Saturday, April 23, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 181-185 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 181-185

181- आपका इरषादे गिरामी(जब आपने एक “ाख़्स को उसकी तहक़ीक़ के लिये भेजा-- जो ख़वारिज से मिलना चाहती थी और हज़रत से ख़ौफ़ज़दा थी और वह “ाख़्स पलट कर आया तो आपने सवाल किया के क्या वह लोग मुतमईन होकर ठहर गए हैं या बुज़दिली का मुज़ाहेरा करके निकल पड़े हैं, उसने कहा के वह कूच कर चुके हैं, तो आपने फ़रमाया-)

ख़ुदा इन्हें क़ौमे समूद की तरह ग़ारत कर दे, याद रखो जब नैज़ों की अनियां इनकी तरफ़ सीधी कर दी जाएंगी और तलवारें इनके सरों पर बरसने लगेंगी तो इन्हें अपने किये पर “ार्मिन्दगी का एहसास होगा। आज “ौतान ने इन्हें मुन्तषिर कर दिया है और क लवही इनसे अलग होकर बराअत व बेज़ारी का एलान करेगा। अब उनके लिये हिदायत से निकल जाना, ज़लालत और गुमराही में गिर पड़ना, राहे हक़ से रोक देना और गुमराही की मुंहज़ोरी करना ही इनके तबाह होने के लिये काफ़ी है।

182- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा

नोफ़ बकाली से रिवायत की गई है के अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने एक दिन कूफ़े में एक पत्थर पर खड़े होकर ख़ुत्बा इरषाद फ़रमाया जिसे जादह बिन हुबैरा मखज़ूमी ने नस्ब किया था और उस वक़्त आप उन का एक जबह पहने हुए थे और आपकी तलवार का पर तला भी लैफ़ ख़ुरमा का था और पैरों में लैफ़ ख़ुरमा ही की जूतियां थीं आप की पेषानी अक़दस पर सजदों के गट्टे नुमायां थे, फ़रमाया-
सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसकी तरफ़ तमाम मख़लूक़ात की बाज़गष्त और जुमला उमूर की इन्तेहा है, मैं उसकी हम्द करता हूं, उसके अज़ीम एहसान, वाज़ेअ दलाएल और बढ़ते हुए फ़ज़ल व करम पर, वह हम्द जो उसके हक़ को पूरा कर सके और उसके “ाुक्र को अदा कर सके। उसके सवाब से क़रीब बना सके और नेमतों में इज़ाफ़ा का सबब बन सके। मैं उससे मदद चाहता हूं उस बन्दे की तरह जो उसके फ़ज़ल का उम्मीदवार हो, उसके मनाफ़ेअ का तलबगार हो उसके दफ़ाए बला का यक़ीन रखने वाला हो, उसके करम का एतराफ़ करने वाला हो और क़ौल व अमल में उस पर मुकम्मल एतमाद करने वाला हो।
मैं उस पर ईमान रखता हूं उस बन्दे की तरह जो यक़ीन के साथ उसका उम्मीदवार हो और ईमान के साथ उसकी तरफ़ मुतवज्जो हो, अज़आन के साथ उसकी बारगाह में सर-ब-सुजूद हो और तौहीद के साथ उससे इख़लास रखता हो, तमजीद के साथ उसकी अज़मत का इक़रार करता हो और रग़बत व कोषिष के साथ उसकी पनाह में आया हो।
वह पैदा नहीं किया गया है के कोई उसकी इज़्ज़त में “ारीक बन जाए और उसने किसी बेटे को पैदा नहीं किया है के ख़ुद हलाक हो जाए और बेटा वारिस हो जाए, न उससे पहले कोई ज़मान व मकान था और न उस पर कोई कमी या ज़्यादती तारी होती है। उसने अपनी मोहकम तदबीर और अपने हतमी फ़ैसले की बिना पर अपने को अक़लों के सामने बिल्कुल वाज़ेअ और नुमायां कर दिया है। इसकी खि़लक़त के “ावाहेदीन में उन आसमानों की तख़लीक़ भी है जिन्हें बग़ैर सुतून के रोक रखा है और बग़ैर किसी सहारे के क़ायम कर दिया है।

(((-बनी नाजिया का एक “ाख़्स जिसका नाम ख़रैत बिन राषिद था, अमीरूल मोमेनीन (अ0) के साथ सिफ़फ़ीन में “ारीक रहा और उसके बाद गुमराह हो गया, हज़रत से कहने लगा के मैं न आपकी इताअत करूंगा और न मैं आपके पीछे नमाज़ पढ़ूंगा, आपने सबब दरयाफ़्त किया? उसने कहा कल बताउंगा, और फिर आने के बजाय तीस अफ़राद को लेकर सहराओं में निकल गया और लूट-मार का काम “ाुरू कर दिया। एक अमीरूल मोमेनीन (अ0) के चाहने वाले मुसाफ़िर को सिर्फ़ हुब्बे अली (अ0) की बुनियाद पर काफ़िर क़रार देकर क़त्ल कर दिया और एक यहूदी को आज़ाद छोड़ दिया। हज़रत ने इसकी रोक थाम के लिये ज़ियाद बिन अबी हफ़सा को 130 अफ़राद के साथ भेजा, ज़ियाद ने चन्द अफ़राद को तहे तेग़ कर दिया और ख़रैत फ़रार कर गया और कुरदों को बग़ावत पर आमादा करने लगा। आपने माक़ल बिन क़ैस रियाही को दो हज़ार सिपाहियों के साथ रवाना किया, उन्होंने ज़मीने फ़ारस तक उसका पीछा किया यहांतक के तरफ़ैन में “ादीद जंग हुई और ख़रैत नोमान बिन सहयान को उसी के हाथों फ़ना के घाट उतार दिया गया और इस फ़ित्ने का ख़ात्मा हो गया।-)))

(ख़ुदावन्दे आलम ने उन्हें पुकरातो बग़ैर कसी सुस्ती और तौक़फ़ के इताअत व फ़रमाबरदारी करते हुए लब्बैक कह उठे। अगर वह उसकी रूबूबियत का इक़रार न करते और उसके सामने सरे इताअत न झुकाते तो वह उन्हें अपने अर्ष का मक़ाम और अपने फ़रिष्तों का मस्कन और पाकीज़ा कलमों और मख़लूक़ के नेक अमलों के बलन्द होने की जगह न बनाता। अल्लाह ने उनके सितारों को ऐसी रौषन निषानियां क़रार दिया है के जिनसे हैरान व सरगर्दां एतराफ़े ज़मीन की राहों में आने जाने के लिये रहनुमाई हासिल करते हैं, अन्धेरी रात की अन्धियारियों के स्याह परदे उनके नूर की ज़ौपाषियों को नहीं रोकते और न “ाबहाए तारीक की तीरगी के परदे यह ताक़त रखते हैं के वह आसमानों में फैली हुई चान्द के नूर की जगमगाहट को पलटा देंं पाक है वह ज़ात जिस पर पस्त ज़मीन के क़ितओं और बाहम मिले हुए स्याह पहाड़ों की च्यूटियों में अन्धेरी रात की अन्धयारियां और पुरसूकून “ाब की ज़ुलमतें पोषीदा नहीं हैं और न उफ़क़ आसमान में राद की गरज उससे मख़फ़ी है और न वह चीज़ें के जिन पर बादलों की बिजलियां कौंद कर नापैद हो जाती हैं और न वह पत्ते जो टूटकर गिरते है। के जिन्हें बारिष के नछत्रों की तन्द हवाएं और मूसलाधार बारिषें उनके गिरने की जगह से हटा देती हैं। वह जानता है के बारिष के क़तरे कहां गिरेंगे और कहां ठहरेंगे और छोटी च्यूटियां कहां रेंगेंगी और कहां अपने को खींच कर ले जाएंगी मच्छरों को कौन सी रोज़ी किफ़ायत करेगी और मादा अपने पेट में क्या लिये हुए है।
तमाम हम्द उस अल्लाह के लिये है जो अर्ष व कुर्सी ज़मीन व आसमान और जिन व इन्स से पहले मौजूद था। न इन्सानी वाहमों से उसे जाना जा सकता है और न अक़्ल व फ़हम से उसका अन्दाज़ा हो सकता है। उसे कोई सवाल करने वाला (दूसरे साएलों से) ग़ाफ़िल नहीं बनाता और न बख़्षिष व अता से उसके हां कुछ कमी आती है। वह आंखों से देखा नहीं जा सकता और न किसी जगह में उसकी हदबन्दी हो सकती है। न साथियों के साथ मुत्तसिफ़ किया जा सकता है और न आज़ाअ व जवारेह की हरकत से वह पैदा करता है और न हवास से वह जाना पहचाना जा सकता है और न इन्सानों पर उसका क़यास हो सकता है। वह ख़ुदा के जिसने बग़ैर आज़ाअ व जवारेह और बग़ैर कोयाई और बग़ैर हलक़ के कोवस को हिलाए हुए मूसा अलैहिस्सलाम से बातें कीं और उन्हें अपने अज़ीम निषानियां दिखाईं ऐ अल्लाह की तौसीफ़ में रन्ज व ताब उठाने वाले अगर तू (उससे ओहदा बरा होने में) सच्चा है तो पहले जिबराईल व मीकाईल और मुक़र्रब फरिष्तों के लाव लष्कर का वसफ़ बयान कर के जो पाकीज़गी व तहारत के हिजरवी में इस आलम में सर झुकाए पड़े हैं के उनकी अक़्लें “ाषदर व हैरान हैं के इस बेहतरीन ख़ालिक़ की तौसीफ़ कर सकें। सिफ़तों के ज़रिये वह चीज़ें जानी पहचानी जाती हैं जो “ाक्ल व सूरत और आज़ा व जवारेह रखती हूँ और व हके जो अपनी हदे इन्तेहा को पहुंच कर मौत के हाथों ख़त्म हो जाएं। उस अल्लाह के अलावा कोई माबूद नही ंके जिसने अपने नूर से तमाम तारीकियों को रोषन व मुनव्वर किया और ज़ुल्मत (अदम) से हर नूर को तीरा व तार बना दिया है। अल्लाह के बन्दों! मैं तुम्हें उस अल्लाह से डरने की वसीयत करता हूँ जिसने तुमको लिबास से ढांपा और हर तरह का सामाने मईषत तुम्हारे लिये मुहैया किया अगर कोई दुनियावी बक़ा की (बुलन्दियों पर) चड़ने का ज़ीना या मौत को दूर करने का रास्ता पा सकता होता तो वह सुलेमान इब्ने दाऊद (अ0) होते के जिनके लिये नबूवत व इन्तेहाए तक़र्रब के साथ जिन व इन्स की सल्तनत क़ब्ज़े में दे दी गई थी। लेकिन ज बवह अपना आबोदाना पूरा और अपनी मुद्दते (हयात) ख़त्म कर चुके तो फ़ना की कमानों ने उन्हें मौत के तीरों की ज़द पर रख लिया। घर उनसे ख़ाली हो गए और बस्तियां उजड़ गई और दूसरे लोग उनके वारिस हो गए। तुम्हारे लिये गुज़िष्ता दौरों (के हर दौर) में इबरतें (ही इबरतें) हैं (ज़रा सोचो) तो के कहां हैं अमालक़ा और उनके बेटे और कहां हैं फ़िरऔन और उनकी औलादें, और कहां हैं असहाबे अर्रस के “ाहरों के बाषिन्दे जिन्होंने नबियों को क़त्ल किया जो पैग़म्बर के रौषन तरीक़ों को मिटाया और ज़ालिमों के तौर तरीक़ों को ज़िन्दा किया, कहां हैं वह लोग जो लष्करों को लेकर बढ़े हज़ारों को षिकस्त दी और फ़ौजों को फ़राहम करके “ाहरों को आबाद किया।
इसी ख़ुत्बे के ज़ैल में फ़रमाया है वह हिकमत की सिपर पहने होगा और उसको उसके तमाम “ाराएत व आदाब के साथ हासिल किया होगा (जो यह हैं के) हमह तन इसकी तरफ़ मुतवज्जो हो उसकी अच्छी तरह षिनाख़्त हो और दिल (अलाएक़े दुनिया से) ख़ाली हो चुनान्चे वह उसके नज़दीक उसी की गुमषुदा चीज़ और उसी की हाजत व आरज़ू है के जिसका वह तलबगार व ख़्वास्तगार है। वह उस वक़्त (नज़रों से ओझल होकर) ग़रीब व मुसाफ़िर होगा के जब इस्लामे आलम ग़ुरबत में और मिस्ल उस ऊँट के होगा जो थकन से अपनी दुम ज़मीन पर मारता हो और गर्दन का अगला हिस्सा ज़मीन पर डाले हुए हो। वह अल्लाह की बाक़ीमान्दा हुज्जतों का बक़िया और अम्बिया के जानषीनों में से एक वारिस व जानषीन है। इसके बाद हज़रत ने फ़रमाया- ऐ लोगों! मैंने तुम्हें इसी तरह नसीहतें की हैं जिस तरह की अम्बिया अपनी उम्मतों को करते चले आए हैं और उन चीज़ों को तुम तक पहुंचाया है जो औसिया बाद वालों तक पहुंचाया किये हैं मैंने तुम्हें अपने ताज़ियाने से अदब सिखाना चाहा मगर तुम सीधे न हुए और ज़जर व तौबीह से तुम्हें हंकाया लेकिन तुम एकजा न हुए। अल्लाह तुम्हें समझे, क्या मेरे अलावा किसी और इमाम के उम्मीदवार हो जो तुम्हें सीधी राह पर चलाए और सही रास्ता दिखाए। देखो! दुनिया की तरफ़ रूख़ करने वाली चीज़ों ने जो रूख़ किये हुए थीं पीठ फिराई, और जो पीठ फिराए हुए थे उन्होंने रूख़ कर लिया। अल्लाह के नेक बन्दों ने (दुनिया से) कूच करने का तहैया कर लिया और फ़ना होने वाली थोड़ी सी दुनिया हाथ से देकर हमेषा रहने वाली बहुत सी आख़ेरत मोल ले ली। भला हमारे उनभाई बन्दों को कहा जिन के ख़ून सिफ़्फ़ीन में बहाए गए उससे क्या नुक़सान पहुंचा?)
आख़ेरत के अज्रे कसीर के मुक़ाबले में जो फ़ना होने वाला नहीं है, हमारे वह ईमानी भाई जिन का ख़ून सिफ़फ़ीन के मैदान में बहा दिया गया उनका नुक़सान हुआ है अगर वह आज ज़िन्दा नहीं हैं के दुनिया के मसाएब के घूंट पीएं और गन्दे पानी पर गुज़ारा करें, वह ख़ुदा की बारगाह में हाज़िर हो गए और उन्हें इनका मुकम्मल अज्र मिल गया, मालिक ने उन्हें ख़ौफ़ के बाद अमन की मन्ज़िल में वारिद कर दिया है।

कहां हैं मेरे वह भाई जो सीधे रास्ते पर चले और हक़ की राह पर लगे रहे। कहां हैं अम्मार? कहां हैं इब्ने इतेहान? कहां हैं ज़ुल मषहादीन? कहां हैं उनके जैसे ईमानी भाई जिन्होंने मौत का अहद व पैमान बान्ध लिया था और जिनके सर फ़ाजिरों के पास भेज दिये गए।
(यह कहकर आपने महासन “ारीफ़ पर हाथ रखा और तावीरे गिरया फ़रमाते रहे इसके बाद फ़रमाया)
आह! मेरे उन भाइयों पर जिन्होंने क़ुरान की तिलावत की तो उसे मुस्तहकम किया और फ़राएज़ पर ग़ौर व फ़िक्र किया तो उन्हें क़ायम किया (अदा किया), सुन्नतों को ज़िन्दा बनाया और बिदअतों को मुर्दा बनाया, उन्हें जेहाद के लिये बुलाया गया तो लब्बैक कही और अपने क़ाएद पर एतमाद किया तो उसका इत्तेबाअ भी किया।

(इसके बाद बुलन्द आवाज़ से पुकार कर फ़रमाया) जेहाद, जेहाद ऐ बन्दगाने ख़ुदा, आगाह हो जाओ के मैं आज अपनी फ़ौज तय्यार कर रहा हूं, अगर कोई ख़ुदा की बारगाह की तरफ़ जाना चाहता है तो निकलने के लिये तैयार हो जाए।

नोफ़ का बयान है के इसके बाद हज़रत ने दस हज़ार का लष्कर इमाम हसन (अ0) के साथ, दस हज़ार क़ैस बिन साद के साथ, दस हज़ार अबू अयूब अन्सारी के साथ और इसी तरह मुख़तलिफ़ तादाद में मुख़तलिफ़ अफ़राद के साथ तैयार किया और आपका मक़सद दोबारा सिफ़फ़ीन की तरह कूच करने का था लेकिन नौचन्दा जुमा आने से पहले ही आपको इब्ने मुल्जिम ने ज़ख़्मी कर दिया और इस तरह सारा लष्कर पलट गया और हम सब इन चैपायों की मानिन्द हो गये जिनका हंकाने वाला गुम हो जाए और उन्हें चारों तरफ़ से भेड़िये उचक लेने की फ़िक्रें हों।

183-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(क़ुदरते ख़ुदा फ़ज़ीलते क़ुरान और वसीयते तक़वा के बारे में)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जो बग़ैर देखे भी पहचाना हुआ है और बग़ैर किसी तकान के भी ख़ल्क़ करने वाला है। उसने मख़लूक़ात को अपनी क़ुदरत से पैदा किया और अपनी इज्ज़त की बिना पर उनसे मुतालेबा-ए-अबदीयत किया। वह अपने जूद व करम में तमाम अज़माए आलम से बालातर है। उसी ने इस दुनिया में अपनी मख़लूक़ात को आबाद किया है और जिन व इन्स की तरफ़ अपने रसूल भेजे हैं ताके वह निगाहों से परदा उठा दें और नुक़सानात से आगाह कर दें, मिसालें बयान कर दें और उयूब से बाख़बर कर दें। सेहत व बीमारी के तग़य्युरात से इबरत दिलाने का सामान करें और हलाल व हराम और इताअत करने वालों के लिये मुहय्या “ाुदा अज्र और नाफ़रमानों के लिये अज़ाब से आगाह कर दें। मैं उसकी ज़ाते अक़दस की इसी तरह हम्द करता हूं जिस तरह उसने बन्दों से मुतालबा किया है और हर “ौ की एक मिक़दार मुअय्यन है और हर क़द्र की एक मोहलत रखी है और हर तहरीर की एक मेयार मुअय्यन की है। देखो क़ुरान अम्र करने वाला भी है और रोकने वाला भी। वह ख़ामोष भी है और गोया भी, वह मख़लूक़ात पर परवरदिगार की हुज्जत है।
लोगों से अहद लिया गया है और उनके नफ़्सों को उसका पाबन्द बना दिया गया है। मालिक ने उसके नूर को तमाम बनाया है और उसके दीन को कामिल क़रार दिया है। अपने पैग़म्बर को उस वक़्त अपने पास बुलाया है ज बवह उसके एहकाम के ज़रिये लोगों को हिदायत कर चुके थे लेहाज़ा परवरदिगार की अज़मत का एतराफ़ इस तरह करो जिस तरह उसने अपनी अज़मत का ऐलान किया है के उसने दीन की किसी बात को मख़फ़ी नहीं रखा है और कोई ऐसी पसन्दीदा या न पसन्दीदा बात नहीं छोड़ी है जिसके लिये वाज़ेअ निषाने हिदायत न बता दिया हो या कोई मोहकम आयत न नाज़िल कर दी हो जिसके ज़रिये रोका जाए या दावत दी जाए। उसकी रिज़ा और नाराज़गी मुस्तक़बिल में भी वैसी ही रहेगी जिस तरह वक़्ते नुज़ूल थी। और यह याद रखो के वह तुमसे किसी ऐसी बात पर राज़ी न होगा जिस पर पहले वालों से नाराज़ हो चुका है और न किसी ऐसी बात से नाराज़ होगा जिस पर पहले वालों से राज़ी रह चुका है। तुम बिल्कुल वाज़ेअ निषाने क़दम पर चल रहे हो और उन्हीं बातों को दोहरा रहे हो जो पहले वाले कह चुके हैं। उसने तुम्हें दुनिया की ज़हमतों से बचा लिया है और तुम्हें “ाुक्रे ख्ुा़दा पर आमादा किया है और तुम्हारी ज़बानों से ज़िक्र का मुतालबा किया है।
तुम्हें तक़वा की नसीहत की है और उसे अपनी मर्ज़ी की हद आखि़र क़रार दिया है और यही मख़लूक़ात से उसका मुतालेबा है लेहाज़ा उससे डरो जिसकी निगाह के सामने हो और जिसके हाथों में तुम्हारी पेषानी है और जिसके क़ब्ज़ए क़ुदरत में करवटें बदल रहे हो। और अगर किसी बात पर पर्दा डालना चाहो तो वह जानता है और अगर एलान करना चाहो तो वह लिख लेता है और तुम्हारे ऊपर मोहतरम कातिबे आमाल मुक़र्रर कर दिये हैं जो किसी हक़ को साक़ित नहीं कर सकते हैं और किसी बातिल को सब्त नहीं कर सकते हैं। और याद रखो के जो “ाख़्स भी तक़वाए इलाही इख़्तेयार करता है परवरदिगार उसके लिये फ़ित्नों से बाहर निकल जाने का रास्ता बना देता है और उसे तारीकियों में नूर अता कर देता है। उसके नफ़्स के तमाम मुतालबात के दरम्यान दाएमी ज़िन्दगी अता करता है और करामत की मन्ज़िल में नाज़िल करता है। उस घर में जिसको अपने लिये पसन्द फ़रमाया है। जिसका साया उसका अर्ष है और जिसका नूर इसकी ज़िया है। इसके ज़ायेरीने मक्का हैं और इसके रफ़क़ाए। अब अपनी बाज़गष्त की तरफ़ सबक़त करो और मौत से पहले सामान मुहैया कर लो के अनक़रीब लोगों की उम्मीदें मुन्क़ता हो जाने वाली हैंं और मौत का फन्दा गले में पड़ जाने वाला है जब तौबा का दरवाज़ा भी बन्द हो जाएगा, अभी तुम उस मन्ज़िल में हो जिसकी तरफ़ पहले वाले लौट कर आने की आरज़ू कर रहे हैं और तुम मुसाफ़िर हो और इस घर से सफ़र करने वाले हो जो तुम्हारा वाक़ेई घर नहीं है। तुम्हों कूच की इत्तेलाअ दी जा चुकी है और ज़ादे राह इकट्ठा करने का हुक्म दिया जा चुका है और यह याद रखो के यह ज़म नाज़ूक  जिल्द आतिषे जहन्नुम को बरदाष्त नहीं कर सकती है। लेहाज़ा ख़ुदारा अपने नफ़्सों पर रहम करो के तुम इसे दुनिया के मसाएब में आज़मा चूके हो। क्या तुमने नहीं देखा है के तुम्हारा क्या आलम होता है जब एक कांटा चुभ जाता है या एक ठोकर लगने से ख़ून निकल आता है, या जलती हुई रेत तपने लगती है (तपिष से जलने पर किस तरह बेचैन होकर चीख़ता है) तो फिर उस वक़्त क्या होगा जब तुम जहन्नुम के दो तबक़ों के दरम्यान होगे। दहकते हुए पत्थरों के दहकते तबक़ों में और “ायातीन के हमसाये में। क्या तुम्हें यह मालूम है के मालिक (दारोग़ाए जहन्नम) जब आग पर ग़ज़बनाक होता है तो उसके अजज़ा एक दूसरे से टकराने लगते हैं और जब इसे झिड़कता है तो वह घबराकर (तिलमिलाकर) दरवाज़ों के दरम्यान उछलने लगती है।
ऐ पीरे कहन साल जिस पर बढ़ापा छा चुका है। उस वक़्त तेरा क्या आलम होगा जब आतिष के तौक़ गरदन की हड्डियों में पेवस्त हो जाएंगे और हथकड़ियां हाथों में गड़कर कलाइयों का गोष्त तक खा जाएंगी।

अल्लाह के बन्दों! अल्लाह को याद करो उस वक़्त जबके तुम सेहत के आलम में हो क़ब्ल इसके के बीमार हो जाओ और वुसअत के आलम में क़ब्ल इसके के तंगी का षिकार हो जाओ अपनी गर्दनों को आतिषे जहन्नम से आज़ाद कराने की फ़िक्र करो क़ब्ल इसके के वह इस तरह गिरवीदा हो जाएं के फिर चढ़ाई न जा सकें। अपनी आंखों को बेदार रखो अपने षिकम को लाग़र बनाओ और अपने पैरों को राहे अमल में इस्तेमाल करो। अपने माल को ख़र्च करो और अपने जिस्म को अपनी रूह पर क़ुरबार कर दो। ख़बरदार इस राह में बुख़ल न करना के परवरदिगार ने साफ़ साफ़ फ़रमा दिया है के ‘‘अगर तुम अल्लाह की नुसरत करोगे तो अल्लाह भी तुम्हारी मदद करेगा और तुम्हारे क़दमों को सिबात इनायत फ़रमाएगा’’ उसने यह भी फ़रमा दिया है के ‘‘कौन है जो परवरदिगार को बेहतरीन क़र्ज़ दे ताके वह उसे दुनिया में चैगुना बना दे और इसके लिये बेहतरीन जज़ा है’’ तो उसने तुमसे कमज़ोरी की बिना पर नुसरत का मुतालबा नहीं किया है और न ग़ुरबत की बिना पर क़र्ज़ मांगा है। जबके ज़मीन व आसमान के सारे ख़ज़ाने उसी की मिल्कियत हैं और वह ग़नी हमीद है’’। वह चाहता है के तुम्हारा इम्तेहान ले के तुम में हसन अमल के एतबार से सबसे बेहतरीन कौन है। अब अपने आमाल के साथ सबक़त करो ताके अल्लाह के घर में उसके हमसाये के साथ ज़िन्दगी गुज़ारो। जहां मुरसलीन की रिफ़ाक़त होगी और मलाएका ज़ियारत करेंगे और कान जहन्नुम की आवाज़ सुनने से भी महफ़ूज़ रहेंगे और बदन किसी तरह की तकान और ताब से भी दो-चार न होंगे। ‘‘यही वह फ़ज़्ले ख़ुदा है के जिसको चाहता है इनायत कर देता है और अल्लाह बेहतरीन फ़ज़्ल करने वाला है।’’
मैं वह कह रहा हूं जो तुम सुन रहे हो। इसके बाद अल्लाह ही मददगार है मेरा भी और तुम्हारा भी और वही हमारे लिये काफ़ी है और वही बेहतरीन कारसाज़ है।

184-आपका इरषादे गिरामी(जो आपने बुर्ज में मसहरे ताई ख़ारेजी से फ़रमाया जब यह सुना के वह कह रहा है के ख़ुदा के अलावा किसी को फ़ैसले का हक़ नहीं है)

ख़ामोष हो जा। ख़ुदा तेरा बुरा करे ऐ टूटे हुए दांतों वाले। ख़ुदा “ााहिद है के जब हक़ का ज़हूर हुआ था उस वक़्त तेरी “ाख़्िसयत कमज़ोर और तेरी आवाज़ बेजान थी। लेकिन जब बातिल की आवाज़ बलन्द हुई तो तू बकरी की सींग की तरह उभर कर मन्ज़रे आम पर आ गया।
(((-यह एक ख़ारेजी “ााएर था जिसने मौलाए कायनात के खि़लाफ़ यह आवाज़ बलन्द की के आपने तहकीम को क़ुबूल करके ग़ैरे ख़ुदा को हकम बना दिया है और इस्लाम में अल्लाह के अलावा किसी की हाकमीयत का कोई तसव्वुर नहीं है
हज़रत इमाम आलीमक़ाम (अ0) ने इस फ़ित्ने के दूररस असरात का लेहाज़ करके सख़्त तरीन लहजे में जवाब दिया और क़ाएल की औक़ात का एलान कर दिया के “ाख़्स बातिल परस्त और हक़ बेज़ार है। वरना उसे इस अम्र का अन्दाज़ा होता के किताबे ख़ुदा से फ़ैसला कराना ख़ुदा की हाकमीयत का इक़रार है इन्कार नहीं है। हाकमीयते ख़ुदा के मुन्किर अम्र व आस जैसे अफ़राद हैं जिन्होंने किताबे ख़ुदा को नज़र अन्दाज़ करके सियासी चालों से फ़ैसला कर दिया और दीने ख़ुदा को यकसर नाक़ाबिले तवज्जो क़रार दे दिया -)))
185-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें हम्दे ख़ुदा, सनाए रसूल (स0) और बाज़ मख़लूक़ात का तज़किरा है)

सारी तारीफ़ उस अल्लाह के लिये है जिसे न हवास पा सकते हैं और न मकान घेर सकते हैं, न आंखे उसे देख सकती हैं और न परदे उसे छिपा सकते हैं उसने अपने क़दीम होने की तरफ़ मख़लूक़ात के हादिस होने से रहनुमाई की है और उनके वजूद बाद अज़ अदम को अपने वजूदे अज़ल का सबूत बना दिया है और इनकी बाहेमी मुषाबेहत से अपने बेमिसाल होने का इज़हार किया है। वह अपने वादे में सच्चा है और अपने बन्दों पर ज़ुल्म करने से अजल व अरफ़ा है। उसने लोगांे में अद्ल का क़याम किया है और फ़ैसलों पर मुकम्मल इन्साफ़ से काम लिया है। अषयाअ के हदूस से अपनी अज़लीयत पर इस्तेदलाल किया है और इन पर आजिज़ी का निषान लगाकर अपनी क़ुदरते कामेला का असबात किया है। अषयाअ के जबदी फ़ना व अदम से अपने दवाम का पता दिया है। वह एक है लेकिन अदद के एतबार से नहीं, दाएमी है लेकिन मुद्दत के एतबार से नहीं और क़ाएम है लेकिन किसी के सहारे नहीं। ज़ेहन उसे क़ुबूल करते हैं लेकिन हवास की बिना पर नहीं और “ााहदात उसकी गवाही देते हैं लेकिन इसकी बारगाह में पहुंचने के बाद नहींं। औहाम इसका अहाता नहीं कर सकते हैं बल्कि वह उनके लिये उन्हींंं के ज़रिये रौषन हुआ है और उन्हीं के ज़रिये इनके क़ब्ज़े में आने से इन्कार कर दिया है और इसका हकम भी उन्हीं को ठहराया है। वह एतबार से बड़ा नहीं है के उसके एतराफ़ ने फैल कर इसके जिस्म को बड़ा बना दिया है और न ऐसा अज़ीम है के उसकी जसामत ज़्यादा हो और उसने उसके जसद को अज़ीम बना दिया हो, वह अपनी “ाान में कबीर और अपनी सल्तनत में अज़ीम है।
और मैं गवाही देता हूं के हज़रत मोहम्मद उसके बन्दे और मुख़लिस रसूल और पसन्दीदा अमीन हैं। अल्लाह उन पर रहमत नाज़िल करे। उसने उन्हें नाक़ाबिले इन्कार दलाएल, वाज़ेअ कामयाबी और नुमायां रास्ते के साथ भेजा है और उन्होंने उसके पैग़ाम को वाषगाफ़ अन्दाज़ में पेष कर दिया है और लोगों को सीधे रास्ते की रहनुमाई कर दी है। हिदायत के निषानात क़ायम कर दिये हैं और रोषनी के मिनारे इस्तेवार कर दिये है। इस्लाम की रस्सियों को मज़बूत बना दिया है और ईमान के बन्धनों को मुस्तहकम कर दिया है।
अगर यह लोग इसकी अज़ीम क़ुदरत और वसीअ नेमत में ग़ौर व फ़िक्रर करते तो रास्ते की तरफ़ वापस आ जाते और जहन्नम के अज़ाब से ख़ौफ़ज़दा हो जाते। लेकिन मुष्किल यह है के इनके दिल मरीज़ हैं और इनकी आंखें कमज़ोर हैं। क्या यह एक छोटी सी मख़लूक़ को भी नहीं देख रहे हैं के उसने किस तरह उसकी तख़लीक़ को मुस्तहकम और इसकी तरकीब को मज़बूत बनाया है। इस छोटे से जिस्म में कान और आंखें सब बना दी हैं और इसमें हड्डियां और खाल भी दुरूस्त कर दी है।
ज़रा इस च्यूंटी के छोटे से जिस्म और उसकी लतीफ़ “ाक्ल व सूरत की बारीकी की तरफ़ नज़र करो जिसका गोषाए चष्म से देखना भी मुष्किल है और फ़िक्रों की गिरफ़्त में आना भी दुष्वार है, किस तरह ज़मीन पर रेंगती है और किस तरह अपने रिज़्क़ की तरफ़ लपकती है, दाने को अपने सूराख़ की तरफ़ ले जाती है और फिर वहां मरकज़ पर महफ़ूज़ कर देती है। गर्मी में सर्दी का इन्तेज़ाम करती है और तवानाई के दौर में कमज़ोरी के ज़माने का बन्दोबस्त करती है। इसके रिज़्क़ की कफ़ालत की जा चुकी है और इसी के मुताबिक़ उसे बराबर रिज़्क़ मिल रहा है।

(((-एक छोटी सी मख़लूक़ च्यूंटी में यह दूरअन्देषी और इस क़द्र तन्ज़ीम व तरतीब और एक अषरफ़ुल मख़लूक़ात में इस क़द्र ग़फ़लत और तग़ाफ़िल किस क़द्र हैरत अंगेज़ है और उससे ज़्यादा हैरत अंगेज़ क़िस्साए जनाबे सुलेमान है जहां च्यूंटी ने लष्करे सुलेमान को देखकर आवाज़ दी के फ़ौरन अपने अपने सूराख़ों में दाखि़ल हो जाओ के कहीं लष्करे सुलेमान तुम्हें पामाल न कर दे और उसे एहसास भी न हो। गोया के एक च्यूंटी के दिल में क़ौम का इस क़द्र दर्द है और उसे सरदारे क़ौम होने के एतबार से इस क़द्र ज़िम्मेदारी का एहसास है के क़ौम तबाह न होने पाए और आज आलम इस्लाम व इन्सानियत इस क़द्र तग़ाफ़ुल का षिकार हो गया है के किसी के दिल में क़ौम का दर्द नहीं है बल्कि हक्काम क़ौम के कान्धों पर अपने जनाज़े उठा रहे हैं और उनकी क़ब्रों पर अपने ताजमहल तामीर कर रहे हैं।-)))
न एहसान करने वाला ख़ुदा उसे नज़र अन्दाज़ करता है और न साहेबे जज़ा व अता उसे महरूम रखता है चाहे वह ख़ुष्क पत्थर के अन्दर हो या जमे हुए संगे ख़ारा के अन्दर। अगर तुम उसकी ग़िज़ा को पस्त व बलन्द नालियों और उसके जिस्म के अन्दर षिकम की तरफ़ झुके हुए पस्लियों के किनारों और सर में जगह पाने वाले आंख और कान को देखोगे तो तुम्हें वाक़ेअन इसकी तख़लीक़ पर ताअज्जुब होगा और इसकी तौसीफ़ से आजिज़ हो जाओगे। बलन्द व बरतर है वह ख़ुदा जिसने इस जिस्म को उसके पैरों पर क़ायम किया है और उसकी तामीर इन्हीं सुतूनों पर खड़ी की है। न इसकी फ़ितरत (बनाने में) में किसी ख़ालिक़ ने हिस्सा लिया है और न इसके तख़लीक़ में किसी क़ादिर ने कोई मदद की है। और अगर तुम फ़िक्रर के तमाम रास्तों को तय करके इसकी इन्तेहा तक पहुंचना चाहोगे तो एक ही नतीजा हासिल होगा के जो च्यूंटी का ख़ालिक़ है वही दरख़्त का भी परवरदिगार है। इसलिये के हर एक तख़लीक़ में यही बारीकी है और हर जानदार का दूसरे से निहायत दरजाए बारीक ही इख़तेलाफ़ है। इसकी बारगाह में अज़ीम व लतीफ़, सक़ील व ख़फ़ीफ़, क़वी व ज़ईफ़ सब एक ही जैसे हैं।
यही हाल आसमान और फ़िज़ा और हवा और पानी का है, के चाहो “ाम्स व क़मर को देखो या नबातात व “ाजर को, पानी और पत्थर पर निगाह करो या “ाबो रोज़ की आमद व रफ़्त पर, दरयाओं के बहाव को देखो या पहाड़ों की कसरत और च्यूंटियों के तूलवार तफ़ाअ को, लुग़ात के इख़तेलाफ़ को देखो या ज़बानों के इफ़तेराक़ को, सब उसकी क़ुदरते कामेला के बेहतरीन दलाएल हैं। हैफ़ है उन लोगों पर जिन्होंने तक़दीर साज़  से इन्कार किया है और तदबीर करने वाले से मुकर गए। उनका ख़याल है के सब घास फूस की तरह हैं के बग़ैर खेती करने वाले के उग आए हैं और बग़ैर सानेअ के मुख़तलिफ़ “ाक्लें इख़्तेयार कर ली हैं। हालांके इन्होने इस दावा में न किसी दलील का सहारा लिया है और न ही अपने अक़ाएद की कोई तहक़ीक़ की है वरना यह समझ लेते के न बग़ैर बानी के इमारत हो सकती है और न बग़ैर मुजरिम के जुर्म हो सकता है।
और अगर तुम चाहो तो यही बातें टिड्डी के बारे में कही जा सकती हैं के इसके अन्दर दो सुर्ख़ सुर्ख़ आंखें पैदा की हैं और चान्द जैसे दो हलक़ों में आंखों के चिराग़ रौषन कर दिये हैं। छोटे-छोटे कान बना दिये हैं और मुनासिब सा दहाना खोल दिया है लेकिन इसके लिबास को क़वी बना दिया है। इसके दो तेज़ दांत हैं जिनसे पत्तियों को काटती है और दो पैर दनदानावार हैं जिनसे घास वग़ैरा को काटती है। काष्तकार अपनी काष्त के लिये इनसे ख़ौफ़ज़दा रहते हैं लेकिन इन्हें हंका नहीं सकते हैं चाहे किसी क़द्र ताक़त क्यों न जमा कर लें। यहां तक के वह खेतियों पर जस्त व ख़ेज़ करते हुए हमलावर हो जाती हैं और अपनी ख़्वाहिष पूरी कर लेती हैं। जबके उस का कुल वजूद एक बारीक उंगली से ज़्यादा नहीं है।
पस बा-बरकत है वह ज़ाते अक़दस जिसके सामने ज़मीन व आसमान की तमाम मख़लूक़ात परग़बत या नजबदराकराह सर-ब’सुजूद रहती हैं।
उसके लिये चेहरा और रुख़सार को ख़ाक पर रखे हुए हैं और अज्ज़ व इन्केसार के साथ इसकी बारगाह में सरापा इताअत हैं और ख़ौफ़ व दहषत से अपनी ज़माम इख़्तेयार उन्हीं के हवाले किये हुए हैं। परिन्दे उसके अम्र के ताबे हैं के वह उनके परों और सांसों का “ाुमार रखता है और उनके परों को तरी या ख़ुष्की में जमा दिया करता है, इनका फ़ौत मुक़र्रर कर दिया है और इनकी जिन्स का एहसा कर लिया है के यह कव्वा है वह अक़ाब है यह कबूतर है वह “ाुतरमुर्ग़ है, हर परिन्दे को उसके नाम से क़याम वजूद में दावत दी है और हर एक की रोज़ी की केफ़ालत की है। संगीन क़िस्म के बादल पैदा किये तो उनसे मूसलाधार पानी बरसा दिया और इसकी तक़सीमात का हिसाब भी रखा। ज़मीन को ख़ुष्की के बाद तर कर दिया और इसके नबातात को बन्जर हो जाने के बाद दोबारा उगा दिया।
(((- दरहक़ीक़त घास फूस के बारे में भी यह तसव्वुर खि़लाफ़े अक़्ल है के इसकी तख़लीक़ बग़ैर किसी ख़ालिक़ के हो गई है, लेकिन यह तसव्वुर सिर्फ़ इस लिये पैदा कर लेता है के इसकी हिकमत और मसलहत से बाख़बर नहीं है और यह ख़याल करता है के इस बरसात ने पानी के बग़ैर किसी तरतीब व तन्ज़ीम के उगा दिया है और इसके बाद इस तख़लीक़ पर सारी कायनात का क़यास करने लगता है। हालांके उसे कायनात की हिकमत व मसलहत को देखकर यह फ़ैसला करना चाहिये था के तख़लीक़े कायनात के बाज़ इसरार तो वाज़ेह भी हो गए हैं लेकिन तख़लीक़े नबातात का तो कोई राज़ वाज़ेअ नहीं हो सका है और यह इन्सान की इन्तेहाई जेहालत है के वह इस क़द्र हक़ीर और मामूली मख़लूक़ात की हिकमत व मसलेहत से भी बाख़बर नहीं है और हौसला इस क़दर बलन्द है के मालिके कायनात से टक्कर लेना चाहता है। और एक लफ़्ज़ में इसके वजूद का ख़ात्मा कर देना चाहता है-)))

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