Friday, April 1, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 104-109, नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 104-109

104-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा

अम्माबाद! अल्लाह ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उस दौर में भेजा है जब अरब में न कोई किताब पढ़ना जानता था और न नबूवत और वही का इदआ करने वाला था। आपने इताअतगुज़ारों के सहारे नाफ़रमानों से जेहाद किया के उन्हें मन्ज़िले निजात की तरफ़ ले जाना चाहते थे और क़यामत के आने से पहले हिदायत दे देना चाहते थे। जब कोई थका मान्दा रूक जाता था और कोई लौटा हुआ ठहर जाता था तो उसके सर पर खड़े हो जाते थे के उसे मन्ज़िल तक पहुंचा दें मगर यह के कोई ऐसा लाख़ैरा हो जिसके मुक़द्दर में हलाकत हो। यहाँ तक के आपने लोगों को मरकज़े निजात से आषना बना दिया और उन्हें उनकी मन्ज़िल तक पहुँचा दिया उनकी चक्की चलने लगी और उनके टेढ़े सीधे हो गए।
और ख़ुदा की क़सम! मैं भी उनके हंकाने वालों में से था यहाँ तक के वह मुकम्मल तौर पर पस्पा हो गए और अपने बन्धनों में जकड़ दिये गए, इस दरम्यान में मैं न कमज़ोर हुआ न बुज़दिली का षिकार हुआ। न मैंने ख़यानत की और न सुस्ती का इज़हार किया।

(((- इमाम अलैहिस्सलाम की ज़िन्दगी का बेहतरीन नक़्षा है और इसी की रोषनी में दूसरे किरदारों का जाएज़ा लिया जा सकता है जिन्हें मैदाने तारीख़ ने तो पहचाना है लेकिन मैदाने जेहाद इनकी गर्दे क़दम से भी महरूम रह गया। मगर अफ़सोस के जानी पहचानी “ाख़्िसयतें अजनबी हो गईं और अजनबी “ाहर के मषाहीर बन गए।-)))

ख़ुदा की क़सम! मैं बातिल का पेट चाक करके उसके पहलू से हक़ को बहरहाल निकाल लूंगा।
सय्यद रज़ी - इस ख़ुत्बे का एक इन्तेख़ाब पहले नक़्ल किया जा चुका है। लेकिन चूंकि इस रिवायत में क़द्रे कमी और ज़्यादती पाई जाती थी लेहाज़ा हालात का तक़ाज़ा यह था के इसे दोबारा इस “ाक्ल में भी दर्ज किया जाए।

105- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें रसूले अकरम (स0) के औसाफ़, बनी उमय्या की तहदीद और लोगों की नसीहत का तज़किरा किया गया है।)

(रसूले अकरम (स0) - यहाँ तक के परवरदिगार ने हज़रत मोहम्मद (स0) को उम्मत के आमाल का गवाह, सवाब की बषारत देने वाला, अज़ाब से डराने वाला बनाकर भेज दिया। आप बचपने में बेहतरीन मख़लूक़ात और सिन रसीदा होने पर अषरफ़े कायनात थे, आदात के एतबार से तमाम पाकीज़ा अफ़राद से ज़्यादा पाकीज़ा और बाराने रहमत के एतबार से हर सहाब रहमत से ज़्यादा करीम व जवाद थे।
(बनी उमय्या) - यह दुनिया तुम्हारे लिये उसी वक़्त अपनी लज़्ज़तों समेत ख़ुषगवार बनी है और तुम उसके फ़वाएद हासिल करने के क़ाबिल बने हो जब तुमने देख लिया के इसकी मेहार झूल रही है और इसका तंग ढीला हो गया है। इसका हराम एक क़ौम के नज़दीक बग़ैर कांटे वाली बेर की तरह मज़ेदार हो गया है और इसका हलाल बहुत दूर तक नापसन्द हो गया है और ख़ुदा की क़सम तुम इस दुनिया को एक मुद्दत तक फैले हुए साये की तरह देखोगे के ज़मीन हर टोकने वाले से ख़ाली हो गई है और तुम्हारे हाथ खुल गए हैं और क़ाएदीन के हाथ बन्धे हुए हैं। तुम्हारी तलवारें उनके सरों पर लटक रही हैं और उनकी तलवारें न्याम में हैं लेकिन याद रखो के हर ख़ून का एक इन्तेक़ाम लेने वाला और हर हक़ का एक तलबगार होता है और हमारे ख़ून का मुन्तक़िम गोया ख़ुद अपने हक़ में फै़सला करने वाला है और वह, वह परवरदिगार है जिसे कोई मतलूबे आजिज़ नहीं कर सकता है और जिससे कोई फ़रार करने वाला भाग नहीं सकता है। मैं ख़ुदा की क़सम खाकर कहता हूँ के बनी उमय्या के अनक़रीब तुम इस दुनिया को अग़्यार के हाथों और दुष्मनों के दयार में देखोगे, आगाह हो जाओ के बेहतरीन नज़र वह है जो ख़ैर में डूब जाए और बेहतरीन कान वह है जो नसीहत को सुन लें और क़ुबूल कर लें।
(मोअज़ा) लोग! एक बाअमल नसीहत करने वाले के चिराग़े हिदायत से रोषनी हासिल कर लो और एक ऐसे साफ़ चष्मे से सेराब हो जाओ जो हर आलूदगी से पाक व पाकीज़ा है।

(((- इस ख़ुत्बे में इस नुक्ते की तरफ़ भी इषारा हो सकता है के ग़ासिब अफ़राद ने जिन अमवाल को हज़म कर लिया है, वह एक दिन इनका षिकम चाक करके इसमें से निकाल लिया जाएगा और इस अम्र की तरफ़ भी इषारा हो सकता है के हक़ अभी फ़ना नहीं हुआ है। उसे बातिल ने दबा दिया है और गोया के अपने षिकम के के अन्दर छिपा लिया है और मुझमें इस क़दर ताक़त पाई जाती है के मैं इस षिकम को चाक करके इस हक़ को मन्ज़रे आम पर ले आऊं और बातिल के हर राज़ को बेनक़ाब कर दूँ।-)))

अल्लाह के बन्दों! देखो अपनी जेहालत की तरफ़ झुकाव मत पैदा करो और अपनी ख़्वाहिषात के ग़ुलाम न बन जाओ के इस मन्ज़िल पर आ जाने वाला गोया सेलाबज़दा दीवार के किनारे पर खड़ा है और हलाकतों को अपनी पुष्त पर लादे हुए इधर से उधर मुन्तक़िल हो रहा है। इन उफ़्कार की बिना पर जो यके बाद दीगरे ईजाद करता रहेगा और उन पर ऐसे दलाएल क़ाएम करेगा जो हरगिज़ जस्पां ना होंगे और उससे क़रीबतर भी न होंगे। लेहाज़ा ख़ुदा का ख़याल रखो के अपनी फ़रयाद उस “ाख़्स से करो जो उसका एज़ाला न कर सके और अपनी राय से हुक्मे इलाही को तोड़ न सके।  याद रखो के इमाम की ज़िम्मेदारी सिर्फ़ वह है जो परवरदिगार ने इसके ज़िम्मे रखी है के बलीग़तरीन मोअज़्ज़म करे, नसीहत की कोषिष करे। सुन्नत को ज़िन्दा करे, मुस्तहक़ीन पर हुदूद का इजरा करे और हक़दारों तक मीरास के हिस्से पहुँचा दे।
देखो इल्म की तरफ़ सबक़त करो क़ब्ल इसके के इसका सब्ज़ा ख़ुष्क हो जाए और तुम उसे साहेबाने इल्म से हासिल करने में अपने कारोबार में मषग़ूल हो जाओ, मुन्करात से रोको और ख़ुद भी बचो के तुम्हें रोकने का हुक्म रूकने के बाद दिया गया है।

106- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें इस्लाम की फ़ज़ीलत और रसूले इस्लाम (स0) का तज़किरा करते हुए असहाब की मलामत की गई है)

सारी तारीफ़ उस ख़ुदा के लिये हैं जिसने इस्लाम का क़ानून मुअय्यन किया तो उसके हर घाट को वारिद होने वाले के लिये आसान बना दिया और उसके अरकान को हर मुक़ाबला करने वाले के मुक़ाबले में मुस्तहकम बना दिया। इसने उस दिन को वाबस्तगी इख़्तेयार करने वालों के लिये जाए-अमन और उसके दार्रा में दाखि़ल हो जाने वालों के लिये महले सलामती बना दिया है। यह दीन अपने ज़रिये कलाम करने वालों के लिये बरहान और अपने वसीले से मुक़ाबला करने वालों के लिये “ााहिद क़रार दिया गया है। यह रोषनी हासिल करने वालों के लिये नूर, समझने वालों के लिये फ़हम, फ़िक्र करने वालों के लिये मग़्ज़े कलाम, तलाषे मन्ज़िल करने वालों के लिये निषाने मन्ज़िल, साहेबाने अज़्म के लिये सामाने बसीरत, नसीहत हासिल करने वालों के लिये इबरत, तस्दीक़ करने वालों के लिये निजात, एतमाद करने वालों के लिये क़ाबिले एतमाद, अपने उमूर को सुपुर्द कर देने वालों के लिये राहत और सब्र करने वालों के लिये सिपर है। यह बेहतरीन रास्ता और वाज़ेअतरीन दाखि़ले की मन्ज़िल है, उसके मीनार बलन्द, रास्ते रौषन, चिराग़ ज़ूबार, मैदाने अमल बावेक़ार और मक़सद बलन्द है। इसके मैदान में तेज़ रफ़्तार घोड़ों का इज्तेमाअ है और इसकी तरफ़ सबक़त और इसका इनआम हर एक को मतलूब है, इसके “ाहसवार बाइज़्ज़त हैं।

(((- इस मक़ाम पर मौलाए कायनात (अ0) ने इस्लाम के चैदह सिफ़ात का तज़किरा किया है और इसमें नोए बषर के तमाम एक़ाम का अहाता कर लिया है जिसका मक़सद यह है के इस इस्लाम के बरकात से दुनिया का कोई इन्सान महरूम नहीं रह सकता है और कोई “ाख़्स किसी तरह के बरकात का तलबगार हो उसे इस्लाम के दामन में इस बरकत का हुसूल हो सकता है और वह अपने मतलूबे ज़िन्दगी को हासिल कर सकता है, “ार्त सिर्फ़ यह है के इस्लाम ख़ालिस हो और उसकी तफ़सीर वाक़ेई अन्दाज़ से की जाए वरना गन्दे घाट से प्यासा सेराब नहीं हो सकता है और कमज़ोर अरकान के सहारे पर कोई “ाख़्स ग़लबा नहीं हासिल कर सकता है।-)))

इसका रास्ता तस्दीक़े ख़ुदा और रसूल (स0) है और इसका मिनारा नेकियाँ हैं, मौत एक मक़सद है जिसके लिये दुनिया घोड़दौड़ का मैदान है और क़यामत इसके इज्तेमाअ की मन्ज़िल है और फिर जन्नत इस मुक़ाबले का इनाम है।
(रसूले अकरम (स0)) यहाँ तक के आपने हर रोषनी के तलबगार के लिये आग रौषन कर दी और हर गुमकर्दा राह ठहरे हुए मुसाफ़िर के लिये निषाने मन्ज़िल रौषन कर दिये।
परवरदिगार! वह तेरे मोतबर अमानतदार और रोज़े क़यामत के गवाह हैं। तूने उन्हें नेमत बनाकर भेजा और रहमत बनाकर नाज़िल किया है।
ख़ुदाया! तू अपने इन्साफ़ से इनका हिस्सा अता फ़र्मा और फिर अपने फ़ज़्ल व करम से उनके ख़ैर को दुगना-चैगना कर दे। ख़ुदाया! इनकी इमारत को तमाम इमारतों से बलन्दतर बना दे और अपनी बारगाह में इनकी बाइज़्ज़त तौर पर मेज़बानी फ़रमा और इनकी मन्ज़िलत को बलन्दी अता फ़रमा। उन्हें वसीला और रफ़अत व फ़ज़ीलत करामत फ़रमा और हमें उनके गिरोह में महषूर फ़रमा जहां न रूसवा हों और न “ार्मिन्दा हों, न हक़ से मुन्हरिफ़ हों न अहद षिकन हों, न गुमराह हों और न गुमराहकुन और न किसी फ़ित्ने में मुब्तिला हों।
सय्यद रज़ी- यह कलाम इससे पहले भी गुज़र चुका है लेकिन हमने इख़्तेलाफ़े रिवायत की बिना पर दोबारा नक़्ल कर दिया है।
(अपने असहाब से खि़ताब फ़रमाते हुए)- तुम अल्लाह की दी हुई करामत से इस मन्ज़िल पर पहुँच गए जहां तुम्हारी कनीज़ों का भी एहतराम होने लगा और तुम्हारे हमसाये से भी अच्छा बरताव होने लगा। तुम्हारा एहतराम वह लोग भी करने लगे जिनपर न तुम्हें कोई फ़ज़ीलत हासिल थी और न उनपर तुम्हारा कोई एहसान था और तुमसे वह लोग भी ख़ौफ़ खाने ले जिन पर न तुमने कोई हमला किया था और न तुम्हें कोई इक़्तेदार हासिल था। मगर अफ़सोस के तुम अहदे ख़ुदा को टूटते हुए देख रहे हो और तुम्हें ग़ुस्सा भी नहीं आता है जबके तुम्हारे बाप दादा के अहद को तोड़ा जाता है तो तुम्हें ग़ैरत आ जाती है। एक ज़माना था के अल्लाह के उमूर तमु ही पर वारिद होते थे और तुम्हारे ही पास से बाहर निकलते थे और फिर तुम्हारी ही तरफ़ पलट कर आते थे लेकिन तुमने जाहिलों को अपनी मन्ज़िलों पर क़ब्ज़ा दे दिया और उनकी तरफ़ अपनी ज़मामे अम्र बढ़ा दी और उन्हें सारे उमूर सुपुर्द कर दिये के वह “ाुबहात पर अमल करते हैं और ख़्वाहिषात में चक्कर लगाते रहते हैं और ख़ुदा गवाह है के अगर यह तुम्हें हर सितारे के नीचे मुन्तषिर कर देंगे तो भी ख़ुदा तुम्हें उस दिन जमा कर देगा जो ज़ालिमों के लिये बदतरीन दिन होगा।

107- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(सिफ़्फ़ीन की जंग के दौरान)

मैंने तुम्हें भागते हुए और अपनी सफ़ों से मुन्तषिर होते हुए देखा जबके तुम्हें “ााम के जफ़ाकार ओबाष और देहाती बद्दू अपने घेरे में लिये हुए थे हालांके तुम अरब के जवाँमर्द बहादुर और “ारफ़ के रासवरीं थे। मगर इसकी ऊंची नाक और चोटी की बलन्दी वाले अफ़राद थे, मेरे सीने की कराहने की आवाज़ें उस वक़्त दब सकती हैं जब मैं यह देख लूं के तुम उन्हें इसी तरह अपने घेरे में लिये हुए हो जिस तरह वह तुम्हें लिये हुए थे और उनको उनके मवाक़िफ़ से इसी तरह ढकेल रहे हों जिस तरह उन्होंने तुम्हें हटा दिया था के उन्हें तीरों की बौछार का निषाना न बनाए हुए हो और नैज़ों की ज़द पर इस तरह लिये हुए हो के पहली सफ़ को आख़री सफ़ पर उलट रहे हो जिस तरह के प्यासे ऊंट हंकाए जाते हैं जब उन्हें तालाबों से दूर फेंक दिया जाता है और घाट से अलग कर दिया जाता है।

108- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें मलाहम और हवादिस व फ़ित्न का ज़िक्र किया गया है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो अपनी मख़लूक़ात के सामने तख़लीक़ात के ज़रिये जलवागर होता है और उनके दिलों पर दलीलों के ज़रिये रोषन होता है। उसने तमाम मख़लूक़ात को बग़ैर सोच विचार की ज़हमत के पैदा किया है के सोचना साहेबाने दिल व ज़मीर का काम है वह इन बातों से बलन्दतर है। उसके इल्म ने पोषीदा इसरार के तमाम पर्दों को चाक कर दिया है और वह तमाम अक़ाएद की गहराइयों का अहाता किये हुए है।
(रसूले अकरम (स0)) उसने आपका इन्तेख़ाब अम्बियाए कराम के “ाजरे, रोषनी के फ़ानूस, बलन्दी की पेषानी, अर्ज़े तबहा की नाफे़ ज़मीन, ज़ुलमतों के चिराग़ों और हिकमत के सरचष्मों के दरम्यान से किया है। 
आप वह तबीब थे जो अपनी तबाबत के साथ चक्कर लगा रहा हो के अपने मरहम को दुरूस्त कर लिया हो और दाग़ने के आलात को तपा लिया हो के जिस अन्धे दिल, बहरे कान, गूंगी ज़बान पर ज़रूरत पड़े फ़ौरत इस्तेमाल कर दे। अपनी दवा को लिये हुए ग़फ़लत के मराकज़ और हैरत के मक़ामात की तलाष में लगा हुआ हो।

(फ़ित्नाए बनी उमय्या) इन ज़ालिमों ने हिकमत की रोषनी से नूर हासिल किया और उलूम के चक़माक़ को रगड़कर चिंगारी नहीं पैदा की। इस मसले में इनकी मिसाल चरने वाले जानवरों और सख़्त तरीन पत्थरों की है।
बेषक अहले बसीरत के लिये इसरार नुमायां हैं और हैरान व सरगर्दां लोगों के लिये हक़ का रास्ता रौषन है। आने वाली साअत ने अपने चेहरे से नक़ाब को उलट दिया है और तलाष करने वालों के लिये अलामतें ज़ाहिर हो गई हैं। आखि़र क्या हो गया है के मैं तुम्हें बिल्कुल बेजान पैकर और बिला पैकर रूह की “ाक्ल में देख रहा हूँ। तुम वह इबादत गुज़ार हो जो अन्दर से सॉलेह न हो और वह ताजिर हो जिसको कोई फ़ायदा न हो। वह बेदार हो जो ख़्वाबे ग़फ़लत में हो और वह हाज़िर हो जो बिल्कुल ग़ैर हाज़िर हो।
अन्धी आंख, बहरे कान और गूंगी ज़बान, गुमराही का परचम अपने मरकज़ पर जम चुका है और इसकी “ााख़ें हर सू फैल चुकी हैं। वह तुम्हें अपने पैमाने में तोल रहा है और अपने हाथों इधर-उधर बहका रहा है। इसका क़ाएद मिल्लत से ख़ारिज और ज़लालत पर क़ाएम है। उस दिन तुमसे कोई बाक़ी न रह जाएगा मगर उसी मिक़दार में जितना पतीली का तह देग होता है, या थैली के झाड़े हुए रेज़े। यह गुमराही तुम्हें उसी तरह मसल डालेगी जिस तरह चमड़ा मसला जाता है और इसी तरह पामाल कर देगी जिस तरह कटी हुई ज़राअत रौंदी जाती है और मोमिन ख़ालिस को तुम्हारे दरम्यान से इस तरह चुन लेगी जिस तरह परिन्दा बारीक दानों से मोटे दानों को निकाल लेता है।
आखि़र तुमको यह ग़लत रास्ते किधर ले जा रहे हैं और तुम अन्धेरों में कहां बहक रहे हो और तुमको झूटी उम्मीदें किस तरह धोका दे रही हैं किधर से लाए जा रहे हो और किधर बहकाए जा रहे हो। हर मुद्दत का एक नोष्ता होता है और ग़ैबत के लिये एक वापसी होती है लेहाज़ा अपने ख़ुदा व सय्यदे आलम की बात सुनो। इसके लिये दिलों को हाज़िर करो, वह आवाज़ दे तो बेदार हो जाओ। हर नुमाइन्दे को अपनी क़ौम से सच बोलना चाहिये, उसकी परागन्दगी को जमा करना चाहिये। इसके ज़ेहन को हाज़िर रखना चाहिए। अब तुम्हारे रहनुमा ने तुम्हारे लिये मसलए को इस क़द्र वाषिगाफ़ कर दिया है जिस तरह मेहरा को चीरा जाता है और इस तरह छील डाला है जिस तरह गोन्द खुरचा जाता है। मगर इसके बावजूद बातिल ने अपना मरकज़ संभाल लिया है और जेहल अपने मरकब पर सवार हो गया है और सरकषी बढ़ गई है और हक़ की आवाज़ दब गई है और ज़माने ने फाउण्डेशऩ खाने वाले दरिन्दे की तरह हमला कर दिया है और बातिल का ऊंट चुप रहने के बाद फिर बिलबिलाने लगा है और लोगों ने फिस्क़ व फ़ुजूर की बिरादरी क़ायम कर ली है और सबने मिलकर दीन को नज़रअन्दाज़ कर दिया है। झूट परवस्ती की बुनियादें क़ायम हो गई हैं और सच्चाई पर एक दूसरे के दुष्मन हो गए हैं। ऐसे हालात में बेटा बा पके लिये ग़ैज़ व ग़ज़ब का सबब होगा और बारिष गर्मी का बाएस होगी। कमीने लोग फैल जाएंगे और “ारीफ़ लोग सिमट जाएंगे। इस दौर के अवाम भेड़िये होंगे और सलातीन दरिन्दे। दरम्यानी तबक़े वाले खाने वाले और फ़क़रा व मसाकीन मुर्दे होंगे। सच्चाई कम हो जाएगी और झूठ फैल जाएगा। मोहब्बत का इस्तेमाल सिर्फ़ ज़बान से होगा और अदावत दिलों के अन्दर पेवस्त हो जाएगी। ज़िनाकारी नसब की बुनियाद होगी और उफ़त एक अजीब व ग़रीब “ौ हो जाएगी। इस्लाम यूँ उलट दिया जाएगा जैसे कोई पोस्तीन को उलटा पहन ले।

109- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(क़ुदरते ख़ुदा अज़मते इलाही और रोज़े महषर के बारे में)

हर “ौ उसकी बारगाह में सर झुकाए हुए है और हर चीज़ उसी के दम से क़ायम है। वह हर फ़क़ीर की दौलत का सहारा और हर ज़लील की इज़्ज़त का आसरा है। हर कमज़ोर की ताक़त वही है और हर फ़रयादी की पनाहगाह वही है। हर बोलने वाले के नतक़ को सुन लेता है और हर ख़ामोष रहने वाले के राज़ को जानता है। जो ज़िन्दा है उसका रिज़्क़ उसके ज़िम्मे है जो मर गया उसकी बाज़गष्त उसी की तरफ़ है।
ख़ुदाया! आँखों ने तुझे देखा नहीं है के तेरे बारे में ख़बर दे सकें, तू तमाम तौसीफ़ करने वाली मख़लूक़ात के पहले से है, तूने मख़लूक़ात को तन्हाई की वहषत की बिना पर नहीं ख़ल्क़ किया है और न उन्हें किसी फ़ाएदे के लिये इस्तेमाल किया है। तू जिसे हासिल करना चाहे वह आगे नहीं जा सकता है और जिसे पकड़ना चाहे वह बच कर नहीं जा सकता है। नाफ़रमानों से तेरी सल्तनत में कमी नहीं आती है और इताअत गुज़ारों से तेरे मुल्क में इज़ाफ़ा नहीं होता है जो तेरे फ़ैसले से नाराज़ हो वह तेरे हुक्म को टाल नहीं सकता है और जो तेरे अम्र से रूगरदानी करे वह तुझसे बेनियाज़ नहीं हो सकता है। हर राज़ तेरे सामने रौषन है और हर ग़ैब तेरे लिये हुज़ूर है। तू अबदी है तो तेरी कोई इन्तेहा नहीं है और तू इन्तेहा है तो तुझसे कोई छुटकारा नहीं है, तू सबकी वादागाह है तो तुझसे निजात हासिल करने की कोई जगह नहीं है। हर ज़मीन पर चलने वाले का इख़्तेयार तेरे हाथ में है और हर जानदार की बाज़गष्त तेरी ही तरफ़ है। पाक व बे नियाज़ है तू, तेरी “ाान क्या बाअज़मत है और तेरी मख़लूक़ात भी क्या अज़ीमुष्षान है और तेरी क़ुदरत के सामने हर अज़ीम “ौ किस क़द्र हक़ीर है और तेरी सल्तनत किस क़द्र पुरषिकोह है और यह सब तेरी इस ममलेकत के मुक़ाबले में जो निगाहों से ओझल है किस क़द्र मामूली है। तेरी नेमतें इस दुनिया में किस क़द्र मुकम्मल हैं और फ़िर नेमाते आख़ेरत के मुक़ाबले में किस क़द्र मुख़्तसर हैं।
(मलाएका मुक़र्रबीन) यह तेरे मलाएका हैं जिन्हें तूने आसमानों में आबाद किया है और ज़मीन से बलन्दतर बनाया है। यह तमाम मख़लूक़ात से ज़्यादा तेरी मारेफ़त रखते हैं और तुझसे ख़ौफ़ज़दा रहते हैं और तेरे क़रीबतर भी हैं। यह न असलाबे पिदर में रहे हैं और न अरहामे मादर में और न हक़ीर नुत्फ़े से पैदा किये गए हैं और न इन पर ज़माने के इन्क़ेलाबात का कोई असर है। यह तेरी बारगाह में एक ख़ास मक़ाम और मन्ज़िलत रखते हैं। इनकी तमामतर ख़्वाहिषात सिर्फ़ तेरे बारे में हैं और यह बकसरत तेरी ही इताअत करते हैं और तेरे हुक्म से हरगिज़ ग़ाफ़िल नहीं होते हैं। लेकिन इसके बावजूद अगर तेरी अज़मत की तह तक पहुंच जाएं तो अपने आमाल को हक़ीरतरीन तसव्वुर करेंगे और अपने नफ़्स की मज़म्मत करेंगे और उन्हें मालूम हो जाएगा के इन्होंने इबादत का हक़ अदा नहीं किया है और हक़क़े इताअत के बराबर इताअत नहीं की है।
तू पाक व बे नियाज है, ख़ालकीयत के एतबार से भी और इबादत के एतबार से भी। मेरी तस्बीह इस बेहतरीन बरताव की बिना पर है जो तूने मख़लूक़ात के साथ किया है। तूने एक घर बनाया है, उसमें एक दस्तरख़्वान बिछाया है। जिसमें खाने-पीने, ज़ौजियत, खि़दमत, क़स्र, नहर, ज़राअत, समर सबका इन्तज़ामक र दिया है और फिर एक दाई को इसकी तरफ़ दावत देने के लिये भेज दिया है। लेकिन लोगों ने न दाई की आवाज़ पर लब्बैक कही और न जिन चीज़ों की तरफ़ तूने रग़बत दिलाई थी राग़िब हुए और न तेरी तषवीक़ का “ाौक़ पैदा किया।
सब उस मुरदार पर टूट पड़े जिसको खाकर रूसवा हुए आर सबने इसकी मोहब्बत पर इत्तेफ़ाक़ कर लिया और ज़ाहिर है के जो किसी का भी आषिक़ हो जाता है वह “ौ उसे अन्धा बना देती है और उसके दिल को बीमार कर देती है। वह देखता भी है तो ग़ैर सलीम आंखों से और सुनता भी है तो ग़ैर समीअ कानों से। ख़्वाहिषात ने इनकी अक़्लों को पारा-पारा कर दिया है और दुनिया ने उनके दिलों को मुर्दा बना दिया है। उन्हें इससे वालहाना लगाव पैदा हो गया है और वह उसके बन्दे हो गए हैं और उनके ग़ुलाम बन गए हैं, जिनके हाथ में थोड़ी सी भी दुनिया है के जिस तरफ़ झुकती है यह भी झुक जाते हैं और जिधर वह मुड़ती है यह भी मुड़ जाते हैं, न कोई ख़ुदाई रोकने वाला उन्हें रोक सकता है और न किसी वाएज़ की नसीहत इन पर  असरअन्दाज़ होती है। जबके उन्हें देख रहे हैं जो इसी धोके में पकड़ लिये गए हैं के अब न माफ़ी का इमकान है और न वापसी का। किसी तरह इन पर वह मुसीबत नाज़िल हो गई है जिससे नावाक़िफ़ थे और फ़िराक़े दुनिया की वह आफ़त आ गई है जिसकी तरफ़ से बिल्कुल मुतमइन थे और आख़ेरत में इस सूरते हाल का सामना कर रहे हैं जिसका वादा किया गया था। अब तो उस मुसीबत का बयान भी नामुमकिन है जहां एक तरफ़ मौत का सकरात है और दूसरी तरफ़ फ़िराक़े दुनिया की हसरत। हालत यह है के हाथ पांव ढीले पड़ गए हैं और रंग उड़ गया है इसके बाद मौत की दख़ल अन्दाज़ी और बढ़ी तो वह गुफ़्तगू की राह में भी हाएल हो गई के इन्सान घरवालों के दरम्यान है उन्हें आखों से देख रहा है, कान से उनकी आवाज़ें सुन रहा है, अक़्ल भी सलामत है और होष भी बरक़रार है। यह सोच रहा है के उम्र को कहां बरबाद कर दिया है और ज़िन्दगी को कहां गुज़ारा है। उन अमवाल को याद कर रहा है जिन्हें जमा किया था और उनकी जमाआवरी में आंखें बन्द कर ली थीं के कभी वाज़ेअ रास्तों से हासिल किया और कभी मुष्तबा तरीक़ों से के सिर्फ़ इनके जमा करने के असरात बाक़ी रह गये हैं और उनसे जुदाई का वक़्त आ गया है। अब यह माल बादवालों के लिये रह जाएगा जो आराम करेंगे और मज़े उड़ाएंगे। यानी मज़ा दूसरों के लिये होगा और बोझ इसकी पीठ पर होगा लेकिन इन्सान इस माल की ज़न्जीरों में जकड़ा हुआ है और मौत ने सारे हालात को बेनक़ाब कर दिया है के निदामत से अपने हाथ काट रहा है और इस चीज़ से किनाराकष होना चाहता है जिसकी तरफ़ ज़िन्दगी भर राग़िब था। अब यह चाहता है के काष जो “ाख़्स इससे माल की बिना पर हसद कर रहा था यह माल उसके पास होता और इसके पास न होता।
इसके बाद मौत इसके जिस्म में मज़ीद दरान्दाज़ी करती है और ज़बान के साथ कानों को भी “ाामिल कर लेती है के इन्सान अपने घरवालों के दरम्यान न बोल सकता है और न सुन सकता है। हर एक के चेहरे को हसरत से देख रहा है। इनकी ज़बान की जुम्बिष को भी देख रहा है लेकिन अल्फ़ाज़ को नहीं सुन सकता है।
इसके बाद मौत और चिपक जाती है तो कानों की तरह आंखों पर भी क़ब्ज़ा हो जाता है और रूह जिस्म से परवाज़ कर जाती है। अब वह घरवालों के दरम्यान एक मुरदार होता है। जिसके पहलू में बैठने से भी वहषत होने लगती है और लोग दूर भागने लगते हैं। यह अब न किसी रोने वाले को सहारा दे सकता है और न किसी पुकारने वाले की आवाज़ पर आवाज़ दे सकता है। लोग उसे ज़मीन केे एक गढ़े तक पहुंचा देते हैं और उसे उसके आमाल के हवाले कर देते हैं के मुलाक़ातों का सिलसिला भी ख़त्म हो जाता है।
यहाँ तक के जब क़िस्मत का लिखा अपनी आख़री हद तक और अम्रे इलाही अपनी मुक़र्ररा मन्ज़िल तक पहुंच जाएगा और आख़ेरीन को अव्वलीन से मिला दिया जाएगा और एक नया हुक्मे इलाही आ जाएगा के खि़लक़त की तजदीद की जाए तो यह अम्र आसमानों को हरकत देकर षिगाफ़ता कर देगा और ज़मीन को हिलाकर खोखला कर देगा और पहाड़ों को जड़ से उखाड़कर उड़ा देगा और हैबते जलाले इलाही और ख़ौफ़े सितवते परवरदिगार से एक दूसरे से टकरा जाएंगे और ज़मीन सबको बाहर निकाल देगी और उन्हें दोबारा बोसीदगी के बाद ताज़ा हयात दे दी जाएगी और इन्तेषार के बाद जमा कर दिया जाएगा और मख़फ़ी आमाल पोषीदा अफ़आल के सवाल के लिये सबको अलग-अलग कर दिया जाएगा और मख़लूक़ात दो गिरोहों में तक़सीम हो जाएंगी। एक गिरोह मरकज़े नेमात होगा और दूसरा महले इन्तेक़ाम।
अहले इताअत को इस जवारे रहमत में सवाब और दारे जन्नत में हमेषगी का इनाम दिया जाएगा जहां के रहने वाले कूच नहीं करते हैं और न उनके हालात में कोई तग़य्युर पैदा होता है और न इन पर रन्ज व अलम तारी होता है और न उन्हें कोई बीमारी लाहक़ होती है और न किसी तरह का ख़तरा सामने आता है और न सफ़र की ज़हमत से दो-चार होना पड़ता है। लेकिन अहले मासीयत के लिये बदतरीन मन्ज़िल होगी जहां हाथ गरदन से बन्धे होंगे और पेषानियों को पैरों से जोड़ दिया जाएगा। तारकोल और आग के तराषीदा लिबास पहनाए जाएंगे। इस अज़ाब में जिसकी गर्मी “ादीद होगी और जिसके दरवाज़े बन्द होंगे और उस जहन्नम में जिसमें “ारारे भी होंगे और “ाोर व ग़ोग़ा भी, भड़कते हुए “ाोले भी होंगे और हौलनाक चीख़ें भी, न यहाँ के रहने वाले कूच करेंगे और न यहाँ के क़ैदियों से कोई फ़िदया क़ुबूल किया जाएगा और न यहाँ की बेड़ियां जुदा हो सकती हैं, न इस घर की कोई मुद्दत है जो तमाम हो जाए और न इस क़ौम की कोई अजल है जो ख़त्म कर दी जाए।
(ज़िक्रे रसूले अकरम (स0)) आपने इस दुनिया को हमेषा सग़ीर व हक़ीर और ज़लील व पस्त तसव्वुर किया है और यह समझा है के परवरदिगार ने इस दुनिया को आपसे अलग रखा है और दूसरों के लिये फ़र्ष कर दिया है तो यह आपकी इज़्ज़त और दुनिया की हेक़ारत ही की बुनियाद पर है लेहाज़ा आपने उससे दिल से किनाराकषी इख़्तेयार की और उसकी याद को दिल से बिलकुल निकाल दिया और यह चाहा के इसकी ज़ीनतें निगाहों से ओझल रहें ताके न उमदा लिबास ज़ेबे तन फ़रमाएं और न किसी ख़ास मक़ाम की उम्मीद करें। आपने परवरदिगार के पैग़ाम को पहुंचाने में सारे उज़्र तमाम कर दिये और उम्मत को अज़ाबे इलाही से डराते हुए नसीहत फ़रमाई। जन्नत की बषारत सुनाकर उसकी तरफ़ दावत दी और जहन्नम से बचने की तलक़ीन करके इसका ख़ौफ़ पैदा कराया।
(अहलेबैत (अ0)) हम नबूवत का “ाजरा, रिसालत की मन्ज़िल, मलाएका की रफ़्तो आमद की जगह, इल्म के माअदन और हिकमत के चष्मे हैं। हमारा मददगार और मोहिब हमेषा मुन्तज़िर रहमत रहता है और हमारा दुष्मन और कीनापरवर हमेषा मुन्तज़िरे लानत व इन्तेक़ामे इलाही रहता है।

(((- ताअज्जुब न करें के ख़ुदाए रहमान व रहीम अपने बन्दों के साथ इस तरह का बरताव किस तरह करेगा के यह अन्जाम उन्हीं लोगों का है जो दारे दुनिया में अल्लाह के कमज़ोर और नेक बन्दों के साथ उससे बदतर बरताव कर चुके हैं तो क्या मालिके कायनात दुनिया में इख़्तेयारात देने के बाद आख़ेरत में भी उन्हें बेहतरीन नेमतों से नवाज़ देगा और मज़लूमीन का दुनिया व आख़ेरत में कोई पुरसान हाल न होगा।? -)))

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