157- आपका इरषादे गिरामी
तमाम हम्द उस ख़ुदा के लिये है जिसने हम्द को अपने ज़िक्र का इफ़तेताहिया, अपने फ़ज़्ल व एहसान के बढ़ाने का ज़रिया और अपनी नेमतों और अज़मतों का दलीले राह क़रार दिया है।
ऐ अल्लाह के बन्दों! बाक़ी मान्दा लोगों के साथ भी ज़माने की वही रौषन रहेगी जो गुज़र जाने वाले के साथ थी। जितना ज़माना गुज़र चुका है वह पलट कर नहीं आएगा और जो कुछ उसमें है वह भी हमेषा रहने वाला नहीं, आखि़र में भी इसकी कारगुज़ारियां वही होंगी जो पहले रह चुकी हैं और इसके झण्डे एक दूसरे के अक़ब में हैं। गोया तुम क़यामत के दामन से वाबस्ता हो के वह तुम्हें धकेलकर इस तरह लिये जा रही है जिस तरह ललकारने वाला अपनी ऊंटनियों को, जो “ाख़्स अपने नफ़्स को संवारने के बजाए चीज़ों में पड़ जाता है वह तीरगियों में सरगर्दां और हलाकतों में फंसा रहता है और “ायातीन उसे सरकषियों में खींच कर ले जाते हैं और उसकी बदआमालियों को उसके सामने सज (सजा) देते हैं आगे बढ़ने वालों की आखि़री मंज़िल जन्नत है और अमदन कोताहियां करने वालों की हद जहन्नम है।
अल्लाह के बन्दों! याद रखो के तक़वा एक मज़बूत क़िला है और फ़िस्क़ व फ़ुजूर एक (कमज़ोर) चारदीवारी है के जो न अपने रहने वालों से तबाहियों को रोक सकती है और न उनकी हिफ़ाज़त कर सकती है। देखो तक़वा ही वह चीज़ है के जिससे गुनाहों का डंक काटा जाता है और यक़ीन ही से मुफ़तबाए मक़सद की कामरानियां हासिल होती हैं। ऐ अल्लाह के बन्दों। अपने नफ़्स के बारे में के जो तुम्हें तमाम नफ़्सों से ज़्यादा अज़ीज़ व महबूब है अल्लाह से डरो! उसने तुम्हारे लिये हक़ का रास्ता खोल दिया है और उसकी राहें उजागर कर दी हैं। अब या तो अनमिट बदबख़्ती होगी या दाएमी ख़ुष बख़्ती व सआदत, दारे फ़ानी से आलिमे बाक़ी के लिये तौषा मुहय्या कर लो, तुम्हें ज़ादे राह का पता दिया जा चुका है और कूच का हुक्म मिल चुका है और चल चलाओ के लिये जल्दी मचाई जा रही है, तुम ठहरे हुए सवारों के मानिन्द हो के तुम्हें यह पता नही ंके कब रवानगी का हुक्म दिया जाएगा, भला वह दुनिया को लेकर क्या करेगा जो आख़ेरत के लिये पैदा किया गया हो, और उस माल का क्या करेगा जो अनक़रीब उससे छिन जाने वाला है और उसका मज़लेमा व हिसाब उसके ज़िम्मे रहने वाला है।
अल्लाह के बन्दों! ख़ुदा ने जिस भलाई का वादा किया है उसे छोड़ा नहीं जा सकता और जिस बुराई से रोका है उसकी ख़्वाहिष नहीं की जा सकती। अल्लाह के बन्दों! उस दिन से डरो के जिसमें हमलों की जांच पड़ताल और ज़लज़लों की बोहतात होगी और बच्चे तक इसमें बूढ़े हो जाएंगे।
अल्लाह के बन्दों! यक़ीन रखो के ख़ुद तुम्हारा ज़मीर तुम्हारा निगेहबान और ख़ुद तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे निगरान हैं और तुम्हारे हमलों और सांसों की गिनती को सही-सही याद रखने वाले (करामा कातिबैन) हैं उनसे न अन्धेरी रात की अन्धयारियां छिपा सकती हैं और न बन्द दरवाज़े तुम्हें ओझल रख सकते हैं बिला “ाुबह आने वाला ‘‘कल’’ आज के दिन से क़रीब है।
‘‘आज का दिन’’ अपना सब कुछ लेकर जाएगा और ‘‘कल’’ उसके अक़ब में आया ही चाहता है। गोया तुममें से हर “ाख़्स ज़मीन के इस हिस्से पर के जहां तन्हाई की मन्ज़िल और गड्ढे का निषान (क़ब्र) है पहुंच चुका है और क़यामत तुम पर छा गई है और आख़ेरी फ़ैसला सुनने के लिये तुम (क़ब्रों से) निकल आए हो बातिल के परदे तुम्हारी आंखों से हटा दिये गये हैं और तुम्हारे हीले बहाने दब चुके हैं और हक़ीकतें तुम्हारे लिये साबित हो गई हैं और तमाम चीज़ें अपने-अपने मक़ाम की तरफ़ पलट पड़ी हैं, इबरतों से पन्द व नसीहत और ज़माने के उलटफेर से इबरत हासिल करो, और डराने वाली चीज़ों से फ़ायदा उठाओ।
ऐ अल्लाह के बन्दों! बाक़ी मान्दा लोगों के साथ भी ज़माने की वही रौषन रहेगी जो गुज़र जाने वाले के साथ थी। जितना ज़माना गुज़र चुका है वह पलट कर नहीं आएगा और जो कुछ उसमें है वह भी हमेषा रहने वाला नहीं, आखि़र में भी इसकी कारगुज़ारियां वही होंगी जो पहले रह चुकी हैं और इसके झण्डे एक दूसरे के अक़ब में हैं। गोया तुम क़यामत के दामन से वाबस्ता हो के वह तुम्हें धकेलकर इस तरह लिये जा रही है जिस तरह ललकारने वाला अपनी ऊंटनियों को, जो “ाख़्स अपने नफ़्स को संवारने के बजाए चीज़ों में पड़ जाता है वह तीरगियों में सरगर्दां और हलाकतों में फंसा रहता है और “ायातीन उसे सरकषियों में खींच कर ले जाते हैं और उसकी बदआमालियों को उसके सामने सज (सजा) देते हैं आगे बढ़ने वालों की आखि़री मंज़िल जन्नत है और अमदन कोताहियां करने वालों की हद जहन्नम है।
अल्लाह के बन्दों! याद रखो के तक़वा एक मज़बूत क़िला है और फ़िस्क़ व फ़ुजूर एक (कमज़ोर) चारदीवारी है के जो न अपने रहने वालों से तबाहियों को रोक सकती है और न उनकी हिफ़ाज़त कर सकती है। देखो तक़वा ही वह चीज़ है के जिससे गुनाहों का डंक काटा जाता है और यक़ीन ही से मुफ़तबाए मक़सद की कामरानियां हासिल होती हैं। ऐ अल्लाह के बन्दों। अपने नफ़्स के बारे में के जो तुम्हें तमाम नफ़्सों से ज़्यादा अज़ीज़ व महबूब है अल्लाह से डरो! उसने तुम्हारे लिये हक़ का रास्ता खोल दिया है और उसकी राहें उजागर कर दी हैं। अब या तो अनमिट बदबख़्ती होगी या दाएमी ख़ुष बख़्ती व सआदत, दारे फ़ानी से आलिमे बाक़ी के लिये तौषा मुहय्या कर लो, तुम्हें ज़ादे राह का पता दिया जा चुका है और कूच का हुक्म मिल चुका है और चल चलाओ के लिये जल्दी मचाई जा रही है, तुम ठहरे हुए सवारों के मानिन्द हो के तुम्हें यह पता नही ंके कब रवानगी का हुक्म दिया जाएगा, भला वह दुनिया को लेकर क्या करेगा जो आख़ेरत के लिये पैदा किया गया हो, और उस माल का क्या करेगा जो अनक़रीब उससे छिन जाने वाला है और उसका मज़लेमा व हिसाब उसके ज़िम्मे रहने वाला है।
अल्लाह के बन्दों! ख़ुदा ने जिस भलाई का वादा किया है उसे छोड़ा नहीं जा सकता और जिस बुराई से रोका है उसकी ख़्वाहिष नहीं की जा सकती। अल्लाह के बन्दों! उस दिन से डरो के जिसमें हमलों की जांच पड़ताल और ज़लज़लों की बोहतात होगी और बच्चे तक इसमें बूढ़े हो जाएंगे।
अल्लाह के बन्दों! यक़ीन रखो के ख़ुद तुम्हारा ज़मीर तुम्हारा निगेहबान और ख़ुद तुम्हारे आज़ा व जवारेह तुम्हारे निगरान हैं और तुम्हारे हमलों और सांसों की गिनती को सही-सही याद रखने वाले (करामा कातिबैन) हैं उनसे न अन्धेरी रात की अन्धयारियां छिपा सकती हैं और न बन्द दरवाज़े तुम्हें ओझल रख सकते हैं बिला “ाुबह आने वाला ‘‘कल’’ आज के दिन से क़रीब है।
‘‘आज का दिन’’ अपना सब कुछ लेकर जाएगा और ‘‘कल’’ उसके अक़ब में आया ही चाहता है। गोया तुममें से हर “ाख़्स ज़मीन के इस हिस्से पर के जहां तन्हाई की मन्ज़िल और गड्ढे का निषान (क़ब्र) है पहुंच चुका है और क़यामत तुम पर छा गई है और आख़ेरी फ़ैसला सुनने के लिये तुम (क़ब्रों से) निकल आए हो बातिल के परदे तुम्हारी आंखों से हटा दिये गये हैं और तुम्हारे हीले बहाने दब चुके हैं और हक़ीकतें तुम्हारे लिये साबित हो गई हैं और तमाम चीज़ें अपने-अपने मक़ाम की तरफ़ पलट पड़ी हैं, इबरतों से पन्द व नसीहत और ज़माने के उलटफेर से इबरत हासिल करो, और डराने वाली चीज़ों से फ़ायदा उठाओ।
158- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें रसूले ख़ुदा की बासत और क़ुरान की फ़ज़ीलत के साथ बनी उमय्या की हुकूमत का ज़िक्र किया गया है)
अल्लाह ने पैग़म्बर को उस वक़्त भेजा जब रसूलों का सिलसिला रूका हुआ था और क़ौमें गहरी नींद में मुब्तिला थीं और दीन की मुस्तहकम रस्सी के बल खुल चुके थे, आपने आकर पहले वालों की तस्दीक़ की और वह नूर पेष किया जिसकी इक़्तेदा की जाए और वह यही क़ुरान है। उसे बुलवाकर देखो और यह ख़ुद नहीं बोलेगा, मैं इसकी तरफ़ से तर्जुमानी करूंगा, याद रखो के इसमें मुस्तक़बिल का इल्म है और माज़ी की दास्तान है। तुम्हारे दर्द की दवा है और तुम्हारे उमूर की तन्ज़ीम का सामान है।
(इसका दूसरा हिस्सा) उस वक़्त कोई “ाहरी या देहाती मकान ऐसा न बचेगा जिसमें ज़ालिम ग़म व अलम को दाखि़ल न कर दें और उसमें सख़्ितयों का गुज़र न हो जाए। उस वक़्त इनके लिये न आसमान में कोई उज़्रख़्वाही करने वाला होगा और न ज़मीन में मददगार, तुमने इस अम्र के लिये नाअहलों का इन्तेख़ाब किया है और उन्हें दूसरे के घाट पर उतार दिया है और अनक़रीब ख़ुदा ज़ालिमों से इन्तेक़ाम लेगा। खाने के बदले में खाने से, पीने के बदले में पीने का यूं के इन्हें खाने के लिये ख़ेज़ाल का खाना और पीने के लिये एलवा का और ज़हर हलाहल का पीना, ख़ौफ़ का अन्दरूनी लिबास और तलवार का बाहर का लिबास होगा, यह ज़ालिम लोगों की सवारियां और गुनाहों के बारे बरादार ऊंट हैं, लेहाज़ा मैं बार-बार क़सम खाकर कहता हूं के बनी उमय्या मेरे बाद इस खि़लाफ़त को इस तरह थूक देंगे, (थूक देना पड़ेगा) जिस तरह बलग़म को थूक दिया जाता है और फिर जब तक “ाब व रोज बाक़ी हैं इसका मज़ा चखना और उससे लज़्ज़त हासिल करना नसीब न होगा।
(((- मालिके कायनात ने इन्सान की फ़ितरत के अन्दर एक सलाहियत रखी है जिसका काम है नेकियों पर सुकून व इत्मीनान का सामान फ़राहम करना और बुराइयों पर तम्बीह व सरज़न्ष करना, अर्फ़ आम में इसे ज़मीर से ताबीर किया जाता है जो उस वक़्त भी बेदार रहता है जब आदमी ग़फ़लत की नींद सो जाता है और उस वक़्त भी मसरूफ़े तम्बीह रहता है जब इन्सान मुकम्मल तौर पर गुनाहों में डूब जाता है। यह सलाहियत अपने मक़ाम पर हर इन्सान में वदीअत की गई है। फ़र्क़ सिर्फ़ यह है के अच्छाई और बुराई का इदराक भी कभी फ़ितरी होता है जैसे एहसान की अच्छाई और ज़ुल्म की बुराई, और कभी इसका ताल्लुक़ समाज, मुआषरा या दीन व मज़हब से होता है। तो जिस चीज़ को मज़हब या समाज अच्छा कह देता है ज़मीर उससे मुतमईन हो जाता है आर जिस चीज़ को बुरा क़रार दे देता है इस पर मज़म्मत करने लगता है और उस मदह या ज़म का ताअल्लुक़ फ़ितरत के एहकाम से नहीं होता है बल्कि समाज या क़ानून के एहकाम से होता है।-)))
159- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें रिआया के साथ अपने हुस्ने सुलूक का ज़िक्र फ़रमाया है)
मैं तुम्हारे हमसाये में निहायत दरजए ख़ूबसूरती के साथ रहा और जहां तक मुमकिन हुआ तुम्हारी हिफ़ाज़त और निगेहदाष्त करता रहा और कजी ज़िल्लत की रस्सी और ज़ुल्म के फन्दों से आज़ाद कराया के मैं तुम्हारी मुख़्तसर नेकी का “ाुक्रिया अदा कर रहा था और तुम्हारी उन तमाम बुराईयों को जिन्हें मैंने देख लिया था उससे चष्म पोषी कर रहा था (जो मेरी आंखों के सामने और मेरी मौजूदगी में होती थीं)।
160- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(अज़मते परवरदिगार) उसका अम्र फ़ैसलाकुन और सरापा हिकमत है और उसकी रिज़ा मुकम्मल अमान और रहमत है, वह अपने इल्म से फ़ैसला करता है और अपने हिल्म की बिना पर माफ़ कर देता है।
(हम्दे ख़ुदा) परवरदिगार तेरे लिये इन तमाम चीज़ों पर हम्द है जिन्हें तू ले लेता है या अता कर देता है और जिन बलाओं से निजात देता है या जिन में मुब्तिला कर देता है, ऐसी हम्द जो तेरे लिये इन्तेहाई पसन्दीदा हो और महबूबतरीन हो और बेहतरीन हो। (तेरे नज़दीक हर सताइष से बढ़ चढ़ कर हो) ऐसी हम्द जो सारी कायनात को ममलूक कर दे (भर दे) और जो तूने चाहा है उसकी हद तक पहुंच जाए (जहां तक चाहे पहुंच जाए), ऐसी हम्द के जिसके आगे तेरी बारगाह तक पहुंचने से न कोई हिजाब है और न उसके लिये कोई बन्दिष? ऐसी हम्द के जिसकी गिनती न कहीं पर टूटे और न इसका सिलसिला ख़त्म हो, हम तेरी अज़मत व बुज़ुर्गी की हक़ीक़त को नहीं जानते मगर इतना के तू ज़िन्दा व कारसाज़ (आलम) है न तुझे ग़ुनूदगी होती है और न नींद आती है, न तारे नज़र तुझ तक पहुंच सकता है और न निगाहें तुझे देख सकती हैं तूने नज़रों को पा लिया है और उम्रों का अहाता कर लिया है और पेषानी के बालों को पैरों (से मिलाकर) गिरफ़्त में ले लिया है, यह तेरी मख़लूक़ क्या है जो हम देखते हैं और इसमें तेरी क़ुदरत (की कारफ़रमाइयों) पर इसकी तौसीफ़ करते हैं हालांके दर हक़ीक़त वह (मख़लूक़ात) जो हमारी आंखों से ओझल है और जिस तक पहुंचने से हमारी नज़रें आजिज़ और अक़्लें दरमान्दा हैं और हमारे और जिन के दरम्यान ग़ैब के परदे हाएल हैं इससे कहीं ज़्यादा बा अज़मत है जो “ाख़्स (वसवसों से) अपने दिल को ख़ाली करके और ग़ौर व फ़िक्र (की क़ूवतों) से काम लेकर यह जानना चाहे के तूने क्योंकर अर्ष को क़ायम किया है और किस तरह मख़लूक़ात को पैदा किया है और क्योंकर आसमानों को फ़िज़ा में लटकाया है और किस तरह पानी के थपेड़ों पर ज़मीन को बिछाया है। तो उसकी आंखें थक कर और अक़्ल मग़लूब होकर और कान हैरान व सरासीमा और फ़िक्र गुमगष्ता राह होकर पलट आएगी।
इसी ख़ुत्बे का एक जुज़ यह है वह अपने ख़याल में इसका दावेदार बनता है के उसका दामने उम्मीद अल्लाह से वाबस्ता है, ख़ुदाए बरतर की क़सम वह झूठा है (अगर ऐसा ही है) तो फिर क्यों उसके आमाल में इस उम्मीद की झलक नुमायां नहीं होती जबके हर उम्मीदवार के कामों में उम्मीद की पहचान हो जाया करती है। सिवाये उस उमीद के जो अल्लाह से लगाई जाए के उसमें खोट पाया जाता है और हर ख़ौफ़ व हेरास जो (दूसरों से हो) एक मुसल्लमए हक़ीक़त रखता है, मगर अल्लाह का ख़ौफ़ ग़ैर यक़ीनी है और अल्लाह से बड़ी चीज़ों का और बन्दों से छोटी चीज़ों का उम्मीदवार होता है फिर भी जो आजिज़ी का रवैया बन्दों से रखता है वह रवय्या अल्लाह से नहीं बरतता तो आखि़र क्या बात है के अल्लाह के हक़ में इतना भी नहीं किया जाता जितना बन्दों के लिये किया जाता है क्या तुम्हें कभी इसका अन्देषा हुआ है के कहीं तुम इन उम्मीदों (के दावों ) में झूटे तो नहीं? या यह के तुम महले उम्मीद ही नहीं समझते। यूंही इन्सान अगर उसके बन्दों में से किसी बन्दे से डरता है तो जो ख़ौफ़ की सूरत इसके लिये इख़्तेयार करता है अल्लाह के लिये वैसी सूरत इख़्तेयार नहीं करता, इन्सानों का ख़ौफ़ तो उसने नक़द की सूरत में रखा है और अल्लाह का डर सिर्फ़ टाल मटोल और (ग़लत सलत) वादे यूंही जिसकी नज़रों में दुनिया अज़मत पा लेती है और उसके दिल में इसकी अज़मत व वुसअत बढ़ जाती है तो वह उसे अल्लाह पर तरजीह देता है और उसकी तरफ़ मुड़ता है और उसी का बन्दा होकर रह जाता है। तुम्हारे लिये रसूलल्लाह (स0) का क़ौल व अमल पैरवी के लिये काफ़ी है और उनकी ज़ात दुनिया के ऐब व नुक़्स और उसकी रूसवाइयों और बुराइयों की कसरत दिखाने के लिये रहनुमा है। इसलिये के इस दुनिया के दामनों को उससे समेट लिया गया और दूसरों के लिये उसकी वुसअतें मुहय्या कर दी गईं और इस (ज़ाले दुनिया की छातियों से) आपका दूध छुड़ा दिया गया अगर दूसरा नमूना चाहो तो मूसा कलीमुल्लाह हैं के जिन्होंने अपने अल्लाह से कहा के परवरदिगार! तू जो कुछ भी इस वक़्त थोड़ी बहुत नेमत भेज देेगा मैं उसका मोहताज हूं। ख़ुदा की क़सम उन्होंने सिर्फ़ खाने के लिये रोटी का सवाल किया था, चूंके वह ज़मीन का साग पात खाते थे और लाग़री और (जिस्म पर) गोष्त की कमी की वजह से उनके पेट की नाज़ुक जिल्द से घास पात की सब्ज़ी दिखाई देती थी, अगर चाहो तो तीसरी मिसाल दाऊद (अ0) की सामने रख लो, जो साहबे ज़बूर और अहले जन्नत के क़ारी हैं, वह अपने हाथ से खजूर की पत्तियों की टोकरियां बनाया करते थे और अपने साथियों से फ़रमाते थे के तुममें से कौन है जो इन्हें बेच कर मेरी दस्तगीरी करे (फिर) जो उसकी क़ीमत मिलती उससे जौ की रोटी खा लेते थे, अगर चाहो तो ईसा इब्ने मरयम (अ0) का हाल कहो के जो (सर के नीचे) पत्थर का तकिया रखते थे सख़्त और खुरदुरा लिबास पहनते थे और (खाने) में सालन के बजाय भूक और रात के चिराग़ की जगह चान्द और सर्दियों में साये के बजाये (उनके सर पर) ज़मीन के मषरिक़ व मग़रिब का साएबान होता था और ज़मीन जो घास फूस चैपायों के लिये उगाती थी वह उनके लिये फल फूल की जगह थी न उनकी बीवी थीं जो उन्हें दुनिया (के झंझटों) में मुब्तिला करतीं और न बाल बच्चे थे के उनके लिये फ़िक्र व अन्दोह का सबब बनते और न माल व मताअ था के उनकी तवज्जो को मोड़ता और न कोई तमअ थी के उन्हें रूसवा करती। उनकी सवारी उनके दोनों पांव और ख़ादिम उनके दोनों हाथ थे। तुम अपने पाक व पाकीज़ा नबी (स0) की पैरवी करो चूंके उनकी ज़ात इत्तेबाअ करने वाले के लिये नमूना औश्र सब्र करने वाले के लिये ढारस है। उनकी पैरवी करने वाला और उनके नक़्षे क़दम पर चलने वाला ही अल्लाह को सबसे ज़्यादा महबूब है जिन्होंने दुनिया को (सिर्फ़ ज़रूरत भर) चखा और उसे नज़र भर कर नहीं देखा वह दुनिया में सबसे ज़्यादा षिकम तही में बसर करने वाले और ख़ाली पेट रहने वाले थे। उनके सामने दुनिया की पेषकष की गई तो उन्होंने उसे क़ुबूल करने से इन्कार कर दिया और (जब) जान लिया के अल्लाह ने एक चीज़ को बुरा जाना है तो आप (अ0) ने भी उसे बुरा ही जाना और अल्लाह ने एक चीज़ को हक़ीर समझा है तो आपने भी उसे हक़ीर ही समझा और अल्लाह ने एक चीज़ को पस्त क़रार दिया है तो आप ने भी उसे पस्त ही क़रार दिया। अगर हम में सिर्फ़ यही एक चीज़ हो के हम उस “ौ को चाहने लगें जिसे अल्लाह और रसूल (स0) बुरा समझते हैं तो अल्लाह की नाफ़रमानी और उसके हुक्म से सरताबी के लिये यही बहुत है। रसूलल्लाह (स0) ज़मीन पर बैठकर खाना खाते थे और ग़ुलामों की तरह बैठते थे, अपने हाथ से जूती टांकते थे और अपने हाथों से कपड़ों में पेवन्द लगाते थे और बेपालान के गधे पर सवार होते थे और अपने पीछे किसी को बिठा भी लेते थे, घर के दरवाज़े पर (एक दफ़ा) ऐसा पर्दा पड़ा था जिसमें तसवीरें थें तो आपने अपनी अज़वाज में से एक को मुख़ातब करके फ़रमाया इसे मेरी नज़रों से हटा दो, जब मेरी नज़रें इस पर होती हैं तो मुझे दुनिया और इसकी आराइषें याद आ जाती हैं। आपने दुनिया से दिल हटा लिया था और उसकी याद तक अपने नफ़्स से मिटा डाली थी और यह चाहते थे के उसकी सज धज निगाहों से पोषीदा रहे ताके न उससे उम्दा उम्दा लिबास हासिल करें और न उसे अपनी मन्ज़िल ख़याल करें और न उसमें ज़्यादा क़याम की आस लगाएं। उन्होंने इसका ख़याल नफ़्स से निकाल दिया और दिल से उसे हटा दिया था और निगाहों से उसे ओझल रखा था, यूंही जो “ाख़्स किसी “ौ को बुरा समझता है तो न उसे देखना चाहता है और न उसका ज़िक्र सुनना गवारा करता है। रसूलल्लाह (स0) (के आदात व ख़साएल) में ऐसी चीज़ें हैं के वह तुम्हें दुनियां के उयूब व क़बाएह का पता देंगी जबके आप (स0) इस दुनिया में अपने ख़ास अफ़राद समेत भूके रहा करते थे और बावजूद इन्तेहाई क़र्ब मन्ज़िलत के इसकी आराइषें इनसे दूर रखी गईं। चाहे के देखने वाला अक़्ल की रौषनी में देखे के अल्लाह ने उन्हें दुनिया न देकर उनकी इज़्ज़त बढ़ाई है या अहानत की है अगर कोई यह कहे के अहानत की है तो उसने झूठ कहा है और बहुत बड़ा बोहतान बान्धा और अगर यह कहे के इज़्ज़त बढ़ाई है तो उसे यह जान लेना चाहिये के अल्लाह ने दूसरों की बे इज़्ज़ती ज़ाहिर की जबके उन्हें दुनिया की ज़्यादा से ज़्यादा वुसअत दे दी और उसका रूख़ अपने मुक़र्रबतरीन बन्दे से मोड़ रखा। पैरवी करने वाले को चाहिये के इनकी पैरवी करे और उनके निषाने क़दम पर चले और उन्हीं की मन्ज़िल में आए वरना हलाकत से महफ़ूज़ नहीं रह सकता। क्यूंकि अल्लाह ने इनको (क़ुर्ब) क़यामत की निषानी और जन्नत की ख़ुषख़बरी सुनाने वाला और अज़ाब से डराने वाला क़रार दिया है। दुनिया से आप (स0) भूके निकल खड़े हुए और आखि़रत में सलामतियों के साथ पहुंच गए। आप (स0) ने तामीर के लिये कभी पत्थर पर पत्थर नहीं रखा, यहाँ तक के आखि़रत की राह पर चल दिये और अल्लाह की तरफ़ बुलावा देने वाले की आवाज़ पर लब्बैक कही। यह अल्लाह का हम पर कितना बड़ा एहसान है के उसने हमें एक पेषरौ व पेषवा जैसी नेमत बख़्षी के जिनकी हम पैरवी करते हैं और क़दम ब क़दम चलते हैंं (इन्हीं की पैरवी में) ख़ुदा की क़सम मैंने अपनी इस क़मीज़ में इतने पैवन्द लगाए हैं के मुझे पैवन्द लगाने वाले से “ार्म आने लगी है, मुझसे एक कहने वाले ने कहा के क्या आप इसे उतारेंगे नहीं? तो मैंंने उसे कहा के मेरी (नज़रों से) दूर हो के सुबह के वक़्त ही लोगों को रात के चलने की क़द्र होती है और वह उसकी मदहा करते हैं।
(((-जब इन्सान उन्हीं मख़लूक़ात के इदराक से आजिज़ हों के सामने आ रही हैं जो इदराक व एहसास के हुदूद के अन्दर हैं तो उन मख़लूक़ात के बारे में क्या कहा जा सकता है जो इन्सानी हवास की ज़द से बाहर हैं और जिन तक अक़्ल की रसाई नहीं है और जब मख़लूक़ात की हक़ीक़त तक इन्सानी फ़िक्र की रसाई नहीं है तो ख़ालिक़ की हक़ीक़त का इरफ़ान किस तरह मुमकिन है और इन्सान इसकी हम्द का हक़ किस तरह अदा कर सकता है। इन्सान की निजात व आख़ेरत के दो बुनियादी रूकन हैं एक ख़ौफ़ और एक उम्मीद, इस्लाम ने क़दम-क़दम पर इन्हीं दो चीज़ों की तरफ़ तवज्जो दिलाई है और इन्हें ईमान और अमल का ख़ुलासा क़रार दिया है। सूरा मुबारकए हम्द जिस में सारा क़ुरान सिमटा हुआ है। इसमें भी रहमान व रहीम उम्मीद का इषारा और मालिके यौमिद्दीन ख़ौफ़ का, लेकिन अफ़सोसनाक बात यह है के इन्सान न वाक़ेअन ख़ुदा से उम्मीद रखता है और न उससे ख़ौफ़ज़दा होता है। उम्मीदवार होता तो दुआओं और इबादतों में दिल लगता के इनमें तलब ही तलब पाई जाती है और ख़ौफ़ज़दा होता तो गुनाहों से परहेज़ करता के गुनाह ही इन्सान को अज़ाबे अलीम से दो-चार कर देते हैं।
दुनिया की हर उम्मीद और इसके हर ख़ौफ़ का किरदार से नुमायां हो जाना और आख़ेरत की उम्मीद वहम का वाज़ेअ न होना इस बात की अलामत है के दुनिया इसके किरदार में एक हक़ीक़त है और आख़ेरत सिर्फ़ अलफ़ाज़ का मजमूआ और तलफ़्फ़ुज़ की बाज़ीगरी है और इसके अलावा कुछ नहीं है। वाज़ेअ रहे के पर्दे वाले वाक़ेए का ताल्लुक़ अज़वाज की ज़िन्दगी और उनके घरों से है। इसका अहलेबैत (अ0) के घर से कोई ताल्लुक़ नहीं है जिसे बाज़ रावियों ने अहलेबैत (अ0)की तरफ़ मोड़ दिया है ताके उनकी ज़िन्दगी में भी ऐष व इषरत का इसबात कर सकें। जबके अहलेबैत (अ0) की ज़िन्दगी तारीख़े इस्लाम में मुकम्मल तौर पर आईना है और हर “ाख़्स जानता है के इन हज़रात ने तमामतर इख़्तेयारात के बावजूद अपनी ज़िन्दगी इन्तेहाई सादगी से गुज़ारी है और सारा माले दुनिया राहे ख़ुदा में ख़र्च कर दिया है-)))
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