Thursday, April 7, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 132-137, नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 132-137


132- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें लोगों को नसीहत फ़रमाई है और ज़ोहद की तरग़ीब दी है)

“ाुक्र है ख़ुदा का उस पर भी जो दिया है और उस पर भी जो ले लिया है। उसके इनआम पर भी और उसके इम्तेहान पर भी वह हर मख़फ़ी के अन्दर का भी इल्म रखता है और हर पोषीदा अम्र के लिये हाज़िर भी है। दिलों के अन्दर छिपे हुए इसरार और आँखों के चोरी छिपे इषारों को बख़ूबी जानता है और मैं इस बात की गवाही देता हूं के उसके अलावा कोई ख़ुदा नहीं है और हज़रत मोहम्मद (स0) उसके भेजे हुए रसूल हैं और इस गवाही में बातिन ज़ाहिर से और दिल ज़बान से हम आहंग है।
ख़ुदा की क़सम वह “ौ जो हक़ीक़त है और खेल तमाषा नहीं है, हक़ है और झूठ नहीं है वह सिर्फ़ मौत है जिसके दाई ने अपनी आवाज़ सबको सुना दी है और जिसका हंकाने वाला जल्दी मचाए हुए है लेहाज़ा ख़बरदार लोगों की कसरत तुम्हारे नफ़्स को धोके में न डाल दे, तुम देख चुके हो के तुमसे पहले वालों ने माल जमा किया, इफ़लास से ख़ौफ़ज़दा रहे, अन्जाम से बेख़बर रहे, सिर्फ़ लम्बी-लम्बी उम्मीदों और मौत की ताख़ीर के ख़याल में रहे और एक मरतबा मौत नाज़िल हो गई और उसने उन्हें वतन से बेवतन कर दिया। महफ़ूज़ मक़ामात से गिरफ़तार कर लिया और ताबूत पर उठवा दिया जहां लोग कान्धों पर उठाए हुए, उंगलियों का सहारा दिये हुए एक-दूसरे के हवाले कर रहे थे। क्या तुमने उन लोगों को नहीं देखा जो दूर दराज़ उम्मीदें रखते थे और मुस्तहकम मकानात बनाते थे और बेतहाषा माल जमा करते थे के किसी तरह उनके घर क़ब्रों में तब्दील हो गए और सब किया धरा तबाह हो गया। अब अमवाल विरसे के लिये हैं और अज़वाज दूसरे लोगों के लिये। न नेकियों में इज़ाफ़ा कर सकते हैं और न बुराइयों के सिलसिले में रिज़ाए इलाही का सामान फ़राहम कर सकते हैं। याद रखो जिसने तक़वा को “ाआर बना लिया वही आगे निकल गया और उसी का अमल कामयाब होगा, लेहाज़ा तक़वा के मौक़े को ग़नीमत समझो और जन्नत के लिये उसके आमाल अन्जाम दे लो। यह दुनिया तुम्हारे क़याम की जगह नहीं है। यह फ़क़त एक गुज़रगाह है के यहाँ से हमेषगी के मकान के लिये सामान फ़राहम कर लो, लेहाज़ा जल्दी तैयारी करो और सवारियों को कूच के लिये अपने से क़रीबतर कर लो।

133- आपके ख़ुतबे का एक हिस्सा
(जिसमें अल्लाह की अज़मत और क़ुरआन की जलालत का ज़िक्र है और फिर लोगों को नसीहत भी की गई है)

(परवरदिगार) दुनिया व आख़ेरत दोनों ने अपनी बागडोर उसी के हवाले कर रखी है और ज़मीन व आसमान ने अपनी कुन्जीयात उसी  की खि़दमत में पेष कर दी है। उसकी बारगाह में सुबह व “ााम सरसब्ज़ व “ाादाब दरख़्त सजदारेज़ रहते हैं और अपनी लकड़ियों से चमकदार आग निकालते रहते हैं और उसी के हुक्म के मुताबिक़ पके हुए फल पेष करते रहते हैं।

(((- इन्सानी ज़िन्दगी में कामयाबी का राज़ यही एक नुक्ता है के यह दुनिया इन्सान की मन्ज़िल नहीं है बल्कि एक गुज़रगाह है जिससे गुज़रकर एक अज़ीम मन्ज़िल की तरफ़ जाना है और यह मालिक का करम है के उसने यहाँ से सामान फ़राहम करने की इजाज़त दे दी है और यहाँ के सामान को वहाँ के लिये कारआमद बना दिया है। यह और बात है के दोनों जगह का फ़र्क़ यह है के यहाँ के लिये सामान रखा जाता है तो काम आता है और वहाँ के लिये राहे ख़ुदा में दे दिया जाता है तो काम आता है। ग़नी और मालदार दुनिया सजा सकते हैं लेकिन आख़ेरत नहीं बना सकते हैं। वह सिर्फ़ करीम और साहबे ख़ैर अफ़राद के लिये है जिनका “ाआर तक़वा है और जिनका एतमाद वादाए इलाही पर है।-)))

(क़ुराने हकीम) किताबे ख़ुदा निगाह के सामने है वह नातिक़ है जिसकी ज़बान आजिज़ नहीं होती है और वह घर है जिसके अरकान मुनहदिम नहीं होते हैं, यही वह इज़्ज़त है जिसके ऐवान व अन्सार षिकस्त ख़ोरदा नहीं होते हैं।
(रसूले अकरम स0) अल्लाह ने आपको उस वक़्त भेजा जब रसूलों का सिलसिला रूका हुआ था और ज़बानें आपस में टकरा रही थीं। आपके ज़रिये रसूलों के सिलसिले को तमाम किया और वही के सिलसिले को मौक़ूफ़ किया तो आपने भी उससे इन्हेराफ़ करने वालों और उसका हमसर ठहराने वालों से जम कर जेहाद किया।
(दुनिया) यह दुनिया अन्धे की बसारत की आख़री मन्ज़िल है जो उसके मावरा कुछ नहीं देखता है जबके साहेबे बसीरत की निगाह उस पार निकल जाती है और वह जानता है के मन्ज़िल उसके मावदा है। साहबे बसीरत उससे कूच करने वाला है और अन्धा इसकी तरफ़ कूच करने वाला है। बसीर इससे ज़ादे राह फ़राहम करने वाला है और अन्धा इसके लिये ज़ादे राह इकट्ठा करने वाला है।
(मोअज़) याद रखो के दुनिया में जो “ौ भी है उसका मालिक सेर हो जाता है और उकता जाता है अलावा ज़िन्दगी के, के कोई “ाख़्स मौत में राहत नहीं महसूस करता है और यह बात उस हिकमत की तरह है जिसमें मुर्दा दिलों की ज़िन्दगी, अन्धी आंखों की बसारत, बहरे कानों की समाअत और प्यासे की सेराबी का सामान है और इसी में सारी मालदारी है और मुकम्मल सलामती है।
यह किताबे ख़ुदा है जिसमें तुम्हारी बसारत और समाअत का सारा सामान मौजूद है। इसमें एक हिस्सा दूसरे की वज़ाहत करता है और एक दूसरे की गवाही देता है। यह ख़ुदा के बारे में इख़्तेलाफ़ नहीं रखता है और अपने साथी को ख़ुदा से अलग नहीं करता है, मगर तुमने आपस में कीना व हसद पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया है और इसी घूरे पर सब्ज़ा उग आया है। उम्मीदों की मोहब्बत में एक-दूसरे से हम-आहंग हो और माल जमा करने में एक-दूसरे के दुष्मन हो, “ौतान ने तुम्हें सरगर्दां कर दिया है और फ़रेब ने तुमको बहका दिया है। अब अल्लाह ही मेरे और तुम्हारे नफ़्सों के मुक़ाबले में एक सहारा है।

(((-अगरचे दुनिया में ज़िन्दा रहने की ख़्वाहिष आम तौर से आख़ेरत के ख़ौफ़ से पैदा होती है के इन्सान अपने आमाल और अन्जाम की तरफ़ से मुतमईन नहीं होता है और इसी लिये मौत के तसव्वुर से लरज़ जाता है लेकिन इसके बावजूद यह ख़्वाहिष ऐब नहीं है बल्कि यही जज़्बा है जो इन्सान को अमल करने पर आमादा करता है और इसी के लिये इन्सान दिन और रात को एक कर देता है। ज़रूरत इस बात की है के इस ख़्वाहिषे हयात को हिकमत के साथ इस्तेमाल करे और उससे वैसा ही काम ले जो हिकमत सही और फ़िक्रे सलीम से लिया जाता है वरना यही ख़्वाहिष वबाले जान भी बन सकती है।-)))

134- आपका इरषादे गिरामी(जब उमर ने रोम की जंग के बारे में आपसे मषविरा किया)

अल्लाह ने साहेबाने दीन के लिये यह ज़िम्मेदारी ले ली है के वह उनके हुदूद को तक़वीयत देगा और उनके महफ़ूज़ मक़ामात की हिफ़ाज़त करेगा, और जिसने उनकी उस वक़्त मदद की है जबके वह क़िल्लत की बिना पर इन्तेक़ाम के क़ाबिल नहीं थे और अपनी हिफ़ाज़त का इन्तेज़ाम भी न कर सकते थे, वह अभी भी ज़िन्दा है और उसके लिये मौत नहीं है। अगर ख़ुद दुष्मन की तरफ़ जाओगे और उनका सामना करोगे और निकबत में मुब्तिला हो गए तो मुसलमानों के लिये आख़ेरी “ाहर के अलावा कोई पनाहगाह न रह जाएगी और तुम्हारे बाद मैदान में कोई मरकज़ भी न रह जाएगा जिसकी तरफ़ रूजू कर सकें लेहाज़ा मुनासिब यही है के किसी तजुर्बेकार आदमी भेजो और उसके साथ साहेबाने ख़ैर व महारत की एक जमाअत को कर दो। उसके बाद अगर ख़ुदा ने ग़लबा दे दिया तो यही तुम्हारा मक़सद है अगर इसके खि़लाफ़ हो गया तो तुम लोगों का सहारा और मुसलमानों के लिये एक पलटने का मरकज़ रहोगे।

135- आपका इरषादे गिरामी(जब आपके और उस्मान के दरम्यान इख़तेलाफ़ पैदा हुआ और मग़ीरा बिन अख़स ने उस्मान से कहा के मै। उनका काम तमाम कर सकता हूँ तो आपने फ़रमाया।)

ऐ बदनस्ल मलऊन के बच्चे! और उस दरख़्त के फ़ल जिसकी न कोई असल है और न फ़ूरूअ। तू मेरे लिये काफ़ी हो जाएगा? ख़ुदा की क़सम जिसका तू मददगार हो उसके लिये इज़्ज़त नहीं है और जिसे तु उठाएगा वह खड़े होने के क़ाबिल न होगा। निकल जा, अल्लाह तेरी मन्ज़िल को दूर कर दे। जा अपनी कोषिषें कर ले, ख़ुदा तुझ पर रहम न करेगा अगर तू मुझ पर तरस भी खाए।

136- आपका इरषादे गिरामी(बैअत के बारे में)

म्ेरे हाथों पर तुम्हारी बैअत कोई नागहानी हादसा नहीं है और मेरा और तुम्हारा मामला एक जैसा भी नहीं ह। मैं तुम्हें अल्लाह के लिये चाहता हूँ और तुम मुझे अपने फ़ाएदे के लिये चाहते हो।
लेगों! अपनी नफ़्सानी ख़्वाहिषात के मुक़ाबले में मेरी मदद करो, ख़ुदा की क़सम मैं मज़लूम को ज़ालिम से उसका हक़ दिलवाऊगा और ज़ालिम को उसकी नाक में नकेल डाल कर खींचूंगा ताके उसे चष्मए हक़ पर वारिद कर दूँ चाहे वह किसी क़द्र नाराज़ क्यों न हो।

(((- मैदाने जंग में नकबत व रूसवाई के इहतेमाल के साथ किसी मर्द मैदान के भेजने का मषविरा उस नुक्ते की तरफ़ इषारा है के मैदाने जेहाद में सेबाते क़दम तुम्हारी तारीख़ नहीं है और न यह तुम्हारे बस का काम है लेहाज़ा मुनासिब यही है के सिकी तजुर्बेकार “ाख़्स को माहेरीन की एक जमाअत के साथ रवाना कर दो ताके इस्लाम की रूसवाई न हो सके और मज़हब का वक़ार बरक़रार रहे। उसके बाद तुम्हें ‘‘फ़ातहे आज़म’’ का लक़ब तो बहरहाल मिल ही जाएगा के जिसके दौर में इलाक़ा फ़तेह होता है तारीख़ उसी को फ़ातेह का लक़ब देती है और मुजाहेदीन को यकस नज़र अन्दाज़ कर देती है।
यह भी अमीरूल मोमेनीन (अ0) का एक हौसला था के “ादीद इख़्तेलाफ़ात और बेपनाह मसाएब के बावजूद मषविरा से दरीग़ नहीं किया और वही मषविरा दिया जो इस्लाम और मुसलमानों के हक़ में था। इसलिये के आप इस हक़ीक़त से बहरहाल बाख़बर थे के अफ़राद से इख़तेलाफ़ मक़सद और मज़हब की हिफ़ाज़त की ज़िम्मेदारी से बेनियाज़ नहीं हो सकता है और इस्लाम के तहफ़्फ़ुज़ की ज़िम्मेदारी हर मुसलमान पर आएद होती है चाहे वह बरसरे इक़्तेदार हो या न हो।)))
137- आपका इरषादे गिरामी(तल्हा व ज़ुबैर और उनकी बैअत के बारे में)

ख़ुदा की क़सम उन लोगों ने न मेरी किसी वाक़ेई बुराई की गिरफ़्त की है और न मेरे और अपने दरम्यान इन्साफ़ से काम लिया है। वह ऐसे हक़ का मुतालबा कर रहे हैं जिसको ख़ुद उन्होंने नज़र अन्दाज़ किया है और ऐसे ख़ून का बदला चाहते हैं जिसको ख़ुद उन्होंने बहाया है। अगर मैं इस मामले में “ारीक था तो एक हिस्सा उनका भी होगा और अगर यह तन्हा ज़िम्मेदार थे तो मुतालबा ख़ुद उन्हीं से होना चाहिये और मुझसे पहले उन्हें अपने खि़लाफ़ फै़सला करना चाहिये।
(अल्हम्दो लिल्लाह) मेरे साथ मेरी बसीरत है न मैंने अपने को धोके में रखा है और न मुझे धोका दिया जा सका है। यह लोग एक बाग़ी गिरोह हैं जिनमें मेरे क़राबतदार भी हैं और बिच्छू का डंक भी हैं और फिर हक़ाएक़ की परदापोषी करने वाला “ाुबा भी है, हालांके हक़ बिल्कुल वाज़ेअ है और बातिल अपने मरकज़ से हट चुका है और इसकी ज़बान “ाोर व “ाख़ब के सिलसिले में कट चुकी है।
ख़ुदा की क़सम मैं उनके लिये ऐसा हौज़ छलकाउंगा जिससे पानी निकालने वाला भी मैं ही हूँगा। यह न उससे सेराब होकर जा सकेंगे और न इसके बाद किसी तालाब से पानी पीने के लाएक़ रह सकेंगे।
(सिलए बैअत) तुम लोग ‘‘कल’’ बैअत-बैअत का “ाोर मचाते हुए मेरी तरफ़ इस तरह आए थे जिस तरह नई जनने वाली ऊंटनी अपने बच्चों की तरफ़ दौड़ती है। मैंने अपनी मुट्ठी बन्द कर ली मगर तुमने खोल दी। मैंने अपना हाथ रोक लिया मगर तुमने खींच लिया। ऐ ख़ुदा, तू गवाह रहना के इन दोनों ने मुझसे क़तअ ताल्लुक़ करके मुझ पर ज़ुल्म किया है और मेरी बैअत तोड़ कर लोगों को मेरे खि़लाफ़ भड़काया है। अब तू इनकी गिरहों को खोल दे और जो रस्सी उन्होंने बटी है उसमें इस्तेहकाम न पैदा होने दे और उन्हें उनकी उम्मीदों और उनके आमाल के बदतरीन नताएज को दिखला दे। मैंने जंग से पहले उन्हें बहुत रोकना चाहा और मैदाने जेहाद में उतरने से पहले बहुत कुछ मोहलत दी, लेकिन इन दोनों ने नेमत का इन्कार कर दिया और आफ़ियत को रद कर दिया।

(((-कारोबार ज़ूलैख़ा के दौर से निसवानी फ़ितरत में दाखि़ल हो गया है के जब दुनिया की निगाहें अपनी ग़लती की तरफ़ उठने लगें तो फ़ौरन दूसरे की ग़लती का नारा लगा दिया जाए ताके मसलए “ाुबह हो जाए और लोग हक़ाएक़ का सही इदराक न कर सकें, क़त्ले उस्मान के बाद यही काम आएषा ने किया के पहले लोगों को क़त्ले उस्मान पर आमादा किया। उसके बाद ख़ुद ही ख़ूने उस्मान की दावेदार बन गईं और फिर उनके साथ मिलकर यही ज़नाना एक़दाम तलहा व ज़ुबैर ने भी किया। इसीलिये अमीरूल मोमेनीन ने आखि़रे कलाम में अपने मर्दे मैदान होने का इषारा दिया है के मर्दाने जंग इस तरह की निस्वानी हरकात नहीं किया करते हैंं बल्कि “ारीफ़ औरतें भी अपने को ऐसे किरदार से हमेषा अलग रखती हैं और हक़ का साथ देती हैं और हक़ पर क़ायम रह जाती हैं उनके किरदार में दोरंगी नहीं होती है।-)))

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