लिये न वक़्त है न मकान, न साअत है न हंगाम और ज़मान है। उस वक़्त मुद्दतें और वक़्त सब फ़ना हो जाएंगे और साअत व साल सबका ख़ात्मा हो जाएगा। उस ख़ुदाए वाहिद व क़ह्हार के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है। उसी की तरफ़ तमाम उमूर की बाज़गष्त है और किसी “ौ को भी अपनी ईजाद से पहले अपनी तख़लीक़ का यारा ना था और न फ़ना होते वक़्त इनकार करने का दम होगा। अगर इतनी ही ताक़त होती तो हमेषा न रह जाते। उस मालिक को किसी “ौ के बनाने में किसी दुष्वारी का सामना नहीं करना पड़ा और उसे किसी “ौ की तख़लीक़ व ईजाद थका भी नहीं सकी। उसने इस कायनात को न अपनी हुकूमत के इस्तेहकाम के लिये बनाया है और न किसी ज़वाल और नुक़सान के ख़ौफ़ से बचने के लिये। न उसे किसी मद्दे मुक़ाबिल के मुक़ाबले में मदद की ज़रूरत थी और न वह किसी हमलावर दुष्मन से बचना चाहता था। उसका मक़सद अपने मुल्क व सल्तनत में कोई इज़ाफ़ा था और न किसी “ारीक के सामने अपनी कसरत का इज़हार करना (इतराना) था और न तन्हाई की वहषत से उन्स हासिल करना था।
इसके बाद वह इस कायनात को फ़ना कर देगा, न इसलिये के इसकी तदबीर और इसके तसर्रुफ़ात से आजिज़ आ गया है और न इसलिये के अब आराम करना चाहता है या उस पर किसी ख़ास चीज़ का बोझ पड़ रहा है।

(((-दुनिया में ईजादात और हुकूमात का फ़लसफ़ा यही होता है के कोई ईजादात के ज़रिये हुकूमत का इस्तेहकाम चाहता है और कोई हुकूमत के ज़रिये ख़तरात का मुक़ाबला करना चाहता है। इसलिये बहुत मुमकिन था के बाज़ जाहिल अफ़राद मालिके कायनात की तख़लीक़ और उसकी हुकूमत के बारे में भी इसी तरह का ख़याल क़ायम कर लेते।
आप हज़रत ने यह चाहा के इस ग़लत फ़हमी का इज़ाला कर दिया जाए और इस हक़ीक़त को बेनक़ाब कर दिया जाए के ख़ालिक़ व मख़लूक़ में बे पनाह फ़र्क़ है और किसी भी मख़लूक़ का क़यास ख़ालिक़ में नहीं किया जा सकता है। मख़लूक़ का मिज़ाज एहतियाज है और ख़ालिक़ का कमाल बेनियाज़ी है लेहाज़ा दोनों के बारे में एक तरह के तसव्वुरात नहीं क़ायम किये जा सकते हैं।)))

न इसलिये के बक़ाए कायनात ने उसे थका दिया है तो अब उसे मिटा देना चाहता है, ऐसा कुछ नहीं है। उसने अपने लुत्फ़ से इसकी तद्बीर की है और अपने अम्र से इसे रोक रखा है। अपनी क़ुदरत से इसे मुस्तहकम बनाया है और फिर फ़ना करने के बाद दोबारा ईजाद कर देगा (न इसलिये के इनमें से किसी चीज़ की उसे एहतियाज है और उनकी मदद का ख़्वाहं है और न तन्हाई की उलझन से मुनतक़िल होकर दिलबस्तगी की हालत पैदा करने के लिये और जेहालत व बेबसीरती की हालत से वाक़फ़ीयत व तजुरबात की दुनिया में आने के लिये और फ़क्ऱो एहतियाज से दौलत व फ़रावानी और ज़िल्लत व पस्ती से इज़्ज़त व तवानाई की तरफ़ मुन्तक़िल होने के लिये इनको दोबारा पैदा करता है।) हालांके उस वक़्त भी न उसे किसी “ौ की ज़रूरत है और न किसी से मदद लेना होगी। न वहषत से उन्स की तरफ़ मुन्तक़िल होना होगा और न जेहालत की तारीकी से इल्म और तजुर्बे की तरफ़ आना होगा न फ़क्ऱो एहतियाज से मालदारी और कसरत की तलाष होगी और न ज़िल्लत व कमज़ोरी से इज़्ज़त व क़ुदरत की जुस्तजू होगी।

187-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हवादिसे रोज़गार का ज़िक्र किया गया है)

मेरे मां बाप उन चन्द अफ़राद पर क़ुरबान हो जाएं जिनके नाम आसमान में मारूफ़ हैं और ज़मीन में मजहोल। आगाह हो जाओ और उस वक़्त का इन्तेज़ार करो जब तुम्हारे अम्र उलट जाएंगे और ताल्लुक़ात टूट जाएंगे और बच्चों के हाथ में इक़तेदार आ जाएगा यही वह वक़्त होगा जब एक दिरहम के हलाल के ज़रिये हासिल करने से आसानतर तलवार का ज़ख़्म होगा और लेने वाले फ़क़ीर का अज्र देने वाले मालदार से ज़्यादा होगा।
तुम बग़ैर किसी “ाराब के नेमतों के नषे में सरमस्त होगे और बग़ैर किसी मजबूरी के क़सम खाओगे और बग़ैर किसी ज़रूरत के झूट बोलोगे और यही वह वक़्त होगा जब बलाएं तुम्हें इस तरह काट खाएंगी जिस तरह उट की पीठ को पालान। हाए यह रन्ज व अलम किस क़द्र तवील होगा और उससे निजात की उम्मीद किस क़द्र दूरतर होगी।
लोगों! उन सवारियों की बागडोर उतार कर फेंक दो जिनकी पुष्त पर तुम्हारे ही हाथों गुनाहों का बोझ है और अपने हाकिम से इख़्तेलाफ़ न करो के बाद में अपने किये पर पछताना पड़े। वह आग के “ाोले जो तुम्हारे सामने हैं उनकें कूद न पड़ों। उनकी राह से अलग होकर चलो और रास्ते को उनके लिये ख़ाली कर दो के मेरी जान की क़सम इस फ़ितने की आग में मोमिन हलाक हो जाएगा और ग़ैर मुस्लिम महफ़ूज़ रहेगा।
मेरी मिसाल तुम्हारे दरम्यान अन्धेरे में चिराग़ जैसी है के जो इसमें दाखि़ल हो जाएगा वह रोषनी हासिल कर लेगा। लेहाज़ा ख़ुदारा मेरी बात सुनो और समझो। अपने दिलों के कानों को मेरी तरफ़ मसरूफ़ करो ताके बात समझ सको।

(((-जिस तरह मालिक ने रसूले अकरम (स0) को जाहेलीयत के अन्धेरे में सिराजे मुनीर बनाकर भेजा था उसी तरह फ़ितनों के अन्धेरों में मौलाए कायनात की ज़ात एक रौषन चिराग़ की है के अगर इन्सान इस चिराग़ की रौषनी में ज़िन्दगी गुज़ारे तो कोई फ़ित्ना उस पर असर अन्दाज़ नहीं हो सकता है और किसी अन्धेरे में उसके भटकने का इमकान नहीं है। लेकिन “ार्त यही है के इस चिराग़ की रौषनी में क़दम आगे बढ़ाए वरना अगर उसने आंखें बन्द कर लीं और अन्धेपन के साथ क़दम आगे बढ़ाता रहा तो चिराग़ रौषन रहेगा और इन्सान गुमराह हो जाएगा जिसकी तरफ़ इन कलेमात के ज़रिये इषारा किया गया है के ख़ुदारा मेरी बात सुनो और समझो के इसके बग़ैर हिदायत का कोई इमकान नहीं है और गुमराही का ख़तरा हरगिज़ नहीं टल सकता है।)))

188- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(मुख़तलिफ़ उमूर की वसीयत करते हुए)

अय्योहन्नास! मैं तुम्हें वसीयत करता हूं तक़वा इलाही और नेमतों, एहसानात और फ़ज़ल व करम पर “ाुक्रे ख़ुदा करने की। देखो कितनी नेतमें हैं जो उसने तुम्हें इनायत की हैं और कितनी बुराइयों की मुकाफ़ात से अपनी रहमत के ज़रिये बचा लिया है। तुमने खुलकर गुनाह किये और उसने परदा पोषी की, तुमने काबिले मवाख़ेज़ा आमाल अन्जाम दिये और उसने तुम्हें मोहलत दे दी।
मैं तुम्हें वसीयत करता हूं के मौत को याद रखो और उससे ग़फ़लत न बरतो। आखि़र उससे कैसे ग़फ़लत कर रहे हो जो तुमसे ग़फ़लत करने वाली नहीं है। और फ़रिष्तए मौत से कैसे उम्मीद लगाए हो जो हरगिज़ मोहलत देने वाला नहीं है। तुम्हारी नसीहत के लिये वह मुर्दे ही काफ़ी हैं जिन्हें तुम देख चुके हो के किस तरह अपनी क़ब्रों की तरफ़ बग़ैर सवारी के ले जाए गए और किस तरह क़ब्र में उतार दिये गए के ख़ुद से उतरने के भी क़ाबिल नहीं थे। ऐसा मालूम होता है के उन्होंने कभी इस दुनिया को बसाया ही नहीं था और गोया के आखि़रत ही उनका हमेषगी का मकान है। वह जहां आबाद थे उसे वहषत कदा बना गए और जिससे वहषत खाते थे वहां जाकर आबाद हो गए। यह इसी में मषग़ूल रहे थे जिसको छोड़ना पड़ा और उसे बरबाद करते रहे थे जिधर जाना पड़ा। अब किसी बुराई से बचकर कहीं जा सकते हैं और न किसी नेकी में कोई इज़ाफ़ा कर सकते हैं। दुनिया से उन्स पैदा किया तो उसने धोका दे दिया और इस पर एतबार कर लिया तो उसने तबाह व बरबाद कर दिया।
ख़ुदा तुम पर रहमत नाज़िल करे, अब से सबक़त करो उन मनाज़िल की तरफ़ जिनको आबाद करने का हुक्म दिया गया है और जिनकी तरफ़ सफ़र करने की रग़बत दिलाई गई है और दावत दी गई है। अल्लाह की नेमतों की तकमील का इन्तेज़ाम करो उसकी इताअत के अन्जाम देने और मासियत से परहेज़ करने पर सब्र के ज़रिये। इसलिये के कल का दिन आज के दिन से दूर नहीं है। देखो दिन की साअतें, महीने के दिन, साल के महीने और ज़िन्दगी के साल किस तेज़ी से गुज़र जाते हैं।

189- आपका इरषादे गिरामी(ईमान और वजूबे हिजरत के बारे में)

ईमान का एक वह हिस्सा है जो दिलों में साबित और मुस्तहकम होता है और एक वह हिस्सा है जो दिल और सीने के दरम्यान आरज़ी तौर पर रहता है, लेहाज़ा अगर किसी से बराअत और बेज़ारी भी करना हो तो इतनी देर इन्तेज़ार करो के उसे मौत आ जाए के उस वक़्त बेज़ारी बरमहल होगी।
हिजरत का क़ानून आज भी वही है जो पहले था, अल्लाह किसी क़ौम का मोहताज नहीं है चाहे जो ख़ुफ़िया तौर पर मोमिन रहे या अलल एलान ईमान का इज़हार करे हिजरत का इतलाक़ हुज्जते ख़ुदा की मारेफ़त के बग़ैर नहीं हो सकता है। लेहाज़ा जो “ाख़्स इसकी मारेफ़त हासिल करके इसका इक़रार कर ले वही मोहाजिर है।

(((-ईमान वह अक़ीदा है जो इन्सान के दिल की गहराइयों में पाया जाता है और जिसका वाक़ेई इज़हार इन्सान के अमल व किरदार से होता है के अमल और किरदार के बग़ैर ईमान सिर्फ़ एक दावा रहता है जिसकी कोई तस्दीक़ नहीं होती है।
लेकिन यह ईमान भी दो तरह का होता है। कभी इन्सान के दिल की गहराइयों में यूं पेवस्त हो जाता है के ज़माने के झक्कड़ भी उसे हिला नहीं सकते हैं और कभी हालात की बिना पर तज़लज़ल के इमकानात पैदा हो जाते हैं। हज़रत (अ0) ने इस दूसरी क़िस्म के पेषे नज़र इरषाद फ़रमाया है के किसी इन्सान की बदकिरदारी की बिना पर बराअत करना है तो इतना इन्तेज़ार कर लो के उसे मौत आ जाए ताके यह यक़ीन हो जाए के ईमान उसके दिल की गहराइयों में साबित नहीं था वरना तौबा व इस्तग़फ़ार करके राहे रास्त पर आ जाता।
हिजरत का वाक़ेई मक़सद जान का बचाना नहीं बल्कि ईमान का बचाना होता है, लेहाज़ा जब तक ईमान के तहफ़्फ़ुज़ का इन्तेज़ाम न हो जाए उस वक़्त तक हिजरत का कोई मफ़हूम नहीं है और जब मारेफ़ते हुज्जत के ज़रिये ईमान के तहफ़्फ़ुज़ का इन्तेज़ाम हो जाए तो समझो के इन्सान मुहाजिर हो गया, चाहे उसका क़याम किसी मन्ज़िल पर क्यों न रहे।)))

इसी तरह मुस्तज़ाफ़ उसे नहीं कहा जाता है जिस तक ख़ुदाई दलील पहुंच जाए और वह उसे सुन भी ले और दिल में जगह भी दे दे। हमारा मामला निहायत दरजए सख़्त और दुष्वारगुज़ार है। इसका मुतहम्मल सिर्फ़ वह बन्दए मोमिन कर सकता है जिसके दिल का इम्तेहान ईमान के लिये लिया जा चुका हो, हमारी बातें सिर्फ़ उन्हीं सीनों में रह सकती हैं जो अमानतदार हों और उन्हीं अक़्लों में समा सकती हैं जो ठोस और मुस्तहकम हों।
लोगों! जो चाहो मुझसे दरयाफ़्त कर लो कब्ल इसके के मुझे न पाओ, मैं आसमान के रास्तों को ज़मीन की राहों से बेहतर जानता हूं, मुझसे दरयाफ़्त कर लो क़ब्ल इसके के वह फ़ित्ना अपने पैर उठा ले जो अपनी मेहार को भी पैरों तले रौंदने वाला है और जिससे क़ौम की अक़्लों के ज़वाल का अन्देषा है।

190- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हम्दे ख़ुदा, सनाए रसूल (स0) और नसीहते तक़वा का ज़िक्र किया गया है)

मैं उसकी हम्द करता हूं उसके इनआम का “ाुक्रिया अदा करने के लिये और उससे मदद चाहता हूं उसके हुक़ूक़ से ओहदाबरा होने के लिये, उसका नष्करा ग़ालिब है और बुज़ुर्गी अज़ीम है।
मैं इस बात की “ाहादत देता हूं के मोहम्मद (स0) अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं। उन्होंने उसकी इताअत की दावत दी है और उसके दुष्मनों पर ग़लबा हासिल किया है उसके दीन में जेहाद के ज़रिये। उन्हें इस बात से न ज़ालिमों का उनके झुठलाने पर इज्तेमाअ रोक सका है और न उनकी नूरे हिदायत की ख़ामोष करने की ख़्वाहिष मना कर सकी है।
तुम लोग तक़वाए इलाही से वाबस्ता हो जाओ के उसकी रीसमान के बन्धन मज़बूत और उसकी पनाह की चोटी हरजहत से महफ़ूज़ है। मौत और उसकी सख़्ितयों के सामने आने से पहले उसकी तरफ़ सबक़त करो और उसके आने से पहले ज़मीन हमवार कर लो। उसके नुज़ूल से पहले तैयारी मुकम्मल कर लो के अन्जामकार बहरहाल क़यामत है और यह बात हर उस “ाख़्स की नसीहत के लिये काफ़ी है जो साहबे अक़्ल हो और उसमें जाहिल के लिये बड़ी इबरत का सामान है और तुम्हें यह भी मालूम है के इस अन्जाम तक पहुंचने से पहले लहद और षिद्दते बरज़क़ का भी सामना है जहां बरज़ख़ की हौलनाकी, ख़ौफ़ की दहषत, पस्लियों का इधर से उधर हो जाना, कानों का बहरा हो जाना, क़ब्र की तारीकियां, अज़ाब की धमकियां क़ब्र के षिगाफ़ का बन्द किया जाना और पत्थर की सिलों से पाट दिया जाना भी है।
बन्दगाने ख़ुदा! अल्लाह को याद रखो के दुनिया तुम्हारे लिये एक ही रास्ते पर चल रही है और तुम क़यामत के साथ एक ही रस्सी में बन्धे हुए हो और गोया के उसने अपने अलामात को नुमायां कर दिया है और उसके झण्डे क़रीब आ चुके हैं।

((( बाज़ हज़रात का ख़याल है के अहलेबैत (अ0) के मामले से मुराद दीन व इमामत और अक़ीदे व किरदार है के उसका हर हाल में बरक़रार रखना और उससे किसी भी हाल में दस्तबरदार न होना ह “ाख़्स के बस की बात नहीं है वरना लोग अदना मुसीबत में भी दीन से दस्तबरदार हो जाते हैं और जान बचाने की पनाहगाहें ढूंढने लगते हैं और बाज़ हज़रात का ख़याल है के इससे मुराद अहलेबैत (अ0) की रूहानी अज़मत और उनकी नूरानी मन्ज़िल है जिसका इदराक हर इन्सान के बस का काम नहीं है बल्कि उसके लिये अज़ीम ज़र्फ़ दरकार है लेकिन बहरहाल इस तसव्वुर में भी उनके नक़्षे क़दम पर चलने को भी “ाामिल करना पड़ेगा वरना सिर्फ़ अक़ीदा क़ायम करने के लिये इम्तेहान “ाुदा और आज़माए हुए दिल की ज़रूरत नहीं है।)))

तुम्हेंं अपने रास्ते पर खड़ा कर दिया है और गोया के वह अपने ज़लज़लों समेत नमूदार हो गई है और अपने सीने टेक दिये हैं और दुनिया ने अपने बसने वालों से मुंह मोड़ लिया है और उन्हें अपनी गोद से अलग कर दिया है। गोया के यह एक दिन था जो गुज़र गया या एक महीना था जो बीत गया, और इसकी नई चीज़ पुरानी हो गई और उसका तन्दरूस्त, लाग़र हो गया। उस मौक़फ़ में जिसकी जगह तंग है और जिसके उमूर मुष्तबा (पेचीदा) और अज़ीम हैं वह आग है जिसका ज़ख़्म कारी है और जिसके “ाोले बलन्द हैं (जिसकी ईज़ाएं “ादीद और चीख़ें बलन्द हैं)। इसकी भड़क नुमायां है और भड़कने की आवाज़ें ग़ज़बनाक हैं। इसकी लपटें तेज़ हैं और बुझने के इमकानात बईद (मुष्किल) हैं।  इसका भड़कना तेज़ है और इसके ख़तरात दहषतनाक हैं इसका गढ़ा तारीक है और इसके हर तरफ़ (एतराफ़) अन्धेरा ही अन्धेरा है। इसकी देगें खौलती हुई हैं और इसके उमूर दहषतनाक हैं उस वक़्त सिर्फ़ ख़ौफ़े ख़ुदा रखने वालों को गिरोह गिरोह जन्नत की तरफ़ ले जाया जाएगा जहां अज़ाब से महफ़ूज़ होंगे और इताब का सिलसिला ख़त्म हो चुका होगा। जहन्नुम से अलग कर दिये जाएंगे और अपने घर में इतमीनान से रहेंगे जहां अपनी मन्ज़िल और अपने मुस्तक़र से ख़ुष होंगे यही वह लोग हैं जिनके आमाल दुनिया में पाकीज़ा थे और जिनकी आंखें ख़ौफ़े ख़ुदा से गिरयां थीं। इनकी रातें ख़ुषू और अस्तग़फ़ार की बिना पर दिन जैसी थीं और इनके दिन दहषत और गोषानषीनी की बिना पर रात जैसे थे। अल्लाह ने जन्नत को उनकी बाज़गष्त की मन्ज़िल बना दिया है और जज़ाए आख़ेरत को उनका सवाब। यह हक़ीक़तन इसी इनाम के हक़दार और अहल थे जो मुल्के दाएम और नईम अबदी में रहने वाले हैं।

बनदगाने ख़ुदा! उन बातों का ख़याल रखो जिनके ज़रिये से कामयाबी हासिल करने वाला कामयाब होता है और जिनको सानेअ कर देने से बातिल वालों का घाटा होता है। अपनी मौत की तरफ़ आमाल के साथ सबक़त करो के तुम गुज़िष्ता आमाल के गिरवी हो और पहले वाले आमाल के मक़रूज़ हो और अब गोया के ख़ौफ़नाक मौत तुमपर नाज़िल हो चुकी है जिससे न वापसी का इमकान है और न गुनाहों की माफ़ी मांगने की गुन्जाइष है। अल्लाह हमें और तुम्हें अपनी और अपने रसूल (स0) की इताअत की तौफ़ीक़ दे और अपने फ़ज़्ल व रहमत से हम दोनों से दरगुज़र फ़रमाए।
ज़मीन से चिमटे रहो और बलाओं पर सब्र करते रहो। अपने हाथ और अपनी तलवारों को ज़बान की ख़्वाहिषात का ताबेअ न बनाना और जिस चीज़ में ख़ुदा ने जल्दी नहीं रखी उसकी जल्दी न करना के अगर कोई “ाख़्स ख़ुदा और रसूल (स0) व अहलेबैत (अ0) के हक़ की मारेफ़त रखते हुए बिस्तर पर मर जाए तो वह भी “ाहीद ही मरता है और उसका अज्र भी ख़ुदा ही के ज़िम्मे होता है और वह अपनी नीयत के मुताबिक़ नेक आमाल का सवाब भी हासिल कर लेता है ख़ुद नीयत भी तलवार खींचने के क़ाएम मुक़ाम हो जाती है और हर “ौ की एक मुद्दत होती है और उसका एक वक़्त मुअय्यन है।

(((-हालात इस क़द्र संगीन थे के इमाम (अ0) के मुख़लिस असहाब मुनाफ़िक़ीन और मुआनेदीन की रविष को बरदाष्त न कर सकते थे और हर एक की फ़ितरी ख़्वाहिष थी के तलवार उठाने की इजाज़त मिल जाए और दुष्मन का ख़ात्मा कर दिया जाए जो हर दौर के जज़्बाती इन्सान की तमन्ना और आरज़ू होती है, लेकिन हज़रत यह नहीं चाहते थे के कोई काम मर्ज़ीए इलाही और मसलहते इस्लाम के खि़लाफ़ हो और मेरे मुख़लिसीन भी जज़्बात व ख़्वाहिषात के ताबेअ हो जाएं, लेहाज़ा पहले आपने सब्र व सुकून की तल्क़ीन की और इस अम्र की तरफ़ मुतवज्जो किया के इस्लाम ख़्वाहिषात का ताबेअ नहीं होता है। इस्लाम की “ाान यह है के ख़्वाहिषात इसका इत्तेबाअ करें और इसके इषारे पर चलें, इसके बाद मुख़्लेसीन के इस नेक जज़्बे की तरफ़ तवज्जो फ़रमाई के यह “ाौक़े “ाहादत व क़ुरबानी रखते हैं, कहीं ऐसा न हो के इनके हौसले पस्त हो जाएं और यह मायूसी का षिकार हो जाएं, लेहाज़ा इस नुक्ते की तरफ़ तवज्जो दिलाई के “ाहादत का दारोमदार तलवार चलाने पर नहीं है। “ाहादत का दारोमदार इख़लासे नीयत के साथ जज़्बए क़ुरबानी पर है लेहाज़ा तुम इस जज़्बे के साथ बिस्तर पर भी मर गए तो तुम्हारा “ाुमार “ाोहदा और स्वालेहीन में हो जाएगा तुम्हें इस सिलसिले में परेषान होने की ज़रूरत नहीं है-)))

191- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हम्दे ख़ुदा, सनाए रसूल (स0) और वसीयते ज़ोहद व तक़वा का तज़किरा किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी हम्द हमहगीर और जिसका लष्कर ग़ालिब है और जिसकी अज़मत बलन्द व बाला है। मैं उसकी मुसलसल नेमतों और अज़ीमतरीन मेहरबानियों पर उसकी हम्द करता हूं के इसका हुक्म इस क़द्र अज़ीम है के वह हर एक को माफ़ करता है और फिर हर फ़ैसले में इन्साफ़ से भी काम लेता है और जो कुछ गुज़र गया और गुज़र रहा है सबका जानने वाला भी है। वह मख़लूक़ात को सिर्फ़ अपने इल्म से पैदा करने वाला है और अपने हुक्म से ईजाद करने वाला है। न किसी की इक़्तेदा की है और न किसी से तालीम ली है। न किसी सानेअ हकीम की मिसाल की पैरवी की है और न किसी ग़लती का षिकार हुआ है और न मुषीरों की मौजूदगी में काम अन्जाम दिया है।
और मैं गवाही देता हूं के मोहम्मद (स0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्हें उस वक़्त भेजा है जब लोग गुमराहियों में चक्कर काट रहे थे और जब हैरानियों में ग़लतां व पेचां थे। हलाकत की मेहारें उन्हें खींच रही थीं और कुदूरत व ज़न्ग के ताले इनके दिलों पर पड़े हुए थे।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वाए इलाही की नसीहत करता हूं के यह तुम्हारे उपर अल्लाह का हक़ है और इससे तुम्हारा हक़ परवरदिगार पर पैदा होता है। इसके लिये अल्लाह से मदद मांगो और उसके ज़रिये उसी से मदद तलब करो के यह वक़वा आज दुनिया में सिपर और हिफ़ाज़त का ज़रिया और कल जन्नत तक पहुंचने का रास्ता है। इसका मसलक वाज़ेह और इसका राहेरौ फ़ायदा हासिल करने वाला है। और इसका अमानतदार हिफ़ाज़त करने वाला है। यह तक़वा अपने को उन पर भी पेष करता रहा है जो गुज़र गए और उन पर भी पेष कर रहा है जो बाक़ी रह गए हैं के सबको कल इसकी ज़रूरत पड़ने वाली है। जब परवरदिगार अपनी मख़लूक़ात को दोबारा पलटाएगा और जो कुछ अता किया है उसे वापस ले लेगा और जिन नेमतों से नवाज़ा है उनका सवाल करेगा, किस क़द्र कम हैं वह अफ़राद जिन्होंने इसको क़ुबूल किया है और इसका वाक़ेई हक़ अदा किया है। यह लोग अदद में बहुत कम हैं लेकिन परवरदिगार की इस तौसीफ़ के हक़दार हैं के ‘‘मेरे “ाुक्रगुज़ार बन्दे बहुत कम हैं’’। अब अपने कानों को उसकी तरफ़ मसरूफ़ करो और सई व कोषिष से इसकी पाबन्दी करो और उसे गुज़रती हुई कोताहियों का बदल क़रार दो।

(((-खुली हुई बात है के बन्दा किसी क़ीमत पर परवरदिगार पर हक़ पैदा करने के क़ाबिल नहीं हो सकता है, उसका हर अमल करमे परवरदिगार और फ़ज़्ले इलाही का नतीजा है। लेहाज़ा इसका कोई इमकान नहीं है के वह इताअते इलाही अन्जाम देकर उसके मुक़ाबले में साहबे हक़ हो जाए और उस पर उसी तरह हक़ पैदा करे जिस तरह उसका हक्के़ इबादत व इताअत हर बन्दे पर है।
इस हक़ से मुराद भी परवरदिगार का यह फ़ज़्लो करम है के उसने बन्दों से इनाम और जज़ा का वादा कर लिया है और अपने बारे में यह एलान कर दिया है के मैं अपने वादे के खि़लाफ़ नहीं करता हूं जिसके बाद हर बन्दे को यह हक़ पैदा हो गया है के वह मालिक से अपने आमाल की जज़ा और उसके इनाम का मुतालेबा करे न इसलिये के उसने अपने पास से और अपनी ताक़त से कोई अमल अन्जाम दिया है के यह बात ग़ैरे मुमकिन है। बल्कि इसलिये के मालिक ने उससे सवाब का वादा किया है और वह अपने वादे को वफ़ा करने का ज़िम्मेदार है और उससे ज़र्रा बराबर इन्हेराफ़ नहीं कर सकता है। रिवायत में हक़्क़े मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद (स0) का मफ़हूम यही है के उन्होंने अपनी इबादात के ज़रिये वादाए इलाही की वफ़ा का इतना हक़ पैदा कर दिया है के उनके वसीले से दीगर अफ़राद भी इस्तेफ़ादा कर सकते हैं। बषर्ते के वह भी उन्हीं के नक़्षे क़दम पर चलें और उन्हीं की तरह इताअत व इबादत अन्जाम देने की कोषिष करें।)))

और मुख़ालिफ़ के मुक़ाबले में मवाक़िफ़ बनाओ, उसके ज़रिये अपनी नीन्द को बेदारी में तब्दील करो और अपने दिन गुज़ार दो। उसे अपने दिलों का “ाोआर बनाओ, उसी के ज़रिये अपने गुनाहों को धो डालो, अपने इमराज़ का इलाज करो और अपनी मौत की तरफ़ सबक़त करो, उनसे इबरत हासिल करो जिन्होंने इसे ज़ाया कर दिया है और ख़बरदार वह तुमसे इबरत न हासिल करने पाएं जिन्होंने इसका रास्ता इख़्तेयार किया है। इसकी हिफ़ाज़त करो और इसके ज़रिये से अपनी हिफ़ाज़त करो। दुनिया से पाकीज़गी इख़्तेयार करो और आख़ेरत के आषिक़ बन जाओ। जिसे तक़वा बलन्द कर दे उसे पस्त मत बनाओ और जिसे दुनिया उचा बना दे उसे बलन्द मत समझो। इस दुनिया के चमकने वाले बादल पर नज़र न करो और इसके तरजुमान की बात मत सुनो इसके आवाज़ देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक मत कहो और इसकी चमक-दमक से रोषनी मत हासिल करो और इसकी क़ीमती चीज़ों पर जान मत दो इसलिये के इसकी बिजली फ़क़त चमक दमक है और इसकी बातें सरासर ग़लत हैं इसके अमवाल लुटने वाले हैं और इसका बेहतरीन छिनने वाला है (इसका उमदा मताअ ग़ारत होने वाला है)।
आगाह हो जाओ के यह दुनिया झलक दिखाकर मुंह मोड़ लेने वाली चण्डाल, मुंह ज़ोर अड़ियल झूटी, ख़ाएन, हटधर्म, नाषुक्री करने वाली सीधी राह से मुन्हरिफ़ और मुंह फेरने वाली और कज्र व पेच व ताब खाने वाली है। इसका तरीक़ा इन्तेक़ाल है और इसका हर क़दम ज़लज़लाअंगेज़ है। इसकी इज़्ज़त भी ज़िल्लत है और इसकी माक़ईयत भी मज़ाक़ है (इसकी सन्जीदगी ऐन हरज़ह सराई है) इसकी बलन्दी पस्ती है और यह जंगो जदल, हर्ब व ज़र्ब, लूट मार, हलाकत व ताराजी का घर है, इसके रहने वाले पा ब रकाब हैं और चल चलाव के लिये तैयार हैं, इनकी कैफ़ियत वस्ल व फ़िराक़ की कषमकष की है, जहां रास्ते गुम हो गए हैं और गुरेज़ की राहें मुष्किल हो गई हैं और मन्सूबे नाकाम हो चुके हैं, महफ़ूज़ घाटियों ने उन्हें मुष्किलात के हवाले कर दिया है और उनके घरों ने उन्हें दूर फेंक दिया है, दानिष्मन्दियों ने भी उन्हें दरमान्दा कर दिया है। अब जो बच गए हैं उनमें कुछ की कोंचें कटी हुई हैं, कुछ गोष्त के लोथड़े हैं जिनकी खाल उतार ली गई है। कुछ कटे हुए जिस्म और बहते हुए ख़ून जैसे हैं कुछ अपने हाथ काटने वाले हैं और कुछ कफे अफ़सोस मिलने वाले, कुछ फ़िक्र व तरद्दुद में कोहनियां रूख़सारों पर रखे हुए और कुछ अपनी फ़िक्र से बेज़ार और अपने इरादे से रूजू करने वाले हैं। (लेकिन अब कहां) जबके चारासाज़ी का मौक़ा हाथ से निकल चुका है। धेलों ने मुंह फेर लिया है और हलाकत सामने आ गई है मगर छुटकारे का वक़्त निकल चुका है। यह एक न होने वाली बात हैं जो चीज़ गुज़र गई वह गुज़र गई, (अब निकल भागने का वक़्त कहां, यह तो एक अनहोनी बात है) और जो वक़्त चला गया वह चला गया और दुनिया अपने हाल में मनमानी करती हुई गुज़र गई- ‘‘न उन पर आसमान रोया और न ज़मीन और न ही उन्हें मोहलत दी गई।’’

(((- ख़ुदा जानता है के इस दुनिया का कोई हाल क़ाबिले एतबार नहीं है और इसकी किसी कैफ़ियत में सुकून व क़रार नहीं है। इसका पहला ऐब तो यह है के इसके हालात में ठहराव (सुकून) नहीं है। सुबह का सवेरा थोड़ी देर में दोपहर बन जाता है और आफ़ताब का “ाबाब थोड़ी देर में ग़ुरूब हो जाता है। इन्सान बचपने की आज़ादियों से मुस्तफ़ैद भी नहीं होने पाता है के जवानी की धूप आ जाती है और जवानी की रानाइयों से लज्ज़त अन्दोज़ नहीं होने पाता है के ज़ईफ़ी की कमज़ोरियां हमलावर हो जाती हैं, ग़रज़ कोई हालत ऐसी नहीं है जिसपर एतबार किया जा सके और जिसे किसी हद तक पुरसुकून कहा जा सके।
और दूसरा ऐब यह है के अलग-अलग कोई दौर भी क़ाबिले इत्मीनान नहीं है, दौलतमन्द दौलत को रो रहे हैं और ग़रीब ग़ुरबत को, बीमार बीमारियों का रोना रो रहे हैं और सेहतमन्द सेहत के तक़ाज़ों से आजिज़ हैं, बेऔलाद औलाद के तलबगार हैं और औलाद वाले औलाद की ख़ातिर परेषान।
ऐसी सूरतेहाल में तक़ाज़ाए अक़्ल यही है के दुनिया को हदफ़ और मक़सद तसव्वुर न किया जाए और इसे सिर्फ़ आखि़रत के वसीले के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, इसकी नेमतों में से इतना ही ले लिया जाए जितना आखि़रत में काम आने वाला है और बाती को इसके अहल के लिये छोड़ दिया जाए।-)))