Monday, May 30, 2011

Nahjul Balagha Hindi Aqwal 244-255 नहजुल बलाग़ा हिन्दी अक़वाल 244-255

244-जब ताक़त ज़्यादा हो जाती है तो ख़्वाहिश कम हो जाती है।
(((जब फ़ितरत का यह निज़ाम है के कमज़ोर आदमी में ख़्वाहिश ज़्यादा होती है और ताक़तवर इस क़द्र ख़्वाहिशात का हामिल नहीं होता है तो सियासी दुनिया में भी इन्सान काा तर्ज़े अमल वैसा ही होना चाहिये के जिस क़द्र ताक़त व क़ूवत में इज़ाफ़ा होता जाए अपने को ख़्वाहिशाते दुनिया से बे नियाज़ बनाता जाए और अपने किरदार से साबित कर दे के उसकी ज़िन्दगी निज़ामे फ़ितरत से अलग और जुदागाना नहीं है)))
245- नेमतों के ज़वाल से डरते रहाो के हर बेक़ाबू होकर निकल जाने वाली चीज़ वापस नहीं आया करती है।
246- जज़्बए करम क़राबतदारी से ज़्यादा मेहरबानी का बाएस होता है।
247- जो तुम्हारे बारे में अच्छा ख़याल रखता हो उसके ख़याल को सच्चा करके दिखला दो।

(((ह|य इन्सानी ज़िन्दगी का इन्तेहाई हस्सास  नुक्ता है के इन्सान आम तौर से लोगों को हुस्ने ज़न में मुब्तिला कर उससे ग़लत फ़ायदा उठाने की कोशिश करता है और उसे यह ख़याल पैदा हो जाता है के जब लोग ‘ाराबख़ाने में देख कर भी यही तसव्वुर करेंगे के तबलीग़े मज़हब के लिये गए थे ताो ‘ाराब ख़ाने से फ़ायदा उठा लेना चाहिये हालांके तक़ाज़ाए अक़्ल व दानिश और मुक़तज़ाए ‘ाराफ़त व इन्सानियत यह है के लोग जिस क़द्र ‘ारीफ़ तसव्वुर करते हैं उतनी ‘ाराफ़त का इसाबात करे और उनके हुस्ने ज़न को सूए ज़न में तब्दील न होने  दें)))
248- बेहतरीन अमल वह है जिस पर तुम्हें अपने नफ़्स को मजबूर करना पड़े।
(((इन्सान तमाम आमाल को नफ़्स की ख़्वाहिश के मुताबिक़ अन्जाम देगा तो एक दिन नफ़्स का ग़ुलाम होकर रह जाएगा लेहाज़ा ज़रूरत है के ऐसे अमल अन्जाम देता रहे जहां नफ़्स पर जब्र करना पड़े और उसे इसकी औक़ात से आश्ना बनाता रहे तााके उसके हौसले इस क़द्र बलन्द न हाो जाएं के इन्सान को मुकम्मल तौर पर अपनी गिरफ़्त में ले ले और फिर निजात का कोई रास्ता न रह जाए।
249- मैंने परवरदिगार को इरादों के टूट जाने, नीयतों के बदल जाने और हिम्मताों के पस्तत हो जाने से पहचाना है।
250- दुनिया की तल्ख़ी आख़ेरत की ‘ाीरीनी है और दुनिया की ‘ाीरीनी आख़ेरत की तल्ख़ी है।
251- अल्लाह ने ईमान को लाज़िम क़रार दिया है शिर्क से पाकक करने के लिये, और नमाज़ को वाजिब किया है ग़ुरूर से बाज़ रखने के लिये, ज़कात को रिज़्क़ का वसीला क़रार दिया है और रोज़े को आज़माइशे इख़लास का वसीला, जेहाद को इस्लाम की इज़्ज़त के लिये रखा है और अम्रे बिलमारूफ़ को अवाम की मसलेहत के लिये, नहीं अनिल मुन्किर को बेवक़ूफ़ों को बुराइयों से रोकने के लिये वाजिब किया है और सिलए रहम अदद में इज़ाफ़ा करने के लिये, क़सास ख़ून के तहफ़्फ़ुज़ का वसीला है और हुदूद का क़याम मोहर्रमात की अहमियत के समझाने का ज़रिया, ‘ाराब ख़्वारी को अक़्ल की हिफ़ाज़त के लिये हराम क़रार दिया है और चोरी से इज्तेनाब को इफ़त की हिफ़ाज़त के लिये लाज़िम क़रार दिया है। तर्के ज़िना का लज़ूम नसब की हिफ़ाज़त के लिये और तर्के लवात की ज़रूरत नस्ल की  बक़ा के लिये है, गवाहियों को इन्कार के मुक़ाबले में सबूत का ज़रिया क़रार दिया गया है और तर्के कज़्ब को सिद्क़ की ‘ाराफ़त का वसीला ठहरा दिया गया है क़यामे अम्न को ख़तरों से तहफ़्फ़ुज़ के लिये रखा  गया है और इमामत को मिल्लत की तन्ज़ीम का वसीला क़रार दिया गया है और फ़िर इताअत को अज़मते इमामत की निशानी क़रार दिया गया है।
(((यह इस्लाम का आलमे इन्सानियत पर उमूमी एहसान है के उसने अपने क़वानीन के ज़रिये इन्सानी आबादी को बढ़ाने का इन्तेज़ाम किया है और फ़िर हराम ज़ादों की दर आमद को रोक दिया है। ताके आलमे इन्सानियत में ‘ारीफ़ अफ़राद पैदा हों और यह आलम हर क़िस्म की बरबादी और तबाहकारी से महफ़ूज़ रहे, इसके बाद इसका सिन्फ़े निसवां पर ख़ुसूसी एहसान यह है के इसने औरत के अलावा जिन्सी तस्कीन के हर रास्ते को बन्द कर दिया है, खुली हुई बात है के इन्सान में जब जिन्सी हैजान पैदा होता है तो उसे औरत की ज़रूरत का एहसास पैदा होता है और किसी भी तरीक़े से ज बवह हैजानी माद्दा निकल जाता है तो किसी मिक़दार में सुकून हासिल हो जाता है और जज़्बात का तूफ़ान रूक जाता है, अहले दुनिया ने इस माद्दे के एख़राज के मुख़्तलिफ़ तरीक़े ईजाद किये हैं अपनी जिन्स का कोई मिल जाता है तो हम जिन्सी से तस्कीन हासिल कर लेते हैं और अगर कोई नहीं मिलता है तो ख़ुदकारी का अमल अन्जाम दे लेते हैं और इस तरह औरत की ज़रूरत से बेनियाज़ हो जाते हैं और यही वजह है के आज आज़ाद मुआशरों में औरत अज़ो मोअतल होकर रह गई है और हज़ार वसाएल इख़्तेयार करने के बाद भी इसके तलबगारों की फ़ेहरिस्त कम से कमतर होती जा रही है। इस्लाम ने इस ख़तरनाक सूरतेहाल से मुक़ाबला करने के लिये मुजामेअत के अलावा हर वसीलए तस्कीन को हराम कर दिया है ताके मर्द औरत के वजूद से बेनियाज़ न होने पाए और औरत का वजूद मुआशरे में ग़़ैर ज़रूरी न क़रार पा जाए। अफ़सोस के इस आज़ादी और अय्याशी की मारी हुई दुनिया में इस पाकीज़ा तसव्वुर का क़द्रदान कोई नहीं है और सब इस्लाम पर औरत की नाक़द्री का इल्ज़ाम लगाते हैं, गोया उनकी नज़र में उसे खिलौना बना लेना और खेलने के बाद फेंक देना ही सबसे बड़ी क़द्रे ज़ाती है।)))
252- किसी ज़ालिम से क़सम लेना हो तो इस तरह क़सम लो के वह परवरदिगार की ताक़त और क़ूवत से बेज़ार है अगर इसका बयान सही न हो के अगर इस तह झूठी क़सम खाएगा तो फ़ौरन मुब्तिलाए अज़ाब हो जाएगा आर अगर ख़ुदाए वहदहू लाशरीक के नाम की क़सम खाई तो अज़ाब में उजलत न होगी के बहरहाल तौहीदे परवरदिगार का इक़रार कर लिया।
253- फ़रज़न्द्र आदम (अ0)! अपने माल में अपना वसी ख़ुद बन और वह काम ख़ुद अन्जाम दे जिसके बारे में उम्मीद रखता है के लोग तेरे बाद अन्जाम दे देंगं।
254- ग़ुस्सा जुनून की एक क़िस्म है के ग़ुस्सावर को बद में पशेमान होना पड़ता है और प्शेमान न हो तो वाक़ेअन उसका जुनून मुस्तहकम है।
255-बदन की सेहत का एक ज़रिया हसद की क़िल्लत भी है।

1 comment:

  1. Nahaz ul balagha waqai naasiha amoz book hei.tamam khutut va khutbat ne islam ki sahi taavir pesh bn ki he.

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