Tuesday, March 22, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 73-78 , नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 73-78

73- आपका इरषादे गिरामी (जो मरवान बिन अलहकम से बसरा में फ़रमाया)

कहा जाता है के जब मरवान बिन अलहकम जंग में गिरफ़्तार हो गया तो इमाम हसन (अ0) व हुसैन (अ0) ने अमीरूल मोमेनीन (अ0) से इसकी सिफ़ारिष की और आपने उसे आज़ाद कर दिया तो दोनों हज़रात ने अर्ज़ की के या अमीरूल मोमेनीन (अ0)! आपकी बैयत करना चाहता है तो आपने फ़रमाया-
क्या उसने क़त्ले उस्मान के बाद मेरी बैअत नहीं की थी ? मुझे इसकी बैअत की कोई ज़रूरत नहीं है, यह एक यहूदी क़िस्म का हाथ है, अगर हाथ से बैअत कर भी लेगा तो रकीक तरीक़े से इसे तोड़ डालेगा। याद रखो इसे भी हुकूमत मिलेगी मगर सिर्फ़ इतनी देर जितनी देर में कुत्ता अपनी नाक चाटता है। इसके अलावा यह चार बेटों का बाप भी है और उम्मते इस्लामिया इससे और इसकी औलाद से बदतरीन दिन देखने वाली है।

74- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जब लोगों ने उस्मान की बैअत करने का इरादा किया)

तुम्हें मालूम है के मैं तमाम लोगों में सबसे ज़्यादा खि़लाफ़त का हक़दार हूँ और ख़ुदा गवाह है के मैं उस वक्त तक हालात का साथ देता रहूंगा जब तक मुसलमानों के मसाएल ठीक रहें और ज़ुल्म सिर्फ़ मेरी ज़ात तक महदूद रहे ताके मैं इसका अज्र व सवाब हासिल कर सकूँ और इसी ज़ेब व ज़ीनते दुनिया से अपनी बेनियाज़ी का इज़हार कर सकूं जिसके लिये तुम सब मरे जा रहे हो।

75- आपका इरषादे गिरामी(जब आपको ख़बर मिली के बनी उमय्या आप पर ख़ूने उस्मान का इल्ज़ाम लगा रहे हैं)

क्या बनी उमय्या के वाक़ई मालूमात उन्हें मुझ पर इल्ज़ाम तराषी से नहीं रोक सके और क्या जाहिलों को मेरे कारनामे इस इत्तेहाम से बाज़ नहीं रख सके? यक़ीनन परवरदिगार ने तोहमत व अफतरा के खि़लाफ़ जो नसीहत फ़रमाई है वह मेरे बयान से कहीं ज़्यादा बलीग़ है। मैं बहरहाल इन बेदीनों पर हुज्जत तमाम करने वाला, इन अहद षिकन मुब्तिलाए तषकीक अफ़राद का दुष्मन हूँ, और तमाम मुष्तबा मामलात को किताबे ख़ुदा पर पेष करना चाहिये और रोज़े क़यामत बन्दों का हिसाब उनके दिलों के मज़मरात (नीयतों) ही पर होगा।

((( आले मोहम्मद (स0) के इस किरदार का तारीख़े कायनात में कोई जवाब नहीं है, इन्होंने हमेषा फ़ज़्लो करम से काम लिया है। हद यह है के अगर माज़ल्लाह इमाम हसन (अ0) व इमाम हुसैन (अ0) की सिफ़ारिष को मुस्तक़बिल के हालात से नावाक़फ़ीयत भी तसव्वुर कर लिया जाए तो इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) के तर्ज़े अमल को क्या कहा जा सकता है जिन्होंने वाक़ेअन करबला के बाद भी मरवान के घरवालों को पनाह दी है और इस बेहया ने हज़रत से पनाह की दरख़्वास्त की है।
दरहक़ीक़त यह भी यहूदियत की एक “ााख़ है के वक़्त पड़ने पर हर एक के सामने ज़लील बन जाओ और काम निकलने के बाद परवरदिगार की नसीहतों की भी दरहक़ीक़त परवाह न करो। अल्लाह दीने इस्लाम को हर दौर की यहूदियत से महफ़ूज़ रखे।
अमीरूल मोमेनीन (अ0) का मक़सद यह है के खि़लाफ़त मेरे लिये किसी हदफ़ और मक़सदे हयात का मरतबा नहीं रखती है। यह दरहक़ीक़त आम इन्सानियत के लिये सुकून व इत्मीनान फ़राहम करने का एक ज़रिया है। लेहाज़ा अगर यह मक़सद किसी भी ज़रिये से हासिल हो गया तो मेरे लिये सुकूत जाएज़ हो जाएगा और मैं अपने ऊपर ज़ुल्म बरदाष्त कर लूंगा।
दूसरा फ़िक़रा इस बात की दलील है के बातिल खि़लाफ़त से मुकम्मल अद्ल व इन्साफ़ और सुकून व इत्मीनान की तवक़्क़ो मुहाल है लेकिन मौलाए कायनात (अ0) का मनषा यह है के अगर ज़ुल्म का निषाना मेरी ज़ात होगी तो बरदाष्त करूंगा लेकिन अवामुन्नास होंगे और मेरे पास माद्दी ताक़त होगी तो हरगिज़ बरदाष्त न करूंगा के यह अहदे इलाही के खि़लाफ़ है।)))

76- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें अमले स्वालेह पर आमादा किया गया है)

ख़ुदा रहमत नाज़िल करे उस बन्दे पर जो किसी हिकमत को सुने तो महफ़ूज़ कर ले और उसे किसी हिदायत की दावत दी जाए तो उससे क़रीबतर हो जाए और किया राहनुमा से वाबस्ता हो जाए तो निजात हासिल कर ले। अपने परवरदिगार को हर वक़्त नज़र में रखे और गुनाहों से डरता रहे। ख़ालिस आमाल को आगे बढ़ाए और नेक आमाल करता रहे। क़ाबिले ज़ख़ीरा सवाब हासिल करे। क़ाबिले परहेज़ चीज़ों से इज्तेनाब करे। मक़सद को निगाहों में रखे। अज्र समेट ले। ख़्वाहिषात पर ग़ालिब आ जाए और तमन्नाओं को झुटला दे। सब्र को निजात का मरकब बना ले और तक़वा को वफ़ात का ज़ख़ीरा क़रार दे ले। रौषन रास्ते पर चले और वाज़ेअ “ााहराह को इख़्तेयार कर ले। मोहलते हयात को ग़नीमत क़रार दे और मौत की तरफ़ ख़ुद सबक़त करे और अमल का ज़ादे राह लेकर आगे बढ़े।

77- आपका इरषादे गिरामी(जब सईद बिन अलआस ने आपको आपके हक़ से महरूम कर दिया)

यह बनी उमय्या मुझे मीरासे पैग़म्बर (स0) को भी थोड़ा थोड़ा करके दे रहे हैं हालांके अगर मैं ज़िन्दा रह गया तो इस तरह झाड़ कर फेंक दूंगा जिस तरह क़साब गोष्त के टुकड़े से मिट्टी को झाड़ देता है।
सय्यद रज़ी- बाज़ रिवायात में ‘‘वज़ाम तरबा’’ के बजाए ‘‘तराबुल वज़मा’’ है जो मानी के एतबार से मअकूस तरकीब है। ‘‘लैफ़ू क़ूननी’’ का मफ़हूम है माल का थोड़ा थोड़ा करके देना जिस तरह ऊँट का दूध निकाला जाता है। फवाक़ ऊँट का एक मरतबा का दुहा हुआ दूध है और वज़ाम वज़मा की जमा है जिसके मानी टुकड़े के हैं यानी जिगर या आँतों का वह टुकड़ा जो ज़मीन पर गिर जाए।

(((इसमें कोई “ाक नहीं है के रहमते इलाही का दाएरा बेहद वसीअ है और मुस्लिम व काफ़िर, दीनदार व बेदीन सबको “ाामिल है। यह हमेषा ग़ज़बे इलाही से आगे-आगे चलती है। लेकिन रोज़े क़यामत इस रहमत का इस्तेहक़ाक़ आसान नहीं है। वह हिसाब का दिन है और ख़ुदाए वाहिद क़हार की हुकूमत का दिन है। लेहाज़ा उस दिन रहमते ख़ुदा के इस्तेहक़ाक़ के लिये इन तमाम चीज़ों को इख़्तेयार करना होगा जिनकी तरफ़ मौलाए कायनात ने इषारा किया है और इनके बग़ैर रहमतुल लिल आलमीन का कलमा और इनकी मोहब्बत का दावा भी काम नहीं आ सकता है। दुनिया के एहकाम अलग हैं और आख़ेरत के एहकाम अलग हैं। यहां का निज़ामे रहमत अलग है और वहां का निज़ामे मकाफ़ात व मजाज़ात अलग।
कितनी हसीन तष्बीह है के बनी असया की हैसियत इस्लाम में न जिगर की है न मेदे की और न जिगर के टुकड़े की। यह वह गर्द हैं जो अलग हो जाने वाले कपड़े से पहले चिपक जाती है लेकिन गोष्त का इस्तेमाल करने वाला इसे भी बरदाष्त नहीं करता है और इसे झाड़ने के बाद ही ख़रीदार के हवाले करता है ताके दुकान बदनाम न होने पाए, और ताजिर नातजुर्बेकार और बदज़ौक़ न कहा जा सके।)))

78- आपकी दुआ(जिसे बराबर तकरार फ़रमाया करते थे)

ख़ुदाया मेरी ख़ातिर उन चीज़ों को माफ़ कर दे जिन्हें तू मुझसे बेहतर जानता है और अगर फिर इन उमूर की तकरार हो तो तू भी मग़फ़ेरत की तकरार फ़रमा। ख़ुदाया उन वादों के बारे में भी मग़फ़िरत फ़रमा जिनका तुझ से वादा किया गया लेकिन इन्हें दफ़ा न किया जा सका। ख़ुदाया उन आमाल की भी मग़फ़ेरत फ़रमा जिनमें ज़बान से तेरी क़ुरबत इख़्तेयार की गई लेकिन दिल ने इसकी मुख़ालेफ़त ही की।
ख़ुदाया आँखों के तन्ज़िया इषारों, दहन के नाषाइस्ता कलेमात, दिल की बेजा ख़्वाहिषात और ज़बान की हरज़ह सराइयों को भी माफ़ फ़रमा दे।

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