Thursday, May 12, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khat 28-30 नहजुल बलाग़ा हिन्दी 28-30 ख़त

28-आपका मकतूबे गिरामी(माविया के ख़त के जवाब में जो बक़ौल सय्यद रज़ी आपका बेहतरीन ख़ुत्बा है)

अम्माबाद! मेरे पास तुम्हारा ख़त आया है जिसे तुमने रसूले अकरम (स0) के दीने ख़ुदा के लिये मुन्तख़ब होने और आपके परवरदिगार की तरफ़ से असहाब के ज़रिये उनको क़ूवत व तवानाई मिलने का ज़िक्र किया है लेकिन यह तो एक बड़ी अजीब व ग़रीब बात है जो ज़माने ने तुम्हारी तरफ़ से छिपाकर रखी थी के तुम हमको उन एहसानात की इत्तेलाअ दे रहे हो जो परवरदिगार ने हमारे ही साथ किये हैं और उस नेमत की ख़बर दे रहे हो जो हमारे ही पैग़म्बर (स0) को मिली है। गोया के तुम मक़ामे हिज्र की तरफ़ ख़ुरमे भेज रहे हो या उस्ताद को तीरअन्दाज़ी की दावत दे रहे हो।
इसके बाद तुम्हारा ख़याल है के फ़ुलां और फ़ुलां तमाम अफ़राद बेहतर थे तो यह ऐसी बात है के अगर सही भी हो तो इस काम से कोई ताल्लुक़ नहीं है और अगर ग़लत भी हो तो तुम्हारा कोई नुक़सान नहीं है। तुम्हारा इस फ़ाज़िल व मफ़ज़ूल, हाकिम व रिआया के मसले से क्या ताल्लुक़ है, भला आज़ादकर्दा और उनकी औलाद को मुहाजेरीन अव्वलीन के दरम्यान इम्तियाज़ क़ायम करने, उनके दरजात का ताअय्युन करने और उनके तबक़ात के पहुंचाने का हक़ क्या है (यह तो उस वक़्त मुसलमान भी नहीं थे) अफ़सोस के जुए के तीरों के साथ बाहर के तीर भी आवाज़ निकालने लगे और मसाएल में वह लोग भी करने लगे जिनके खि़लाफ़ ख़ुद ही फ़ैसला होने वाला है।
 
(((-माविया ने ख़त अबू इमामा बाहेली के ज़रिये भेजा था और इसमें मुतादद मसाएल की तरफ़ इशारा किया था, सबसे बड़ा मसला हज़रात ‘ौख़ीन के फ़ज़ाएल का था के हज़रत अली (अ0) के साथ अकसरीयत उन्हीं अफ़राद की थी जो आपको सिलसिले से चैथा ख़लीफ़ा तस्लीम करते थे, अब अगर उनके बारे में अपनी सही राय का इज़हार कर दे ंतो क़ौम बदज़न हो जाएगी और मुआशरे में एक नया फ़ितना खड़ा हो जाएगा और अगर उनके फ़ज़ाएल का इक़रार कर लें तो गोया इन तमाम कलेमात की तकज़ीब कर दी जो कल तक अपनी फ़ज़ीलत या मज़लूमियत के बारे में बयान करते थे।
हज़रत ने इस हस्सास सूरते हाल का बख़ूबी अन्दाज़ा कर लिया और वाज़ेह जवाब देने के बजाय माविया को इस मसले से अलग रहने की तलक़ीन फ़रमाई और उसे इसकी औक़ात से भी बाख़बर कर दिया के यह मसले सद्रे इस्लाम का है और उस वक़्त तो तुम्हारा बाप भी मुसलमान नहीं था तुम्हारा क्या ज़िक्र है? लेहाज़ा ऐसे मसाएल में तुम्हें राय देने का कोई हक़ नहीं है, अलबत्ता यह बहरहाल साबित हो जाता है के इन फ़ज़ाएल में तुम्हारे ख़ानदान का कोई ज़िक्र नहीं है।-)))

ऐ ‘ाख़्स तू अपने लंगड़ेपन को देखकर अपनी हद पर ठहरता क्यों नहीं है और अपनी कोताह दस्ती को समझता क्यों नहीं है और जहां क़ज़ा व क़द्र का फै़सला तुझे पीछे हटा चुका है वहीं पीछे हट कर जाता क्यों नहीं है। तुझे किसी मग़लूब की शिकस्त या ग़ालिब की फ़तेह से क्या ताल्लुक़ है।
तू तो हमेशा गुमराहियों में हाथ पांव मारने वाला और दरम्यानी राह से इन्हेराफ़ करने वाला है, मैं तुझे बाख़बर नहीं कर रहा हूँ बल्कि नेमते ख़ुदा का तज़किरा कर रहा हूं वरना क्या तुझे नहीं मालूम है के मुहाजेरीन व अन्सार की एक बड़ी जमाअत ने राहे ख़ुदा में जानें दी हैं और सब साहेबाने फ़ज़्ल हैं लेकिन जब हमारा कोई ‘ाहीद हुआ है तो उसे सय्यदुशशोहदा कहा गया है और रसूले अकरम (स0) ने उसके जनाज़े की नमाज़ में सत्तर तकबीरें कही हैं। इसी तरह तुझे मालूम है के राहे ख़ुदा में बहुत सों के हााथ कटे हैं और साहेबाने ‘ारफ़ हैं लेकिन जब हमारे आदमी के हाथ काटे गए तो उसे जन्नत में तय्यार और ज़ुलजनाहीन बना दिया गया और अगर परवरदिगार ने अपने  मुंह से अपनी तारीफ़ से मना न किया होता तो बयान करने वाला बेशुमार फ़ज़ाएल बयान करता जिन्हें साहेबाने ईमान के दिल पहचानते हैं और सुनने वालों के कान भी अलग नहीं करना चाहते हैं। छोड़ो उनका ज़िक्र जिनका तीर निशाने से ख़ता करने वाला है, हमें देखो जो परवरदिगार के बराहेरास्त साख़्ता व परदाख़्ता हैं और बाक़ी लोग हमारे एहसानात का नतीजा हैं। हमारी क़दीमी इज़्ज़त और तुम्हारी क़ौम पर बरतरी हमारे लिये इस अम्र से मानेअ नहीं  हुई के हमने तुमको अपने साथ ‘ाामिल कर लिया तो तुमसे रिश्ते लिये और तुम्हें रिश्ते दिये जो आम से बराबर के लोगों में किया जाता है और तुम हमारे बराबर के नहीं हो और हो भी किस तरह सकते हो जबके हममें से रसूले अकरम (स0) हैं और तुममें से इनकी तकज़ीब करने वाला, हम में से असदुल्लाह हैं और तुममें से असदुल हलाफ़, हम में सरदाराने जवानाने जन्नत हैं और तुम में जहन्नुमी लड़के, हममें सय्यदते निसाइल आलमीन हैं और तुम में हम्मालतल हतब और ऐसी बेशुमार चीज़ें हैं जो हमारे हक़ में हैं और तुम्हारे खि़लाफ़। हमारा इस्लाम भी मशहूर है और हमारा क़ब्ले इस्लाम का ‘ारफ़ भी नाक़ाबिले इनकार है और किताबे ख़ुदा ने हमारे मुन्तशिर औसाफ़ को जमा कर दिया है, यह कहकर के ‘‘क़राबतदार बाज़ बाज़ के लिये ऊला हैं’’ और यह कहकर के ‘‘इब्राहीम के लिये ज़्यादा क़रीबतर वह लोग हैं जिन्होंने उनका इत्तेबाअ किया है और यह पैग़म्बर (स0) और साहेबाने ईमान और अल्लाह साहेबाने ईमान का वली है।
 
(((-यह उस अम्र की तरफ़ इशारा है के रसूले अकरम (स0) ने अपने हाथ की परवरदा लड़कियों का अक़्द बनी उमय्या में कर दिया और अबू सुफ़ियान की बेटी उम्मे हबीबा से ख़ुद अक़्द कर लिया हालांके आम तौर से लोग रिश्तों के लिये बराबरी तलाश करते हैं, मगर चूंके इस्लाम ने ज़ाहिरी कलमे को काफ़ी क़रार दिया है लेहाज़ा हमने भी रिश्तेदारी क़ायम कर ली और तुम्हारी औक़ात का ख़याल नहीं किया ताके मज़हब समाज पर हाकिम रहे और समाज मज़हब पर हुकूमत न करने पाए।-)))
 
यानी हम क़राबत के एतबार सेे भी ऊला हैं और इताअत व इत्त्तेबाअ के ऐतबार से भी, इसके बाद जब मुहाजेरीन ने अन्सार के खि़लाफ़ रोज़ सक़ीफ़ा क़राबते पैग़म्बर (स0) से इस्तेदलाल किया और कामयाब भी हो गए, तो अगर कामयाबी का राज़ यही है तो हक़ हमारे साथ है न के तुम्हारे साथ और अगर कोई और दलील है तो अन्सार का दावा बाक़ी है।
 
तुम्हारा ख़याल है के मैं ख़ोलफ़ा से हसद रखता हूँ और मैंने सबके खि़लाफ़ बग़ावत की है तो अगर यह सही भी है तो इसका ज़ुल्म तुम पर नहीं है के तुमसे माज़ेरत की जाए, (यह वह ग़लती है जिससे तुम पर कोई हर्फ़ नहीं आता) बक़ौल ‘ाायर 
 
और तुम्हारा यह कहना के मैं इस तरह खींचा जा रहा था जिस तरह नकेल डालकर ऊंट को खींचा जाता है ताके मुझसे बैअत ली जाए तो ख़ुदा की क़सम तुमने मेरी मज़म्मत करना चाही और नादानिस्ता तौर पर तारीफ़ कर बैठे और मुझे रूसवा करना चाहा था मगर ख़ुद रूसवा हो गए।
 
मुसलमान के लिये इस बात में कोई ऐब नहीं है के वह मज़लूम हो जाए जब तक के वह दीन के मामले में ‘ाक में मुब्तिला न हो, और इसका यक़ीन ‘ाुबह में न पड़  जाए, मेरी दलील असल में दूसरों के मुक़ाबले में है लेकिन जिस क़द्र मुनासिब था मैंने तुमसे भी बयान कर लिया।
 
इसके बाद तुमने मेरे और उस्मान के मामले का ज़िक्र किया है तो इसमें तुम्हारा हक़ है के तुम्हें जवाब दिया जाए इसलिये के तुम उनके क़राबतदार हो लेकिन यह सच सच बताओ के हम दोनों में उनका ज़्यादा दुश्मन कौन था और किसने उनके क़त्ल का सामान फ़राहम किया था, उसने जिसने नुसरतत की पेशकश की और उसे बिठा दिया गया और रोक दिया गया या उसने जिससे नफ़रत का मुतालेबा किया गया और उसने सुस्ती बरती और मौत का रूख़ उनकी तरफ़ मोड़ दिया यहां तक के क़ज़ा व क़द्र ने अपना काम पूरा कर दिया, ख़ुदा की क़सम मैं हरगिज़ इसका मुजरिम नहीं हूँ और अल्लाह उन लोगों को भी जानता है जो रोकने वाले थे और अपने भाइयों से कह रहे थे के हमारी तरफ़ चले आओ और जंग में बहुत कम हिस्सा लेने वाले थे।
 
मैं उस बात की माज़ेरत नहीं कर सकता के मैं उनकी  बिदअतों पर बराबर एतराज़ कर रहा था के अगर यह इरशाद और हिदायत भी कोई गुनाह था तो बहुत से ऐसे लोग होते हैं जिनकी बेगुनाह भी मलामत की जाती है और ‘‘कभी कभी वाक़ई नसीहत करने वाले भी बदनाम हो जाते हैं’’ मैंने अपने इमकान भर इसलाह की कोशिश की और मेरी तौफ़ीक़ सिर्फ़ अल्लाह के सहारे है, उसी पर मेरा भरोसा है और उसी की तरफ़ मेरी तवज्जो है।’’
 
तुमने यह भी ज़िक्र किया है के तुम्हारे पास मेरे और मेरे असहाब के लिये तलवार के अलावा कुछ नहीं है तो यह कहकर तुमने रोते को हंसा दिया है, भला तुमने औलादे अब्दुल मुत्तलिब को कब दुश्मनों से पीछे हटते या तलवार से ख़ौफ़ज़दा होते देखा है?
 
‘‘ज़रा ठहर जाओ के हमल मैदान जंग तक पहुंच जाए’’ (शायर)
 
(((-क़यामत की बातत है के माविया तलवार की धमकी साहबे ज़ुलफ़ेक़ार को दे रहा है जबके उसे मालूम है के अली (अ0) उस बहादुर का नाम है जिसने दस बरस की उम्र में तमाम कुफ़्फ़ार व मुशरेकीन से रसूले अकरम (स0) को बचाने का वादा किया था और हिजरत की रात तलवार की छांव में निहायत सुकून व इतमीनान से सोया है और बद्र के मैदान में तमााम रोसाए कुफ़्फ़ार व मुशरेकीन और ज़ामाए बनी उमय्या का तनो तन्हा ख़ात्मा कर दिया है।-)))
 
अनक़रीब जिसे तुम ढूंढ रहे हो वह तुम्हें ख़ुद ही तलाश कर लेगा और जिस चीज़ को बईद ख़याल कर रहे हो उसे क़रीब कर देगा। अब मैं तुम्हारी तरफ़ मुहाजेरीन व अन्सार के लश्कर के साथ बहुत जल्द आ रहा हूँ और मेरे साथ वह भी हैं जो उनके नक़्शे क़दम पर ठीक तरीक़े से चलने वाले हैं, इनका हमला ‘ादीद होगा और ग़ुबारे जंग सारी फ़िज़ा में मुन्तशिर होगा। यह मौत का लिबास पहने होंगे और उनकी नज़र में बेहतरीन मुलाक़ात परवरदिगार की मुलाक़ात होगी, उनके साथ असहाबे बद्र की ज़ुर्रियत और बनी हाशिम की तलवारें होंगी। तुमने उनकी तलवारों की काट अपने भाई, मामू, नाना और ख़ानदान वालों में देख ली है और वह ज़ालिमों से अब भी दूर नहीं है।’’
 

29-आपका मकतूबे गिरामी
(अहले बसरा के नाम)
 
तुम्हारी तफ़रिक़ा परवाज़ी और मुख़ालफ़त का जो आलम था वह तुमसे मख़फ़ी नहीं है लेकिन मैंने तुम्हारे मुजरिमों को माफ़ कर दिया, भागने वालों से तलवार उठा ली, आने वालों को बढ़कर गले लगा लिया, अब इसके बाद भी अगर तुम्हारी तबाह कुन आराए और तुम्हारे ज़ालिमाना उफ़कार की हिमाक़त तुम्हें मेरी उलफ़त और अहद शिकनी पर आमादा कर रही है तो याद रखो के मैंने घोड़ों को क़रीब कर लिया है, ऊंटों पर सामान बार कर लिया है और अगर तुमने घर से निकलने पर मजबूर ककर दिया तो ऐसी मारेका आराई करूंगा के जंगे जमल फ़क़त ज़बान की चाट रह जाएगी।
 
मैं तुम्हारे इताअत गुज़ारों के ‘ारफ़ को पहचानता हूँ और मुखलेफ़ीन के हक़ को जानता हूँ, मेरे लिये यह मुमकिन नहीं है के मुजरिम से आगे बढ़कर बेख़ता पर हमला कर दूँ या अहद शिकन से तजावुज़ करके वफ़ादार से भी तारिज़ करूं (वफ़ादार को भी लपेट लूं)।
 

30  - आपका मकतूबे गिरामी
(माविया के नाम)
 
जो कुछ साज़ व सामान तुम्हारे पास है उसमें अल्लाह से डरो और जो उसका हक़ तुम्हारे ऊपर है उस पर निगाह रखो, उस हक़ की फ़ुरक़त की तरफ़ पलट आओ (उन हक़ को पहचानो) जिससे नावाक़फ़ीयत क़ाबिले माफ़ी नहीं है, देखो इताअत के निशानात वाज़ेह, रास्ते रौशन, ‘ााहेराहें सीधी हैं और मन्ज़िले मक़सूद सामने है जिस पर तमाम अक़्ल वाले वारिद होते हैं।
 
(((-पहले अहले बसरा ने वफ़ादारी का एलान किया तो हज़रत ने उस्मान बिन हनीफ़ को आमिल बनाकर भेज दिया, इसकेबाद आइशा वारिद हूईं तो अक्सरीयत मुनहरिफ़ हो गई और जंगे जमल की नौबत आ गई लेकिन आपने आम तौर से सबको माफ़ कर दिया और आइशा भी मदीने वापस चली गईं,  लेकिन माविया ने फ़िर दोबारा वरग़लाना ‘ाुरू कर दिया तो आपने यह तन्बीही ख़त रवाना फ़रमाया के जंगे जमल तो सिर्फ़ मज़ा चखाने के लिये थी, जंग तो अब होने वाली है लेहाज़ा होश में आजाओ और माविया के बहकाने पर राहे हक़ से इन्कार न करो-)))
 
और पस्त फ़ितरत इसकी मुख़ालफ़त करते हैं, जो इस हदफ़ से मुनहरिफ़ हो गया वह राहे हक़ से हट गया और गुमराही में ठोकरें खाने लगा, अल्लाह ने उसकी नेमतों को सल्ब कर लिया और अपना अज़ाब उस पर वारिद कर दिया, लेहाज़ा अपने नफ़्स का ख़याल रखो और उसे हलाकत से बचाओ के परवरदिगार ने तुम्हारे लिये रास्ते को वाज़ेह कर दिया है और वह मन्ज़िल बता दी है जहां तक उमूर को जाना है, तुम निहायत तेज़ी से बदतरीन ख़सारे और कुफ्ऱ की मन्ज़िल की तरफ़ भागे जा रहे हो, तुम्हारे नफ़्स ने तुम्हें बदबख़्ती में डाल दिया है और गुमराही में झोंक दिया है, हलाकत की मन्ज़िलों में वारिद कर दिया है और सही रास्तों को दुश्वार गुज़ार बना दिया है।

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