Thursday, March 24, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 79-86 , नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 79-86

79-आपका इरषादे गिरामी
(जब जंगे ख़वारिज के लिये निकलते वक़्त बाज़ असहाब ने कहा के अमीरूल मोमेनीन (अ0) इस सफ़र के लिये कोई दूसरा वक़्त इख़्तेयार फ़रमाएं। इस वक़्त कामयाबी के इमकानात नहीं हैं के इल्मे नुजूम के हिसाबात से यही अन्दाज़ा होता है।)

क्या तुम्हारा ख़याल यह है के तुम्हें वह साअत मालूम है जिसमें निकलने वाले से बलाएं टल जाएंगी और तुम उस साअत से डराना चाहते हो जिसमें सफ़र करने वाला नुक़सानात में घिर जाएगा? याद रखो जो तुम्हारे इस बयान की तस्दीक़ करेगा वह क़ुरान की तकज़ीब करने वाला होगा और महबूब अष्याअ के हुसूल और नापसन्दीदा उमूर के दफ़ा करने में मददे ख़ुदा से बे नियाज़ हो जाएगा। क्या तुम्हारी ख़्वाहिष यह है के तुम्हारे अफ़आल के मुताबिक़ अमल करने वाला परवरदिगार के बजाए तुम्हारी ही तारीफ़ करे इसलिये के तुमने अपने ख़याल में उसे उस साअत का पता बता दिया है जिसमें मनफ़अत हासिल की जाती है और नुक़सानात से महफ़ूज़ रहा जाता है।
अय्योहन्नास! ख़बरदार नुजूम का इल्म मत हासिल करो मगर उतना ही जिससे बरोबहर में रास्ते दरयाफ़्त किये जा सकें। के यह इल्म कहानत की तरफ़ ले जाता है और मुनज्जिम भी एक तरह का काहन (ग़ैब की ख़बर देने वाला) हो जाता है जबके काहन जादूगर जैसा होता है और जादूगर काफ़िर जैसा होता है और काफ़िर का अन्जाम जहन्नम है। चलो, नामे ख़ुदा लेकर निकल पड़ो।
(((वाज़ेह रहे के इल्मे नुजूम हासिल करने से मुराद उन असरात व नताएज का मालूम करना है जो सितारों की हरकात के बारे में इस इल्म के मुद्दई हज़रात ने बयान किये हैं वरना असल सितारों के बारे में मालूमात हासिल करना कोई ऐब नहीं है। इससे इन्सान के ईमान व अक़ीदे में भी इस्तेहकाम पैदा होता है और बहुत से दूसरे मसाएल भी हल हो जाते हैं और सितारों का वह इल्म जो उनके हक़ीक़ी असरात पर मबनी है एक फ़ज़्ल व “ारफ़ है और इल्मे परवरदिगार का एक “ाोबा है वह जिसे चाहता है इनायत कर देता है।
इमाम अलैहिस्सलाम ने अव्वलन इल्मे नजूम को कहानत का एक “ाोबा क़रार दिया के ग़ैब की ख़बर देने वाले अपने अख़बार के मुख़्तलिफ़ माख़ज़ व मदारक बयान करते हैं। जिनमें से एक इल्मे नजूम भी है। इसके बाद ज बवह ग़ैब की ख़बर में बयान कर देते हैं तो उन्हें क़ब्रों के ज़रिये इन्सान के दिल व दिमाग़ पर मुसल्लत हो जाना चाहते हैं जो जादूगरी का एक “ाोबा है और जादूगरी इन्सान को यह महसूस कराना चाहती है के इस कायनात में अमल दख़ल हमारा ही है और इस जादू का चढ़ाना और उतारना हमारे ही बस का काम है, दूसरा कोई यह कारनामा अन्जाम नहीं दे सकता है और इसी का नाम कुफ्ऱ है।)))

80- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जंगे जमल से फ़राग़त के बाद औरतों की मज़म्मत के बारे में)

लोगों! याद  रखो के औरतें ईमान के ऐतबार से, मीरास के हिस्से के ऐतबार से और अक़्ल के ऐतबार से नाक़िस होती हैं। ईमान के ऐतबार से नाक़िस होने का मतलब यह है के वह अय्यामे हैज़ में नमाज़ रोज़े से बैठ जाती हैं और अक़्लों के ऐतबार से नाक़िस होने का मतलब यह है के इनमें दो औरतों की गवाही एक मर्द के बराबर होती है। हिस्से की कमी यह है के उन्हें मीरास में हिस्सा मर्दों के आधे हिस्से के बराबर मिलता है। लेहाज़ा तुम बदतरीन औरतों से बचते रहो और बेहतरीन औरतों से भी होषियार रहो और ख़बरदार नेक काम भी इनकी इताअत की बिना पर अन्जाम न देना के उन्हें बुरे काम का हुक्म देने का ख़याल पैदा हो जाए।

81-आपका इरषादे गिरामी(ज़ोहद के बारे में)

अय्योहन्नास! ज़्ोहद उम्मीदों के कम करने, नेमतों का “ाुक्रिया अदा करने और मोहर्रमात से परहेज़ करने का नाम है। अब अगर यह काम तुम्हारे लिये मुष्किल हो जाए तो कम अज़ कम इतना करना के हराम तुम्हारी क़ूवते बरदाष्त पर ग़ालिब न आने पाए और नेमतों के मौक़े पर “ाुक्रिया को फ़रामोष न कर दुनिया के परवरदिगार ने निहायत दरजए वाज़े और रौषन दलीलों और हुज्जत तमाम करने वाली किताबों के ज़रिये तुम्हारे हर उज़्र का ख़ातमा कर दिया है।

82-आपका इरषादे गिरामी
(दुनिया के सिफ़ात के बारे में)

मैं उस दुनिया के बारे में क्या कहूँ जिसकी इब्तिदा रन्ज व ग़म और इन्तेहा फ़ना व पस्ती है। इसके हलालें हिसाब में है और हराम में अक़ाब। जो इसमें ग़नी हो जाए वह आज़माइषों में मुब्तिला हो जाए और जो फ़क़ीर हो जाए वह रन्जीदा व अफ़सरदा हो जाए। जो इसकी तरफ़ दौड़ लगाए उसके हाथ से निकल जाए और जो मुंह फेर कर बैठ रहे उसके पास हाज़िर हो जाए। जो इसको ज़रिया बनाकर आगे देखे उसे बीना बना दे और जो इसको मन्ज़ूरे नज़र बना ले उसे अन्धा बना दे।
सय्यद रज़ी- अगर कोई “ाख़्स हज़रत के उस इरषादे गिरामी ‘‘मन अबसर बेहा बसरता’’ में ग़ौर करे तो अजीब व ग़रीब मानी और दूर रस हक़ाएक़ का इदराक कर लेगा जिनकी बलन्दियों और गहराइयों का इदराक मुमकिन नहीं है। ख़ुसूसियत के साथ अगर दूसरे फ़िक़रे ‘‘मन अबसर एलैहा आमतह’’ को मिला लिया जाए तो ‘‘अबसर बेहा’’ और ’’ अबसर एलैहा’’ का र्फ़क़ नुमायां हो जाएगा और अक़्ल मदहोष हो जाएगी।

(((इस ख़ुत्बे में इस नुक्ते पर नज़र रखना ज़रूरी है के यह जंगे जमल के बाद इरषाद फ़रमाया गया है और इसके मफ़ाहिम में कुल्लियात की तरह सूरते हाल और तजुर्बात का भी दख़ल हो सकता है। यानी यह कोई लाज़िम नहीं है के इसका इतलाक़ हर औरत पर हो जाए। दुनिया में ऐसी ख़ातून भी हो सकती है जो निसवानी अवारिज़ से पाक हो। इसकी गवाही बस क़ुरान तन्हा क़ाबिले क़ुबूल हो और वह अपने बाप की तन्हा वारिस हो। ज़ाहिर है के इस ख़ातून में किसी तरह का नुक़्स नहीं पाया जाता है जिसे जनाबे फ़ातेमा (अ0) और ऐसी औरत भी हो सकती है जिसमें सारे नक़ाएस पाए जाते हों और इन फ़ितरी नक़ाएस के साथ किरदारी और ईमानी नक़ाएस भी हों के यह औरत हर एतेबार से क़ाबिले लानत व मज़म्मत हो। क़वानीन का दारोमदार न क़िस्मे अव्वल पर हो सकता है और न क़िस्मे दोम पर। क़वानीन का इतलाक़ दरमियानी क़िस्म पर होता है जिसमें किसी तरह का इम्तियाज़ न पाया जाता हो और सिर्फ़ फ़ितरते निसवानी कार फ़रमाई हो और अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने इसी क़िस्म के बारे में इरषाद फ़रमाया है वरना अगर सिर्फ़ जंगे जमल की बिना पर ग़ैज़ व ग़ज़ब होता तो मर्दों के खि़लाफ़ भी बयान देते जिन्होंने उम्मुल मोमेनीन की इताअत की थी या उन्हें भड़काया था। फिर अमीरूल मोमेनीन (अ0) इमाम मासूम हैं कोई जज़्बाती इन्सान नहीं हैं और इनसे पहले रसूले अकरम (स0) भी यही बात फ़रमा चुके हैं।
अलबत्ता यह कहा जा सकता है के इस एलान के लिये एक मुनासिब मौक़ा हाथ आ गया जहां अपनी बात को बख़ूबी वाज़ेअ किया जा सकता है और औरत के इत्तेबाअ के नताएज से बाख़बर किया जा सकता है।)))

83- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(इस अजीब व ग़रीब ख़ुत्बे को ख़ुत्बए ग़र्रा कहा जाता है)

इस ख़ुत्बे में परवरदिगार के सिफ़ात, तक़वा की नसीहत, दुनिया से बेज़ारी का सबक़, क़यामत के हालात, लोगों की बेरूख़ी पर तम्बीह और फिर यादे ख़ुदा दिलाने में अपनी फ़ज़ीलत का ज़िक्र किया गया है।
सारी तारीफ़े उस अल्लाह के लिये हैं जो अपनी ताक़त की बिना पर बलन्द और अपने एहसानात की बिना पर बन्दों से क़रीबतर है। वह हर फ़ाएदा और फ़ज़ल का अता करने वाला और हर मुसीबत और रन्ज का टालने वाला है। मैं इसकी करम नवाज़ियों और नेमतों की फ़रावानियों की बिना पर इसकी तारीफ़ करता हूँ और इस पर ईमान रखता हूँ के वही अव्वल और ज़ाहिर है और उसीसे हिदायत तलब करता हूँ के वही क़रीब और हादी है। उसी से मदद चाहता हूँ के वही क़ादिर और क़ाहिर है और उसी पर भरोसा करता हूँ के वही काफ़ी और नासिर है।
और मैं गवाही देता हूँ के हज़रत मोहम्मद (स0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्हें परवरदिगार ने अपने हुक्म को नाफ़िज़ करने, अपनी हुज्जत को तमाम करने और अज़ाब की ख़बरें पेष करने के लिये भेजा है।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें इस ख़ुदा से डरने की दावत देता हूँ जिसने तुम्हारी हिदायत के लिये मिसालें बयान की हैं। तुम्हारी ज़िन्दगी के लिये मुद्दत मुअय्यन की है। तुम्हें मुख़्तलिफ़ क़िस्म के लिबास पिन्हाए हैं। तुम्हारे लिये अस्बाबे माषियत को फ़रावां कर दिया है। तुम्हारे आमाल का मुकम्मल अहाता कर रखा है और तुम्हारे लिये जज़ा का इन्तेज़ाम कर दिया है। तुम्हें मुकम्मल नेमतों और वसीअतर अतीयों से नवाज़ा है और मवस्सर दलीलों के ज़रिये अज़ाबे आख़ेरत से डराया है। तुम्हारे आदाद को “ाुमार कर लिया है और तुम्हारे लिये इस इम्तेहानगाह और मक़ामे इद्दत में मुद्दतें मुअय्यन कर दी हैं। यहीं तुम्हारा इम्तेहान लिया जाएगा और इसी के अक़वाल व आमाल पर तुम्हारा हिसाब किया जाएगा।

(((यूँ तो अमीरूल मोमेनीन (अ0) के किसी भी ख़ुत्बे की तारीफ़ करना सूरज को चिराग़ दिखाने के मुतरादिफ़ है लेकिन हक़ीक़त अम्र यह है के यह ख़ुत्बा ‘‘ख़ुत्बए ग़र्रा’’ कहे जाने के क़ाबिल है जिसमें इस क़द्र हक़ाएक़ व मआरेफ और मानी व मफ़ाहिम को जमा कर दिया गया है के इनका “ाुमार करना भी ताक़ते बषर से बालातर है।
आग़ाज़े ख़ुत्बे में मालिके कायनात के बज़ाहिर दो तज़ाद सिफ़ात व कमालात का ज़िक्र किया गया है के वह अपनी ताक़त के एतबार से इन्तेहाई बलन्दतर है लेकिन इसके बाद भी बन्दों से दूर नहीं है इसलिये के हर आन अपने बन्दों पर ऐसा करम करता रहता है के यह करम उसे बन्दों से क़रीबतर बनाए हुए है और उसे दूर नहीं होने देता है। लफ़्ज़ ‘‘बहोला’’ में इस नुक्ते की तरफ़ भी इषारा है के इसकी बलन्दी किसी वसीले और ज़रिये की बुनियाद पर नहीं है बल्कि यह अपनी ज़ाती ताक़त और क़ुदरत का नतीजा है वरना इसके अलावा हर एक की बलन्दी इसके फ़ज़्ल व करम से वाबस्ता है और इसके बाद बग़ैर बलन्दी का कोई इमकान नहीं है। वह अगर चाहे तो बन्दे को क़ाब क़ौसैन की मन्ज़िलों तक बलन्द कर दे ‘‘इसरा बेअब्देही’’ और अगर चाहे तो ‘‘साहबे मेराज’’ के कान्धों पर बलन्द कर दे ‘‘वअलीयुन वाज़ेअ अक़दाम- फ़ी महल्ल वज़अल्लाह यदह’’।
इसके बाद पैग़म्बरे इस्लाम (स0) की बअसत के तीन बुनियादी मक़ासिद की तरफ़ इषारा किया गया है के इस बअसत का असल मक़सद यह था के इलाही एहकाम नाफ़िज़ हो जाएं। बन्दों पर हुज्जत तमाम हो जाए और उन्हें क़यामत में पेष आने वाले हालात से क़ब्ल अज़ वक़्त बाख़बर कर दिया जाए के यह काम नुमाइन्दाए परवरदिगार के अलावा कोई दूसरा अन्जाम नहीं दे सकता है और यह ख़ुदाई नुमाइन्दगी के फ़वाएद में सबसे अज़ीमतर फ़ाएदा है जिसकी बिना पर इन्सान रिसालते इलाहिया से किसी वक़्त भी बेनियाज़ नहीं हो सकता है।)))

याद रखो इस दुनिया का सरचष्मा गन्दा और इसका घाट गिल आलूद है। इसका मन्ज़र ख़ूबसूरत दिखाई देता है। लेकिन अन्दर के हालात इन्तेहाई दरजा ख़तरनाक हैं। यह दुनिया एक मिट जाने वाला धोका एक बुझ जाने वाली रोषनी, एक ढल जाने वाला साया और एक गिर जाने वाला सहारा है। जब इससे नफ़रत करने वाला मानूस हो जाता है और इसे बुरा समझने वाला मुतमईन हो जाता है तो यह अचानक अपने पैरों को पटकने लगती है और आषिक़ को अपने जाल में गिरफ़्तार कर लेती है और फिर अपने तीरों का निषाना बना लेती है। इन्सान की गरदन में मौत का फन्दा डाल देती है और उसे खींच कर तंगी, मरक़द और वहषते मन्ज़िल की तरफ़ ले जाती है जहां वह अपना ठिकाना देख लेता है और अपने आमाल का मुआवज़ा हासिल कर लेता है और यूंही यह सिलसिला नस्लों में चलता रहता है के औलाद बुज़ुर्गों की जगह पर आ जाती है। न मौत चीरा दस्तियों से बाज़ आती है और न आने वाले अफ़राद गुनाहों से बाज़ आते हैं। पुराने लोगों ने नक़्षे क़दम पर चलते रहते हैं और तेज़ी के साथ अपनी आख़री मन्ज़िले इन्तेहा व फ़ना की तरफ़ बढ़ते रहते हैं।
यहाँ तक के जब तमाम मामलात ख़त्म हो जाएंगे और तमाम ज़माने बीत जाएंगे और क़यामत का वक़्त क़रीब आ जाएगा तो उन्हें क़ब्रों के गोषों, परिन्दों के घोसलों, दरिन्दों के के भटों और हलाकत की मन्ज़िलों से निकाला जाएगा। उसके अम्र की तरफ़ तेज़ी से क़दम बढ़ाते हुए और अपनी वादागाह की तरफ़ बढ़ते हुए, गिरोह दर गिरोह ख़ामोष सफ़ बस्ता और इस्तादा निगाहे क़ुदरत इन पर हावी और दाई इलाही की आवाज़ इनके कानों में, बदन पर बेचारगी का लिबास और ख़ुद सिपर्दगी व ज़िल्लत की कमज़ोरी ग़ालिब, तदबीरें गुम, उम्मीदें मुनक़ता, दिल मायूसकुन ख़ामोषी के साथ बैठे हुए।

(((एक-एक लफ़्ज़ पर ग़ौर किया जाए और दुनिा की हक़ीक़त से आषनाई पैदा की जाए। सूरते हाल यह है के यह एक धोका है जो रहने वाला नहीं है। एक रौशनी है जो बुझ जाने वाली है। एक साया है जो ढल जाने वाला है और एक सहारा है जो गिर जाने वाला है। इन्साफ़ से बताओ क्या ऐसी दुनिया भी दिल लगाने के क़ाबिल और एतबार करने के लाहक़ है, हक़ीक़ते अम्र यह है के दुनिया से इष्क़ व मोहब्बत सिर्फ़ जेहालत और नावाक़फ़ीयत का ख़ुत्बा है वरना इन्सान की हक़ीक़त व बेवफ़ाई से बाख़बर हो जाए तो तलाक़ दिये बग़ैर नहीं रह सकता है।
क़यामत यह है के इन्सान दुनिया की बेवफ़ाई, मौत की चीरादस्ती का बराबर मुषाहेदा कर रहा है लेकिन इसके बावजूद कोई इबरत हासिल करने वाला नहीं है और हर आने वाला दौरे गुज़िष्ता दौर का अन्जाम देखने के बाद भी उसी रास्ते पर चल रहा है।
यह हक़ीक़त आम इन्सानों की ज़िन्दगी में वाज़ेअ न भी हो तो ज़ालिमों और सितमगारों की ज़िन्दगी में सुबह व “ााम होती रहती है के हर सितमगर अपने पहले वाले सितमगरों का अन्जाम देखने के बाद भी उसी रास्ते पर चल रहा है और हर मसलए हयात का हल ज़ुल्म व सितम के अलावा किसी और चीज़ को नहीं क़रार देता है। ख़ुदा जाने इन ज़ालिमों की आँखें कब खुलेंगी और यह अन्धा इन्सान कब बीना बनेगा।
मौलाए कायनात ही ने सच फ़रमाया था के ‘‘सारे इन्सान सो रहे हैं जब मौत आ जाएगी तो बेदार हो जाएंगे’’ यानी जब तक आंख खुली रहेगी बन्द रहेगी और जब बन्द हो जाएगी तो खुल जाएगी। अस्तग़फ़ेरूल्लाह रब्बी वातूबो इलैह)))

और आवाज़ें दब कर ख़ामोष हो जाएंगी, पसीना मुंह में लगाम लगा देगा और ख़ौफ़ अज़ीम होगा। कान उस पुकारने वाले की आवाज़ से लरज़ उठेंगे जो आख़ेरी फ़ैसला सुनाएगा और आमाल का मुआवज़ा देने और आख़ेरत के अक़ाब या सवाब के हुसूल के लिये आवाज़ देगा।
तुम वह बन्दे हो जो उसके इक़तेदार के इज़हार के लिये पैदा हुए हो और इसके ग़लबे व तसल्लत के साथ उनकी तरबीयत हुई है। नज़अ के हंगाम इनकी रूहें क़ब्ज़ कर ली जाएंगी और उन्हें क़ब्रों के अन्दर छिपा दिया जाएगा। यह ख़ाक के अन्दर मिल जाएंगे और फिर अलग अलग उठाए जाएंगे। उन्हें आमाल के मुताबिक़ बदला दिया जाएगा और हिसाब की मंज़िल में अलग-अलग कर दिया जाएगा। उन्हें दुनिया में अज़ाब से निकलने का रास्ता तलाष करने के लिये मोहलत दी जा चुकी है और उन्हें रोषन रास्ते की हिदायत की जा चुकी है। उन्हें मरज़ीए ख़ुदा के हुसूल का मौक़ा भी दिया जा चुका है और इनकी निगाहों से “ाक के परदे भी उठाए जा चुके हैंं। उन्हें मैदाने अमल में आज़ाद भी छोड़ दिया जा चुका है ताके आख़ेरत की दौड़ की तैयारी कर लें और सोच समझ कर मन्ज़िल की तलाष कर लें और इतनी मोहलत पा लें जितनी फ़वाएद के हासिल करने और आइन्दा मन्ज़िल का सामान मुहैया करने के लिये ज़रूरी होती है।
हाए यह किस क़द्र सही मिसालें और “िाफ़ा बख़्ष नसीहतें हैं अगर इन्हें पाकीज़ा दिल, सुनने वाले कान, मज़बूत राएं और होषियार अक़लें नसीब हो जाएं। लेहाज़ा अल्लाह से डरो उस “ाख़्स की तरह जिसने नसीहतों को सुना तो दिल में ख़ुषूअ पैदा हो गया और गुनाह किया तो फ़ौरन एतराफ़ कर लिया और ख़ौफ़े ख़ुदा पैदा हो गया तो अमल “ाुरू कर दिया।

(((इन्सान को यह याद रखना चाहिए के न इसकी तख़लीक़ इत्तेफ़ाक़ात का नतीजा है और न इसकी ज़िन्दगी इख़्तेयारात का मजमुआ। वह एक ख़ालिक़े क़दीर की क़ुदरत के नतीजे में पैदा हुआ है और एक हकीम ख़बीर के इख़्तेयारात के ज़ेरे असर ज़िन्दगी गुज़ार रहा है। एक वक़्त आएगा जब फ़रिष्तए मौत इसकी रूह क़ब्ज़ कर लेगा और उसे ज़मीन के ऊपर से ज़मीन के अन्दर पहुंचा दिया जाएगा और फिर एक दिन तने तन्हा क़ब्र से निकाल के मन्ज़िले हिसाब में लाकर खड़ा कर दिया जाएगा और उसे उसके ामाल का मुकम्मल मुआवज़ा दे दिया जाएगा और यह काम ग़ैर आदिलाना नहीं होगा इस लिये के उसे दुनिया में अज़ाब से बचने और रज़ाए ख़ुदा हासिल करने की मोहलत दी जा चुकी है। उसे तौबा का रास्ता भी बताया जा चुका है और अमल के मैदान की भी निषानदेही की जा चुकी है और इसकी निगाहों से “ाक के परदे भी उठाए जा चुके हैं और उसे मैदाने अमल में दौड़ने का मौक़ा भी दिया जा चुका है। उसे इस इन्सान जैसी मोहलत भी दी जा चुकी है जो रोषनी में अपने मद्दआ को तलाष करता है के एक तरफ़ यह भी ख़तरा रहता है के तेज़ रफ़तारी में मक़सद से आगे न निकल जाए और एक तरफ़ यह भी एहसास रहता है के कहीं चिराग़ बुझ न जाए और इस तरह इसकी रोषनी इन्तेहाई मोहतात होती है।
इसमें कोई “ाक नहीं है के मालिके कायनात की बयान की हुई मिसालें साएब व सही और इसकी नसीहतें सेहतमन्द और षिफ़ाबख़्ष हैं लेकिन मुष्किल यह है के कोई नुस्क़ाए षिफ़ा सिर्फ़ नुस्क़े की हद तक कार आमद नहीं होता है बल्कि इसका इस्तेमाल करना और इस्तेमाल के साथ परहेज़ करना भी ज़रूरी होता है और इन्सानों में इसी “ार्त की कमी है। नसीहतों से फ़ाएदा उठाने के लिये चार अनासिर का होना लाज़मी है। सुनने वाले कान हों, तय्यबो ताहिर दिल हों, राय में इस्तेहकाम हो और फ़िक्र में होषियारी हो, यह चारों अनासिर नहीं हैं तो नसीहतों का कोई फ़ाएदा नहीं हो सकता है और आलमे बषरीयत की कमज़ोरी ही है के इसमें उन्हीं अनासिर में से कोई न कोई अनसर कम हो जाता है और वह मवाएज़ व नसातेह के असरात से महरूम रह जाता है।)))

आख़ेरत से डरा तो अमल की तरफ़ सबक़त की, क़यामत का यक़ीन पैदा किया तो बेहतरीन आमाल अन्जाम दिये, इबरत दिलाई गई तो इबरत हासिल कर ली, ख़ौफ़ दिलाया गया तो डर गया, रोका गया तो रूक गया, सदाए हक़ पर लब्बैक कही तो इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो गया और मुड़कर आ गया तो तौबा कर ली, बुज़ुर्गों की इक़तेदा की तो उनके नक़्षे क़दम पर चला, मन्ज़रे हक़ दिखाया गया तो देख लिया। तलबे हक़ में तेज़ रफ़तारी से बढ़ा और बातिल से फ़रार कर निजात हासिल कर ली। अपने लिये ज़ख़ीरए आख़ेरत जमा कर लिया और अपने बातिन को पाक कर लिया। आख़ेरत के घर को आबाद किया और ज़ादे राह को जमा कर लिया उस दिन के लिये जिस दिन यहां से कूच करना है और आख़ेरत का रास्ता इख़्तेयार करना है और आमाल का मोहताज होना है और महले फ़क्ऱ की तरफ़ जाना है और हमेषा के घर के लिये सामान आगे आगे भेज दिया।
अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो इस जहत की ग़र्ज़ से जिसके लिये तुमको पैदा किया गया है और इसका ख़ौफ़ पैदा करो, उस तरह जिस तरह उसने तुम्हें अपने अज़मत का ख़ौफ़ दिलाया है और इस अज्र का इस्तेहक़ाक़ पैदा करो जिसको उसने तुम्हारे लिये मुहैया किया है उसके सच्चे वादे के पुरा करने और क़यामत के हौल से बचने के मुतालबे के साथ।
उसने तुम्हें कान इनायत किये हैं ताके ज़रूरी बातों को सुनें और आंखें दी हैं ताके बे बसरी में रौषनी अता करें और जिस्म के वह हिस्से दिये हैं जो मुख़्तलिफ़ आज़ा को समेटने वाले हैं और इनके पेच व ख़म के लिये मुनासिब हैं, सूरतों की तरकीब और उम्रों की मुद्दत के एतबार से ऐसे बदनों के साथ जो अपनी ज़रूरतों को पूरा करने वाले हैं और ऐसे दिलों के साथ जो अपने रिज़्क़ की तलाष में रहते हैं इसकी अज़ीमतरीन नेमतों, एहसानमन्द बनाने वाली बख़्िषषों और सलामती के हसारों के दरम्यान, इसने तुम्हारे लिये वह उम्रें क़रार दी हैं जिनको तुमसे मख़ज़ी कर रखा है और तुम्हारे लिये माज़ी में गुज़र जाने वालांे के आसार में इबरतें फ़राहम कर दी हैं, वह लोग जो अपने ख़त व नसीब से लुत्फ़ व अन्दोज़ हो रहे थे और हर बन्धन से आज़ाद थे लेकिन मौत ने उन्हें उम्मीदों की तकमील से पहले ही गिरफ़्तार कर लिया और अजल की हलाकत सामानियों ने उन्हें हुसूले मक़सद से अलग कर दिया। उन्होंने बदन की सलामती के वक़्त कोई तैयारी नहीं की थी और इब्तेदाई औक़ात में कोई इबरत हासिल नहीं की थी, तो क्या जवानी की तरो ताज़ा उम्रे रखने वाले बुढ़ापे में कमर झुक जाने का इन्तेज़ार कर रहे हैं और क्या सेहत की ताज़गी रखने वाले मुसीबतों और बीमारियों के हवादिस का इन्तेज़ार कर रहे हैं और क्या बक़ा की मुद्दत रखने वाले फ़ना के वक़्त के मन्ज़र हैं जब के वक़्ते ज़वाल क़रीब होगा और इन्तेक़ाल की साअत नज़दीकतर होगी।

(((एक मर्दे मोमिन की ज़िन्दगी का हसीन तरीन और पाकीज़ातरीन नक़्षा यही है लेकिन यह अलफ़ाज़ फ़साहत व बलाग़त से लुत्फ़अन्दोज़ होने के लिये नहीं हैं। ज़िन्दगी पर मुन्तबिक़ करने के लिये और ज़िन्दगी का इम्तेहान करने के लिये हैं के क्या वाक़ेअन हमारी ज़िन्दगी में यह हालात और कैफ़ियात पाए जाते हैं। अगर ऐसा है तो हमारी आक़बत बख़ैर है और हमें निजात की उम्मीद रखना चाहिये और अगर ऐसा नहीं है तो हमें इस दारे इबरत में गुज़िष्ता लोगों के हालात से इबरत हासिल करनी चाहिये और अब से इस्लाह दुनिया व आखि़रत के अमल में लग जाना चाहिये। ऐसा न हो के मौत अचानक नाज़िल हो जाए और वसीयत करने का मौक़ा भी फ़राहम न हो सके। कितना बलीग़ फ़िक़रा है मौलाए कायनात (अ0) का के गुज़िष्ता लोग हर क़ैद व बन्द और हर पाबन्दीए हयात से आज़ाद हो गए लेकिन मौत के चंगुल से आज़ाद न हो सके और उसने बाला आखि़र उन्हें गिरफ़्तार कर लिया और उनकी वादागाह तक पहुंचा दिया।
फिर जवानी में यह ख़याल के ज़ईफ़ी में अमल या तौबा कर लेंगे यह भी एक वसवसए “ौतानी है। वरना फ़ुरसते अमल और हंगामे कार जवानी ही का ज़माना है। ज़ईफ़ी में काम करने का हौसला एक वहम व सिफ़त है, इसके अलावा कुछ नहीं है। रब्बे करीम हर मोमिन को ऐसे औहाम और वसवसों से महफ़ूज़ रखे।)))

और बिस्तरे मर्ग पर कलक़ की बेचैनियां और सोज़ो तपिष का रन्जो अलम और लोआबे दहन के फन्दे होंगे और वह हंगाम होगा जब इन्सान अक़रबा, औलाद, अइज़्ज़ा, अहबाब से मदद तलब करने के लिये इधर उधर देख रहा होगा। तो क्या आज तक कभी अक़रबा ने मौत को दफ़ा कर दिया है या फ़रयाद किसी के काम आई है? हरगिज़ नहीं, करने वाले को तो क़ब्रिस्तान में गिरफ़्तार कर दिया गया है और तंगी क़ब्र में तन्हा छोड़ दिया गया है। इस आलम में के कीड़े मकोड़े इसकी जिल्द को पारा-पारा कर रहे हैं और पामालियों ने उसके जिस्म की ताज़गी को बोसीदा कर दिया है। आन्धियों ने इसके आसार को मिटा दिया है और रोज़गार के हादसात ने इसके निषानात को महो कर दिया है। जिस्म ताज़गी के बाद हलाक हो गए हैं और हड़िडयां ताक़त के बाद बोसीदा हो गई हैं, रूहें अपने बोझ की गरानी में गिरफ़्तार हैं और अब ग़ैब की ख़बरों का यक़ीन आ गया है। अब न नेक आमाल में कोई इज़ाफ़ा हो सकता है और न बदतरीन लग़्िज़षों की माफ़ी तलब की जा सकती है।
तो क्या तुम लोग उन्हीं आबा व अजदाद की औलाद नहीं हो और क्या उन्हीं के भाई बन्दे नहीं हो के फिर उन्हीं के नक़्षे क़दम पर चले जा रहे हो और उन्हीं के तरीक़े को अपनाए हुए हो और उन्हीं के रास्ते पर गामज़न हो? हक़ीक़त यह है के दिल अपना हिस्सा हासिल करने में सख़्त हो गए हैं और राहे हिदायत से ग़ाफ़िल हो गए हैं, ग़लत मैदानों में क़दम जमाए हुए हैं, ऐसा मालूम होता है के अल्लाह का मुख़ातब इनके अलावा कोई और है और “ाायद सारी अक़्लमन्दी दुनिया ही के जमा कर लेने में है।
याद रखो तुम्हारी गुज़रगाह सिरात और इसकी हलाकत ख़ेज़ लग़्िज़षे हैं। तुम्हें इन लग़्िज़षों के हौलनाक मराहेल और तर्जे तरह के ख़तरनाक मनाज़िल से गुज़रना है। अल्लाह के बन्दों! अल्लाह से डरो, उस तरह जिस तरह वह साहिबे अक़्ल डरता है जिसके दिल को फ़िक्रे आख़ेरत ने मषग़ूल कर लिया हो और उसके बदन को ख़ौफ़े ख़ुदा ने ख़स्ता हाल बना दिया हो और “ाब बेदारी ने इसकी बची कुची नींद को भ्ज्ञी बेदारी में बदल दिया हो और उम्मीदों ने इसके दिल की तपिष को प्यास में गुज़ार दिया हो और ज़ोहद ने इसके ख़्वाहिषात को पैरों तले रौंद दिया हो और ज़िक्रे ख़ुदा इसकी ज़बान पर तेज़ी से दौड़ रहा हो और उसने क़यामत के अम्न व अमान के लिये यहीं ख़ौफ़ का रास्ता इख़्तेयार कर लिया हो और सीधी राह पर चलने के लिये टेढ़ी राहों से कतराकर चला हो और मतलूबा रास्ते ते पहुंचने के लिये मोतदल तरीन रास्ता इख़्तेयार किया हो।

((( ज़रूरत इस बात की है के इन्सान जब दुनिया के तमाम मषाग़ेल तमाम करके बिस्तर पर आए तो इस ख़ुत्बे की तिलावत करे और इसके मज़ामीन पर ग़ौर करे, फिर अगर मुमकिन हो तो कमरे की रौषनी गुल करके दरवाज़ा बन्द करके क़ब्र का तसव्वुर पैदा करे और यह सोचे के अगर इस वक़्त किसी तरफ़ से सांप बिच्छू हमलावर हो जाएं और कमरे की आवाज़ बाहर न जा सके और दरवाज़ा खोलकर भागने का इमकान भी न हो तो इन्सान क्या करेगा और इस मुसीबत से किस तरह निजात हासिल करेगा, “ाायद यही तसव्वुर उसे क़ब्र के बारे में सोचने और इसके हौलनाक मनाज़िर से बचने के रास्ते निकालने पर आमादा कर सके। वरना दुनिया की रंगीनियां एक लम्हे के लिये भी आख़ेरत के बारे में सोचने का मौक़ा नहीं देती है और किसी न किसी वहम में मुब्तिला करके निजात का यक़ीन दिला देती हैं और फिर इन्सान आमाल से यकसर ग़ाफ़िल हो जाता है।)))

न ख़ुष फ़रेबों ने इसमें इज़तेराब पैदा किया हो और न मुष्तबा उमूर ने इसकी आंखों पर परदा डाला हो, बषारत की मसर्रत और नेमतों की राहत हासिल कर ली हो, दुनिया की गुज़रगाह से क़ाबिले तारीफ़ अन्दाज़ से गुज़र जाए और आख़ेरत का ज़ादे राह नेक बख़्ती के साथ आगे भेज दे। वहां के ख़तरात के पेषे नज़र अमल में सबक़त की और मोहलत के औक़ात में तेज़ रफ़्तारी से क़दम बढ़ाया। तलबे आख़ेरत में रग़बत के साथ आगे बढ़ा और बुराइयों से मुसलसल फ़रार करता रहा। आज के दिन कल पर निगाह रखी और हमेषा अगली मन्ज़िलों को देखता रहा, यक़ीनन सवाब और अता के लिये जन्नत और अज़ाब व वबाल के लिये जहन्नम से बालातर क्या है और फिर ख़ुदा से बेहतर मदद करने वाला और इन्तेक़ाम लेने वाला कौन है और क़ुरान के अलावा हुज्जत और सनद क्या है।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें उस ख़ुदा से डरने की वसीयत करता हूँ जिसने डराने वाली अषया के ज़रिये उज़्र का ख़ात्मा कर दिया है और रास्ता दिखाकर हुज्जत तमाम कर दी है, तुम्हें उस दुष्मन से होषियार कर दिया है जो ख़ामोषी से दिलों में नुज़ोज कर जाता है और चुपके से कान में फूंक देता है और इस तरह गुमराह और हलाक कर देता है और वादा करके उम्मीदों में मुब्तिला कर कर देता है, बदतरीन जराएम को ख़ूबसूरत बनाकर पेष करता है और महलक गुनाहों को आसान बना देता है। यहां तक के जब अपने साथी नफ़्स को अपनी लपेट में ले लेता है और अपने क़ैदी को बाक़ाएदा गिरफ़्तार कर लेता है तो जिसको ख़ूबसूरत बनाया था उसी को मुनकिर बना देता है और जिसे आसान बनाया था उसी को अज़ीम कहने लगता है और जिसकी तरफ़ से महफ़ूज़ बना दिया था उसे से डराने लगता है।
ज़रा इस मख़लूक़ को देखो जिसे बनाने वाले ने रहम की तारीकियों और मुतअदद परदों के अन्दर यूँ बनाया के उछलता हुआ नुत्फ़ा था फ़िर मुनजमद ख़ून बना, फिर जिनीन बना, फिर रज़ाअत की मन्ज़िल में आया फिर तिफ़्ल नौख़ेज़ बना फ़िर जवान हो गया और इसके बाद मालिक ने उसे महफ़ूज़ करने वाला दिल, बोलने वाली ज़बान, देखने वाली आंख इनायत कर दी ताके इबरत के साथ समझ सके और नसीहत का असर लेते हुए बुराइयों से बाज़ रहे। लेकिन जब इसके आज़ा में एतदाल पैदा हो गया और इसका क़द व क़ामत अपनी मन्ज़िल तक पहुंच गया तो ग़ुरूर व तकब्बुर से अकड़ गया और अन्धेपन के साथ भटकने लगा और हवा व होस के डोल भर-भर कर खींचने लगा।

(((परवरदिगार का करम है के उसने क़ुराने मजीद में बार-बार क़िस्सए आदम (अ0) व इबलीस को दोहराकर औलादे आदम (अ0) को मुतवज्जो कर दिया है के यह तुम्हारे बाबा आदम का दुष्मन था और उसी ने इन्हें जन्नत की ख़ुषगवार फ़िज़ाओं से निकाला था और फिर जब से बारगाहे इलाही से निकाला गया है मुसलसल औलादे आदम (अ0) से इन्तेक़ाम लेने पर तुला हुआ है और एक लम्हए फ़ुरसत को नज़र अन्दाज़ नहीं करना चाहता है। इसका सबब है बड़ा हुनर यह है के गुनाहों के वक़्त गुनाहों को मामूली और मज़ीन बना देता है, इसके बाद जब इन्सान का इरतेकाब कर लेता है तो इसके ज़ेहनी कर्ब को बढ़ाने के लिये गुनाह की अहमियत व अज़मत का एहसास दिलाता है और एक लम्हे के लिये उसे चैन से नहीं बैठने देता है।
मालिके कायनात के करोड़ों एहसानात में से यह तीन एहसानात ऐसे हैं के अगर यह न होते तो इन्सान का वजूद जानवरों से बदतर होकर रह जाता और इन्सान किसी क़ीमत पर अषरफ़ मख़लूक़ात कहे जाने के क़ाबिल न होता।
मालिक ने पहला करम यह किया के दुनिया के हालात से बाख़बर बनाने के लिये आंखें दे दीं, इसके बाद अपने जज़्बात व ख़यालात के इज़हार के लिये ज़बान दे दी और फिर मालूमात से किसी वक़्त भी फ़ायदा उठाने के लिये हाफ़ेज़ा दे दिया वरना यह हाफ़ेज़ा न होता तो बार-बार अषया का सामने आना नामुमकिन होता और इन्सान साहबे इल्म होने के बाद भी जाहिल ही रह जाता। - फातबरोवा या ऊलिल अबसार)))

तरब की लज़्ज़तों और ख़्वाहेषात की तमन्नाओं में दुनिया के लिये अनथक कोषिश करने लगा, न किसी मुसीबत का ख़याल रह गया और न किसी ख़ौफ़ व ख़तर का असर रह गया। फ़ितनों के दरम्यान फ़रेब ख़ोरदा मर गया और मुख़्तसर सी ज़िन्दगी को बेहूदगियों में गुज़ार गया। न किसी अज्र का इन्तेज़ाम िकया और न किसी फ़रीज़े को अदा किया। इसी बाक़ीमान्दा सरकषी के आलम में मर्गबार मुसीबतें इस पर टूट पड़ीं और वह हैरत ज़दा रह गया। अब रातें जागने में गुज़र रही थीं के “ादीद क़िस्म के आलाम थे और तरह-तरह के अमराज़ व असक़ाम। जबके हक़ीक़ी भाई और मेहरबान बाप और फ़रयाद करने वाली माँ और इज़तेराब से सीनाकोबी करने वाली बहन भी मौजूद थी लेकिन इन्सान सकराते मौत की मदहोषियों, “ादीद क़िस्म की बदहवासियों, दर्दनाक क़िस्म की फ़रयादों और कर्ब अंगेज़ क़िस्म की नज़अ की कैफ़ियतों और थका देने वाली षिद्दतों में मुब्तिला था।
इसके बाद उसे मायूसी के आलम में कफ़न में लपेट दिया गया और वह निहायत दरजए आसानी और ख़ुदसुपर्दगी के साथ खींचा जाने लगा इसके बाद उसे तख़्ते पर लिटा दिया गया इस आलम में के ख़स्ताहाल और बीमारियों से निढाल हो चुका था, औलाद और बरादरी के लोग उसे उठाकर उस घर की तरफ़ ले जा रहे थे जो इज़्ज़त का घर था और जहां मुलाक़ातों का सिलसिला बन्द था और तन्हाई की वहषत का दौरेे दौरा था यहाँ तक के जब मुषायअत करने वाले वापस आ गए और गिरया व ज़ारी करने वाले पलट गए तो उसे क़ब्र में दोबारा उठाकर बैठा दिया गया। सवाल व जवाब की दहषत और इम्तेहान की लग़्िज़षों का सामना करने के लिये और वहाँ की सबसे बड़ी मुसीबत तो खोलते हुए पानी का नूज़ूल और जहन्नम का वदूद है जहां आग भड़क रही होगी और “ाोले बलन्द हो रहे होंगे। न कोई राहत का वक़्फ़ा होगा और न सुकून का लम्हा न कोई ताक़त अज़ाब को रोकने वाली होगी और न कोई मौत सुकूलन बख़्ष होगी। हद यह है के कोई तसल्ली बख़्ष नींद भी न होगी। तरह तरह की मौतें होंगी और दमबदम का अज़ाब, बेषक हम उस मन्ज़िल पर परवरदिगार की पनाह के तलबगार हैं।

((( हाए रे इन्सान की बेकसी, अभी ग़फ़लत का सिलसिला तमाम न हुआ था और लज़्ज़त अन्दोज़ी हयात का तसलसुल क़ायम था के अचानक हज़रत मलकुल मौत नाज़िल हो गए और एक लम्हे की मोहलत दिये बग़ैर लेजाने के लिये तैयार हो गए। इन्सान सहरा बियाबान और वीराना दष्त व जबल में नहीं है घर के अन्दर है। इधर औलाद उधर अहबाब, इधर मेहरबान बाप उधर सरो सीना पीटने वाली माँ, इधर हक़ीक़ी भाई उधर क़ुरबान होने वाली बहन, लेकिन कोई कर्ब मौत के लम्हे में तख़फ़ीफ़ भी नहीं करा सकता है और न मरने वाले के किसी काम आ सकता है बल्के इससे ज़्यादा कर्बनाक यह मन्ज़र है के इसके बाद अपने ही हाथों से कफ़न में लपेटा जा रहा है और सांस लेने के लिये भी कोई रास्ता नहीं छोड़ा जा रहा है और फिर यहां तक दरजए अदब व एहतेराम से क़ब्र के अन्धेरे में डालकर चारों तरफ़ से बन्द कर दिया जाता है के कोई सूराख़ भी न रहने पाए और हवा या रोषनी का गुज़र भी न होने पाए।
किसी के मुंह से न निकला हमारे दफ़न के वक़्त - के ख़ाक इन पे न डाालो ये हैं नहाए हुए
और इतना ही नहीं बल्के हज़रात ख़ुद भी ख़ाक डालने ही को मोहब्बत की अलामत और दोस्ती के हक़ की अदायगी तसव्वुर कर रहे हैंः
मुट्ठियों में ख़ाक लेकर दोस्त आए वक़्ते दफ़न- ज़िन्दगी भर की मोहब्बत का सिला देने लगे
इन्ना लिल्लाहे व इन्ना इलैहे राजेऊन।)))

बन्दगाने ख़ुदा! कहाँ हैं वह लोग जिन्हें उम्रें दी गईं तो ख़ुब मज़े उड़ाए और बताया गया तो सब समझ गए लेकिन मोहलत दी गई तो ग़फ़लत में पड़ गए। सेहत व सलामती दी गई तो इस नेमत को भूल गए। उन्हें काफ़ी तवील मोहलत दी गई और काफ़ी अच्छी नेमतें दी गईं और उन्हें दर्दनाक अज़ाब से डराया भी गया और बेहतरीन नेमतों का वादा भी किया गया। लेकिन कोई फ़ायदा न हुआ। अब तुम लोग मोहलक गुनाहों से परहेज़ करो और ख़ुदा को नाराज़ करने वाले उयूब से दूर रहो। तुम साहेबाने समाअत व बसारत और अहले आफ़ियत व सरवत हो बताओ क्या बचाव की कोई जगह या छुटकारे की कोई गुन्जाइष है। कोई ठिकाना या पनाहगाह है। कोई जाए फ़रार या दुनिया में वापसी की कोई सूरत है? और अगर नहीं है तो किधर बहके जा रहे हो और कहाँ तुमको ले जाया जा रहा है या किस धोके में पड़े हो?
याद रखो इस तवील व अरीज़ ज़मीन में तुम्हारी क़िस्मत सिर्फ़ बक़द्र क़ामत जगह है जहाँ रूख़सारों को ख़ाक पर रहना है। बन्दगाने ख़ुदा। अभी मौक़ा है, रस्सी ढीली है, रूह आज़ाद है, तुम हिदायत की मंज़िल और जिस्मानी राहत की जगह पर हो। मजलिसों के इज्तेमाअ में हो और बक़िया ज़िन्दगी की मोहलत सलामत है और रास्ता इख़्तेयार करने की आज़ादी है और तौबा की मोहलत है और जगह की वुसअत है, क़ब्ल इसके के तंगीए लहद, ज़ीक़ मकान, ख़ौफ़ और जाँकनी का षिकार हो जाओ और क़ब्ल इसके के वह मौत आ जाए जिसका इन्तज़ाम हो रहा है और वह परवरदिगार अपनी गिरफ़्त में ले ले जो साहबे इज़्ज़त व ग़लबा और साहबे ताक़त व क़ुदरत है।
सय्यद रज़ी- कहा जाता है के जब हज़रत (अ0) ने इस ख़ुत्बे को इरषाद फ़रमाया तो लोगों के रोंगटे खड़े हो गए और आंखों से आंसू जारी हो गए और दिल लरज़ने लगे। बाज़ लोग इस ख़ुत्बे को ख़ुत्बए ग़र्रा के नाम से याद करते हैं।

84- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें अम्र व आस का ज़िक्र किया गया है)

ताज्जुब है नाबग़ा के बेटे से, के यह अहले “ााम से बयान करता है के मेरे मिज़ाज में मिज़ाह पाया जाता है और मैं कोई खेल तमाषे वाला इन्सान हूँ और हंसी मज़ाक़ में लगा रहता हूँ। यक़ीनन इसने यह बात ग़लत ही कही है और इसकी बिना पर गुनहगार भी हुआ है। आगाह हो जाओ के बदतरीन कलाम ग़लतबयानी है और यह जब बोलता है तो झूट ही बोलता है और जब वादा करता है तो वह वादाखि़लाफ़ी ही करता है और जब उससे कुछ मांगा जाता है तो बुख़ल ही करता है और जब ख़ुद मांगता है तो चिमट जाता है। अहद व पैमान में ख़यानत करता है। क़राबतों में क़तअ रहम करता है। जंग के वक़्त देखो तो क्या क्या अम्र व नहीं करता है जब तक तलवारें अपनी मन्ज़िल पर ज़ोर न पकड़ लें। वरना जब ऐसा हो जाता है तो इसका सबसे बड़ा जरबा यह होता है के दुष्मन के सामने अपनी पुष्त को पेष कर दे। ख़ुदा गवाह है के मुझे खेल कूद से यादे मौत ने रोक रखा है और उसे हर्फ़े हक़ से निसयाने आख़ेरत ने रोक रखा है। इसने माविया की भी उस वक़्त तक नहीं की जब तक उससे यह तय नहीं कर लिया के उसे कोई हदिया देगा और उसके सामने तर्के दीन पर कोई तोहफ़ा पेष करेगा।

85- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें परवरदिगार के आठ सिफ़ात का तज़किरा किया गया है)

मैं गवाही देता हूँ के अल्लाह के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है, वह अकेला है इसका कोई “ारीक नहीं है, वह ऐसा अव्वल है जिससे पहले कुछ नहीं है और ऐसा आखि़र है जिसकी कोई हद मुअय्यन नहीं है। ख़यालात उसकी किसी सिफ़त का इदराक नहीं कर सकते हैं और दिल इसकी कोई कैफ़ियत तय नहीं कर सकता है। इसकी ज़ात के न अजज़ा हैं और न टुकड़े और न वह दिल व निगाह के अहाते के अन्दर आ सकता है।
बन्दगाने ख़ुदा! मुफ़ीद इबरतों से नसीहत हासिल करो और वाज़े निषानियों से इबरत को बलीग़ डराने वाली चीज़ों से असर क़ुबूल करो और ज़िक्र व मौअज़त से फ़ायदा हासिल करो। यह समझो के गोया मौत अपने पन्जे तुम्हारे अन्दर गाड़ चुकी है और उम्मीदों के रिष्ते तुमसु मुनक़ता हो चुके हैं और दहषतनाक हालात ने तुम पर हमला कर दिया है और आख़री मन्ज़िल की तरफ़ ले जाने का अमल “ाुरू हो चुका है। याद रखो के ‘‘हर नफ़्स के साथ एक हँकाने वाला है और एक गवाह रहता है’’, हँकाने वाला क़यामत की तरफ़ खींच कर ले जा रहा है और गवाही देने वाला आमाल की निगरानी कर रहा है।
सिफ़ाते जन्नत
इसके दरजात मुख़्तलिफ़ और इसकी मन्ज़िलें पस्त व बलन्द हैं लेकिन इसकी नेमतें ख़त्म होने वाली नहीं हैं और इसके बाषिन्दों को कहीं और कूच करना नहीं है। इसमें हमेषा रहने वाला भी बूढ़ा नहीं होता है और इसके रहने वालों की फ़क्ऱ व फ़ाक़े से साबक़ा नहीं पड़ता है।

((( बाज़ औक़ात यह ख़याल पैदा होता है के जब जन्नत में हर नेमत का इन्तेज़ाम है और वहां की कोई ख़्वाहिष मुस्तर्द नहीं हो सकती है तो इन दरजात का फ़ायदा ही क्या है, पस्त मन्ज़िल वाला जैसे ही बलन्द मन्ज़िल की ख़्वाहिष करेगा वहां पहुंच जाएगा और यह सब दरजात बेकार होकर रह जाएंगे। लेकिन इसका वाज़ेअ सा जवाब यह है के जन्नत उन लागांे का मुक़ाम नहीं है जो अपनी मन्ज़िल न पहचानते हों और अपनी औक़ात से बलन्दतर जगह की हवस रखते हों। हवस का मक़ाम जहन्नम है जन्नत नहीं है। जननत वाले अपने मक़ामात को पहचानते हैं। यह और बात है के बलन्द मक़ामात वालों के ख़ादिम और नौकर हैं तो खि़दमत के सहारे दीगर नौकरों की तरह बलन्द मनाज़िल तक पहुंच जाएं जिसकी तरफ़ इमाम (अ0) ने इषारा फ़रमाया है के ‘‘हमारे षिया हमारे साथ जन्नत में हमारे दर्जे में होंगे।’’)))

86- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें सिफ़ाते ख़ालिक़ ‘‘जल्ला जलालोहू’’ का ज़िक्र किया गया है और फिर लोगों को तक़वा की नसीहत की गई है।)

बेषक! वह पोषीदा इसरार का आलिम और दिलों के राज़ों से बाख़बर है, उसे हर “ौ पर अहाता हासिल है और वह हर “ौ पर ग़ालिब है और ताक़त रखने वाला है।
--मोअज़्मा--

तुम में से हर “ाख़्स का फ़र्ज़ है के मोहलत के दिनों में अमल करे क़ब्ल इसके के मौत हाएल हो जाए और फ़ुरसत के दिनों में काम करे क़ब्ल इसके के मषग़ूल हो जाए। अभी जबके सांस लेने का मौक़ा है क़ब्ल इसके के गला घोंट दिया जाए, अपने नफ़्स और अपनी मन्ज़िल के लिये सामान मुहय्या कर ले और इस कूच के घर से उस क़याम के घर के लिये ज़ादे राह फ़राहम कर ले।
लोगों! अल्लाह को याद रखो और उससे डरते रहो इस किताब के बारे में जिसका तुमको मुहाफ़िज़ बराया गया है और उन हुक़ूक़ के बारे में जिनका तुमको अमानतदार क़रार दिया गया है। इसलिये के उसने तुमको बेकार नहीं पैदा किया है और न महमिल छोड़ दिया है और न किसी जेहालत और तारीकी में रखा है। तुम्हारे आसार को बयान कर दिया है। आमाल को बता दिया है और मुद्दते हयात को लिख दिया है। वह किताब नाज़िल कर दी है जिसमें हर “ौ का बयान पाया जाता है और एक मुद्दत तक अपने पैग़म्बर को तुम्हारे दरम्यान रख चुका है। यहाँ तक के तुम्हारे लिये अपने इस दीन को कामिल कर दिया है जिसे इसने पसन्दीदा क़रार दिया है और तुम्हारे लिये पैग़म्बर (स0) की ज़बान से उन तमाम आमाल को पहुंचा दिया है जिनको वह दोस्त रखता है या जिनसे नफ़रत करता है। अपने अम्र व नवाही को बता दिया है और दलाएल तुम्हारे सामने रख दिये हैं और हुज्जत तमाम कर दी है और डराने धमकाने का इन्तज़ामक र दिया है और अज़ाब  के आने से पहले ही होषियार कर दिया है लेहाज़ा अब जितने दिन बाक़ी रह गए हैं उन्हीं में तदारूक कर लो और अपने नफ़्स को सब्र आमादा कर लो के यह दिन अय्यामे ग़फ़लत के मुक़ाबले में बहुत थोडे़ हैं जब तुमने मौअज़ सुनने का भी मौक़ा नहीं निकाला, ख़बरदार अपने नफ़्स आज़ाद मत छोड़ो वरना यह आज़ादी तुमको ज़ालिमों के रास्ते पर ले जाएगी और इसके साथ नरमी न बरतो वरना यह तुम्हें मुसीबतों में झोंक देगा।
बन्दगाने ख़ुदा! अपने नफ़्स का सबसे सच्चा मुख़लिस वही है जो परवरदिगार का सबसे बड़ा इताअत गुज़ार है और अपने नफ़्स से सबसे बड़ा ख़यानत करने वाला वह है जो अपने परवरदिगार का मासियतकार है। ख़सारे में वह है जो ख़ुद अपने नफ़्स करे घाटे में रखे और क़ाबिले रष्क वह है जिसका दीन सलामत रह जाए। नेक बख़्त वह है जो दूसरों के हालात से नसीहत हासिल कर ले और बदबख़्त वह है जो ख़्वाहेषात के धोके में आ जाए।
याद रखो के मुख़्तसर सा “ााएबा रियाकारी भी एक तरह का षिर्क है और ख़्वाहिष परस्तों की सोहबत भी ईमान से ग़ाफ़िल बनाने वाली है और “ौतान को अलबत्ता सामने लाने वाली है। झूट से परहेज़ करो के वह ईमान से किनाराकष रहता है। सच बोलने वाला हमेषा निजात और करामत के किनारे रहता है और झूट बोलने वाला हमेषा तबाही और ज़िल्लत के दहाने पर रहता है। ख़बरदार एक दूसरे से हसद न करना ‘‘हसद ईमान को उस तरह खा जाता है जिस तरह आग सूखी लकड़ी को खा जाती है।’’ और आपस में एक दूसरे से बुग़्ज़ न रखना के बुग़़्ज़ ईमान का सफ़ाया कर देता है याद रखो के ख़्वाहिष अक़्ल को भुला देती है और ज़िक्रे ख़ुदा से ग़ाफ़िल बना देती है। ख़्वाहिषात को झुटलाओ के यह सिर्फ़ धोका हैं और इनका साथ देने वाला एक फ़रेब ख़ोरदा इन्सान है और कुछ नहीं है।

(((जब चाहें अहले दुनिया की महफ़िलों का जाएज़ा लें। दुनिया भर की महमिल बातें, खेल कूद के तज़किरे, सियासत के तबसिरे, लोगों की ग़ीबत, पाकीज़ा लोगों पर तोहमत, ताष के पत्ते, “ातरन्ज के मोहरे वग़ैरा नज़र आ जाएंगे तो क्या ऐसी महफ़िलों में मलाएका मुक़र्रबीन भी हाज़िर होंगे। यक़ीनन यह मक़ामात “ायातीन और ईमान से ग़फ़लत के मराहेल हैं जिनसे इजतेनाब हर मुसलमान का फ़रीज़ा है और इसके बग़ैर तबाही के अलावा कुछ नहीं है।)))

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