Wednesday, May 4, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 222-223 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 222-223

222- आपका इरशादे गिरामी
(जिसे आयते करीम ‘‘योसब्बेह लहू फीहा ..................तेजारता वला यबआ अन ज़िकरिल्लाह’’ (उन घरों में सुबहो ‘ााम तस्बीहे परवरदिगार करने वाले वह अफ़राद हैं जिन्हें तिजारत और कारोबार यादे ख़ुदा से ग़ाफ़िल नहीं बना सकते हैं) की तिलावत के बाद फ़रमाया)


बेशक परवरदिगार (अल्लाह सुबहानहू) ने अपने ज़िक्र को दिलों के लिये सैक़ल क़रार दिया है जिसकी बिना पर वह बहरेपन के बाद सुनने लगते हैं और अन्धेपन के बाद देखने लगते हैं और अनाद और ज़िद (दुश्मनी) के बाद फ़रमाबरदार हो जाते हैं और ख़ुदाए अज़्ज़ व जल (जिसकी नेमतें अज़ीम व जलील हैं) के लिये हर दौर में और हर अहदे फ़ितरत में ऐसे बन्दे रहे हैं जिनसे उसने उनके उफ़कार के ज़रिये राज़दाराना गुफ़्तगू की है और उनकी अक़्लों के वसीले से उनसे कलाम किया है और उन्होंने अपनी बसारत, समाअत और फ़िक्र की बेदारी के नूर की रौशनी हासिल की है। उन्हें अल्लाह के मख़सूस दिनों की याद अता की गई है और वह उसकी अज़मत से ख़ौफ़ज़दा रहते हैं। इनकी मिसाल बियाबानों के राहनुमाओं जैसी है के जो सही रास्ते पर चलता है उसकी रूश की तारीफ़ करते हैं और उसे निजात की बशारत देते हैं और जो दाहिने बाएं चला जाता है उसके रास्ते की मज़म्मत करते हैं और उसे हलाकत से डराते हैं और इसी अन्दाज़ से यह ज़ुल्मतों के चिराग़ और ‘ाबाहत के रहनुमा हैं।
बेशक ज़िक्रे ख़ुदाा के भी कुछ अहल हैं जिन्होंने इसे सारी दुनिया का बदल क़रार दिया है और अब उन्हें तिजारत या ख़रीद फ़रोख़्त उस ज़िक्र से ग़ाफ़िल नहीं कर सकती है। यह उसके सहारे ज़िन्दगी के दिन काटते हैं और ग़ाफ़िलों के कानों में मोहर्रमात के रोकने वाली आवाज़ें दाखि़ल कर देते हैं। लोगों को नेकियों का हुक्म देते हैं और ख़ुद भी इसी पर अमल करते है। बुराइयों से रोकते हैं और ख़ुद भी बाजज़ रहते हैं गोया उन्होंने दुनिया मेंरहकर आखि़रत तक का फ़ासला तय कर लिया है और पस पर्दाए दुनिया जो कुछ है सब देख लिया है और गोया के उन्होंने बरज़ख़ के तवील व अरीज़ ज़माने के मख़फ़ी हालात पर इत्तेला हासिल कर ली है और गोया के क़यामत ने उनके लिये अपने वादों को पूरा कर दिया है और उन्होंने अहले दुनिया के लिये इस पर्दे को उठा दिया है। के अब वह उन चीज़ों को देख रहे हैं जिन्हें आम लोग नहीं देख सकते हैं और उन आवाज़ों को सुन रहे हैं जिन्हें दूसरे लोग नहीं सुन सकते हैं। अगर तुम अपनी अक़्ल से उनकी इस तसवीर को तैयार करो जो उनके क़ाबिले तारीफ़ मक़ामात और क़ाबिले हुज़ूर मजालिस की है। जहां उन्होंने अपने आमाल के दफ़्तर फैलाए हुए हैं और अपने हर छोटे बड़े अमल का हिसाब देने के लिये तैयार हैं जिनका हुक्म दिया गया था और उनमें कोताही हो गई है या जिनसे रोका गया था और तक़सीर हो गई है और अपनी पुश्त पर तमाम आमाल का बोझ उठाए हुए हैं लेकिन उठाने के क़ाबिल नहीं हैं और अब रोते रोते हिचकियाँ बन्ध गई हैं और एक दूसरे को रो-रो कर उसके सवाल का जवाब दे रहे हैं और निदामत और एतराफ़े गुनाह के साथ परवरदिगार की बारगाह में फ़रयाद कर रहे हैं। तो वह तुम्हें हिदायत के निशान और तारीकी के चिराग़ नज़र आएंगे जिनके गिर्द मलाएका का घेरा होगा और उन पर परवरदिगार की तरफ़ से सुकून व इतमीनान का मुसलसल नुज़ूल होगा और उनके लिये आसमान के दरवाज़े खोल दिये गए होंगे और करामतों की मन्ज़िलें मुहैया कर दी गई होंगी।

(((-इन हक़ाएक़ का सही इज़हार वही कर सकता है जो यक़ीन की इस आखि़री मंज़िल पर फ़ाएज़ हो जिसके बाद खुद यह एलान करता हो के अब अगर पर्दे हटा भी दिये जाएं तो यक़ीन में किसी तरह का इज़ाफ़ा नहीं हो सकता और हक़ीक़ते अम्र यह है के इस्लाम में अहले ज़िक्र सिर्फ़ साहेबाने इल्म व फ़ज़ल का नाम नहीं है बल्कि ज़िक्रे इलाही का अहल बनाकर उन अफ़राद को क़रार दिया गया है जो तक़वा और परहेज़गारी की आखि़री मन्ज़िल पर हों और आखि़रत को अपनी निगाहों से देखकर सारी दुनिया को राह व चाह से आगाह कर रहे हों। मलाएका मुक़र्रबीन में उनके गिर्द घेरे डाले हों लेकिन इसके बाद भी अज़मत व जलाले इलाही के तसव्वुर अपने आमाल को बेक़ीमत समझ कर लरज़ रहे हों और मुसलसल अपनी कोताहियों का इक़रार कर रहे हों। -)))
ऐसे मक़ाम पर जहां मालिक की निगाह उनकी तरफ़ हो और वह उनकी सई से राज़ी हो और उनकी मन्ज़िल की तारीफ़ कर रहा हो। वह मालिक को पुकारने की फ़रहत से बख़्िशश की हवाओं में सांस लेते हों। उसके फ़ज़्ल व करम की एहतियाज के हाथों रेहन (गिरवीं) हों और उसकी अज़मत के सामने ज़िल्लत के असीर हों। ग़म व अन्दोह के तूले ज़मान ने उनके दिलों को मजरूह कर दिया हो और मुसलसल गिरया ने उनकी आंखों को ज़ख़्मी कर दिया हो। मालिक की तरफ़ रग़बत के हर दरवााज़े को खटखटा रहे हों और उससे सवाल कर रहे हों जिसके जूदो करम की वुसअतों में तंगी नहीं आती है और जिसकी तरफ़ रग़बत करने वाले कभी मायूस नहीं होते हैं। देखो अपनी भलाई के लिये ख़ुद अपने नफ़्स का हिसाब करो के दूसरों के नफ़्स का हिसाब करने वाला कोई और है।


223-आपका इरशादे गिरामी(जिसे आयत ‘ारीफ़ ‘‘ या अय्योहल इन्सान मा ग़ौका बे रब्बेकल करीम...’’ (ऐ इन्सान तुझे ख़ुदाए करीम के बारे में किस ‘ौ ने धोके में डाल दिया है?)  के ज़ैल में इरशाद फ़रमाया है)

देखो यह इन्सान जिससे यह सवाल किया गया है वह अपनी दलील के एतबार से किस क़द्र कमज़ोर है और अपने फ़रेबखोरदा होने के एतबार से किस क़द्र नाक़िस माज़ेरत का हामिल है। यक़ीनन उसने अपने नफ़्स को जेहालत की सख़्ितयों में मुब्तिला कर दिया है।
ऐ इन्सान! सच बता, तुझे किस ‘ौ ने गुनाहों की जराअत दिलाई है और किस चीज़ ने परवरदिगार के बारे में धोके में रखा है और किस अम्र ने नफ़्स की हलाकत पर भी मुतमईन बना दिया है, क्या तेरे इस मर्ज़ का कोई इलाज और तेरे इस ख़्वाब की कोई बेदारी नहीं है और क्या अपने नफ़्सपर इतना भी रहम नहीं करता है जितना दूसरों पर करता है के जब कभी आफ़ताब की हरारत में किसी को तपता देखता है तो साया कर देता है या किसी को दर्द व रन्ज में मुब्तिला देखता है तो उसके हाल पर रोने लगता है तो आखि़र किस ‘ौ ने तुझे ख़ुद अपने मर्ज़ पर सब्र दिला दिया है। और अपनी मुसीबत पर सामाने सुकून फ़राहम कर दिया है और अपने नफ़्स पर रोने से रोक दिया है जबके वह तुझे सबसे ज़्यादा अज़ीज़ है, और क्यों रातों रात अज़ाबे इलाही के नाज़िल हो जाने का तसव्वुर तुझे बेदार नहीं रखता है जबके तू उसकी नाफ़रमानियों की बिना पर उसके क़हर व ग़लबे की राह में पड़ा हुआ है।
अभी ग़नीमत है के अपने दिल की सुस्ती का अज़्म रासिख़ से इलाज कर ले और अपनी आंखों में ग़फ़लत की नीन्द का बेदर्दी से मदावा कर ले अल्लाह का इताअत गुज़ार बन जा। उसकी याद से उन्स हासिल कर और उस अम्र का तसव्वुर कर के किस तरह वह तेरे दूसरों की तरफ़ मुंह मोड़ लेने के बावजूद वह तेरी तरफ़ मुतवज्जेह रहता है। तुझे माफ़ी की दावत देता है। अपने फ़ज़्ल व करम में ढांप लेता है हालांके तू दूसरों की तरफ़ रूख़ किये  हुए है। बलन्द व बााला है वह साहेबे क़ूवत जो इस क़द्र करम करता है और ज़ईफ़ व नातवां है तू इन्सान जो उसकी मासीयत की इस क़द्र जराअत रखता है जबके उसी के ऐबपोशी के हमसाये में मुक़ीम है और उसी के फ़ज़्ल व करम की वुसअतों में करवटें बदल रहा है। वह न अपने फ़ज़्ल व करम को तुझसंे रोकता है और न तेरे परदाएराज़ को फ़ाश करता है।
(((-हक़ीक़ते अम्र यह है के इन्सान आखि़रत की तरफ़ से बिलकुल ग़फ़लत का मुजस्समा बन गया है के दुनिया में किसी को तकलीफ़ में नहीं देख पाता है और उसकी दादरसी के लिये तैयार हो जाता है और आखि़रत में पेश आने वाले ख़ुद अपने मसाएब की तरफ़ से भी यकसर ग़ाफ़िल है और एक लम्हे के लिये भी आफ़ताबे महशर के साये और गर्मी क़यामत की तश्नगी का इन्तेज़ाम नहीं करता है। बल्कि बाज़ औक़ात इसका मज़ाक़ भी उड़ाता है ‘‘इन्ना लिल्लाहे .....’’-)))
यह तो पलक झपकने के बराबर भी इसकी मेहरबानियों से ख़ाली नहीं है, कभी नई नई नेमतें अता करता है, कभी बुराइयों की परदापोशी करता है और कभी बलाओं को रद कर देताा है जबके तू इसकी मासियत कर रहा है तो सोच अगर तू इताअत करता तो क्या होता?
ख़ुदा गवाह है के अगर यह बरताव दो बराबर की क़ूवत व क़ुदरत वालों के दरम्यान होता और तू दूसरे के साथ ऐसा ही बरताव करता तो ख़ुद ही सबसे पहले अपने नफ़्स  के बदएख़लाक़ और बदअमल होने का फ़ैसला कर देता लेकिन अफ़सोस?
मैं सच कहता हूं के दुनिया ने तुझे धोका नहीं दिया है तूने दुनिया से धोका खाया है, उसने तो नसीहतों को खोल कर सामने रख दिया है और तुझे हर चीज़ से बराबर आगाह किया है। उसने जिस्म पर जिन नाज़िल होने वाली बलाओं का वादा किया है और क़ूवत में जिस कमज़ोरी की ख़बर दी है उसमें वह बिलकुल सही और वफ़ाए अहद करने वाली है। न झूठ बोलने वाली है और न धोका देने वाली। बल्कि बहुत से उसके बारे में नसीहत करने वाले हैं जो  तेरे नज़दीक नाक़ाबिले एतबार हैं और सच-सच बाोलने वाले हैं जो तेरी निगाह में झूठे हैं।
अगर तूने उसे गिर पड़े मकानात और ग़ैर आबाद मन्ज़िलों में पहचान लिया होता तो देखता के वह अपनी याद देहानी और बलीग़तरीन नसीहत में तुझपर किस  क़द्र मेहरबान है और तेरी तबाही के बारे  में किसी क़द्र बुख़ल से काम लेती है।
यह दुनिया उसके लिये बेहतरीन घर है जो इसको घर बनाने से राज़ी न हो और उसके लिये बेहतरीन वतन है जो इसे वतन बनाने पर आमादा न हो, इस दुनिया के रहने वालों में कल के दिन नेक बख़्त वही होंगे जो आज इससे गुरेज़ करने पर आमादा हों।
देखो जब ज़मीन काो ज़लज़ला आ जाएगाा और क़यामत अपनी अज़ीम मुसीबतों के साथ खड़ी हो जाएगी और हर इबादतगाह के साथ उसके इबादत गुज़ार, हर माबूद के साथ उसके बन्दे और हर क़ाबिले इताअत के साथ उसके मुतीअ व फ़रमाबरदार मुलहक़ कर दिये जाएंगे तो कोई हवा में शिगाफ़ करने वाली निगाह और ज़मीन पर पड़ने वाले क़दम की आहट ऐसी न होगी जिसका अद्ल व इन्साफ़ के साथ पूरा बदला न दे दिया जाए। उस दिन कितनी ही दलीलें होंगी जो बेकार हो जाएंगी और कितने ही माज़ेरत के रिश्ते होंगे जो कट के रह जाएंगे।
लेहाज़ा मुनासिब है के अभी से इन चीज़ों को तलाश कर लो जिनसे उज़्र क़ायम हो सके और तुम्हारी हुज्जतें साबित हो सकें। जिस दुनिया में तुमको नहीं रहना है उसमें से वह ले लो जो तुम्हारे लिये हमेशा बाक़ी रहने वाली हैं निजात की रोशनी की चमक देख लो और आमादगी की सवारियों पर सामान बार कर लो।

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