Wednesday, April 20, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 165-171 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 165-171

165-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(जिसमें मोर की अजीब व ग़रीब खि़लक़त का तज़किरा किया गया है)
अल्लाह ने अपनी तमाम मख़लूक़ात को अजीब व ग़रीब बनाया है चाहे वह ज़ी हयात हों या बेजान, साकिन हों या मुतहर्रिक और इन सब के ज़रिये अपनी लतीफ़ सनअत और अज़ीम क़ुदरत के “ावाहिद क़ायम कर दिये हैं जिनके सामने अक़्लें बकमाले एतराफ़ व तस्लीम सर ख़म किये हुए हैं और फिर हमारे कानों में उसकी वहदानियत के दलाएल।
इन मुख़तलिफ़ सूरतों के परिन्दों की तख़लीक़ की “ाक्ल में गूंज रहे हैं जिन्हें ज़मीन के गड्ढों, दरों के षिगाफ़ों, पहाड़ों की बलन्दियों पर आबाद किया है जिनके पर मुख़्तलिफ़ क़िस्म के और जिनकी हैसियत जुदागाना अन्दाज़ की है उन्हें तसख़ीर की ज़माम के ज़रिये हरकत दी जा रही है और वह अपने परों को वसीअ फ़िजा के रास्तों और कुषादा हवा की वुसअतों में फड़फड़ा रहे हैं। उन्हें आलमेे अदम से निकाल कर अजीब व ग़रीब ज़ाहेरी सूरतों में पैदा किया है और गोष्त व पोस्त में ढके हुए जोड़ों के सरों से उनके जिस्मों की साख़्त क़ायम की है। बाज़ को उनके जिस्म की संगीनी ने हवा में बलन्द होकर तेज़ परवाज़ से रोक दिया है और वह सिर्फ़ ज़रा ऊंचे होकर परवाज़ कर रहे हैं और फिर अपनी लतीफ़ क़ुदरत और दक़ीक़ सनअत के ज़रिये उन्हें मुख़तलिफ़ रंगों के साथ मुनज़्ज़म व मुरत्तब किया है के बाज़ एक ही रंग में डूबे हुए हैं के दूसरे रंग का “ााएबा भी नहीं है और बाज़ एक रंग में रंगे हैं लेकिन इनके गले का तौक़ दूसरे रंग का है।
(ताउस) इन सब में अजीब तरीन खि़लक़त मोर की है जिसे मोहकम तरीन तवाज़ुन के सांचे में ढाल दिया है और उसके रंगों में हसीन तरीन तंज़ीम क़ायम की है उसे वह रंगीन पर दिये हैं जिनकी जड़ों को एक दूसरे से जोड़ दिया है और वह दम दी है जो दूर तक खींचती चली जाती है। जब वह अपनी मादा का रूख़ करता है तो उसे फैला लेता है और अपने सर के ऊपर इस तरह साया फ़िगन कर लेता है जैसे मक़ामे दारैन की किष्ती का बादबान जिसे मल्लाह इधर उधर मोड़ रहा हो। वह अपने रंगों पर इतराता है और इसकी जुम्बिषों के साथ झूमने लगता है अपनी मादा से इस तरह जफ़ती खाता है जिस तरह मुर्ग़ और उसे इस तरह हामेला बनाता है जिस तरह ख़ुष व हैजान में भरे हुए जानवर। मैं इस मसले में तुम्हें मुषाहेदे के हवाले कर रहा हूँ। न उस “ाख़्स की तरह जो किसी कमज़ोर सनद के हवाले कर दे और अगर गुमान करने वालों का यह गुमान सही हो ताके वह उन आंसुओं के ज़रिये हमल ठहराता है जो उसकी आंखों से बाहर निकल कर पलकों पर ठहर जाते हैं और मादा उसे पी लेती है उसके बाद अण्डे देती है और उसमें नर व मादा का कोई इत्तेसाल नहीं होता है सिवाई उन फूट पड़ने वाले आंसूओं के तो यह बात कौए के बाहेमी खाने पीने के ज़रिये हमल ठहराने से ज़्यादा ताअज्जुब ख़ेज़ न होती।

(((-इल्मुल हैवान के माहिर रॉबर्टसन का बयान है के दुनिया में एक अरब क़िस्म के परिन्दे पाए जाते हैं और सब अपने-अपने मक़ाम पर अजीब व ग़रीब खि़लक़त के मालिक हैं सबसे बड़ा परिन्दा “ाुतुर्मुग़ है और सबसे छोटा तनान जिसका तूल पांच सेन्टीमीटर होता है लेकिन एक घन्टे में 80-90 किलोमीटर परवाज़ कर लेता है और एक सेकेन्ड में 50 से लेकर 200 मरतबा अपने परों को हरकत देता है।
बज़ परिन्दों का एक क़दम छः मीटर के बराबर होता है और ज़मीन पर 80 किलोमीटर फ़ी घन्टे की रफ़्तार से चल सकते हैं और बाज़ छः हज़ार मीटर की बलन्दी पर परवाज़ कर सकते हैं, बाज़ पानी के अन्दर 18 मीटर की गहराई तक चले जाते हैं और बज़ सिर्फ़ समन्दरों के इस पार से उस पार तक चक्कर लगाते रहते हैं।
ल्ेकिन इन सबसे ज़्यादा हैरत अंगेज़ अमीरूल मोमेनीन (अ0) की निगाह में मोर की खि़लक़त है जिसको मुख़्तलिफ़ रंगों में रंग दिया गया है और मुख़्तलिफ़ ख़ुसूसियात से नवाज़ दिया गया है यह और बात है के बेहतरीन परों के साथ नाज़ुक तरीन पैर भी दिये गए हैं ताके इसमें भी ग़ुरूर न पैदा हो और इन्सान को भी होष आ जाए के जिसके वजूद का एक रूख़ रंगीन होता है और इसका दूसरा रूख़ कमज़ोर भी होता है लेहाज़ा ग़ुरूर व इस्तेकबार का कोई इमकान नहीं है, बल्कि तक़ाज़ाए “ाराफ़त यह है के हसीन रूख़ का “ाुक्रिया अदा करे के यह भी मालिक का करम है इसका अपना कोई हक़ नहीं है जिसे मालिक ने अदा कर दिया हो।
यह एक हसीन तरीन फ़ितरत है के नर अपनी मादा के पास जाए तो हुस्न व जमाल के साथ जाए ताके उसे भी इन्स हासिल हो और वह भी अपने नर के जमाल पर फ़ख़्र कर सके ऐसा न हो के अमल फ़क़त एक जिन्सी अमल रह जाए और सुकूने नफ़्स का कोई रास्ता न निकल सके -)))

तुम इसकी रंगीनी पर ग़ौर करो तो ऐसा महसूस करोगे जैसे परों की दरम्यानी तीलियां चान्दी की सलाइयां हों और इन पर जो अजीब व ग़रीब हाले और सूरज की “ाुआओं जैसे जो परो-बाल आग आए हैं वह ख़ालिस सोने और ज़मर्द के टुकड़े हैं और अगर उन्हें ज़मीन के नबातात से तष्बीह देना चाहोगे तो यह कहोगे के यह हर मौसमे बहार के फूलों (1) का एक “ाुगूफ़ा है और अगर लिबास से तष्बीह देना चाहोगे तो कहोगे के यह नक़्षे दारे हुल्लों या ख़ुषनुमा यमनी चादरों जैसे हैं और अगर ज़ेवरात ही से तष्बीह देना चाहोगे तो इस तरह कहोगे के यह रंग-बिरंग के नगीने हैं जो चान्दी के दाएरों में जड़ दिये गए हैं। यह जानवर अपनी रफ़्तार एक मग़रूर और मुतकब्बिर “ाख़्स की तरह ख़राम नाज़ से चलता है और अपने बालो पर अपनी दुम को देखता रहता है। अपने फ़ितरी लिबास की ख़ूबसूरती और अपनी चादरे हयात की रंगीनी को देखकर क़हक़हे लगाता है और इसके बाद जब पैरों पर नज़र पड़ जाती है तो इस तरह बलन्द आवाज़ से रोता है जैसे फ़ितरत की सितमज़रीफ़ी की फ़रयाद कर रहा हो और अपने वाक़ेई दर्दे दिल की “ाहादत दे रहा हो इसलिये के इसके पैर दोग़ले मुर्ग़ों के पैरों की तरह दुबले पतले और बारीक होते हैं। और इसकी पिण्डली के किनारे पर एक हल्का सा कांटा होता है और इसकी गरदन पर बालों के बदले सब्ज़ रंग के मुनक़्क़ष परों का एक गुच्छा होता है। इसकी गरदन का फैलाव सुराही की गरदन की तरह होता है और इसके गर्दने की जगह से लेकर पेट तक का हिस्सा यमनी वस्मा जैसा सब्ज़ रंग या उस रेषम जैसा होता है जिसे सैक़ल किये हुए आईने पर पहना दिया गया हो। ऐसा मालूम होता है के वह स्याह रंग की ओढ़नी में लिपटा हुआ है लेकिन वह अपनी आब व ताब की कसरत और चमक-दमक की षिद्दत से इस तरह महसूस होती है जैसे इसमें तरो ताज़ा सब्ज़ी अलग से “ाामिल कर दी गई हो।
इसके कानों के षिगाफ़ मुत्तसिल बाबूना के फूलों जैसी नोके क़लम के मानिन्द एक बारीक लकीर होती है और वह अपनी सफ़ेदी के साथ उस जगह की स्याही के दरम्यान चमकती रहती है। “ाायद ही कोई रंग ऐसा हो जिसका कोई हिस्सा इस जानवर को न मिला हो मगर इस लकीर की सैक़ल और इसके रेषमीं पैकर की चमक दमक सब पर ग़ालिब रहती है। इसकी मिसाल उन बिखरी हुई कलियों के मानिन्द होती है जिन्हें न बहार की बारिषों ने पाला हो और न गर्मी के सूरज की “ाुआओं ने, व कभी-कभी अपने बाल व पर से जुदा भी हो जाता है और इस रंगीन लिबास को उतार कर बरहना हो जाता है। इसके बाल व पर झड़ जाते हैं और दोबारा (2) फिर उग आते हैं।

(((- (1)कहा जाता है के सिर्फ़ फ़िलपीन में दस हज़ार क़िस्म के फूल पाए जाते हैं तो बाक़ी कायनात का क्या ज़िक्र है।
(2) बाज़ अफ़राद का ख़याल है के मोर के बदन में तक़रीबन हज़ार से चार हज़ार तक पर होते हैं और वह उन्हीं परों को देख कर अकड़ता रहता है और सहरा में रक़्स करता रहता है। यह और बात है के अपने कमाल का मुज़ाहिरा वहां करता है जहां कोई क़द्रदान नहीं होता है और न इससे इस्तेफ़ादा करने वाला होता है। सिर्फ़ अपनी ज़ात की तस्कीन और अपनी अना की तसल्ली का सामान फ़राहम करता है और यही फ़र्क़ है इन्सान और हैवान में के इन्सानी कमालात अना की तस्कीन और तसल्ली के लिये नहीं हैं इनका मसरफ़ ख़ल्क़े ख़ुदा को फ़ायदा पहुंचाना और समाज को फ़ैज़याब करना है। लेहाज़ा इन्सान अपने कमालात से मुआसेरा को मुसतफ़ैज़ करता है तो इन्सान है वरना एक मोर है जो सहरा में नाचता रहता है और अपने नफ़्स को ख़ुष करता रहता है। यह और बात है के यह ख़ुषी भी दाएमी नहीं होती है और उसे भी चन्द लम्हों में पैरों की हिक़ारत ख़त्म कर देती है और एक नया सबक़ सिखा देती है के उमूमी अफ़ादियत तो काम भी आ सकती है और उसे दवाम भी मिल सकता है लेकिन ज़ाती तस्कीन की न कोई हक़ीक़त है और न उसे दवाम नसीब हो सकता है।-)))

यह बालो-पर इस तरह गिरते हैं जैसे दरख़्त की “ााख़ों से पत्ते गिरते हैं और फिर दोबारा यूँ उग आते हैं के बिल्कुल पहले जैसे हो जाते हैं। न पुराने रंगों से कोई मुख़्तलिफ़ रंग होता है और न किसी रंग की जगह तबदील होती है। बल्कि अगर तुम इसके रेषों में किसी एक रेषे पर भी ग़ौर करोगे तो तुम्हें कभी गुलाब की सुखऱ्ी नज़र आएगी ज़मरू की सब्ज़ी और फिर कभी सोेने की ज़र्दी, भला उस तख़लीक़ की तौसीफ़ तक फ़िक्रों की गहराइयां किस तरह पहुंच सकती हैं और इन दक़ाएक़ को अक़्ल की जोदत किस तरह पा सकती है या तौसीफ़ करने वाले इसके औसाफ़ को किस तरह मुरत्तब कर सकते हैं।
जबके इसके छोटे से एक जुज़ए ने औहाम को वहां तक रसाई से आजिज़ कर दिया है और ज़बानों को उसकी तौसीफ़ से दरमान्दा कर दिया है।
पाक व बेनियाज़ है वह मालिक जिसने अक़्लों को मुतहीर कर दिया है इस एक मख़लूक़ की तौसीफ़ से जिसे निगाहों के सामने वाज़ेह कर दिया है और निगाहों ने उसे महदूद और मुरत्तब व मुरक्कब व मुलव्वन “ाक्ल में देख लिया है और फिर ज़बानों को भी इसकी सिफ़त का ख़ुलासा बयान करने और इसकी तारीफ़ का हक़ अदा करने से आजिज़ कर दिया।
और पाक व पाकीज़ा है वह ज़ात जिसने च्यूंटी और मच्छर से लेकर इनसे बड़ी मछलियों और हाथियों तक के पैरों को मज़बूत व मुस्तहकम बनाया है और अपने लिये लाज़िम क़रार दे लिया है के कोई ज़ीरूह ढांचा हरकत करेगा मगर यह के उसकी असल वादागाह मौत होगी और उसका अन्जाम कार फ़ना होगा।
अब अगर तुम इन बयानात पर दिल की निगाहों से नज़र डालोगे तो तुम्हारा नफ़्स दुनिया की तमाम “ाहवतों, लज़्ज़तों और ज़ीनतों से बेज़ार हो जाएगा और तुम्हारी फ़िक्र उन दरख़्तों के पत्तों की खड़खड़ाहट में गुम हो जाएगी जिनकी जड़ें साहिले दरिया पर मुष्क के टीलों में डूबी हुई होती हैं और उन तरो ताज़ा मोतियों के गुच्छों के लटकने और सब्ज़ पत्तियों के ग़िलाफ़ों में मुख़्तलिफ़ क़िस्म के फलों के निकलने के नज़ारों में गुम हो जाएगी जिन्हें बग़ैर किसी ज़हमत के हासिल किया जा सकता है।

(((-क्या इबरतनाक है यह ज़िन्दगी के एक तरफ़ राहतें, लज़्ज़तें, आराइषें, ज़ेबाइषें हैं और दूसरी तरफ़ मौत का भयानक चेहरा! इन्सान एक नज़र इस आराइष व ज़ेबाइष की तरफ़ करता है और दूसरी नज़र उसके अन्जाम की तरफ़। बिल्कुल ऐसा महसूस होता है के एक तरफ़ मोर के पर हैं और दूसरी तरफ़ पैर, परों को देखकर ग़ुरूर पैदा होता है और पैरों को देखकर औक़ात का अन्दाज़ा हो जाता है।
इन्सान अपनी ज़िन्दगी के हक़ाएक़ पर नज़र करे तो उसे अन्दाज़ा होगा के इसकी पूरी हयात एक मोर की ज़िन्दगी है जहां एक तरफ़ राहत व आराम, आराइष व ज़ेबाइष का हंगामा है और दूसरी तरफ़ मौत का भयानक चेहरा।
ज़ाहिर है के जो इन्सान इस चेहरे को देख ले उसे कोई चीज़ हसीन और दिलकष महसूस न होगी और वह इस पुरफ़रेब दुनिया से जल्द अज़ जल्द निजात हासिल करने की कोषिष करेगा।-)))

और वहां वारिद होने वालों के गिर्द महलोल के आंगनों में साफ़ व “ाफ़ाफ़ “ाहद और पाक व पाकीज़ा “ाराब के दौर चल रहे होंगे। वहाँ वह क़ौम होगी जिसकी करामतों ने उसे खींचकर हमेषगी की मन्ज़िल तक पहुंचा दिया है और उन्हें सफर की मज़ीद ज़हमत से महफ़ूज़ कर दिया है। ऐ मेरी गुफ़्तगू सुनने वालों! अगर तुम लोग अपने दिलों को मषग़ूल कर लो इस मन्ज़िल तक पहुंचने के लिये जहां यह दिलकष नज़ारे पाए जाते हैं तो तुम्हारी जान इष्तियाक़ के मारे अज़ख़ुद निकल जाएगी और तुम मेरी इस मजलिस से उठकर क़ब्रों में रहने वालों की हमसायगी के लिये आमादा हो जाओगे ताके जल्द यह नेमतें हासिल हो जाएं।
अल्लाह हमें और तुम्हें दोनों को अपनी रहमत के तुफ़ैल इन लोगों में क़रार दे जो अपने दिल की गहराइयों से नेक किरदार बन्दों की मन्ज़िलों के लिये सई कर रहे हैं।

(((- (बाज़ अल्फ़ाज़ की वज़ाहत) क़ला कषती के बादबान को कहा जाता है और दारी मक़ाम दारैन की तरफ़ मन्सूब है जो साहिल बहर पर आबाद है और वहां से ख़ुषबू वग़ैरा वारिद की जाती है।
अन्जा यानी मोड़ दिया जिसका इस्तेमाल इस तरह होता है के अन्जतुन्नाक़ता यानी मैंने ऊंटनी के रूख़ को मोड़ दिया।
नौती मल्लाह को कहा जाता है, ज़फ़ती ज़फ़ूना यानी पलकों के किनारे, ज़फ़तान यानी दोनों किनारे)))

166- आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा

(दावते इत्तेहाद व इत्तेफ़ाक़) तुम्हारे छोटों को चाहिये के अपने बड़ों की पैरवी करें और बड़ों का फ़र्ज़ है के अपने छोटों पर मेहरबानी करें और ख़बरदार तुम लोग जाहेलियत के इन ज़ालिमों जैसे न हो जाना जो न दीन का इल्म हासिल करते थे और न अल्लाह के बारे में अक़्ल व फ़हम से काम लेते थे। उनकी मिसाल अण्डों के छिलकों जैसी है जो “ाुतुरमुर्ग़ के अण्डे देने की जगह पर रखे हों के उनका तोड़ना तो जुर्म है लेकिन परवरिष करना भी सिवाए “ार के कोई नतीजा नहीं दे सकता है।

(एक और हिस्सा) यह लोग बाहेमी मोहब्बत के बाद अलग-अलग हो गए और अपनी असल से जुदा हो गए। बाज़ लोगों ने एक “ााख़ को पकड़ लिया है और अब उसी के साथ झुकते रहेंगे यहांतक के अल्लाह उन्हें बनी उमय्या के बदतरीन दिन के लिये जमा कर देगा जिस तरह के ख़रीफ़ में बादल के टुकड़े जमा हो जाते हैं फिर उनके दरम्यान मोहब्बत पैदा करेगा फिर उन्हें तह ब तह अब्र के टुकड़ों की तरह एक मज़बूत गिरोह बना देगा। फिर उनके लिये ऐसे दरवाज़ों को खोल देगा के यह अपने उभरने की जगह से “ाहरे सबा के दो बाग़ों के उस सैलाब की तरह बह निकलेंगे जिनसे न कोई चट्टान महफ़ूज़ रही थी और न कोई टीला ठहर सका था न पहाड़ की चोटी उसके धारे को मोड़ सकी थी और न ज़मीन की ऊंचाई। अल्लाह उन्हें घाटियों के नषेबों में मुतफ़र्रिक़ कर देगा और फिर उन्हें चष्मों के बहाव की तरह ज़मीन में फैला देगा।
उनके ज़रिये एक क़ौम के हुक़ूक़ दूसरी क़ौम से हासिल करेगा और एक जमाअत को दूसरी जमाअत के दयार में इक़्तेदार मुहैया करेगा। ख़ुदा की क़सम उनके इख़्तेदार व इख़्तेयार के बाद जो कुछ भी उनके हाथों में होगा वह इस तरह पिघल जाएगा जिस तरह के आग पर चर्बी पिघल जाती है।

(आखि़र ज़माने के लोग) अय्योहन्नास! अगर तुम हक़ की मदद करने में कोताही न करते और बातिल को कमज़ोर बनाने में सुस्ती का मुज़ाहिरा न करते तो तुम्हारे बारे में वह क़ौम तमअ न करती जो तुम जैसी नहीं है और तुम पर यह लोग क़वी न हो जाते, लेकिन अफ़सोस के तुम बनी इसराईल की तरह गुमराह हो गए और मेरी जान की क़सम मेरे बाद तुम्हारी यह हैरानी और सरगर्दानी दो चन्द हो जाएगी (कई गुना बढ़ जाएगी) चूंके तुमने हक़ को पसे पुष्त डाल दिया है। क़रीबतरीन से क़तए ताअल्लुक़ कर दिया है और दूर वालों से रिष्ता जोड़ लिया है। याद रखो के अगर तुम दाई हक़ का इत्तेबाअ कर लेते तो वह तुम्हें रसूले अकरम (स0) के रास्ते पर चलाता और तुम्हें कजरवी की ज़हमतों से बचा लेता और तुम उस संगीन बोझ को अपनी गर्दनों से उतारकर फेंक देते।

167-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा(इब्तेदाए खि़लाफ़त के दौर में)

प्रवरदिगार ने इस किताबे हिदायत को नाज़िल किया है जिसमें ख़ैर व “ार की वज़ाहत कर दी है लेहाज़ा तुम ख़ैर के रास्ते को इख़्तेयार करो ताके हिदायत पा जाओ और “ार के रूख़ से मुंह मोड़ लो ताके सीधे रास्ते पर आ जाओ।
फ़राएज़ का ख़याल रखो और उन्हें अदा करो ताके वह तुम्हें जन्नत तक पहुंचा दें। अल्लाह ने जिस हराम को हराम क़रार दिया है वह मजहोल नहीं है और जिस हलाल को हलाल बनाया है वह मुष्तबह नहीं है। उसने मुसलमान की हुरमत को तमाम मोहतरम चीज़ों से अफ़ज़ल क़रार दिया है और मुसलमानों के हुक़ूक़ को उनकी मन्ज़िलों में इख़लास और यगाँगत से बान्ध दिया है। अब मुसलमान वही है जिसके हाथ और ज़बान से तमाम मुसलमान महफ़ूज़ रहें मगर यह के किसी हक़ की बिना पर उन पर हाथ डाला जाए और किसी मुसलमान के लिये मुसलमान को तकलीफ़ देना जाएज़ नहीं है मगर यह के उसका वाक़ेई सबब पैदा हो जाए।
उस अम्र की तरफ़ सबक़त करो जो हर एक के लिये है और तुम्हारे लिये भी है और वह है मौत। लोग तुम्हारे आगे जा चुके हैं और तुम्हारा वक़्त तुम्हें हँका कर ले जा रहा है। सामान हल्का रखो ताके अगले लोगों से मुलहक़ हो जाओ इसलिये के इन पहले वालों के ज़रिये तुम्हारा इन्तेज़ार किया जा रहा है।
अल्लाह से डरो उसके बन्दों के बारे में भी और “ाहरों के बारे में भी। इसलिये के तुमसे ज़मीनों और जानवरों के बारे में भी सवाल किया जाएगा। अल्लाह की इताअत करो और नाफ़रमानी न करो। ख़ैर को देखो तो फ़ौरन ले लो और “ार पर नज़र पड़ जाए तो किनाराकष हो जाओ।

(((-इस क़ानून में मुसलमान की कोई तख़सीस नहीं है। मुसलमान वही होता है जिसके हाथ या उसकी ज़बान से किसी फ़र्दे बषर को अज़ीयत न हो और उसके “ार से लोग महफ़ूज़ रहें। लेकिन यह उसी वक़्त तक है जब किसी के बारे में ज़बान खोलना या हाथ उठाना “ार “ाुमार हो वरना अगर इन्सान इस अम्र का मुस्तहक़ हो गया है के उसके किरदार पर तन्क़ीद न करना या उसे क़रार वाक़ेई सज़ा न देना दीने ख़ुदा की तौहीन है तो कोई “ाख़्स भी दीने ख़ुदा से ज़्यादा मोहतरम नहीं है। इन्सान का एहतेराम दीने ख़ुदा के तुफ़ैल में है। अगर दीने ख़ुदा ही का एहतेराम न रह गया तो किसी “ाख़्स के एहतेराम की कोई हैसियत नहीं है।-)))

168- आपका इरषादे गिरामी(जब बैअते खि़लाफ़त के बाद बाज़ लोगों ने मुतालेबा किया के काष आप उस्मान पर ज़्यादती करने वालों को सज़ा देते)

भाईयों! जे तुम जानते हो मै। उससे नावाक़िफ़ नहीं हूँ लेकिन मेरे पास इसकी ताक़त कहाँ है? अभी वह क़ौम अपनी ताक़त व क़ूवत पर क़ायम है। वह हमारा इख़्तेयार रखती है और हमारे पास इसका इख़्तेयार नहीं है और फिर तुम्हारे ग़ुलाम भी उनके साथ उठ खड़े हुए हैं और तुम्हारे देहाती भी इनके गिर्द जमा हो गए हैं और वह तुम्हारे दरम्यान इस हालत में हैं के तुम्हें जिस तरह चाहें अज़ीयत पहुंचा सकते हैं। क्या तुम्हारी नज़र में जो कुछ तुम चाहते हो उसकी कोई गुन्जाइष है। बेषक यह सिर्फ़ जेहालत और नादानी का मुतालबा है और इस क़ौम के पास ताक़त का सरचष्मा मौजूद है। इस मामले में अगर लोगों को हरकत भी दी जाए तो वह चन्द फ़िरक़ों में तक़सीम हो जाएंगे। एक फ़िरक़ा वही सोचेगा जो तुम सोच रहे हो और दूसरा गिरोह उसके खि़लाफ़ राय का हामिल होगा। तीसरा गिरोह दोनों से ग़ैर जानिबदार बन जाएगा लेहाज़ा मुनासिब यही है के सब्र करो यहां तक के लोग ज़रा मुतमईन हो जाएं और दिल ठहर जाएं और इसके बाद देखो के मैं क्या करता हूँ। ख़बरदार कोई ऐसी हरकत न करना जो ताक़त् को कमज़ोर बना दे और क़ूवत को पामाल कर दे और कमज़ोरी व ज़िल्लत का बाएस हो जाए। मैं जहां तक मुमकिन होगा इस जंग को रोके रहूँगा। इसके बाद जब कोई चाराएकार न रह जाएगा तो आखि़री इलाज दाग़ना ही होता है।

169-आपका इरषादे गिरामी(जब असहाबे जमल बसरा की तरफ़ जा रहे थे)

अल्लाह ने अपने रसूले हादी को बोलती किताब और मुस्तहकम अम्र के साथ भेजा है। उसके होते हुए वही हलाक हो सकता है जिसका मुक़द्दर ही हलाकत हो और नई नई बिदअतें और नए-नए “ाुबहात ही हलाक करने वाले होते हैं मगर यह के अल्लाह ही किसी को बचा ले और परवरदिगार की तरफ़ से मुअय्यन होने वाला हाकिम ही तुम्हारे उमूर की हिफ़ाज़त कर सकता है लेहाज़ा उसे ऐसी मुकम्मल इताअत दे दो जो न क़ाबिले मलामत हो और न बददिली का नतीजा हो। ख़ुदा की क़सम या तो तुम ऐसी इताअत करोगे या फिर तुमसे इस्लामी इक़्तेदार छिन जाएगा और फिर कभी तुम्हारी तरफ़ पलट कर न आएगा यहां तक के किसी ग़ैर के साये में पनाह ले ले।
देखो यह लोग मेरी हुकूमत से नाराज़गी पर मुत्तहिद हो चुके हैं और अब मैं उस वक़्त तक सब्र करूंगा जब तक तुम्हारी जमाअत के बारे में कोई अन्देषा न पैदा हो जाए।

(((- उस्मान के खि़लाफ़ क़यामक रने वाले सिर्फ़ मदीने के अफ़राद होते जब भी मुक़ाबला आसान था, चे जाएका बक़ौल तबरी इस जमाअत में छः सौ मिस्री भी “ाामिल थे और एक हज़ार कूफ़े के सिपाही भी आ गए थे और दीगर और दीगर इलाक़े के मज़लूमीन ने भी मुहिम में षिरकत कर ली थी। ऐसे हालात में एक “ाख़्स जमल व सिफ़फ़ीन के मारेके भी बरदाष्त करे और इनत माम इन्क़ेलाबियों का मुहासेबा भी “ाुरू कराए यह एक नामुमकिन अम्र है और फिर मुहासिबे के अमल में उम्मुल मोमेनीन और माविया को भी “ाामिल करना पड़ेगा के क़त्ले उस्मान की मुहिम में यह अफ़राद भी बराबर के “ारीक थे बल्कि उम्मुल मोमेनीन ने तो बाक़ायदा लोगों को क़त्ल पर आमादा किया था।
ऐसे हालात में मसला इस क़द्र आसान नहीं था जिस क़द्र बाज़ साद-व-लोह अफ़राद तसव्वुर कर रहे थे या बाज़ फ़ित्ना परवाने उसे हवा दे रहे थे-)))

इसलिये के अगर वह अपनी राय की कमज़ोरी के बावजूद इस अम्र में कामयाब हो गए तो मुसलमानों का रिष्तए नज़्म व नस्क़ बिल्कुल टूटकर  रह जाएगा। उन लोगों ने इस दुनिया को सिर्फ़ न लोगों से हसद की बिना पर तलब किया है जिन्हें अल्लाह ने ख़लीफ़ा व हाकिम बनाया है। अब यह चाहते हैं के मुआमलात को उलटे पांव जाहेलीयत की तरफ़ पलटा दें। तुम्हारे लिये मेरे ज़िम्मे यही काम है के किताबे ख़ुदा और सुन्नते रसूल (स0) पर अमल करूं उनके हक़ को क़ायम करूं और उनकी सुन्नत को बलन्द व बाला क़रार दूँ।

170-आपका इरषादे गिरामी(दलील क़ायम हो जाने के बाद हक़ के इतेबाअ के सिलसिले में जब अहले बसरा ने बाज़ अफ़राद को उस ग़र्ज़ से भेजा के अहले जमल के बारे में हज़रत के मौक़ूफ़ को दरयाफ़्त करें ताके किसी तरह का “ाुबह बाक़ी न रह जाए तो आपने जुमला उमूर की मुकम्मल वज़ाहत फ़रमाई ताके वाज़ेह हो जाए के आप हक़ पर हैं। इसके बाद फ़रमाया के जब हक़ वाज़ेह हो गया तो मेरे हाथ पर बैअत कर लो। उसने कहा के मैं एक क़ौम का नुमाइन्दा हूँ और उनकी तरफ़ रूजूअ किये बग़ैर कोई एक़दाम नहीं कर सकता हूँ- फ़रमाया के)

तुम्हारा क्या ख़याल है अगर इस क़ौम ने तुम्हें नुमाइन्दा बनाकर भेजा होता के जाओ तलाष करो जहां बारिष हो और पानी की कोई सबील हो और तुम वापस जाकर पानी और सब्ज़ा की ख़बर देते और वह लोग तुम्हारी मुख़ालफ़त करके ऐसी जगह का इन्तेख़ाब करते जहां पानी का क़हत और ख़ुष्कसाली का दौरे दौरा हो तो उस वक़्त तुम्हारा एक़दाम क्या होता? उसने कहा के मैं उन्हें छोड़कर आबो दाना की तरफ़ चला जाता। फ़रमाया फिर अब हाथ बढ़ाओ और बैअत कर लो के चष्मए हिदायत तो मिल गया है। उसने कहा के अब हुज्जत तमाम हो चुकी है और मेरे पास इन्कार का कोई जवाज़ नहीं रह गया है और यह कह कर हज़रत के दस्ते हक़ पर बैअत कर ली। (तारीख़ में इस “ाख़्स को कलीब जर्मी के नाम से याद किया जाता है)

171- आपका इरषादे गिरामी(जब असहाबे माविया से सिफ़्फ़ीन में मुक़ाबले के लिये इरादा फ़रमाया)

ऐ परवरदिगार जो बलन्दतरीन छत और ठहरी हुई फ़िज़ा का मालिक है। जिसने इस फ़िज़ा को “ाब व रोज़ के सर छिपाने की मन्ज़िल और “ाम्स व क़मर के सेर का मैदान और सितारों की आमद व रफ़्त की जूलाँगाह क़रार दिया है। इसका साकिन मलाएका के उस गिरोह को क़रार दिया है जो तेरी इबादत से ख़स्ताहाल नहीं होते हैं। तू ही इस ज़मीन का भी मालिक है जिसे लोगों का मुस्तक़र बनाया है और जानवरों, कीड़ों मकोड़ों और बेषुमार मुरई और ग़ैर मुरई मख़लूक़ात के चलने-फिरने की जगह क़रार दिया है।
तू ही इन सरबफ़लक पहाड़ों का मालिक है जिन्हें ज़मीन के ठहराव के लिये मेख़ का दरजा दिया गया है और मख़लूक़ात का सहारा क़रार दिया गया है।

(((-यह इस्तेदलाल अपने हुस्न व जमाल के अलावा इस मानवीयत की तरफ़ भी इषारा है के इस्लाम में मेरी हैसियत एक सरसब्ज़ व “ाादाब गुलिस्तान की है जहां इस्लामी एहकाम व तालीमात की बहारें ख़ेमाज़न रहती हैं और मेरे अलावा तमाम अफ़राद एक रेगिस्तान से ज़्यादा कोई हैसियत नहीं रखते हैं। किस क़द्र हैरत की बात है के इन्सान सब्ज़ाजार और चष्मए आबे हयात को छोड़कर फिर रेगिस्तानों की तरफ़ पलट जाए और तष्नाकामी की ज़िन्दगी गुज़ारता है। जो तमाम अहले “ााम का मुक़द्दर है।-)))
अगर तूने दुष्मन के मुक़ाबले में ग़लबा इनायत फ़रमाया तो हमें ज़ुल्म से महफ़ूज़ रखना और हक़ के सीधे रास्ते पर क़ायम रखना और अगर दुष्मन को हम पर ग़लबा हासिल हो जाए तो हमें “ाहादत का “ारफ़ अता फ़रमाना और फ़ित्ना से महफ़ूज़ रखना।
(दावते जेहाद) कहाँ हैं वह इज़्ज़त व आबरू के पासबान और मुसीबतों के नुज़ूल के बाज़ नग व नाम की हिफ़ाज़त करने वाले साहेबाने इज़्ज़त व ग़ैरत। याद रखो ज़िल्लत व आर तुम्हारे पीछे है और जन्नत तुम्हारे आगे।
(((-बाज़ हज़रात का ख़याल है के यह बात “ाूरा के मौक़े पर साद बिन अबी वक़ास ने कही थी और बाज़ का ख़याल है के सक़ीफ़ा के मौक़े पर अबू उबैदा बिन अलजराह ने कही थी और दोनों ही इमकानात पाए जाते हैं के दोनों की फ़ितरत एक जैसी थी और दोनों अमीरूलमोमेनीन (अ0) की मुख़ालफ़त पर मुत्तहिद थे।
-इससे मुदार तल्हा व ज़ुबैर हैं जिन्होंने ज़ौजए रसूल (स0) का इतना भी एहतेराम नहीं किया जितना अपनी घर की औरतों का किया करते थे-)))

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