Thursday, March 3, 2011

नहजुल बलाग़ा हिन्दी (ख़ुत्बा 17 से 21 तक) Nahjul Balagha Hindi

17- आपका इरशादे गिरामी
(उन ना-अहलों के बारे में जो सलाहियत के बग़ैर फै़सले का काम ‘ाुरू कर देते हैं और इसी ज़ैल में दो बदतरीन इक़साम मख़लूक़ात का ज़िक्र भी है)
क़िस्मे अव्वल- याद रखो के परवरदिगार की निगाह में बदतरीन ख़लाएक़ दो तरह के अफ़राद हैं -1-।  वह ‘ाख़्स जिसे परवरदिगार ने इसी के रहम व करम पर छोड़ दिया है और वह दरमियानी रास्ते से हट गया है। सिर्फ़ बिदअत का विल्दावा है और गुमराही की दावत पर फ़रेफ़ता है। यह दूसरे अफ़राद के लिये एक मुस्तक़िल फ़ितना है और साबिक़ अफ़राद की हिदायत से बहका हुआ है। अपने पैरोकारों को गुमराह करने वाला है ज़िन्दगी में भी और मरने के बाद भी। यह दूसरों की ग़ल्तियों का भी बोझ उठाने वाला है और उनकी ख़ताओं में भी गिरफ़तार है।
क़िस्मे दोम- वह ‘ाख़्स जिसने जेहालतों -2- को समेट लिया है और उन्हीं के सहारे जाहिलों के दरम्यान दौड़ लगा रहा है। फ़ित्नों की तारीकियों में दौड़ रहा है और अम्न व सुलह के फ़वाएद से यकसर ग़ाफ़िल है। इन्साननुमा लोगों ने इसका नाम आलिम रख दिया है हालाँके इसका इल्म से कोई ताल्लुक़ नहीं है। सुबह सवेरे इन बातों की तलाश में निकल पड़ता है जिनका क़लील इनके कसीर से बेहतर है। यहां तक के जब गन्दे पानी से सेराब हो जाता है और महमिल और बेफ़ाएदा बातों को जमा कर लेता है तो लोगों के दरमियान क़ाज़ी बन कर बैठ जाता है और इस अम्र की ज़िम्मेदारी ले लेता है के जो उमूर दूसरे लोगों पर मुश्तबह हैं वह उन्हें साफ़ कर देगा। इसके बाद जब कोई मुबहम मसला आ जाता है तो इसके लिए बे सूद और फ़रसूदा दलाएल को इकट्ठा करता है और उन्हीं से फ़ैसला कर देता है। यह ‘ाबाहत में इसी तरह गिरफ़तार है जिस तरह मकड़ी अपने जाले में फंस जाती है। इसे यह भी नहीं मालूम है के सही फ़ैसला किया है या ग़लत। अगर सही किया है तो भी डरता है के ‘ाायद ग़लत हो और अगर ग़लत किया है तो भी यह उम्मीद रखता है के ‘ाायद सही हो। ऐसा जाहिल है जो जिहालतों में भटक रहा हो और ऐसा अन्धा है जो अन्धेरों की सवारी पर सवार हो। न इल्म में कोई हतमी बात समझा है और न किसी हक़ीक़त को परखा है। रिवायात को यूं उड़ा देता है जिस तरह तेज़ हवा तिनकों को उड़ा देती है। ख़ुदा गवाह है के यह इन फ़ैसलों के सादिर करने के क़ाबिल नहीं है जो उसपर वारिद होते हैं और इस काम का अहल नहीं है जो उसके हवाले किया गया है। जिस चीज़ को नाक़ाबिले तवज्जो समझता है उसमें इल्म का एहतेसाल भी नहीं देता है और अपनी पहुंच के मावराए किसी और राय का तसव्वुर भी नहीं करता है। अगर कोई मसला वाज़े नहीं होता है तो उसे छिपा देता है के उसे अपनी जिहालत का इल्म है।
(( -1- जाहिल इन्सानों की हमेषा यह ख़्वाहिश होती है के परवरदिगार उन्हें उनके हाल पर छोड़ दे और वह जो चाहें करें किसी तरह की कोई पाबन्दी न हो हालांकि दरहक़ीक़त यह बदतरीन अज़ाबे इलाही है। इन्सान की फ़लाहो बहबूद इसी में है के मालिक उसे अपने रहम व करम के साये में रखे वरना अगर उससे तौफ़ीक़ात को सल्ब करके उसके हाल पर छोड़ दिया तो वह लम्हों में फ़िरऔन, क़ारून, नमरूद, हज्जाज और मुतवक्किल बन सकता है। अगरचे उसे एहसास यही रहेगा के उसने कायनात का इक़तेदार हासिल कर लिया है और परवरदिगार उसके हाल पर बहुत ज़्यादा मेहरबान है।
-2- क़ाज़ियों की यह क़िस्म हर दौर में रही है और हर इलाक़े में पाई जाती है। बाज़ लोग गांव या ‘ाहर में इसी बात को अपना इम्तेयाज़ तसव्वुर करते हैं के उन्हें फ़ैसला करने का हक़ हासिल है अगरचे उनमें किसी क़िस्म की सलाहियत नहीं है। यही वह क़िस्म है जिसने दीने ख़ुदा को तबाह और ख़ल्क़े ख़ुदा को गुमराह किया है और यही क़िस्म ‘ारीह से ‘ाुरू होकर उन अफ़राद तक पहुंच गई है जो दूसरों के मसाएल को बाआसानी तय कर देते हैं और अपने मसले में किसी तरह के फ़ैसले से राज़ी नहीं होते हैं और न किसी की राय को सुनने के लिये तैयार होते हैं। ))
नाहक़ बहाए हुए ख़ून इसके फै़सलों के ज़ुल्म से फ़रयादी हैं और ग़लत तक़सीम की हुई मीरास चिल्ला रही है। मैं ख़ुदा की बारगाह में फ़रयाद करता हूं ऐसे गिरोह जो ज़िन्दा रहते हैं तो जेहालत के साथ और मर जाते हैं तो ज़लालत के साथ। इनके नज़दीक कोई मताअ किताबे ख़ुदा से ज़्यादा बेक़ीमत नहीं है अगर इसकी वाक़ई तिलावत की जाए और कोई मताअ इस किताब से ज़्यादा क़ीमती और फ़ाएदामन्द नहीं है अगर उसके मफ़ाहिम में तहरीफ़ कर दी जाए। इनके लिए मारूफ़ से ज़्यादा मुन्किर कुछ नहीं है और मुन्किर से ज़्यादा मारूफ़ कुछ नहीं है। -1-
((याद रहे के अमीरूल मोमेनीन (अ) ने मसले के तमाम एहतेमालात का सद बाब कर दिया है और अब किसी राय परस्त इन्सान के लिए फ़रार करने का कोई रास्ता नहीं है और उसे नमसब में राय और क़यास इस्तेमाल करने के लिये एक न एक महमिल बुनयाद को इख़्तेयार करना पड़ेगा। इसके बग़ैर राय और क़यास का कोई जवाज़ नहीं है।))
18- आपका इरशादे गिरामी
(उलमा के दरमियान इख़तेलाफ़े फ़तवा के बारे में और इसी में अहल राय की मज़म्मत और क़ुरआन की मरजईयत का ज़िक्र किया गया है)
मज़म्मत अहल राय- उन लोगों का आलम यह है के एक ‘ाख़्स के पस किसी मसले का फ़ैसला आता है तो वह अपनी राय से फ़ैसला कर देता है और फ़िर यही क़ज़िया बअय्यना दूसरे के पास जाता है तो वह उसके खि़लाफ़ फ़ैसला कर देता है। इसके बाद तमाम क़ज़ात इस हाकिम के पास जमा होते हैं जिसने इन्हें क़ाज़ी बनाया है तो वह सबकी राय से ताईद कर देता है जबके सबका ख़ुदा एक, नबी एक और किताब एक है तो क्या ख़ुदा ही ने इन्हें इख़्तेलाफ़ का हुक्म दिया है और यह इसी की इताअत कर रहे हैं या उसने उन्हें इख़्तेलाफ़ से मना किया है मगर फ़िर भी इसकी मुख़ालेफ़त कर रहे हैं? या ख़ुदा ने दीने नाक़िस नाज़िल किया है और उनसे इसकी तकमील के लिये मदद मांगी है या यह सब ख़ुद इसकी ख़ुदाई ही में ‘ारीक हैं और इन्हें यह हक़ हासिल है के यह बात कहें और ख़ुदा का फ़र्ज़ है के वह क़ुबूल करे या ख़ुदा ने दीने कामिल नाज़िल किया था और रसूले अकरम (स) ने इसकी तबलीग़ और अदायगी में कोताही कर दी है, जबके इसका एलान है के हमने किताब में किसी तरह की कोताही नहीं की है और इसमें हर ‘ौ का बयान मौजूद है -2-। और यह भी बता दिया है के इसका एक हिस्सा दूसरे की तस्दीक़ करता है और इसमें किसी तरह का इख़्तेलाफ़ नहीं है। यह क़ुरआन ग़ैर ख़ुदा की तरफ़ से होता तो इसमें बेपनाह इख़्तेलाफ़ात होता। यह क़ुरआन वह है जिसका ज़ाहिर ख़ूबसूरत और बातिन अमीक़ और गहराए। इसके अजाएब फ़ना होने वाले नहीं हैं और तारीकियों का ख़ात्मा इसके अलावा और किसी कलाम से नहीं हो सकता है।
19- आपका इरशादे गिरामी
(जिसे उस वक़्त फ़रमाया जब मिम्बरे कूफ़े पर ख़ुत्बा दे रहे थे और अशअस बिन क़ैस ने टोक दिया के यह बयान आप ख़ुद अपने खि़लाफ़ दे रहे हैं। आपने पहले निगाहों को नीचा करके सुकूत फ़रमाया और फिर पुरजलाल अन्दाज़ से फ़रमाया)
तुझे क्या ख़बर के कौन सी बात मेरे मवाफ़िक़ है और कौन सी मेरे खि़लाफ़ है। तुझ पर ख़ुदा और तमाम लाअनत करने वालों की लानत, तू सुख़न बाफ़ और ताने बाने दुरूस्त करने वाले का फ़रज़न्द है। तू मुनाफ़िक़ है और तेरा बाप खुला हुआ काफ़िर था। ख़ुदा की क़सम तू एक मरतबा कुफ्ऱ का क़ैदी बना और दूसरी मरतबा इस्लाम का। लेकिन न तेरा माल काम आया न हसब। और जो ‘ाख़्स भी अपनी क़ौम की तरफ़ तलवार को रास्ता बताएगा और मौत को खींच कर लाएगा वह इस बात का हक़दार है के क़रीब वाले उससे नफ़रत करें और दूर वाले इस पर भरोसा न करें।
सय्यद रज़ी - - इमाम (अ) का मक़सद यह है के अशअत बिन क़ैस एक मरतबा दौरे कुफ्ऱ में क़ैदी बना था और दूसरी मरतबा इस्लाम लाने के बाद। तलवार की रहनुमाई का मक़सद यह है के जब यमामा में ख़ालिद बिन वलीद ने चढ़ाई की तो उसने अपनी क़ौम से ग़द्दारी की और सबको ख़ालिद की तलवार के हवाले कर दिया जिसके बाद इसका लक़ब ‘‘उरफ़ुल नार’’ हो गया जो उस दौर में हर ग़द्दार का लक़ब हुआ करता था।
20- आपका इरशादे गिरामी
(जिसमें ग़फ़लत से बेदार किया गया है और ख़ुदा की तरफ़ दौड़कर आने की दावत दी गई है।)
यक़ीनन जिन हालात को तुमसे पहले मरने वालों ने देख लिया है अगर तुम भी देख लेते तो परेशान व मुज़तरिब हो जाते और बात सुनने और इताअत करने के लिये तैयार हो जाते लेकिन मुश्किल यह है के अभी वह चीज़ तुम्हारे लिये पस हिजाब हैं और अनक़रीब यह परदा उठने वाला है। बेशक तुम्हें सब कुछ दिखाया जा चुका है अगर तुम निगाह बीना रखते हो और सब कुछ सुनाया जा चुका है अगर तुम गोश ‘ानवार रखते हो और तुम्हें हिदायत दी जा चुकी है अगर तुम हिदायत हासिल करना चाहो और मैं बिल्कुल बरहक़ कह रहा हूँ के अनक़रीब तुम्हारे सामने खुल कर आ चुकी हैं और तुम्हें इस क़दर डराया जा चुका है जो बक़द्र काफ़ी है और ज़ाहिर है के आसमानी फ़रिश्तों के बाद इलाही पैग़ाम को इन्सान ही पहुंचाने वाला है।
21- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जो एक कलमा है लेकिन तमाम मोअज़त व हिकमत को अपने अन्दर समेटे हुए है)
बेशक मन्ज़िले मक़सूद तुम्हारे सामने है और साअते मौत तुम्हारे तआक़ब में है और तुम्हें अपने साथ लेकर चल रही है। अपना बोझ हल्का कर लो -1- ताके पहले वालों से मुलहक़ हो जाओ के अभी तुम्हारे साबेक़ीन से तुम्हारा इन्तेज़ार कराया जा रहा है।
सय्यद रज़ी- - इस कलाम का कलामे ख़ुदा व कलामे रसूल (स) के बाद किसी कलाम के साथ रख दिया जाए तो इसका पल्ला भारी ही रहेगा और यह सबसे आगे निकल जाएगा। ‘‘तख़फ़फ़वा तलहक़वा’’ से ज्यादा मुख़्तसर और बलीग़ कलाम तो कभी देखा और सुना ही नहीं गया है। इस कलमे में किस क़द्र गहराई पाई जाती है और इस हिकमत का चश्मा किस क़द्र ‘ाफ़फाफ़ है। हमने किताबे ख़साएस में इसकी क़द्र व क़ीमत और अज़मत व ‘ाराफ़त पर मुकम्मल तब्सिरा किया है।
(( -1- इसमें कोई ‘ाक नहीं है के गुनाह इन्सानी ज़िन्दगी के लिए एक बोझ की हैसियत रखता है और यही बोझ है जो इन्सान को आगे नहीं बढ़ने देता है और वह इसी दुनियादारी में मुब्तिला रह जाता है वरना इन्सान का बोझ हल्का हो जाए तो तेज़ क़दम बढ़ाकर उन साबेक़ीन से मुलहक़ हो सकता है जो नेकियों की तरफ़ सबक़त करते हुए बलन्दतरीन मन्ज़िलों तक पहुंच गये हैं।
अमीरूल मोमेनीन (अ) की दी हुई यह मिसाल वह है जिसका तजुरबा हर इन्सान की ज़िन्दगी में बराबर सामने आता रहता है के क़ाफ़िले में जिसका बोझ ज़्यादा होता है वह पीछे रह जाता है और जिसका बोझ हल्का होता है वह आगे बढ़ जाता है। सिर्फ़ मुश्किल यह है के इन्सान को गुनाहों के बोझ होने का एहसास नहीं है। ‘ाायर ने क्या ख़ुब कहा है-
चलने न दिया बारे गुनह ने पैदल
ताबूत में कान्धों पे सवार आया हूँ। ))

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