Tuesday, April 26, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 186-191 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 186-191

186- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(तौहीद के बारे में और उसमें वह तमाम इल्मी मतालिब पाए जाते हैं जो किसी दूसरे ख़ुत्बे में नहीं हैं)

वह उसकी तौहीद का क़ायल नहीं है जिसने उसके लिये कैफ़ियात का तसव्वुर पैदा कर लिया और वह उसकी हक़ीक़त से नाआष्ना है जिसने उसकी तमसील क़रार दे दी। उसने उसका क़स्द ही नहीं किया जिसने उसकी “ाबीह बना दी और वह उसकी तरफ़ मुतवज्जो ही नहीं हुआ जिसने इसकी तरफ़ इषारा कर दिया या उसे तसव्वुर का पाबन्द बना देना चाहा। जो अपनी ज़ात से पहचाना जाए है वह मख़लूक़ है और जो दूसरे के सहारे क़ायम हो वह उस इल्लत का मोहताज है। परवरदिगार फ़ाएल है लेकिन आज़ा के हरकात से नहीं और अन्दाज़े मुक़र्रर करने वाला है लेकिन फिक्र की जूलानियों से नहीं। वह ग़नी है लेकिन किसी से कुछ लेकर नहीं, ज़माना उसके साथ नहीं रह सकता और आलात उसे सहारा नहीं दे सकते। उसका वजूद ज़माने से पहले है और इसका वजूद अदम से भी साबिक़ और उसकी अज़लियत इब्तेदा से भी मुक़द्दम है। इसके हवास को ईजाद करने से अन्दाज़ा हुआ के वह हवास से बेनियाज़ है और उसके अष्याअ के दरम्यान ज़दयत क़रार देने से मालूम हुआ के उसकी कोई ज़िद नहीं है और उसके अष्याअ में मुक़ारनत क़रार देने से साबित हुआ के उसका कोई क़रीन और साथी नहीं है। उसने नूर को ज़ुल्मत की, वज़ाहत को इबहाम की, ख़ुष्की को तरी की और गरमी को सरदी की ज़िद क़रार दिया है। वह एक दूसरे की दुष्मन अष्याअ को जमा करने वाला, एक-दूसरे से जुदागाना अष्याअ का साथ कर देने वाला, बाहमी दूरी रखने वालों को क़रीब बना देने वाला और बाहेमी क़ुरबत के हामिल उमूर का जुदा कर देने वाला है। वह न किसी हद के अन्दर आता है और न किसी हिसाब व “ाुमार में आ सकता है के जिस्मानी क़ूवतें अपनी जैसी अष्याअ ही को महदूद कर सकती हैं और आलात अपने इमसाल ही की तरफ़ इषारा कर सकते हैं। इन अष्याअ को लफ़्ज़ मुन्ज़ो (कब) ने क़दीम होने से रोक दिया है और हर्फ़ क़द (हो गया) ने अज़लियत से अलग कर दिया है और लौला ने उन्हें तकमील से जुदा कर दिया है। उन्हें अष्याअ के ज़रिये बनाने वाला अक़्लों के सामने जलवागर हुआ है और उन्हीं के ज़रिये आंखों की दीद से बरी हो गया है। इसपर हरकत व सुकून का क़ानून जारी नहीं होता है के उसने ख़ुद हरकत व सुकून के निज़ाम को जारी किया है और जिस चीज़ की इब्तिदा उसने की है वह उसकी तरफ़ किस तरह आएद हो सकती है या जिसको उसने ईजाद किया है वह उसकी ज़ात में किस तरह “ाामिल हो सकती है। ऐसा हो जाता तो उसकी ज़ात भी तग़य्युर पज़ीद हो जाती।

(((-मालिके कायनात ने तख़लीक़े कायनात में ऐसे ख़ुसूसियात को वदीअत कर दिया है जिनके ज़रिये उसकी अज़मत का बख़ूबी अन्दाज़ा किया जा सकता है। सिर्फ़ इस नुक्ते की तरफ़ तवज्जो देने की ज़रूरत है के जो “ौ भी किसी की ईजाद कर्दा होती है उसका इतलाक़ मौजद की ज़ात पर नहीं हो सकता है लेहाज़ा अगर उसने हवास को पैदा किया है तो इसके मानी यह हैं के उसकी ज़ात हवास से बालातर है और अगर उसने बाज़ अष्याअ में हमरंगी और बाज़ में इख़्तेलाफ़ पैदा किया है तो यह इस बात की अलामत है के उसकी ज़ाते अक़दस न किसी की हमरंग है और न किसी से ज़िदयत की हामिल है। यह सारी बातें मख़लूक़ात के मुक़द्दर में लिखी गई हैं और ख़ालिक़ की ज़ात इन तमाम बातों से कहीं ज़्यादा बलन्द व बाला है।-)))

इसकी हक़ीक़त भी क़ाबिले तजज़िया हो जाती और इसकी मानवीयत भी अज़लियत से अलग हो जाती और इसके यहां भी अगर सामने की जहत होती तो पीछे की सिम्त होती और वह भी कमाल का तलबगार होता अगर उसमें नुक़्स पैदा हो जाता, उसमें मसनूआत की अलामतें पैदा हो जाती और वह मदलोल (सारी चीज़े उसकी हस्ती की दलील) होने के बाद ख़ुद दूसरे की तरफ़ (दलील बन जाने) रहनुमाई  करने वाला हो जाता। (हालांकि वह इस अम्रे मुसल्लेमा की रू से के इसकें मख़लूक़ की सिफ़तों का होना ममनूअ है,) वह अपने इम्तेनाअ व तहफ़्फ़ुज़ की ताक़त की बिना पर इस हद से बाहर निकल गया है के कोई ऐसी ‘ौ इस पर असर करे जो दूसरों पर असरअन्दाज़ होती है। इसके यहां न तग़य्युर है और न ज़वाल और न उसके आफ़ताबे वजूद के लिये कोई ग़ुरूब है। वह न किसी का बाप है के उसका कोई फ़रज़न्द हो और न किसी का फ़रज़न्द है के महदूद होकर रह जाए। वह औलाद बनाने से भी बे नियाज़ और औरतों को हाथ लगाने से भी बलन्द व बाला है। औहाम उसे पा नहीं सकते हैं के उसका अन्दाज़ा मुक़र्रर करें और होषमन्दियां उसका तसव्वुर नहीं कर सकती हैं के इसकी तस्वीर बना सकें। हवास इसका इदराक नहीं कर सकते हैं के उसे महसूस कर सकें और हाथ उसे छू नहीं सकते हैं के मस कर लें। वह किसी हाल में मुतग़य्यर नहीं होता है  और मुख़्तलिफ़ हालात में बदलता (मुन्तक़िल होता) भी नहीं है। “ाब व रोज़ उसे पुराना नहीं कर सकते हैं और तारीकी व रोषनी उसमें तग़य्युर नहीं पैदा कर सकती हैं। वह न अजज़ाअ से मौसूफ़ होता है और न जवारेह व आज़ा से, न किसी अर्ज़ से मुत्तसिफ़ होता है और न ही क़ुरबत और जुजि़्ज़यत से (उसे अजज़ाअ व जवारेह सिफ़ात में से किसी सिफ़त और ज़ात के अलावा किसी भी चीज़ और हिस्सों से मुत्तसिफ़ नहीं किया जा सकता)। उसके लिये न हद और इन्तेहा का लफ़्ज़ इस्तेमाल होता है और न इख़्तेताम और ज़वाल का। न अष्याअ उस पर हावी हैं के जब चाहें पस्त कर दें या बलन्द कर दें, और न कोई चीज़ उसे उठाए हुए है के जब चाहे सीधा कर दे या मोड़ दे। वह न अष्याअ के अन्दर दाखि़ल है और न उनसे ख़ारिज है। वह कलाम करता है मगर ज़बान और तालू के सहारे नहीं और सुनता है लेकिन कान के सूराख़ और आलात के ज़रिये नहीं। बोलता है लेकिन तलफ़्फ़ुज़ से नहीं और हर चीज़ को याद रखता है लेकिन हाफ़ेज़ा के सहारे नहीं। इरादा करता है लेकिन दिल से नहीं और मोहब्बत व रिज़ा रखता है लेकिन नर्मी क़ल्ब के वसीले से नहीं और बुग़्ज़ व ग़ज़ब भी रखता है लेकिन ग़म व ग़ुस्से की तकलीफ़ से नहीं। जिस चीज़ को ईजाद करना चाहता है उससे कुन कह देता है और वह हो जाती है। न कोई आवाज़ कानों से टकराती है और न कोई निदा सुनाई देती है। उसका कलाम दरहक़ीक़त उसका फ़ेल है जिसको उसने ईजाद किया है और उसके पहले से होने का कोई सवाल नहीं है वरना वह भी क़दीम और दूसरा ख़ुदा हो जाता।
उसके बारे में यह नहीं कहा जा सकता है के वह अदम से वजूद में आया है के इस पर हादस सिफ़ात का इतलाक़ हो जाए और दोनों में न कोई फ़ासला रह जाए और न उसका हवादिस पर कोई फ़ज़ल रह जाए और फ़िर सानेअ व मसनूअ दोनों बराबर हो जाएं और मसनूअ सनअत के मिस्ल हो जाए। उसने मख़लूक़ात को बग़ैर किसी दूसरे के छोड़े हुए नमूने के बनाया है और इस तख़लीक़ में किसी की मदद भी नहीं ली है। ज़मीन को ईजाद किया और उसमें उलझे बग़ैर उसे रोक कर रखा और फ़िर बग़ैर किसी सहारे के गाड़ दिया और बग़ैर किसी सुतून के क़ायम कर दिया और बग़ैर खम्बों के बलन्द भी कर दिया। उसे इस तरह की कजी और टेढ़ेपन से महफ़ूज़ रखा और हर क़िस्म के षिगाफ़ और इन्तेषार से बचाए रखा। उसमें पहाड़ों की मीख़ें गाड़ दीं और चट्टानों को मज़बूती से नस्ब कर दिया। चष्मे जारी कर दिये और पानी की गुज़रगाहों को षिगाफ़्ता कर दिया। उसकी कोई सनअत कमज़ोर नहीं है और उसने जिसको क़ूवत दे दी है वह ज़ईफ़ नहीं है। वह हर “ौ पर अपनी अज़मत व सल्तनत की बिना पर ग़ालिब है।

(((-इसमें कोई “ाक नहीं है के परवरदिगार का इरफ़ान उसके सिफ़ात व कमालात ही से होता है और उसकी ज़ाते अक़दस भी मुख़तलिफ़ सिफ़ात से मुत्तसिफ़ है। बात सिर्फ़ यह है के सिफ़ात हादिस नहीं हैं, बल्कि ऐन ज़ात हैं और एक ज़ाते अक़दस है जिससे उसके तमाम सिफ़ात का अन्दाज़ा होता है और उसकी तरह के तादद का कोई इमकान नहीं है।-)))

वह इल्म व इरफ़ान की बिना पर अन्दर तक की ख़बर रखता है। जलाल व इज़्ज़त की बिना पर हर “ौ से बलन्द व बाला है और अगर किसी “ौ को तलब करना चाहे तो (वह उसके दस्तरस से बाज़ नहीं) कोई “ौ उसे आजिज़ नहीं कर सकती है और उससे इन्कार नहीं कर सकती है के इस पर ग़ालिब आ जाए। तेज़ी दिखलाने वाले उससे बच कर आगे नहीं जा सकते हैं और वह किसी साहेबे सरवत की रोज़ी का मोहताज नहीं है। तमाम अष्याअ उसकी बारगाह में ख़ुज़ूअ करने वाली और इसकी अज़मत के आगे ज़लील हैं। कोई चीज़ उसकी सलतनत से फ़रार करके दूसरे की तरफ़ नहीं जा सकती है के उसके नफ़े व नुक़सान से महफ़ूज़ हो जाए। न उसका कोई कफ़ू (हमसर) है के हमसरी करे और न कोई मिस्ल है के बराबर हो जाए। वह हर “ौ को वजूद के बाद फ़ना करने वाला है के एक दिन फिर ग़ायब हो जाए (यहां तक के मौजूद चीज़ें उन चीज़ों की तरह हो जाएं के जो कभी थीं ही नहीं) और उसके लिये दुनिया का फ़ना कर देना इससे ज़्यादा हैरत अंगेज़ नहीं है के जब उसने इसकी अख़्तेराअ व ईजाद की थी। भला यह कैसे हो सकता है जबके सूरते हाल यह है के अगर तमाम हैवानात परिन्दे और चरिन्दे रात को मन्ज़िल पर वापस आने वाले और घरों में रह जाने वाले, तरह-तरह के अनवाअ व इक़साम वाले और तमाम इन्सान ग़बी और होषमन्द सब मिलकर एक मच्छर को ईजाद करना चाहें तो नहीं कर सकते हैं और न उन्हें यह अन्दाज़ा होगा के इसकी ईजाद का तरीक़ा और रास्ता क्या है बल्कि उनकी अक़्लें इसी राह में भटक (हैरान हो) जाएंगी और उनकी ताक़तें जवाब दे जाएंगी और आजिज़ व दरमान्दा होकर मैदाने अमल से वापस आ जाएंगी और उन्हें महसूस हो जाएगा के उनपर किसी का ग़लबा है और उन्हें अपनी आजिज़ी का इक़रार भी होगा और उन्हें फ़ना कर देने के बारे में भी कमज़ोरी का एतराफ़ होगा।
बेषक, वह ख़ुदाए पाक व पाकीज़ा ही है जो दुनिया के फ़ना हो जाने के बाद भी रहने वाला है और उसके साथ रहने वाला कोई नहीं है। वह इब्तेदा में भी ऐसा ही था और इन्तेहा में भी ऐसा ही होने वाला है। उसके लिये न वक़्त है न मकान, न साअत है न हंगाम और ज़मान है। उस वक़्त मुद्दतें और वक़्त सब फ़ना हो जाएंगे और साअत व साल सबका ख़ात्मा हो जाएगा। उस ख़ुदाए वाहिद व क़ह्हार के अलावा कोई ख़ुदा नहीं है। उसी की तरफ़ तमाम उमूर की बाज़गष्त है और किसी “ौ को भी अपनी ईजाद से पहले अपनी तख़लीक़ का यारा ना था और न फ़ना होते वक़्त इनकार करने का दम होगा। अगर इतनी ही ताक़त होती तो हमेषा न रह जाते। उस मालिक को किसी “ौ के बनाने में किसी दुष्वारी का सामना नहीं करना पड़ा और उसे किसी “ौ की तख़लीक़ व ईजाद थका भी नहीं सकी। उसने इस कायनात को न अपनी हुकूमत के इस्तेहकाम के लिये बनाया है और न किसी ज़वाल और नुक़सान के ख़ौफ़ से बचने के लिये। न उसे किसी मद्दे मुक़ाबिल के मुक़ाबले में मदद की ज़रूरत थी और न वह किसी हमलावर दुष्मन से बचना चाहता था। उसका मक़सद अपने मुल्क व सल्तनत में कोई इज़ाफ़ा था और न किसी “ारीक के सामने अपनी कसरत का इज़हार करना (इतराना) था और न तन्हाई की वहषत से उन्स हासिल करना था।
इसके बाद वह इस कायनात को फ़ना कर देगा, न इसलिये के इसकी तदबीर और इसके तसर्रुफ़ात से आजिज़ आ गया है और न इसलिये के अब आराम करना चाहता है या उस पर किसी ख़ास चीज़ का बोझ पड़ रहा है।

(((-दुनिया में ईजादात और हुकूमात का फ़लसफ़ा यही होता है के कोई ईजादात के ज़रिये हुकूमत का इस्तेहकाम चाहता है और कोई हुकूमत के ज़रिये ख़तरात का मुक़ाबला करना चाहता है। इसलिये बहुत मुमकिन था के बाज़ जाहिल अफ़राद मालिके कायनात की तख़लीक़ और उसकी हुकूमत के बारे में भी इसी तरह का ख़याल क़ायम कर लेते।
आप हज़रत ने यह चाहा के इस ग़लत फ़हमी का इज़ाला कर दिया जाए और इस हक़ीक़त को बेनक़ाब कर दिया जाए के ख़ालिक़ व मख़लूक़ में बे पनाह फ़र्क़ है और किसी भी मख़लूक़ का क़यास ख़ालिक़ में नहीं किया जा सकता है। मख़लूक़ का मिज़ाज एहतियाज है और ख़ालिक़ का कमाल बेनियाज़ी है लेहाज़ा दोनों के बारे में एक तरह के तसव्वुरात नहीं क़ायम किये जा सकते हैं।)))

न इसलिये के बक़ाए कायनात ने उसे थका दिया है तो अब उसे मिटा देना चाहता है, ऐसा कुछ नहीं है। उसने अपने लुत्फ़ से इसकी तद्बीर की है और अपने अम्र से इसे रोक रखा है। अपनी क़ुदरत से इसे मुस्तहकम बनाया है और फिर फ़ना करने के बाद दोबारा ईजाद कर देगा (न इसलिये के इनमें से किसी चीज़ की उसे एहतियाज है और उनकी मदद का ख़्वाहं है और न तन्हाई की उलझन से मुनतक़िल होकर दिलबस्तगी की हालत पैदा करने के लिये और जेहालत व बेबसीरती की हालत से वाक़फ़ीयत व तजुरबात की दुनिया में आने के लिये और फ़क्ऱो एहतियाज से दौलत व फ़रावानी और ज़िल्लत व पस्ती से इज़्ज़त व तवानाई की तरफ़ मुन्तक़िल होने के लिये इनको दोबारा पैदा करता है।) हालांके उस वक़्त भी न उसे किसी “ौ की ज़रूरत है और न किसी से मदद लेना होगी। न वहषत से उन्स की तरफ़ मुन्तक़िल होना होगा और न जेहालत की तारीकी से इल्म और तजुर्बे की तरफ़ आना होगा न फ़क्ऱो एहतियाज से मालदारी और कसरत की तलाष होगी और न ज़िल्लत व कमज़ोरी से इज़्ज़त व क़ुदरत की जुस्तजू होगी।

187-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हवादिसे रोज़गार का ज़िक्र किया गया है)

मेरे मां बाप उन चन्द अफ़राद पर क़ुरबान हो जाएं जिनके नाम आसमान में मारूफ़ हैं और ज़मीन में मजहोल। आगाह हो जाओ और उस वक़्त का इन्तेज़ार करो जब तुम्हारे अम्र उलट जाएंगे और ताल्लुक़ात टूट जाएंगे और बच्चों के हाथ में इक़तेदार आ जाएगा यही वह वक़्त होगा जब एक दिरहम के हलाल के ज़रिये हासिल करने से आसानतर तलवार का ज़ख़्म होगा और लेने वाले फ़क़ीर का अज्र देने वाले मालदार से ज़्यादा होगा।
तुम बग़ैर किसी “ाराब के नेमतों के नषे में सरमस्त होगे और बग़ैर किसी मजबूरी के क़सम खाओगे और बग़ैर किसी ज़रूरत के झूट बोलोगे और यही वह वक़्त होगा जब बलाएं तुम्हें इस तरह काट खाएंगी जिस तरह उट की पीठ को पालान। हाए यह रन्ज व अलम किस क़द्र तवील होगा और उससे निजात की उम्मीद किस क़द्र दूरतर होगी।
लोगों! उन सवारियों की बागडोर उतार कर फेंक दो जिनकी पुष्त पर तुम्हारे ही हाथों गुनाहों का बोझ है और अपने हाकिम से इख़्तेलाफ़ न करो के बाद में अपने किये पर पछताना पड़े। वह आग के “ाोले जो तुम्हारे सामने हैं उनकें कूद न पड़ों। उनकी राह से अलग होकर चलो और रास्ते को उनके लिये ख़ाली कर दो के मेरी जान की क़सम इस फ़ितने की आग में मोमिन हलाक हो जाएगा और ग़ैर मुस्लिम महफ़ूज़ रहेगा।
मेरी मिसाल तुम्हारे दरम्यान अन्धेरे में चिराग़ जैसी है के जो इसमें दाखि़ल हो जाएगा वह रोषनी हासिल कर लेगा। लेहाज़ा ख़ुदारा मेरी बात सुनो और समझो। अपने दिलों के कानों को मेरी तरफ़ मसरूफ़ करो ताके बात समझ सको।

(((-जिस तरह मालिक ने रसूले अकरम (स0) को जाहेलीयत के अन्धेरे में सिराजे मुनीर बनाकर भेजा था उसी तरह फ़ितनों के अन्धेरों में मौलाए कायनात की ज़ात एक रौषन चिराग़ की है के अगर इन्सान इस चिराग़ की रौषनी में ज़िन्दगी गुज़ारे तो कोई फ़ित्ना उस पर असर अन्दाज़ नहीं हो सकता है और किसी अन्धेरे में उसके भटकने का इमकान नहीं है। लेकिन “ार्त यही है के इस चिराग़ की रौषनी में क़दम आगे बढ़ाए वरना अगर उसने आंखें बन्द कर लीं और अन्धेपन के साथ क़दम आगे बढ़ाता रहा तो चिराग़ रौषन रहेगा और इन्सान गुमराह हो जाएगा जिसकी तरफ़ इन कलेमात के ज़रिये इषारा किया गया है के ख़ुदारा मेरी बात सुनो और समझो के इसके बग़ैर हिदायत का कोई इमकान नहीं है और गुमराही का ख़तरा हरगिज़ नहीं टल सकता है।)))

188- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(मुख़तलिफ़ उमूर की वसीयत करते हुए)

अय्योहन्नास! मैं तुम्हें वसीयत करता हूं तक़वा इलाही और नेमतों, एहसानात और फ़ज़ल व करम पर “ाुक्रे ख़ुदा करने की। देखो कितनी नेतमें हैं जो उसने तुम्हें इनायत की हैं और कितनी बुराइयों की मुकाफ़ात से अपनी रहमत के ज़रिये बचा लिया है। तुमने खुलकर गुनाह किये और उसने परदा पोषी की, तुमने काबिले मवाख़ेज़ा आमाल अन्जाम दिये और उसने तुम्हें मोहलत दे दी।
मैं तुम्हें वसीयत करता हूं के मौत को याद रखो और उससे ग़फ़लत न बरतो। आखि़र उससे कैसे ग़फ़लत कर रहे हो जो तुमसे ग़फ़लत करने वाली नहीं है। और फ़रिष्तए मौत से कैसे उम्मीद लगाए हो जो हरगिज़ मोहलत देने वाला नहीं है। तुम्हारी नसीहत के लिये वह मुर्दे ही काफ़ी हैं जिन्हें तुम देख चुके हो के किस तरह अपनी क़ब्रों की तरफ़ बग़ैर सवारी के ले जाए गए और किस तरह क़ब्र में उतार दिये गए के ख़ुद से उतरने के भी क़ाबिल नहीं थे। ऐसा मालूम होता है के उन्होंने कभी इस दुनिया को बसाया ही नहीं था और गोया के आखि़रत ही उनका हमेषगी का मकान है। वह जहां आबाद थे उसे वहषत कदा बना गए और जिससे वहषत खाते थे वहां जाकर आबाद हो गए। यह इसी में मषग़ूल रहे थे जिसको छोड़ना पड़ा और उसे बरबाद करते रहे थे जिधर जाना पड़ा। अब किसी बुराई से बचकर कहीं जा सकते हैं और न किसी नेकी में कोई इज़ाफ़ा कर सकते हैं। दुनिया से उन्स पैदा किया तो उसने धोका दे दिया और इस पर एतबार कर लिया तो उसने तबाह व बरबाद कर दिया।
ख़ुदा तुम पर रहमत नाज़िल करे, अब से सबक़त करो उन मनाज़िल की तरफ़ जिनको आबाद करने का हुक्म दिया गया है और जिनकी तरफ़ सफ़र करने की रग़बत दिलाई गई है और दावत दी गई है। अल्लाह की नेमतों की तकमील का इन्तेज़ाम करो उसकी इताअत के अन्जाम देने और मासियत से परहेज़ करने पर सब्र के ज़रिये। इसलिये के कल का दिन आज के दिन से दूर नहीं है। देखो दिन की साअतें, महीने के दिन, साल के महीने और ज़िन्दगी के साल किस तेज़ी से गुज़र जाते हैं।

189- आपका इरषादे गिरामी(ईमान और वजूबे हिजरत के बारे में)

ईमान का एक वह हिस्सा है जो दिलों में साबित और मुस्तहकम होता है और एक वह हिस्सा है जो दिल और सीने के दरम्यान आरज़ी तौर पर रहता है, लेहाज़ा अगर किसी से बराअत और बेज़ारी भी करना हो तो इतनी देर इन्तेज़ार करो के उसे मौत आ जाए के उस वक़्त बेज़ारी बरमहल होगी।
हिजरत का क़ानून आज भी वही है जो पहले था, अल्लाह किसी क़ौम का मोहताज नहीं है चाहे जो ख़ुफ़िया तौर पर मोमिन रहे या अलल एलान ईमान का इज़हार करे हिजरत का इतलाक़ हुज्जते ख़ुदा की मारेफ़त के बग़ैर नहीं हो सकता है। लेहाज़ा जो “ाख़्स इसकी मारेफ़त हासिल करके इसका इक़रार कर ले वही मोहाजिर है।

(((-ईमान वह अक़ीदा है जो इन्सान के दिल की गहराइयों में पाया जाता है और जिसका वाक़ेई इज़हार इन्सान के अमल व किरदार से होता है के अमल और किरदार के बग़ैर ईमान सिर्फ़ एक दावा रहता है जिसकी कोई तस्दीक़ नहीं होती है।
लेकिन यह ईमान भी दो तरह का होता है। कभी इन्सान के दिल की गहराइयों में यूं पेवस्त हो जाता है के ज़माने के झक्कड़ भी उसे हिला नहीं सकते हैं और कभी हालात की बिना पर तज़लज़ल के इमकानात पैदा हो जाते हैं। हज़रत (अ0) ने इस दूसरी क़िस्म के पेषे नज़र इरषाद फ़रमाया है के किसी इन्सान की बदकिरदारी की बिना पर बराअत करना है तो इतना इन्तेज़ार कर लो के उसे मौत आ जाए ताके यह यक़ीन हो जाए के ईमान उसके दिल की गहराइयों में साबित नहीं था वरना तौबा व इस्तग़फ़ार करके राहे रास्त पर आ जाता।
हिजरत का वाक़ेई मक़सद जान का बचाना नहीं बल्कि ईमान का बचाना होता है, लेहाज़ा जब तक ईमान के तहफ़्फ़ुज़ का इन्तेज़ाम न हो जाए उस वक़्त तक हिजरत का कोई मफ़हूम नहीं है और जब मारेफ़ते हुज्जत के ज़रिये ईमान के तहफ़्फ़ुज़ का इन्तेज़ाम हो जाए तो समझो के इन्सान मुहाजिर हो गया, चाहे उसका क़याम किसी मन्ज़िल पर क्यों न रहे।)))

इसी तरह मुस्तज़ाफ़ उसे नहीं कहा जाता है जिस तक ख़ुदाई दलील पहुंच जाए और वह उसे सुन भी ले और दिल में जगह भी दे दे। हमारा मामला निहायत दरजए सख़्त और दुष्वारगुज़ार है। इसका मुतहम्मल सिर्फ़ वह बन्दए मोमिन कर सकता है जिसके दिल का इम्तेहान ईमान के लिये लिया जा चुका हो, हमारी बातें सिर्फ़ उन्हीं सीनों में रह सकती हैं जो अमानतदार हों और उन्हीं अक़्लों में समा सकती हैं जो ठोस और मुस्तहकम हों।
लोगों! जो चाहो मुझसे दरयाफ़्त कर लो कब्ल इसके के मुझे न पाओ, मैं आसमान के रास्तों को ज़मीन की राहों से बेहतर जानता हूं, मुझसे दरयाफ़्त कर लो क़ब्ल इसके के वह फ़ित्ना अपने पैर उठा ले जो अपनी मेहार को भी पैरों तले रौंदने वाला है और जिससे क़ौम की अक़्लों के ज़वाल का अन्देषा है।

190- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हम्दे ख़ुदा, सनाए रसूल (स0) और नसीहते तक़वा का ज़िक्र किया गया है)

मैं उसकी हम्द करता हूं उसके इनआम का “ाुक्रिया अदा करने के लिये और उससे मदद चाहता हूं उसके हुक़ूक़ से ओहदाबरा होने के लिये, उसका नष्करा ग़ालिब है और बुज़ुर्गी अज़ीम है।
मैं इस बात की “ाहादत देता हूं के मोहम्मद (स0) अल्लाह के बन्दे और उसके रसूल हैं। उन्होंने उसकी इताअत की दावत दी है और उसके दुष्मनों पर ग़लबा हासिल किया है उसके दीन में जेहाद के ज़रिये। उन्हें इस बात से न ज़ालिमों का उनके झुठलाने पर इज्तेमाअ रोक सका है और न उनकी नूरे हिदायत की ख़ामोष करने की ख़्वाहिष मना कर सकी है।
तुम लोग तक़वाए इलाही से वाबस्ता हो जाओ के उसकी रीसमान के बन्धन मज़बूत और उसकी पनाह की चोटी हरजहत से महफ़ूज़ है। मौत और उसकी सख़्ितयों के सामने आने से पहले उसकी तरफ़ सबक़त करो और उसके आने से पहले ज़मीन हमवार कर लो। उसके नुज़ूल से पहले तैयारी मुकम्मल कर लो के अन्जामकार बहरहाल क़यामत है और यह बात हर उस “ाख़्स की नसीहत के लिये काफ़ी है जो साहबे अक़्ल हो और उसमें जाहिल के लिये बड़ी इबरत का सामान है और तुम्हें यह भी मालूम है के इस अन्जाम तक पहुंचने से पहले लहद और षिद्दते बरज़क़ का भी सामना है जहां बरज़ख़ की हौलनाकी, ख़ौफ़ की दहषत, पस्लियों का इधर से उधर हो जाना, कानों का बहरा हो जाना, क़ब्र की तारीकियां, अज़ाब की धमकियां क़ब्र के षिगाफ़ का बन्द किया जाना और पत्थर की सिलों से पाट दिया जाना भी है।
बन्दगाने ख़ुदा! अल्लाह को याद रखो के दुनिया तुम्हारे लिये एक ही रास्ते पर चल रही है और तुम क़यामत के साथ एक ही रस्सी में बन्धे हुए हो और गोया के उसने अपने अलामात को नुमायां कर दिया है और उसके झण्डे क़रीब आ चुके हैं।

((( बाज़ हज़रात का ख़याल है के अहलेबैत (अ0) के मामले से मुराद दीन व इमामत और अक़ीदे व किरदार है के उसका हर हाल में बरक़रार रखना और उससे किसी भी हाल में दस्तबरदार न होना ह “ाख़्स के बस की बात नहीं है वरना लोग अदना मुसीबत में भी दीन से दस्तबरदार हो जाते हैं और जान बचाने की पनाहगाहें ढूंढने लगते हैं और बाज़ हज़रात का ख़याल है के इससे मुराद अहलेबैत (अ0) की रूहानी अज़मत और उनकी नूरानी मन्ज़िल है जिसका इदराक हर इन्सान के बस का काम नहीं है बल्कि उसके लिये अज़ीम ज़र्फ़ दरकार है लेकिन बहरहाल इस तसव्वुर में भी उनके नक़्षे क़दम पर चलने को भी “ाामिल करना पड़ेगा वरना सिर्फ़ अक़ीदा क़ायम करने के लिये इम्तेहान “ाुदा और आज़माए हुए दिल की ज़रूरत नहीं है।)))

तुम्हेंं अपने रास्ते पर खड़ा कर दिया है और गोया के वह अपने ज़लज़लों समेत नमूदार हो गई है और अपने सीने टेक दिये हैं और दुनिया ने अपने बसने वालों से मुंह मोड़ लिया है और उन्हें अपनी गोद से अलग कर दिया है। गोया के यह एक दिन था जो गुज़र गया या एक महीना था जो बीत गया, और इसकी नई चीज़ पुरानी हो गई और उसका तन्दरूस्त, लाग़र हो गया। उस मौक़फ़ में जिसकी जगह तंग है और जिसके उमूर मुष्तबा (पेचीदा) और अज़ीम हैं वह आग है जिसका ज़ख़्म कारी है और जिसके “ाोले बलन्द हैं (जिसकी ईज़ाएं “ादीद और चीख़ें बलन्द हैं)। इसकी भड़क नुमायां है और भड़कने की आवाज़ें ग़ज़बनाक हैं। इसकी लपटें तेज़ हैं और बुझने के इमकानात बईद (मुष्किल) हैं।  इसका भड़कना तेज़ है और इसके ख़तरात दहषतनाक हैं इसका गढ़ा तारीक है और इसके हर तरफ़ (एतराफ़) अन्धेरा ही अन्धेरा है। इसकी देगें खौलती हुई हैं और इसके उमूर दहषतनाक हैं उस वक़्त सिर्फ़ ख़ौफ़े ख़ुदा रखने वालों को गिरोह गिरोह जन्नत की तरफ़ ले जाया जाएगा जहां अज़ाब से महफ़ूज़ होंगे और इताब का सिलसिला ख़त्म हो चुका होगा। जहन्नुम से अलग कर दिये जाएंगे और अपने घर में इतमीनान से रहेंगे जहां अपनी मन्ज़िल और अपने मुस्तक़र से ख़ुष होंगे यही वह लोग हैं जिनके आमाल दुनिया में पाकीज़ा थे और जिनकी आंखें ख़ौफ़े ख़ुदा से गिरयां थीं। इनकी रातें ख़ुषू और अस्तग़फ़ार की बिना पर दिन जैसी थीं और इनके दिन दहषत और गोषानषीनी की बिना पर रात जैसे थे। अल्लाह ने जन्नत को उनकी बाज़गष्त की मन्ज़िल बना दिया है और जज़ाए आख़ेरत को उनका सवाब। यह हक़ीक़तन इसी इनाम के हक़दार और अहल थे जो मुल्के दाएम और नईम अबदी में रहने वाले हैं।

बनदगाने ख़ुदा! उन बातों का ख़याल रखो जिनके ज़रिये से कामयाबी हासिल करने वाला कामयाब होता है और जिनको सानेअ कर देने से बातिल वालों का घाटा होता है। अपनी मौत की तरफ़ आमाल के साथ सबक़त करो के तुम गुज़िष्ता आमाल के गिरवी हो और पहले वाले आमाल के मक़रूज़ हो और अब गोया के ख़ौफ़नाक मौत तुमपर नाज़िल हो चुकी है जिससे न वापसी का इमकान है और न गुनाहों की माफ़ी मांगने की गुन्जाइष है। अल्लाह हमें और तुम्हें अपनी और अपने रसूल (स0) की इताअत की तौफ़ीक़ दे और अपने फ़ज़्ल व रहमत से हम दोनों से दरगुज़र फ़रमाए।
ज़मीन से चिमटे रहो और बलाओं पर सब्र करते रहो। अपने हाथ और अपनी तलवारों को ज़बान की ख़्वाहिषात का ताबेअ न बनाना और जिस चीज़ में ख़ुदा ने जल्दी नहीं रखी उसकी जल्दी न करना के अगर कोई “ाख़्स ख़ुदा और रसूल (स0) व अहलेबैत (अ0) के हक़ की मारेफ़त रखते हुए बिस्तर पर मर जाए तो वह भी “ाहीद ही मरता है और उसका अज्र भी ख़ुदा ही के ज़िम्मे होता है और वह अपनी नीयत के मुताबिक़ नेक आमाल का सवाब भी हासिल कर लेता है ख़ुद नीयत भी तलवार खींचने के क़ाएम मुक़ाम हो जाती है और हर “ौ की एक मुद्दत होती है और उसका एक वक़्त मुअय्यन है।

(((-हालात इस क़द्र संगीन थे के इमाम (अ0) के मुख़लिस असहाब मुनाफ़िक़ीन और मुआनेदीन की रविष को बरदाष्त न कर सकते थे और हर एक की फ़ितरी ख़्वाहिष थी के तलवार उठाने की इजाज़त मिल जाए और दुष्मन का ख़ात्मा कर दिया जाए जो हर दौर के जज़्बाती इन्सान की तमन्ना और आरज़ू होती है, लेकिन हज़रत यह नहीं चाहते थे के कोई काम मर्ज़ीए इलाही और मसलहते इस्लाम के खि़लाफ़ हो और मेरे मुख़लिसीन भी जज़्बात व ख़्वाहिषात के ताबेअ हो जाएं, लेहाज़ा पहले आपने सब्र व सुकून की तल्क़ीन की और इस अम्र की तरफ़ मुतवज्जो किया के इस्लाम ख़्वाहिषात का ताबेअ नहीं होता है। इस्लाम की “ाान यह है के ख़्वाहिषात इसका इत्तेबाअ करें और इसके इषारे पर चलें, इसके बाद मुख़्लेसीन के इस नेक जज़्बे की तरफ़ तवज्जो फ़रमाई के यह “ाौक़े “ाहादत व क़ुरबानी रखते हैं, कहीं ऐसा न हो के इनके हौसले पस्त हो जाएं और यह मायूसी का षिकार हो जाएं, लेहाज़ा इस नुक्ते की तरफ़ तवज्जो दिलाई के “ाहादत का दारोमदार तलवार चलाने पर नहीं है। “ाहादत का दारोमदार इख़लासे नीयत के साथ जज़्बए क़ुरबानी पर है लेहाज़ा तुम इस जज़्बे के साथ बिस्तर पर भी मर गए तो तुम्हारा “ाुमार “ाोहदा और स्वालेहीन में हो जाएगा तुम्हें इस सिलसिले में परेषान होने की ज़रूरत नहीं है-)))

191- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें हम्दे ख़ुदा, सनाए रसूल (स0) और वसीयते ज़ोहद व तक़वा का तज़किरा किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी हम्द हमहगीर और जिसका लष्कर ग़ालिब है और जिसकी अज़मत बलन्द व बाला है। मैं उसकी मुसलसल नेमतों और अज़ीमतरीन मेहरबानियों पर उसकी हम्द करता हूं के इसका हुक्म इस क़द्र अज़ीम है के वह हर एक को माफ़ करता है और फिर हर फ़ैसले में इन्साफ़ से भी काम लेता है और जो कुछ गुज़र गया और गुज़र रहा है सबका जानने वाला भी है। वह मख़लूक़ात को सिर्फ़ अपने इल्म से पैदा करने वाला है और अपने हुक्म से ईजाद करने वाला है। न किसी की इक़्तेदा की है और न किसी से तालीम ली है। न किसी सानेअ हकीम की मिसाल की पैरवी की है और न किसी ग़लती का षिकार हुआ है और न मुषीरों की मौजूदगी में काम अन्जाम दिया है।
और मैं गवाही देता हूं के मोहम्मद (स0) उसके बन्दे और रसूल हैं। उन्हें उस वक़्त भेजा है जब लोग गुमराहियों में चक्कर काट रहे थे और जब हैरानियों में ग़लतां व पेचां थे। हलाकत की मेहारें उन्हें खींच रही थीं और कुदूरत व ज़न्ग के ताले इनके दिलों पर पड़े हुए थे।
बन्दगाने ख़ुदा! मैं तुम्हें तक़वाए इलाही की नसीहत करता हूं के यह तुम्हारे उपर अल्लाह का हक़ है और इससे तुम्हारा हक़ परवरदिगार पर पैदा होता है। इसके लिये अल्लाह से मदद मांगो और उसके ज़रिये उसी से मदद तलब करो के यह वक़वा आज दुनिया में सिपर और हिफ़ाज़त का ज़रिया और कल जन्नत तक पहुंचने का रास्ता है। इसका मसलक वाज़ेह और इसका राहेरौ फ़ायदा हासिल करने वाला है। और इसका अमानतदार हिफ़ाज़त करने वाला है। यह तक़वा अपने को उन पर भी पेष करता रहा है जो गुज़र गए और उन पर भी पेष कर रहा है जो बाक़ी रह गए हैं के सबको कल इसकी ज़रूरत पड़ने वाली है। जब परवरदिगार अपनी मख़लूक़ात को दोबारा पलटाएगा और जो कुछ अता किया है उसे वापस ले लेगा और जिन नेमतों से नवाज़ा है उनका सवाल करेगा, किस क़द्र कम हैं वह अफ़राद जिन्होंने इसको क़ुबूल किया है और इसका वाक़ेई हक़ अदा किया है। यह लोग अदद में बहुत कम हैं लेकिन परवरदिगार की इस तौसीफ़ के हक़दार हैं के ‘‘मेरे “ाुक्रगुज़ार बन्दे बहुत कम हैं’’। अब अपने कानों को उसकी तरफ़ मसरूफ़ करो और सई व कोषिष से इसकी पाबन्दी करो और उसे गुज़रती हुई कोताहियों का बदल क़रार दो।

(((-खुली हुई बात है के बन्दा किसी क़ीमत पर परवरदिगार पर हक़ पैदा करने के क़ाबिल नहीं हो सकता है, उसका हर अमल करमे परवरदिगार और फ़ज़्ले इलाही का नतीजा है। लेहाज़ा इसका कोई इमकान नहीं है के वह इताअते इलाही अन्जाम देकर उसके मुक़ाबले में साहबे हक़ हो जाए और उस पर उसी तरह हक़ पैदा करे जिस तरह उसका हक्के़ इबादत व इताअत हर बन्दे पर है।
इस हक़ से मुराद भी परवरदिगार का यह फ़ज़्लो करम है के उसने बन्दों से इनाम और जज़ा का वादा कर लिया है और अपने बारे में यह एलान कर दिया है के मैं अपने वादे के खि़लाफ़ नहीं करता हूं जिसके बाद हर बन्दे को यह हक़ पैदा हो गया है के वह मालिक से अपने आमाल की जज़ा और उसके इनाम का मुतालेबा करे न इसलिये के उसने अपने पास से और अपनी ताक़त से कोई अमल अन्जाम दिया है के यह बात ग़ैरे मुमकिन है। बल्कि इसलिये के मालिक ने उससे सवाब का वादा किया है और वह अपने वादे को वफ़ा करने का ज़िम्मेदार है और उससे ज़र्रा बराबर इन्हेराफ़ नहीं कर सकता है। रिवायत में हक़्क़े मोहम्मद (स0) व आले मोहम्मद (स0) का मफ़हूम यही है के उन्होंने अपनी इबादात के ज़रिये वादाए इलाही की वफ़ा का इतना हक़ पैदा कर दिया है के उनके वसीले से दीगर अफ़राद भी इस्तेफ़ादा कर सकते हैं। बषर्ते के वह भी उन्हीं के नक़्षे क़दम पर चलें और उन्हीं की तरह इताअत व इबादत अन्जाम देने की कोषिष करें।)))

और मुख़ालिफ़ के मुक़ाबले में मवाक़िफ़ बनाओ, उसके ज़रिये अपनी नीन्द को बेदारी में तब्दील करो और अपने दिन गुज़ार दो। उसे अपने दिलों का “ाोआर बनाओ, उसी के ज़रिये अपने गुनाहों को धो डालो, अपने इमराज़ का इलाज करो और अपनी मौत की तरफ़ सबक़त करो, उनसे इबरत हासिल करो जिन्होंने इसे ज़ाया कर दिया है और ख़बरदार वह तुमसे इबरत न हासिल करने पाएं जिन्होंने इसका रास्ता इख़्तेयार किया है। इसकी हिफ़ाज़त करो और इसके ज़रिये से अपनी हिफ़ाज़त करो। दुनिया से पाकीज़गी इख़्तेयार करो और आख़ेरत के आषिक़ बन जाओ। जिसे तक़वा बलन्द कर दे उसे पस्त मत बनाओ और जिसे दुनिया उचा बना दे उसे बलन्द मत समझो। इस दुनिया के चमकने वाले बादल पर नज़र न करो और इसके तरजुमान की बात मत सुनो इसके आवाज़ देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक मत कहो और इसकी चमक-दमक से रोषनी मत हासिल करो और इसकी क़ीमती चीज़ों पर जान मत दो इसलिये के इसकी बिजली फ़क़त चमक दमक है और इसकी बातें सरासर ग़लत हैं इसके अमवाल लुटने वाले हैं और इसका बेहतरीन छिनने वाला है (इसका उमदा मताअ ग़ारत होने वाला है)।
आगाह हो जाओ के यह दुनिया झलक दिखाकर मुंह मोड़ लेने वाली चण्डाल, मुंह ज़ोर अड़ियल झूटी, ख़ाएन, हटधर्म, नाषुक्री करने वाली सीधी राह से मुन्हरिफ़ और मुंह फेरने वाली और कज्र व पेच व ताब खाने वाली है। इसका तरीक़ा इन्तेक़ाल है और इसका हर क़दम ज़लज़लाअंगेज़ है। इसकी इज़्ज़त भी ज़िल्लत है और इसकी माक़ईयत भी मज़ाक़ है (इसकी सन्जीदगी ऐन हरज़ह सराई है) इसकी बलन्दी पस्ती है और यह जंगो जदल, हर्ब व ज़र्ब, लूट मार, हलाकत व ताराजी का घर है, इसके रहने वाले पा ब रकाब हैं और चल चलाव के लिये तैयार हैं, इनकी कैफ़ियत वस्ल व फ़िराक़ की कषमकष की है, जहां रास्ते गुम हो गए हैं और गुरेज़ की राहें मुष्किल हो गई हैं और मन्सूबे नाकाम हो चुके हैं, महफ़ूज़ घाटियों ने उन्हें मुष्किलात के हवाले कर दिया है और उनके घरों ने उन्हें दूर फेंक दिया है, दानिष्मन्दियों ने भी उन्हें दरमान्दा कर दिया है। अब जो बच गए हैं उनमें कुछ की कोंचें कटी हुई हैं, कुछ गोष्त के लोथड़े हैं जिनकी खाल उतार ली गई है। कुछ कटे हुए जिस्म और बहते हुए ख़ून जैसे हैं कुछ अपने हाथ काटने वाले हैं और कुछ कफे अफ़सोस मिलने वाले, कुछ फ़िक्र व तरद्दुद में कोहनियां रूख़सारों पर रखे हुए और कुछ अपनी फ़िक्र से बेज़ार और अपने इरादे से रूजू करने वाले हैं। (लेकिन अब कहां) जबके चारासाज़ी का मौक़ा हाथ से निकल चुका है। धेलों ने मुंह फेर लिया है और हलाकत सामने आ गई है मगर छुटकारे का वक़्त निकल चुका है। यह एक न होने वाली बात हैं जो चीज़ गुज़र गई वह गुज़र गई, (अब निकल भागने का वक़्त कहां, यह तो एक अनहोनी बात है) और जो वक़्त चला गया वह चला गया और दुनिया अपने हाल में मनमानी करती हुई गुज़र गई- ‘‘न उन पर आसमान रोया और न ज़मीन और न ही उन्हें मोहलत दी गई।’’

(((- ख़ुदा जानता है के इस दुनिया का कोई हाल क़ाबिले एतबार नहीं है और इसकी किसी कैफ़ियत में सुकून व क़रार नहीं है। इसका पहला ऐब तो यह है के इसके हालात में ठहराव (सुकून) नहीं है। सुबह का सवेरा थोड़ी देर में दोपहर बन जाता है और आफ़ताब का “ाबाब थोड़ी देर में ग़ुरूब हो जाता है। इन्सान बचपने की आज़ादियों से मुस्तफ़ैद भी नहीं होने पाता है के जवानी की धूप आ जाती है और जवानी की रानाइयों से लज्ज़त अन्दोज़ नहीं होने पाता है के ज़ईफ़ी की कमज़ोरियां हमलावर हो जाती हैं, ग़रज़ कोई हालत ऐसी नहीं है जिसपर एतबार किया जा सके और जिसे किसी हद तक पुरसुकून कहा जा सके।
और दूसरा ऐब यह है के अलग-अलग कोई दौर भी क़ाबिले इत्मीनान नहीं है, दौलतमन्द दौलत को रो रहे हैं और ग़रीब ग़ुरबत को, बीमार बीमारियों का रोना रो रहे हैं और सेहतमन्द सेहत के तक़ाज़ों से आजिज़ हैं, बेऔलाद औलाद के तलबगार हैं और औलाद वाले औलाद की ख़ातिर परेषान।
ऐसी सूरतेहाल में तक़ाज़ाए अक़्ल यही है के दुनिया को हदफ़ और मक़सद तसव्वुर न किया जाए और इसे सिर्फ़ आखि़रत के वसीले के तौर पर इस्तेमाल किया जाए, इसकी नेमतों में से इतना ही ले लिया जाए जितना आखि़रत में काम आने वाला है और बाती को इसके अहल के लिये छोड़ दिया जाए।-)))

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