Monday, March 28, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 91-93 , नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 91-93

91- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा
(इस ख़ुत्बे को ख़ुत्बए अष्बाह कहा जाता है जिसे आपके जलील तरीन ख़ुतबात में “ाुमार किया जाता है)

(मेदा बिन सिदक़ा ने इमाम जाफ़रे सादिक़ (अ0) से रिवायत की है के अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने यह ख़ुत्बा मिम्बरे कूफ़ा से उस वक़्त इरषाद फ़रमाया था जब एक “ाख़्स ने आपसे यह तक़ाज़ा किया के परवरदिगार के औसाफ़ इस तरह बयान करें के गोया वह हमारी निगाह के सामने है ताके हमारी मारेफ़त और मोहब्बते इलाही में इज़ाफ़ा हो जाए।
आपको इस बात पर ग़ुस्सा आ गया और आपने नमाज़े जमाअत का एलान फ़रमा दिया। मस्जिद मुसलमानों से छलक उठी तो आप मिम्बर पर तषरीफ़ ले गए और इस आलम में ख़ुत्बा इरषाद फ़रमाया के आपके चेहरे का रंग बदला हुआ था और ग़ैज़ व ग़ज़ब के आसार नमूदार थे। हम्द व सनाए इलाही और सलवात के बाद इरषाद फ़रमाया।)

सारी तारीफ़ उस परवरदिगार के लिये है जिसके ख़ज़ाने में फ़ज़्लो करम के रोक देने और अताओं के मुन्जमिद कर देने से इज़ाफ़ा नहीं होता है और जूदो करम के तसलसुल से कमी नहीं आती है। इसलिये के उसके अलावा हर अता करने वाले के यहां कमी हो जाती है और उसके मा सेवा हर न देने वाला क़ाबिले मज़म्मत होता है। वह मुफ़ीदतरीन नेमतों और मुसलसल रोज़ियों के ज़रिये एहसान करने वाला है। मख़लूक़ात उसकी ज़िम्मेदारी में हैं और उसने सबके रिज़्क़ की ज़मानत दी है और रोज़ी मुअय्यन कर दी है। अपनी तरफ़ तवज्जो करने वालों और अपने अताया के साएलों के लिये रास्ता खोल दिया है और मांगने वालों को न मांगने वालों से ज़्यादा अता नहीं करता है। वह ऐसा अव्वल है जिसकी कोई इब्तेदा नहीं है के उससे पहले कोई हो जाए और ऐसा आखि़र है जिसकी कोई इन्तेहा नहीं है के उसके बाद कोई रह जाए। वह आँखों की बीनाई को अपनी ज़ात तक पहुँचने और उसका इदराक करने से रोके हुए है। उस पर ज़माना असर अन्दाज़ नहीं होता है के हालात बदल जाएं और वह किसी मकान में नहीं है के वहां से मुन्तक़िल हो सके अगर वह उन तमाम जवाहरात को अता कर दे जो पहाड़ों के मअदन अपनी साँसों से बाहर निकालते हैं या जिन्हें समन्दर के सदफ़ मकराकर बाहर फेंक देते हैं, याहे वह चान्दी हो या सोना, मोती हों या मरजान, तो भी उसके करम पर कोई असर न पड़ेगा और न उसके ख़ज़ानों की वुसअत में कोई कमी आ सकती है और उसके पास नेमतों के वह ख़ज़ाने रह जाएंगे जिन्हें मांगने वालों के मुतालबात ख़त्म नहीं कर सकते हैं। इसलिये के वह ऐसा जवाद व करीम है के न साएलों के सवाल इसके यहाँ कमी पैदा कर सकता है और न मुफ़लिसों का इसरार उसे बख़ील बना सकता है।

क़ुराने मजीद में सिफ़ाते परवरदिगार

सिफ़ाते ख़ुदा के बारे में सवाल करने वालों! क़ुरआन मजीद ने जिन सिफ़ात की निषानदेही की है उन्हीं का इत्तेबाअ करो।

(((इसका मतलब यह नहीं है के क़ुराने मजीद ने जितने सिफ़ात बयान कर दिये हैं उनके अलावा दीगर इस्माअ व सिफ़ात का इतलाक़ नहीं हो सकता है के बाज़ ओलमाए इस्लाम का ख़याल है के इस्माए इलायिा तोक़ीफ़िया हैं और नुसूसे आयात व रिवायात के बग़ैर किसी नाम या सिफ़त का इतलाक़ जाएज़ नहीं है। बल्कि इस इरषाद का वाज़ेअ सा मफ़हूम यह है के जिन सिफ़ात की क़ुरआने करीम ने नफ़ी कर दी है उनका इतलाक़ जाएज़ नहीं है चाहे किसी ज़बान और किसी लम्हे में क्यों न हो।)))
उसी के नूरे हिदायत से रोषनी हासिल करो आर जिस इल्म की तरफ़ “ौतान मुतवज्जो करे और उसका कोई फ़रीज़ा न किताबे इलाही में मौजूद हो, न सुन्नते पैग़म्बर (स0) आर इरषादाते आइम्माए हुदा में तो इसका इल्म परवरदिगार के हवाले कर दो के यही उसके हक़ की आखि़री हद है और यह याद रखो के ‘‘असख़ून फ़िलइल्म’’ वही अफ़राद हैं जिन्हें ग़ैबे इलाही के सामने पड़े हुए परदों के अन्दर वराना दाखि़ल होने से इस अम्र ने बेनियाज़ बना दिया है। वह इस पोषीदा ग़ैब का इजमाली इक़रार रखते हैं और परवरदिगार ने उनके इसी जज़्बे की तारीफ़ की है के जिस चीज़ को उनका इल्म अहाता नहीं कर सकता उसके बारे में अपनी आजिज़ी का इक़रार कर लेते हैं और इसी सिफ़त को उसने रूसूख़ से ताबीर किया है के जिस बात की तहक़ीक़ उनके बस में नहीं है उसकी गहराइयों में जाने का ख़याल नहीं रखते हैं।
तुम भी इसी बात पर इकतेफ़ा करो और अपनी अक़्ल के मुताबिक़ अज़मते इलाही का अन्दाज़ा न करो के हलाक होने वालों में “ाुमार जो जाओ। देखो वह ऐसा क़ादिर है के जब फ़िक्रें उसकी क़ुदरत की इन्तेहा मालूम करने के लिये आगे बढ़ती हैं और हर तरह के वसवसे से पाकीज़ा ख़याल उसकी सलतनत के पोषीदा इसरार को अपनी ज़द में लाना चाहता है और दिल वालेहाना तौर पर इसके सिफ़ात की कैफ़ियत मालूम करने की तरफ़ मुतवज्जो करते हैं और अक़्ल की राहें इसकी ज़ात का इल्म हासिल करने के लिये सिफ़ात की रसाई से आगे बढ़ना चाहती हैं तो वह उन्हें इस आलम में वापस कर देता है के वह आलमे ग़ैब की गहराइयों की राहें तय कर रही होती हैं और मुकम्मल तौर पर इसकी तरफ़ मुतवज्जो होती हैं जिसके नतीजे में अक़्लें इस एतराफ़ के साथ पलट आती हैं के ग़लत फ़िक्रों से उसकी मारेफ़त की हक़ीक़त का इदराक नहीं हो सकता है और साहेबाने फ़िक्र के दिलों में उसके जलाल व इज़्ज़त का एक “ाम्मा भी ख़तूर नहीं कर सकता है।
उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी नमूने को निगाह में रखे हुए ईजाद किया है और किसी मासबक़ के ख़ालिक़ व माबूद के नक़षे के बग़ैर पैदा किया है। उसने अपनी क़ुदरत के इख़्तेयारात, अपनी हिकमत के मुंह बोलते आसार और मख़लूक़ात के लिये इसके सहारे की एहतेयाज के इक़रार के ज़रिये इस हक़भ्क़त को बे नक़ाब कर दिया है के हम उसकी मारेफ़त पर दलील क़ायम होने का इक़रार कर लें के जिन जदीदतरीन अषया को उसके आसारे सनअत ने ईजाद किया है और निषानहाए हिकमत ने पैदा किया है वह सब बिलकुल वाज़ेअ है और हर मख़लूक़ उसके वजूद के लिये एक मुसतक़िल हुज्जत और दलील है के अगर वह ख़ामोष भी है तो उसकी तदबीर बोल रही है और उसकी दलालत ईजाद करने वाले पर क़ायम है।
ख़ुदाया- मैं गवाही देता हूं के जिसने भी तेरी मख़लूक़ात के आज़ा के इख़्तेलाफ़ और इनके जोड़ों के सरों के मिलने से तेरी हिकमत की तदबीर के लिये तेरी “ाबीह क़रार दिया।

((( इन्सान की ग़फ़लत की आखि़री हद यह है के वह जूद व हिकमते इलाही की दलील तलाष कर रहा है जबके उसने अदना तामल से काम लिया होता तो उसे अन्दाज़ा हो जाता के जिस निगाह से आसारे क़ुदरत को तलाष कर रहा है और जिस दिमाग़ से दलाएले हिकमत की जुस्तजू कर रहा है यह दोनों अपनी ज़बान बे ज़बानी से आवाज़ दे रहे हैं के अगर कोई ख़ालिक़े हकीम और सानेअ करीम न होता तो हमारा वजूद भी न होता। हम उसकी अज़मत व हिकमत के बेहतरन गवाह हैं। हमारे होते हुए दलाएले हिकमत व अज़मत का तलाष करना बग़ल में कटोरा रखकर “ाहर में ढिन्डोरा पीटने के मतरादिफ़ है और यह कारे अक़्लन नहीं है।)))

इसने अपने ज़मीर के ग़ैब को तेरी मारेफ़त से वाबस्ता नहीं किया और इसके दिल में यह यक़ीन पेवस्त नहीं हुआ के तेरा कोई मिस्ल नहीं है और गोया इसने यह पैग़ाम  नहीं सुना के एक दिन मुरीद अपने पीरो मुरषद से यह कहकर बेज़ारी करेंगे के ‘‘बख़ुदा हम खुली हुई गुमराही में थे जब तुमको रब्बुलआलमीन के बराबर क़रार दे रहे थे, बेषक तेरे बराबर क़रार देने वाले झूटे हैं के उन्होंने तुझे अपने अस्नाम से तष्बीह दी है और अपने औहाम की बिना पर तुझे मख़लूक़ात का हुलिया अता कर दिया है और अपने ख़यालात की बिना पर मुजस्समों की तरह तेरे टुकड़े-टुकड़े कर दिये हैं और अपनी अक़्लों की सूझ बूझ से तुझे मुख़्तलिफ़ ताक़तों वाली मख़लूक़ात के पैमाने पर नाप तोल दिया है।
मैं इस बात की गवाही देता हूँ के जिसने भी तुझे किसी के बराबर क़रार दिया उसने तेरा हमसर बना दिया और जिसने तेरा हमसर बना दिया उसने आयाते मोहकमात की तन्ज़ील का इन्कार कर दिया है और वाज़ेतरीन दलाएल के बयानात को झुटला दिया है। बेषक तू वह ख़ुदा हैजो अक़्लों की हुदूद में नहीं आ सकता है के उफ़कार की रवानी में कैफ़ियों की ज़द में आजाए और न ग़ौर व फ़िक्र की जूलानियों में समा सकता है के महदूद और तसरेफ़ात का पाबन्द हो जाए।

(एक दूसरा हिस्सा)

मालिक ने हर मख़लूक़ की मिक़दार मुअय्यन की है और मोहकमतरीन मोअय्यन की है औश्र हर एक की तदबीर की है और लतीफ़ तरीन तदबीर की है। हर एक को एक रूख़ पर लगा दिया है तो उसने अपनी मन्ज़ेलत के हुदूद से तजावुज़ भी नहीं किया है और इन्तेहा तक पहुँचने में कोताही भी नहीं की है और मालिक के इरादे पर चलने का हुक्म दे दिया गया तो इससे सरताबी भी नहीं की है और यह मुमकिन भी कैसे था जबके सब इस मषीअत से मन्ज़रे आम पर आए हैं। वह तमाम अषयाअ का ईजाद करने वाला है बग़ैर इसके के फ़िक्र की जूलानियों की तरफ़ रूजूअ करे या तबीअत की दाखि़ली रवानी का सहारा ले या हवादिस ज़माने के तजुर्बात से फ़ाएदा उठाए या अजीब व ग़रीब मख़लूक़ात के बनाने में किसी “ारीक की मदद का मोहताज हो।
उसकी मख़लूक़ात उसके अम्र से तमाम हुई है और इसकी इताअत में सर ब सुजूद है। इसकी दावत पर लब्बैक कहती है और इस राह में न देर करने वाले की सुस्ती का षिकार होती है और न हील व हुज्जत करने वाले की ढील में मुब्तिला होती है। उसने अषयाअ की कजी को सीधा रखा है। उनके हुदूद को मुक़र्रर कर दिया है। अपनी क़ुदरत से उनके मोतज़ाद अनासिर में तनासब पैदा कर दिया है और नफ़्स व बदन का रिष्ता जोड़ दिया है। उन्हें हुदूद व मक़ादीर तबाएअ व हसयात की मुख़तलिफ़ जिन्सों में तक़सीम कर दिया है। यह नौईजाद मख़लूक़ है जिसकी सनअत मुस्तहकम रखी है और इसकी फ़ितरत व खि़लक़त को अपने इरादे के मुताबिक़ रखा है।

-कुछ आसमान के बारे में-

उसने बग़ैर किसी चीज़ से वाबस्ता किये आसमानों के नषेब व फ़राज़ को मुनज़्ज़म कर दिया है और उसके षिगाफ़ों को मिला दिया है और उन्हें आपस में एक दूसरे के साथ जकड़ दिया है और इसका हुक्म लेकर उतरने वाले बन्दों के आमाल को लेकर जाने वाले फ़रिष्तों के लिये बलन्दी की ना-हमवारियों को हमवार कर दिया है। अभी यह आसमान धुएं की “ाक्ल में थे के मालिक ने उन्हें आवाज़ दी और उनके तस्मों के रिष्ते आपस में जुड़ गए और उनके दरवाज़े बन्द रहने के बाद खुल गए। फिर उसने इनके सूरूाख़ों पर टूटते हुए सितारों के निगेहबान खड़े कर दिये और अपने दस्ते क़ुदरत से इस अम्र से रोक दिया के हवा के फैलाव में इधर उधर चले जाएं।
उन्हें हुक्म दिया के इसके हुक्म के सामने सरापा तस्लीम खड़े रहें। इनके आफ़ताब को दिन के लिये रौषन निषानी और माहताब को रात की धुन्धली निषानी क़रार दे दिया और दोनों को उनके बहाव की मन्ज़िल पर डाल दिया है और उनकी गुज़रगाहों में रफ़तार की मिक़दार मुअय्यन कर दी है ताके उनके ज़रिये दिन और रात का इम्तेयाज़ क़ायम हो सके और इनकी मिक़दार से साल वग़ैरह का हिसाब किया जा सके। फिर फ़िज़ाए बसीत में सबके मराद मअल्लक़ कर दिये और उनसे इस ज़ीनत को वाबस्ता कर दिया जो छोटे-छोटे तारों और बड़े-बड़े सितारों के चिराग़ों से पैरा हुई थी। आवाज़ों के चुराने वालों के लिये टूटते तारों से संगसार का इन्तेज़ाम कर दिया और उन्हें भी अपने जब्र व क़हर की राहों पर लगा दिया के जो साबित हैं वह साबित रहें, जो सयार हैं व सयार रहें। बलन्द व पस्त नेक व बद सब उसी की मर्ज़ी के ताबे रहें।

(औसाफ़े मलाएका का हिस्सा)

इसके बाद उसने आसमानों को आबाद करने और अपनी सलतनत के बलन्दतरीन तबक़े को बसाने के लिये मलाएका जैसी अनोखी मख़लूक़ को पैदा किया और उनसे आसमानी रास्तों के षिगाफ़ों को पुर कर दिया और फ़िज़ा की पिनहाइयों को मामूर कर दिया। उन्हें षिगाफ़ों के दरम्यान तस्बीह करने वाले फ़रिष्तों की आवाज़े क़ुद्स की चारदीवारी, अज़मत के हेजाबात, बुज़ुर्गी के सरा पर्दों के पीछे गून्ज रही हैं और इस गूंज के पीछे जिससे कान के परदे फट जाते हैं, नूर की वह तजल्लियां हैं जो निगाहों को वहां तक पहुंचतने से रोक देती हैं और नाकाम होकर अपनी हदों पर ठहर जाती हैं।
उसने फ़रिष्तों को मुख़्तलिफ़ “ाक्लों और अलग-अलग पैमानों के मुताबिक़ पैदा किया है। उन्हें बाल व पर इनायत किये हैं और वह उसके जलाल व इज़्ज़त की तस्बीह में मसरूफ़ हैं। मख़लूक़ात में इसकी नुमायां सनअत को अपनी तरफ़ मन्सूब नहीं करते हैं।

(((वाज़े रहे के मलाएका और जिन्नात का मसला ग़ैबियात से ताल्लुक़ रखता है और इसका इल्म दुनिया के आम वसाएल के ज़रिये मुमकिन नहीं है। क़ुराने मजीद ने ईमान के लिये ग़ैब के इक़रार को “ार्ते इसासी क़रार दिया है लेहाज़ा इस मसले का ताल्लुक़ सिर्फ़ साहेबाने ईमान से है। दीगर अफ़राद के लिये दीगर इरषादात इमाम (अ0) से इस्तेफ़ाज़ा किया जा सकता है। लेकिन इतनी बात तो बहरहाल वाज़े हो चुकी है के आसमानों के अन्दर आबादियां पाई जाती हैं और यहां के अफ़राद का वहां ज़िन्दा न रह सकना इस बात की दलील नहीं है के वहां के बाषिन्दे भी ज़िन्दा न रह सकें। मालिक ने हर जगह के बाषिन्दे में वहां के एतबार से सलाहियते हयात रखी है और उसे सामाने ज़िन्दगी इनायत फ़रमाया है। इमाम सादिक़ (अ0) का इरषादे गिरामी है के परवरदिगार आलम ने दस लाख आलम पैदा किये हैं और दस लाख आदम और हमारी ज़मीन के बाषिन्दे आखि़री आदम की औलाद में हैं। (अलहय्यता वल इस्लाम “ाहरस्तानी) )))

और किसी चीज़ की तख़लीक़ का इद्दआ नहीं करते हैं, ‘‘यह अल्लाह के मोहतरम बन्दे हैं जो उस पर किसी बात में सबक़त नहीं करते हैं और उसी के हुक्म के मुताबिक़ अमल कर रहे हैं।’’ अल्लाह ने उन्हें अपनी वही का अमीन बनाया है और मुरसलीन की तरफ़ अम्र व नहीं की अमानतों का हामिल क़रार दिया है। उन्हें “ाुकूक व “ाुबहात से महफ़ूूज़ रखाा है के कोई भी इसकी मज़ी की राह से इन्हेराफ़ करने वाला नहीं है। सबको अपनी कारआमद इमदाद से नवाज़ा है और सबके दिल में आजिज़ी और षिकस्तगी की तवाज़अ पैदा कर दी है। उनके लिये अपनी तमजीद की सहूलत के दरवाज़े खोल दिये हैं और तौहीद की निषानियों के लिये वाज़े मिनारे क़ायम कर दिये हैं। इनपर गुनाहों का बोझ भी नहीं है और उन्हें “ाबो रोज़ की गरदिषें अपने इरादों पर चला भी नहीं सकती हैं। “ाुकूक व “ाुबहात उनके मुस्तहकम ईमान को अपने ख़यालात के तीरों का निषाना भी नहीं बना सकते हैं और वहम व गुमान इनके यक़ीन की पुख़्तगी पर हमलावर भी नहीं हो सकते हैं। इनके दरम्यान हसद की चिंगारी भी नहीं भड़कती है और हैरत व इस्तेजाब इनके ज़मीरों की मारेफ़त को सल्ब भी नहीं कर सकते हैं और इनके सीनों में छिपे हुए अज़मत व हैबत व जलालते इलाही के ज़ख़ीरों को छीन भी नहीं सकते हैं और वसवसों ने कभी यह सोचा भी नहीं है के इनकी फ़िक्र को ज़ंगआलूद बना दें। उनमें बाज़ वह हैं जिन्हें बोझिल बादलों, बलन्दतरीन पहाड़ों और तारीकतरीन ज़ुल्मतों के पर्दों में रखा गया है और बाज़ वह हैं जिनके पैरों ने ज़मीन के आखि़री तबक़े को पारा कर दिया है और वह इन सफ़ेद परचमों जैसे हैं जो फ़िज़ा की वुसअतों को चीरकर बाहर निकल गए हों। जिनके नीचे एक हल्की हवा हो जो उन्हें उनकी हदों पर रोके रहे। उन्हें इबादत की मषग़ूलियत ने हर चीज़ से बेफिक्र बना दिया है और ईमान के हक़ाएक़ ने उनके और मारेफ़त के दरम्यान गहरा राब्ता पैदा कर दिया है और यक़ीने कामिल ने हर चीज़ से रिष्ता तोड़कर उन्हें मालिक की तरफ़ मुष्ताक़ बना दिया है इनकी रग़बतें मालिक की नेमतों से हट कर किसी और की तरफ़ नहीं हैं के उन्होंने मारेफ़त की हेलावत का मज़ा चख लिया है और मोहब्बत के सेराब करने वाले जाम से सरषार हो गए हैं।

(((बाज़ ओलमा ने इसकी यह तावील की है के मलाएका का इल्म ज़मीन व आसमान के तमाम तबक़ात को महीत है लेकिन बज़ाहिर इसकी कोई ज़रूरत नहीं है। जब इनका जिस्म नूरानी है और इसपर माद्दियात का दबाव नहीं है तो इनका जिस्म लतीफ़ माद्दियात के तमाम हुदूद को तोड़ सकता है और इसमें कोई बात खि़लाफ़े अक़्ल नहीं है। नूरानियत में मुख़तलिफ़ इष्काल इख़्तेयार करने की सलाहियत पाई जाती है और वह मुख़्तलिफ़ सूरतों में सामने आ सकते हैं।
मलाएका के नूरानी इजसाम की वुसअत हैरतअंगेज़ नहीं है। वह ज़मीन की आखि़री तह से आसमान की आख़ेरी बलन्दी तक अहाता कर सकते हैं। हैरतअंगेज़ उस किसाए यमानी की वुसअत है जिसमें इस गिरोहे मलाएका का सरदार भी समा जाता है और चादर की वुसअत पर कोई असर नहीं पड़ता है।
ज़ाहिर है के ज़िन्दगी में दुनिया के मसाएल तिजारत व ज़राअत, मुलाज़ेमत व सनअत और रिष्ते व क़राबत “ाामिल न हों। उससे ज़्यादा इबादत कौन कर सकता है और उससे ज़्यादा इबादत को कौन वक़्त दे सकता है। यह और बात है के बाज़ अल्लाह के बन्दे ऐसे भी हैं जिनकी ज़िन्दगी में ज़राअत भी है और तिजारत भी। सनअत भी है और सियासत भी, रिष्ता भी है और क़राबत भी, लेकिन इसके बावजूद इतनी इबादत करते हैं के मलक को आराम करने का हुक्म देना पड़ता है और उनकी एक ज़रबत इबादते सक़लैन पर भारी हो जाती है या वह एक नीन्द से मर्ज़ीए माबूद का सौदा कर लेते हैं।)))
और उनके दिलों की तह में उसका ख़ौफ़ जड़ पकड़ चुका है जिसकी बिना पर उन्होंने मुसलसल इताअत से अपनी सीधी कमरों को ख़मीदा बना लिया है और तूले रग़बत के बावजूद उनके तज़्रेअ वज़ारी का ख़ज़ाना ख़त्म नहीं हुआ है और न कमाले तक़र्रब के बावजूद इनके ख़ुषू की रस्सियां ढीली हुई हैं और न ख़ुदपसन्दी ने इन पर ग़लबा हासिल किया है के वह अपने गुज़िष्ता आमाल को ज़्यादा तसव्वुर करने लगें और न जलाले इलाही के सामने इनके इन्केसार ने कोई गुन्जाइष छोड़ी है के वह अपनी नेकियों को बड़ा ख़याल करने लगें। मुसलसल ताब के बावजूद उन्होंने सुस्ती को रास्ता नहीं दिया और न इनकी रग़बत में कोई कमी वाक़ेअ हुई है के वह मालिक से उम्मीद के रास्ते को तर्क कर दें। मुसलसल मुनाजातों ने इनकी नोके ज़बान को ख़ुष्क नहीं बनाया और न मसरूफ़ियात ने इन पर क़ाबू पा लिया है के इनकी मुनाजात की ख़ुफ़िया आवाज़ें मुनक़ता हो जाएं। न मक़ामाते इताअत में इनके “ााने आगे पीछे होते हैं और न तामीले एहकामे इलाहिया में कोताही की बिना पर इनकी गरदन किसी तरफ़ मुड़ जाती है। इनकी कोषिषों के अज़ाएम पर न ग़फ़लतों की नादानियों का हमला होता है और न ख़्वाहिषात की फ़रेबकारियां इनकी हिम्मतों को अपना निषाना बनाती हैं। उन्होंने अपने मालिक साहबे अर्ष को रोज़े फ़क्ऱो फ़ाक़ा के लिये ज़ख़ीरा बना लिया है और जब लोग दूसरी मख़लूक़ात की तरफ़ मुतवज्जो हो जाते हैं तो वह इसी को अपना हदफ़े निगाह बनाए रखते हैं। यह इबादत की इन्तेहा को नहीं पहुँच सकते हैं लेहाज़ा इनका इताअत का वालहाना ज़ज़्बा किसी और तरफ़ ले जाने के बजाये सिर्फ़ उम्मीद व बीम के नाक़ाबिले इख़्तेताम ज़ख़ीरों ही की तरफ़ ले जाता है। इनके लिये ख़ौफ़े ख़ुदा के असबाब मुनक़ता नहीं हुए हैं के इनकी कोषिषों में सुस्ती पैदा करा दें और न उन्हें ख़्वाहिषात ने क़ैदी बनाया है के वक़्ती कोषिषों को अबदी सई पर मुक़ददम कर दें। यह अपने गुज़िष्ता आमाल को बुरा ख़याल नहीं करते हैं के अगर ऐसा होता तो अब तक उम्मीदें ख़ौफ़े ख़ुदा को फ़ना कर देतीं। उन्होंने “ौतानी ग़लबे की बुनियाद पर परवरदिगार के बारे में आपस में कोई इख़्तेलाफ़ भी नहीं किया है और न एक दूसरे से बिगाड़ने इनके दरम्यान इफ़तेराक़ पैदा किया है। न इन पर हसद का कीना ग़ालिब आता है और न वह “ाुकूक की बिना पर आपस में एक दूसरे से अलग हुए हैं।

((( किरदार का कमाल यही है के इन्सानी ज़िन्दगी में न उम्मीद ख़ौफ़ पर ग़ालिब आने पाए और न क़ुरबत का एहसास ख़ुज़ू व ख़ुषू के जज़्बे को मजरूअ बना दे। मौलाए कायनात (अ0) ने इस हक़ीक़त का इज़हार मलाएका के कमाल के ज़ैल में फ़रमाया है लेकिन मक़सद यही है के इन्सान इस सूरते हाल से इबरत हासिल करे और अषरफ़ुल मख़लूक़ात होने का दावेदार है तो किरदार में भी दूसरी मख़लूक़ात के मुक़ाबले में अषरफ़ीयत का मुज़ाहेरा करे वरना दावाए बे दलील किसी मन्तिक़ में क़ाबिले क़ुबूल नहीं होता है।
इन्सान जब अपने ज़ाती आमाल का मुवाज़ना बहुत से दूसरे अफ़राद से करता है तो इसमें ग़ुरूर पैदा होने लगता है के इसकी नमाज़ें, इबादतें या इसके माल का रहाए ख़ैर दूसरे अफ़राद से ज़्यादा हैं लेकिन जब इनका मुवाज़ना करमे परवरदिगार और जलाले इलाही से करता है तो यह सारे आमाल हैच नज़र आने लगते हैं।
मौलाए कायनात ने इसी नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जो किया है के अपने अमल का मुवाज़ना दूसरे अफ़राद के आमाल से न करो। मवाज़ना करने का “ाौक़ है तो करमे इलाही और जलाले परवरदिगार से करो ताके तुम्हें अपनी औक़ात का सही अन्दाज़ा हो जाए और “ौतान तुम्हारे ऊपर ग़ालिब न आने पाए।)))

और न पस्त हिम्मतों ने इन्हें एक-दूसरे से जुदा किया है। यह ईमान के वह क़ैदी हैं जिनकी गरदनों को कजी, इन्हेराफ़, सुस्ती, फ़ितूर, कोई चीज़ आज़ाद नहीं करा सकती है। फ़ज़ाए आसमान में एक खाल के बराबर भी ऐसी जगह नहीं है जहां कोई फ़रिष्ता सजदा गुज़ार या दौड़ धूप करने वाला न हो। यह तूले इताअत से अपने रब की मारेफ़त में इज़ाफ़ा ही करते हैं और इनके दिलों में उसकी अज़मत व जलालत बढ़ती ही जाती है।

(ज़मीन और उसके पानी पर फ़र्ष होने की तफ़सीलात)

इसने ज़मीन को तहो बाला होने वाली मौजों और अथाह समन्दर की गहराइयों के ऊपर क़ायम किया है जहां मौजों का तलातुम था और एक दूसरे को ढकेलने वाली लहरें टकरा रही थीं। इनका फेन ऐसा ही था जैसे हैजान ज़दा ऊँट का झाग। मगर इस तूफ़ान को तलातुमख़ेज़ पानी के बोझ ने दबा दिया और इसके जोष व ख़रोष को अपना सीना टेक कर साकिन बना दिया और अपने “ााने टिका कर इस तरह दबा दिया के वह ज़िल्लत व ख़्वारी के साथ राम हो गया अब वह पानी मौजों की घड़घराहट के बाद साकित और मग़लूब हो गया और ज़िल्लत की लगाम में असीर व मोतीअ हो गया और ज़मीन भी तूफ़ानख़ेज़ पानी की सतह पर दामन फैलाकर बैठ गई थी के इसने इठलाने, सर उठाने, नाक चिढ़ाने जोष दिखाने का ख़ात्मा कर दिया था और रवानी की बे अतदालियों पर बन्ध बान्ध दिया था। अब पानी उछल कूद के बाद बेदम हो गया था और जस्त व ख़ेज़ की सरमस्तियों के बाद साकित हो गया था। अब जब पानी का जोष एतराफ़े ज़मीन के नीचे साकिन हो गया और सरबफ़लक पहाड़ों के बोझ ने इसके कान्धों को दबा दिया तो मालिक ने उसकी नाक के बांसों के चष्मे जारी कर दिये और उन्हें दूर-दराज़ सहराओं और गढ़ों तक मुन्तषिर कर दिया और फिर ज़मीन की हरकत को पहाड़ों की चट्टानों और ऊंची-ऊंची चोटियों वाले पहाड़ों के वज़्ान से मोतदिल बना दिया।

(((वाज़े रहे के इस मक़ाम पर अस्ल खि़लक़ते ज़मीन का कोई तज़किरा नहीं है के इसकी तख़लीक़ मुस्तक़िल हैसियत रखती है जैसा के दौरे हाज़िर में ओलमाए तबीअत का ख़याल है या उसे सूरज से अलग करके बनाया गया है जैसा के साबिक़ ओलमाए तबीयत कहा करते थे। इस ख़ुतबे में सिर्फ़ ज़मीन के बाज़ कैफ़ियात औश्र हालात का ज़िक्र किया गया है और परवरदिगार के इस एहसास को याद दिलाया गया है के उसने ज़मीन को इन्सानी ज़िन्दगी का मुस्तख़र क़रार देने के लिये कितनी दूर से एहतेमाम किया है और इस मख़लूक़ को बसाने के लिये कितने अज़ीम एहतेमाम से काम लिया है। काष इन्सान इन एहसानात का एहसास करता और इसे यह अन्दाज़ा होता के इसके मालिक ने उसे किस क़दर अज़ीम क़रार दिया था के इसके क़याम व इस्तेक़रार के लिये ज़मीन व आसमान सब को मुन्क़लिब कर दिया और उसने अपने को इस क़द्र ज़लील कर दिया के एक-एक ज़र्रा कायनात और एक एक चप्पा ज़मीन के लिये जान देने को तैयार है और अपनी क़द्र व क़ीमत को यकसर नज़रअन्दाज़ किये हुए है।
मदहोह के मानी अगरचे आमतौर से फर्ष “ाुदा के बयान किये जाते हैं लेकिन लुग़त में अन्डे देने की जगह को भी कहा जाता है। इसलिये मुमकिन है के मौलाए कायनात ने इस लफ़्ज़ से ज़मीन की बेज़ावी “ाक्ल की तरफ़ इषारा किया हो के दौरे हाज़िर की तहक़ीक़ की बिना पर ज़मीन की “ाक्ल करवी नहीं है, बल्के बेज़ावी है।)))

पहाड़ों के इसकी सतह के मुख़्तलिफ़ हिस्सों में डूब जाने और इसकी गहराइयों की तह में घुस जाने और इसके हमवार हिस्सों की बलन्दी पस्ती पर सवार हो जाने की बिना पर इसकी थरथराहट रूक गई और मालिक ने ज़मीन से फ़िज़ा तक एक वुसअत पैदा कर दी और हवा को इसके बन्दों के सांस लेने के लिये मुहय्या कर दिया और इसके बसने वालों को तमाम सहूलतों के साथ ठहरा दिया।
इसके बाद ज़मीन के वह चटियल मैदान जिनकी बलन्दियों तक चष्मों और नहरों के बहाव का कोई रास्ता नहीं था उन्हें भी यूँ ही रहने दिया यहां तक के इनके लिये वह बादल पैदा कर दिये जो उनकी मुर्दा ज़मीनों को ज़िन्दा बना सकें और नबातात को उगा सकें। उसने अब्र की चमकदार टुकड़ियों को ऊपर परागन्दा बदलियों को जमा किया यहाँ तक के जब इसके अन्दर पानी का ज़ख़ीरा जोष मारने लगा और उसके किनारों पर बिजलियाँ तड़पने लगीं और उनकी चमक सफ़ेद बादलों की तहों और तह ब तह सोहाबों के अन्दर बराबर जारी रहीं तो उसने उन्हें मूसलाधार बारिष के लिये भेज दिया। इस तरह के इसके बोझिल हिस्से ज़मीन पर मण्डला रहे थे और जुनूबी हवाएं उन्हें मुसलसल कर बरसने वाले बादल की बून्दें और तेज़ बारिष की “ाक्ल में बरसा रही थीं। इसके बाद जब बादलों ने अपना सीना हाथ पांव समेत ज़मीन पर टेक दिया और पानी का सारा लदा हुआ बोझ इस पर फेंक दिया तो इसके ज़रिये इफ़तादा ज़मीनों से खेतियां उगा दीं और ख़ुष्क पहाड़ों पर हरा भरा सब्ज़्ाा फैला दिया। अब ज़मीन अपने सब्ज़े की ज़ीनत से झूमने लगी और “ाुगूफ़ों की ओढ़नियों और षिगफ़ता व “ाादाब कलियों के ....... से इतराने लगी।
परवरदिगार ने इन तमाम चीज़ों को इन्सानों की ज़िन्दगी का सामान और जानवरों का रिज़्क़ क़रार दिया है। उसी ने ज़मीन के एतराफ़ कुषादा रास्ते निकाले हैं और “ााहराहों पर चलने वालों के लिये रौषनी के मिनारे नस्ब किये हैं और फिर जब ज़मीन का फ़र्ष बिछा लिया और अपना काम मुकम्मल कर लिया-

((( इस हिस्सए कलाम में मौलाए कायनात (अ0) ने मालिक के दो अज़ीम एहसानात की तरफ़ इषारा किया है जिन पर इन्सानी ज़िन्दगी का दारोमदार है और वह हैं हवा और पानी। हवा इन्सान के सांस लेने का ज़रिया है और पानी इन्सान का क़वामे हयात है। यह दोनों न होते तो इन्सान एक लम्हा ज़िन्दा नहीं रह सकता था। इसके बाद इन दोनों तख़लीक़ों को मज़ीद कारआमद बनाने के लिये हवा को सारी फ़िज़ा में मुन्तषिर कर दिया और पानी के चष्मे अगर पहाड़ों की बलन्दियों को सेराब नहीं कर सकते थे तो बारिष का इन्तेज़ाम कर दिया ताके बलन्दी-ए-कोह (पहाड़) पर रहने वाली मख़लूक़ भी इससे इस्तेफ़ादा कर सके और इन्सानों की तरह जानवरों की ज़िन्दगी का इन्तज़ाम हो जाए।
अफ़सोस, के इन्सान ने दुनिया की हर मामूली से मामूली नेमत की क़द्र व क़ीमत का एहसास किया है लेकिन इन दोनों की क़द्र-व-क़ीमत का एहसास नहीं किया वरना हर सांस पर “ाुक्रे ख़ुदा करता और हर क़तर-ए-आब पर एहसानाते इलाहिया को याद रखता और किसी आन इसकी याद से ग़ाफ़िल न होता और इसके एहकाम की मुक़ालफ़त न करता।)))

तब आदम (अ0) को मख़लूक़ात में मुन्तख़ब क़रार दे दिया और उन्हें नौए इन्सानी की फ़र्दे अव्वल बनाकर जन्नत में साकिन कर दिया और उनके लिये तरह तरह के खाने पीने को आज़ाद कर दिया और जिससे मना करना था उसका इषारा भी दे दिया और यह बता दिया के इसके एक़दाम में नाफ़रमानी का अन्देषा और अपने मरतबे को ख़तरे में डालने का ख़तरा है लेकिन उन्होंने इसी चीज़ की तरफ़ रूख़ कर लिया जिससे रोका गया था के यह बात पहले से इल्मे ख़ुदा में मौजूद थी। नतीजा यह हुआ के परवरदिगार ने तौबा के बाद उन्हें नीचे उतार दिया ताके अपनी नस्ल से दुनिया को आबाद करें और उनके ज़रिये से अल्लाह बन्दों पर हुज्जत क़ायम करे। फिर उनको उठा लेने के बाद भी ज़मीन को उन चीज़ों से ख़ाली नहीं रखा जिनके ज़रिये रूबूबीयत की दलीलों की ताकीद करे और जिन्हें बन्दों की मारेफ़त का वसीला बनाए बल्कि हमेषा मुन्तख़ब अम्बियाए कराम और रिसालत के अमानतदारों की ज़बानों से हुज्जत के पहुँचाने की निगरानी करता रहा और यूँ ही सदियाँ गुज़रती रहीं यहाँ तक के हमारे पैग़म्बर हज़रत मोहम्मद (स0) के ज़रिये इसकी हुज्जत तमाम हो गई और एतमाम हुज्जत और तख़वीफ़े अज़ाब का सिलसिला नुक़्तए आखि़र तक पहुंच गया।
अल्लाह ने सबकी रोज़ियां मुअय्यन कर रखी हैं चाहे क़लील हों या कसीर और फिर तंगी और वुसअत के एतबार से भी तक़सीम कर दिया और इसमें भी अदालत रखी है ताके दोनों का इम्तेहाल लिया जा सके और ग़नी व फ़क़ीर दोनों को “ाुक्र या सब्र से आज़माया जा सके। फिर वुसअते रिज़्क़ के साथ फ़क्ऱ व फ़ाक़ा के ख़तरात और सलामती के साथ नाज़िल होने वाली आफ़ात के अन्देषे और ख़ुषी व “ाादमानी की वुसअत के साथ ग़म व अलम के गुलूगीर फन्दे “ाामिल भी कर दिये। ज़िन्दगियों की तवील व क़सीर मुद्दतें मुअय्यन कीं। उन्हें आगे-पीछे रखा और फिर सबको मौत से मिला दिया और मौत को उनकी रस्सियों का खींचने वाला और मज़बूत रिष्तों को पारा-पारा करने वाला बना दिया। वह दिलों में बातों के छुपाने वालों के इसरार, ख़ुफ़िया बातें करने वालों की गुफ़्तगू, ख़यालात में अटकल पच्चू लगाने वालांे के अन्दाज़े, दिल में जमे हुए यक़ीनी अज़ाएम, पलकों में दबे हुए कनखियों के इषारे और दिलों की तहों के राज़ और ग़ैब की गहराइयों के रमूज़, सबको जानता है।

(((इसमें कोई “ाक नहीं है के जनाबे आदम (अ0) ने दरख़्त का फ़ल खाकर अपने को ज़हमतों में मुब्तेला कर लिया लेकिन सवाल यह पैदा होता है के जब उन्हें रूए ज़मीन का ख़लीफ़ा बनाया गया था तो क्या जन्नत ही में महवास्तराहत रह जाते और अपने फ़राएज़ मन्सबी की तरफ़ मुतवज्जा न होते। यह तो एहसासे ज़िम्मादारी का एक रूख़ है के उन्होंने जन्नत के राहत व आराम को नज़र अन्दाज़ करने का अज़्म कर लिया और रूए ज़मीन पर आ गए ताके अपनी नस्ल से दुनिया को आबाद कर सकें और अपने फ़रीज़ए मन्सब को अदा कर सकें। यह और बात है के तक़ाज़ाए एहतियात यह था के मालिके कायनात ही से गुज़ारिष करते के जहाँ के लिये ज़िम्मेदार बनाया है वहाँ तक जाने का इन्तेज़ाम कर दे या कोई रास्ता बता दे। उस रास्ते को इबलीस के इषारे के बाद इख़्तेयार नहीं करना चाहिये था के उसे इबलीस अपनी फ़तहे मुबीन क़रार दे ले और ख़लीफ़तुल्लाह के मुक़ाबले में अपने ग़ुरूर का इज़हार कर सके। ग़ालेबन एहतियात के इसी तक़ाज़े पर अमल न करने का नाम ‘‘तर्के ऊला’ रखा गया है। )))

वह उन आवाज़ों को भी सुन लेता है जिनके लिये कानों के सूराख़ों को झुकना पड़ता है। च्यूंटियों के मौसमे गर्म के मुक़ामात व दीगर हषरातिल अर्ज़ की सर्दियों की मंज़िल से भी आगाह है। पिसरे मुर्दा औरतों की दर्द भरी फ़रयाद और पैरों की चाप भी सुन लेता है। वह सब्ज़ पत्तियों के ग़िलाफ़ों के अन्दरूनी हिस्सों में तैयार होने वाले फलों की जगह को भी जानता है और पहाड़ों के ग़ारों और वादियों में जानवरों की पनाहगाहों को भी पहचानता है। वह दरख़्तों के तनों और उनके छिलकों में मच्छरों के छिपने की जगह से भी बाख़बर है और “ााख़ों में पत्ते निकलने की मन्ज़िल और सल्बों की गुज़रगाहों में नुत्फ़ों के ठिकानों और आपस में जड़े हुए बादलों और तह ब तह सहाबों से पटकने वाले बारिष बारिष के क़तरों से भी आषना है बल्के जिन ज़रात को आन्धियां अपने दामन से उड़ा देती हैं और जिन निषानात को बारिषें अपने सेलाब से मिटा देती हैं उनसे भी बाख़बर है। वह रेत के टीलों पर ज़मीन के कीड़ों के चलने फिरने और सरबलन्द पहाड़ों की चोटियों पर बाल व पर रखने वाले परिन्दों के नषेमनों को भी जानता है और घोसलों के अन्धेरों में परिन्दों के नग़मों को भी पहचानता है। जिन चीज़ों को सदफ़ ने समेट रखा है उन्हें भी जानता है और जिन्हें दरिया की मौजों ने अपनी गोद में दबा रखा है उन्हें भी पहचानता है जिसे रात की तारीकी ने छिपा लिया है उसे भी पहचानता है और जिन पर दिन के सूरज ने रोषनी डाली है उससे भी बाख़बर है। जिन चीज़ों पर यके बाद दीगर अन्धेरी रातों के पर्दे और रौषन दिनों के आफ़ताब की “ाोआए नूर बिखरती हैं वह इन सबसे बाख़बर है, निषाने क़दम, हस्स व हरकत, अलफ़ाज़ की गूंज, होंटों की जुम्बिष, सांसों की मन्ज़िल, ज़र्रात का वज़न, ज़ीरूह की सिस्कियों की आवाज़, इस ज़मीन पर दरख़्तों के फल, गिरने वाले पत्ते, नुत्फ़ों की क़रारगाह, मुन्जमिद ख़ून के ठिकाने, लोथड़े या इसके बाद बनने वाली मख़लूक़ या पैदा हुए बच्चे सबको जानता है और उसे इस इल्म के हिस्सों में कोई ज़हमत नहीं हुई और न अपनी मख़लूक़ात की हिफ़ाज़त में कोई रूकावट पेष आई और न अपने उमूर के नाफ़िज़ करने और मख़लूक़ात का इन्तेज़ाम करने में कोई सुस्ती या थकन लाहक़ हुई बल्कि इसका इल्म गहराइयों में उतरा हुआ है और उसने सबके आदाद को “ाुमार कर लिया है और सब पर इसका अद्ल “ाामिल और फ़ज़ल महीत है हालांके यह सब उसके “ाायाने “ाान हक़ के अदा करने से क़ासिर हैं।

(((मालिके कायनात के इल्म के बारे में इस क़द्र दक़ीक़ बयान एक तरफ़ ग़ैर हकीम फ़लासफ़े के इस तसव्वुर की तरदीद है के ख़ालिक़ हकीम के इल्म का ताल्लुक़ सिर्फ़ कुल्लियात से होता है और वह जुज़्ज़ेयात से ब हैसियत जुज़्ज़ेयात बाख़बर नहीं होता है वरना इससे बदलते हुए जुज़्ज़ेयात के साथ ज़ाते में तग़य्युरे लाज़िम आएगा और यह बात ग़ैरे माक़ूल है और दूसरी तरफ़ इन्सान को नुक्ते की तरफ़ मुतवज्जा करना है के जो ख़ालिक़ व मालिक मज़कूरा तमाम बारीकियों से बाख़बर है वह ख़लवत कदों में नामहरमों के इज्तेमाआत, नीम तारीक रक़्सगाहों के रक़्स, सड़कों और बाज़ारों के ज़रदीदा इषारात, स्कूलों और दफ़्तरों के ग़ैर “ारई तसरेफ़ात और दिल व दिमाग़ में छिपे हुए ग़ैर “ारीफ़ाना तसव्वुरात व ख़यालात से भी बाख़बर है। उसके इल्म से कायनात का कोई ज़र्रा मख़फ़ी नहीं हो सकता है। वह आँखों की ख़यानत और दिल के पोषीदा इसरार, दोनों से मसावी तौर पर इत्तेलाअ रखता है। ‘‘वल्लाहो अलीमुन बे ज़ातिस्सुदूर’’)))

ख़ुदाया! तू ही बेहतरीन तौसीफ़ और आखि़र तक सराहे जाने का अहल है। तुझसे आस लगाई जाए तो बेहतरीन आसरा है और उम्मीद रखी जाए तो बेहतरीन मरकज़े उम्मीद है। तूने मुझे वह ताक़त दी है जिसके ज़रिये किसी ग़ैर की मदहा व सना नहीं करता हूँ और उसका रूख़ उन अफ़राद की तरफ़ नहीं मोड़ता हूँ जो नाकामी का मरकज़ और “ाुबहात की मन्ज़िल हैं। मैंने अपनी ज़बान को लोगों की तारीफ़ और तेरी परवरदा मख़लूक़ात की सना व सिफ़त से मोड़ दिया है।
ख़ुदाया हर तारीफ़ करने वाले का अपने ममदोह पर एक हक़ होता है चाहे वह मुआवेज़ा हो या इनआम व इकराम, और मैं तुझसे आस लगाए बैठा हूँ के तू रहमत के ज़ख़ीरों और मग़फ़ेरत के ख़ज़ानों की रहनुमाई करने वाला है। ख़ुदाया! यह उस बन्दे की मन्ज़िल है जिसने सिर्फ़ तेरी तौहीद और यकताई का एतराफ़ किया है और तेरे अलावा औसाफ़ व कमालात का किसी को अहल नहीं पाया है। फिर मैं एक एहतियाज रखता हूँ जिसका तेरे फ़ज़्ल के अलावा कोई इलाज नहीं कर सकता है और तेरे एहसानात के अलावा कोई इसका सहारा नहीं बन सकता है। अब इस वक़्त मुझे अपनी रेज़ा इनायत फ़रमा दे और दूसरों के सामने हाथ फैलाने से बेनियाज़ बना दे के तू हर “ौ पर क़ुदरत रखने वाला है।

92- आपका इरषादे गिरामी
(जब लोगों ने क़त्ले उस्मान के बाद आपकी बैअत का इरादा किया)

मुझे छोड़ दो और जाओ किसी और को तलाष कर लो। हमारे सामने वह मामला है जिसके बहुत से रंग और रूख़ हैं जिनकी न दिलों में ताब है और न अक़्लें उन्हें बरदाष्त कर सकती हैं। देखो उफ़क़ किस क़दर अब्र आलूद है और रास्ते किस क़द्र अन्जाने हो गए हैं। याद रखो के अगर मैंने बैअत की दावत को क़ुबूल कर लिया तो तुम्हें अपने इल्म ही के रास्ते पर चलाऊंगा और किसी की कोई बात या सरज़न्ष नहीं सुनूंगा। लेकिन अगर तुमने मुझे छोड़ दिया तो तुम्हारी ही एक फ़र्द की तरह ज़िन्दगी गुज़ारूंगा बल्के “ाायद तुम सबसे ज़्यादा तुम्हारे हाकिम के एहकाम का ख़याल रखूं। मैं तुम्हारे लिये वज़ीर की हैसियत से अमीर की बनिस्बत ज़्यादा बेहतर रहूँगा।

((( अमीरूल मोमेनीन (अ0) के इस इरषाद से तीन बातों की मुकम्मल वज़ाहत हो जाती है।
1. आपको खि़लाफ़त की कोई हिरस और तमाअ नहीं थी और न आप उसके लिये किसी तरह की दौड़ धूप के क़ायल थे ओहदाए इलाही ओहदेदार के पास आता है, ओहदेदार उसकी तलाष में नहीं निकलता है।
2. आप किसी क़ीमत पर इस्लाम की तबाही बरदाष्त नहीं कर सकते थे। आपकी निगाह में खि़लाफ़त के जुमला मुष्किलात व मसाएब थे और क़ौम की तरफ़ से बग़ावत का ख़तरा निगाह के सामने था लेकिन उसके बावजूद अगर मिल्लत की इस्लाह और इस्लाम की बक़ा का दारोमदार इसी खि़लाफ़त के क़ुबूल करने पर है तो आप इस राह में हर तरह की क़ुरबानी देने के लिये तैयार हैं।
3. आपकी नज़र में उम्मत के लिये एक दरम्यानी रास्ता वही था जिस पर आज तक चल रही थी के अपनी मर्ज़ी से कोई अमीर तय कर ले और फिर वक़्तन फ़वक़्तन आपसे मष्विरा करती रहे के आप मष्विरा देने से बहरहाल गुरेज़ नहीं करते हैं जिसका मुसलसल तजुरबा हो चुका है और इसी अम्र को आपने ज़रारत से ताबीर किया है। वरना जिसको हुकूमत की इमारत नाक़ाबिले क़ुबूल हो उसकी वज़ारत उससे ज़्यादा बदतर होगी। विज़ारत फ़क़त इस्लामी मफ़ादात की हद तक बोझ बटाने की हसीन तरीन ताबीर है।)))

93- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें आपने अपने इल्म व फ़ज़्ल से आगाह करते हुए बनी उमय्या के फ़ित्ने की तरफ़ मुतवज्जो किया है।)

हम्द व सनाए परवरदिगार के बाद- लोगों! याद रखो मैंने फ़ित्ने की आंख को फोड़ दिया है और यह काम मेरे अलावा कोई दूसरा अन्जाम नहीं दे सकता है जबके इसकी तारीकियां तहोबाला हो रही हैं और उसकी दीवानगी का मर्ज़ “ादीद हो गया है। अब तुम मुझसे जो चाहो दरयाफ़त कर लो क़ब्ल इसके के मैं तुम्हारे दरम्यान न रह जाऊँ। उस परवरदिगार की क़सम जिसके क़ब्ज़ए क़ुदरत में मेरी जान है तुम अब से क़यामत तक के दरम्यान जिस चीज़ के बारे में सवाल करोगे और जिस गिरोह के बारे में दरयाफ़्त करोगे जो सौ अफ़राद को हिदायत दे और सौ को गुमराह कर दे तो मैं उसके ललकारने वाले, खींचने वाले, हंकान वाले, सवारियों के क़याम की मंज़िल, सामान उतारने की जगह, कौन इनमें से क़त्ल किया जाएग, कौन अपनी मौत से मरेगा। सब बता दूंगा। हालांके अगर यह बदतरीन हालात और सख़्त तरीन मुष्किलात मेरे बाद पेष आए तो दरयाफ़्त करने वाला भी परेषानी से सर झुका लेगा और जिससे दरयाफ़्त किया जाएगा वह भी बताने से आजिज़ रहेगा और यह सब उस वक़्त होगा जब तुम पर जंगें पूरी तैयारी के साथ टूट पड़ेंगी और दुनिया इस तरह तंग हो जाएगी के मुसीबत के दिन तुलानी महसूस होने लगेंगे। यहांतक के अल्लाह बाक़ीमान्दा नेक बन्दों को कामयाबी अता कर दे।
याद रखो फ़ितनेज ब आते हैं तो लोगों को “ाुबहात में डाल देते हैं और जब जाते हैं तो होषियार कर जाते हैं। यह आते वक़्त नहीं पहचाने जाते हैं लेकिन जब जाने लगते हैं तो पहचान लिये जाते हैं, हवाओं की तरह चक्कर लगाते रहते हैं। किसी “ाहर को अपनी ज़द में ले लेते हैं और किसी को नज़रअन्दाज़ कर देते हैं। याद रखो। मेरी निगाह में सबसे ख़ौफ़नाक फ़ितना बनी उमय्या का है जो ख़ुद भी अन्धा होगा और दूसरों को भी अन्धेरे में रखेगा। उसके ख़ुतूत आम होंगे लेकिन इसकी बला ख़ास लोगों के लिये होगी जो इस फ़ित्ने में आंख खोले होंगे और न अन्धों के पास से बा आसानी गुज़र जाएगा
ख़ुदा की क़सम! तुम बनी उमय्या को मेरे बाद बदतरीन साहेबाने इक़तेदार पाओगे जिनकी मिसाल उस काटने वाली ऊंटनी की होगी जो मुंह से काटेगी और हाथ मारेगी या पांव चलाएगी और दूध न दूहने देगी और यह सिलसिला यूँ ही बरक़रार रहेगा जिससे सिर्फ़ वह अफ़राद बख़्षेंगे जो इनके हक़ में मुफ़ीद हों या कम से कम नुक़सानदेह न हों। यह मुसीबत तुम्हें इसी तरह घेरे रहेगी यहाँ तक के तुम्हारी दाद ख़्वाही ऐसे ही होगी जैसे ग़ुलाम अपने आक़ा से या मुरीद अपने पीर से इन्साफ़ का तक़ाज़ा करे।

((( पैग़म्बरे इस्लाम (स0) के इन्तेक़ाल के बाद जनाज़ाए रसूल (स0) को छोड़कर मुसलमानों की खि़लाफ़त साज़ी, खि़लाफ़त के बाद अमीरूल मोमेनीन (अ0) से मुतालेब-ए-बैयत, अबू सुफ़यान की तरफ़ से हिमायत की पेषकष, फ़िदक का ग़ासेबाना क़ब्ज़ा, दरवाज़े का जलाया जाना, फिर अबूबक्र की तरफ़ से उमर की नामज़दगी, फिर उमर की तरफ़ से “ाूरा के ज़रिये उस्मान की खि़लाफ़त, फिर तलहा व ज़ुबैर और आइषा की बग़ावत और फिर ख़वारिज का दीन से ख़ुरूज। यह वह फ़ित्ने थे जिनमें से कोई एक भी इस्लाम को तबाह कर देने के लिये काफ़ी था। अगर अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने मुकम्मल सब्र व तहम्मुल का मुज़ाहेरा न किया होता और सख़्त तरीन हालात पर सुकूत इख़्तेयार न फ़रमाया होता। इसी सुकूत और तहम्मुल को फ़ित्नों की आंख फोड़ देने से ताबीर किया गया है और इसके बाद इल्मी फ़ित्नों से बचने का एक रास्ता यह बता दिया गया है के जो जाहो दरयाफ़्त कर लो, मैं क़यामत तक के हालात से बाख़बर कर सकता हूँ। (रूहीलहल फ़िदाअ) )))

तुम पर इनका फ़ित्ना ऐसी भयानक “ाक्ल में वारिद होगा जिससे डर लगेगा और इसमें जाहेलीयत के अजज़ा होंगे, न कोई मिनारए हिदायत होगा और न कोई रास्ता दिखाने वाला परचम।
बस हम अहलेबैत (अ0) हैं जो इस फ़ित्ने से महफ़ूज़ रहेंगे और इसके दाइयों में से न होंगे, इसके बाद अल्लाह तुमसे इस फ़ित्ने को इस तरह अलग कर देगा, जिस तरह जानवर की खाल उतारी जाती है। इस “ाख़्स के ज़रिये उन्हें ज़लील करेगा और सख़्ती से हंकाएगा और मौत के तल्ख़ घूंट पिलाएगा और तलवार के अलावा कुछ न देगा और ख़ौफ़ के अलावा कोई लिबास न पहनएगा। वह वक़्त होगा जब क़ुरैष को यह आरज़ू होगी के काष दुनिया और उसकी तमाम दौलत देकर एक मन्ज़िल पर मुझे देख लेते चाहे सिर्फ़ इतनी ही देर के लिये जितनी देर में एक ऊँट नहर किया जाता है ताके मैं उनसे इस चीज़ को क़ुबूल कर लूं जिसका एक हिस्सा आज मांगता हूँ तो वह देने के लिये तैयार नहीं हैं।

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