Friday, May 6, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khat 1-5 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़त/मकतूब 1-5


बाबे तहरीरात

    इसमें मौलाए कायनात अमीरूल मोमेनीन (अ0) के वह ख़ुतूत और तहरीरें दर्ज हैं जो आपने अपने मुख़ालेफ़ीन और अपने क़लमर्द के मुख़्तलिफ़ ‘ाहरों के हाकमो के नाम भेजी हैं और इसमें कारिन्दों के ना जो हुकूमत के परवाने और अपने साहेबज़ादों और साथियों के नाम जो वसीयत नामे लिखे हैं याा हिदायतें की हैं, उनका इन्तेख़ाब भाी दर्ज है। अगरचे हज़रत का तमाम का तमाम कलाम इन्तेख़ाब में आने के लायक़ है।

मकतूब-1(जो मदीने से बसरे की जानिब रवाना होते हुए अहले कूफ़ा के नाम तहरीर किया)

  ख़ुदा के बन्दे अली अमीरूल मोमेनीन (अ0) की तरफ़ से अहले कूफ़ा के नाम जो मददगारों में सरबरावरदा, और क़ौमे अरब में बलन्द नाम हैं, मैं उस्माान के मामले से तुम्हें इस तरह आगाह किये देता हूँ के सुनने और देखने में कोई फ़र्क़ न रहे। लोगों ने उन पर एतराज़ात किये तो मुहाजेरीन में से एक मैं ऐसा था जो ज़्यादा से ज़्यादा कोशिश करता था के इनकी मर्ज़ी के खि़लाफ़ कोई बात न हो और शिकवा-शिकायत बहुत कम करता था। अलबत्ता उनके बारे में तल्हा व ज़ुबैर की हल्की से हल्की रफ़्तार भी तुन्द व तेज़ थी और नर्म से नर्म आवाज़ भी सख़्ती व दरश्ती लिये हुए थी, और उन पर आइशा को भी बेतहाशा ग़ुस्सा था चुनांचे एक गिरोह आमादा हो गया और उसने उन्हें क़त्ल कर दिया और लोगों ने मेरी बैयत कर ली इस तरह के न उन पर कोई ज़बरदस्ती थी और न उन्हें मजबूर किया गया था बल्कि उन्होंने रग़बत व इख़्तेयार से ऐसा किया।
और तुम्हें मालूम होना चाहिये के दारूल बहत (मदीना) अपने रहने वालों से ख़ाली हो गया है और इसके बाशिन्दों के क़दम वहां से उखड़ चुके हैं और वह देग की तरह उबल रहा है और फ़ित्ने की चक्की चलने लगी है लेहाज़ा अपने अमीर की तरफ़ तेज़ी से बढ़ो और अपने दुश्मनों से जेहाद करने के लिये जल्दी से निकल खड़े हो।

मकतूब-2(जिसे अहले कूफ़ा के नाम बसरा की फ़तेह के बाद लिखा गया)

‘ाहरे कूफ़ा वालों! ख़ुदा तुम्हें तुम्हारे पैग़म्बर (स0) के अहलेबैत (अ0) की तरफ़ से जज़ाए ख़ैर दे, ऐसी बेहतरीन जज़ा जो उसकी इताअत पर अमल करने वालों और उसकी नेमतों का ‘ाुक्रिया अदा करने वालों को दी जाती है, के तुमने मेरी बात सुनी और इताअत की, तुम्हें पुकारा गया तो तुमने मेरी आवाज़ पर लब्बैक कही।

मकतूब-3(अपने क़ाज़ी ‘ारीह के नाम)

कहा जाता है के अमीरूलमोमेनीन (अ0) के एक क़ाज़ी ‘ारीह बिन अलहारिस ने आपके दौर में अस्सी दीनार का एक मकान ख़रीद लिया तो हज़रत ने ख़बर पाते ही उसे तलब कर लिया और फ़रमाया के मैंने सुना है तुमने अस्सी दीनार का मकान ख़रीद लिया है और उसके लिये सयामा (दस्तावेज़) भी लिखा है और इस पर गवाही भी ले ली है?
‘ारीह ने कहा के ऐसा तो हुआ है। आपको ग़ुस्सा आ गया और फ़रमाया
‘ारीह! अनक़रीब तेरे पास वह ‘ाख़्स आने वाला है जो न इस तहरीर को देखेगा और न तुझ से गवाहों के बारे में सवाल करेगा बल्कि तुझे उस घर से निकाल कर तनो तन्हा क़ब्र के हवाले कर देगा।
अगर तुमने यह मकान दूसरे के माल से ख़रीदा है और ग़ैर हलाल से क़ीमत अदा की है तो तुम्हें दुनिया और आखि़रत दोनों में ख़सारा होगा।
(((-साहब आग़ानी ने इस वाक़ेए को नक़्ल किया है के अमीरूल मोमेनीन (अ0) का इख़्तेलाफ़ एक यहूदी से हो गया जिसके पास आपकी ज़िरह थी, उसने क़ाज़ी से फै़सला कराने पर इसरार किया, आप यहूदी के साथ ‘ारीह के पास आए, उसने आपसे गवाह तलब किये, आपने क़म्बर और इमाम हुसैन (अ0) को पेश किया, ‘ारीह ने क़म्बर की गवाही क़ुबूल कर ली और इमाम हसन (अ0) की गवाही फ़रज़न्द होने की बिना पर रद कर दी, आपने फ़रमाया के रसूले अकरम (स0) ने उन्हें सरदारे जवानाने जन्नत क़रार दिया है और तुम उनकी गवाही को रद कर रहे हो? लेकिन इसके बावजूद आपने फ़ैसले का ख़याल करते हुए ज़िरह यहूदी को दे दी। उसने वाक़ेए को निहायत दरजए हैरत की निगाह से देखा और फिर कलमए ‘ाहादतैन पढ़ कर मुसलमान हो गया। आपने ज़िरह के साथ उसे घोड़ा भी दे दिया और 900 दिरहम वज़ीफ़ा मुक़र्रर कर दिया। वह मुस्तक़िल आपकी खि़दमत में हाज़िर रहा यहां तक के सिफ़्फ़ीन में दरजए ‘ाहादत पर फ़ाएज़ हो गया।
इस वाक़ेए से अन्दाज़ा होता है के इमाम अलैहिस्सलाम का किरदार क्या था और ‘ारीह की बदनफ़्सी का क्या आलम था और यहूदी के ज़र्फ़ में किस क़द्र सलाहियत पाई जाती थी।)))

याद रखो अगर तुम इस मकान को ख़रीदते वक़्त मेरे पास आते तो मुझसे दस्तावेज़ लिखवाते तो एक दिरहम में भी खरीदने के लिये तैयार न होते, अस्सी दिरहम तो बहुत बड़ी बात है। मैं उसकी दस्तवेज़ इस तरह लिखता-
यह वह मकान है जिससे एक बन्दाए ज़लील ने उस मरने वाले से ख़रीदा है जिसे कूच के लिये आमादा कर दिया गया है। यह मकान दुनियाए पुरफ़रेब में वाक़ेअ है जहाँ फ़ना होने वालों की बस्ती है और हलाक होने वालों का इलाक़ा है, इस मकान के हुदूद राबइयाा हैं।
एक हद असबाबे आफ़ात की तरफ़ है और दूसरी असबाबे मसाएब से मिलती है, तीसरी हद हलाक कर देने वाली ख़्वाहिशात की तरफ़ है और चैथी गुमराह करने वाले ‘ौतान की तरफ़ और इसी तरफ़ इस घर का दरवाज़ा खुलता है।
इस मकान को उम्मीदों के फ़रेब ख़ोरदा ने अजल के राहगीर से ख़रीदा है जिसके ज़रिये क़नाअत की इज़्ज़त से निकल कर तलब व ख़्वाहिश की ज़िल्लत में दाखि़ल हो गया है। अब अगर इस ख़रीदार को इस सौदे में कोई ख़सारा हो तो यह उस ज़ात की ज़िम्मेदारी है जांे बादशाहों के जिस्मों का तहो बाला करने वाला, जाबिरों की जान निकाल लेने वाला, फ़िरऔनों की सलतनत को तबाह कर देने वाला, कसरा व क़ैसर तबअ व हमीर और ज़्यादा से ज़्यादा माल जमा करने वालों, मुस्तहकम इमारतें बना कर उन्हें सजाने वालों, उनमें बेहतरीन फ़र्श बिछाने वालों और औलाद के ख़याल से ज़ख़ीरा करने वालों और जागीरें बनाने वालों को फ़ना के घाट उतार देने वाला है के इन सबको क़यामत के मौक़फ़ हिसाब और मन्ज़िले सवाब व अज़ाब में हाज़िर कर दे जब हक़ व बातिल का हतमी फ़ैसला होगा और अहले बातिल यक़ीनन ख़सारे में होंगे।
इस सौदे पर इस अक़्ल ने गवाही दी है जो ख़्वाहिशात की क़ैद से आज़ाद और दुनिया की वाबस्तगीयों से महफ़ूज़ है’’
(((-जब असहाबे जमल बसरा में वारिद हुए तो वहाँ के आमिल उस्मान बिन हनीफ़ ने आपके नाम एक ख़त लिखा जिसमें बसरा की सूरते हाल काा ज़िक्र किया गया था। आपने इसके जवाब में तहरीर फ़रमायाा के जंग में पहल करना हमारा काम नहीं है लेहाज़ा तुम्हारा पहला काम यह है के उन पर एतमामे हुज्जत करो फिर अगर इताअते इमाम (अ0) पर आमादा हो जाएं तो बेहतरीन बात है वरना तुम्हारे पास फ़रमाबरदार क़िस्म के अफ़राद मौजूद हैं, उन्हें साथ लेकर ज़ालिमों का मुक़ाबला करना और ख़बरदार जंग के मामले में किसी पर किसी क़िस्म का जब्र न करना के जंग का मैदान क़ुरबानी का मैदान है और इसमें वही अफ़राद साबित क़दम रह सकते हैं जो जान व दिल से क़ुरबानी के लिये तैयार हों वरना अगर बादल न ख़्वास्ता फ़ौज इकट्ठा भी कर ली गई तो यह ख़तरा बहरहाल रहेगा के यह ऐन वक़्त पर छोडड़ कर फ़रार कर सकते हैं जिसका तजुर्बा तारीख़़े इस्लाम में बारहा हो चुका है और जिसका सबूत ख़ुद क़ुराने हकीम में मौजूद है।-)))

मकतूब-4बाज़ अम्राए लश्कर के नाम

अगर दुश्मन इताअत के ज़ेरे साया आ जाएं तो यही हमारा मुद्दआ है और अगर मुआमलात इफ़तेराक़ और नाफ़रमानी की मन्ज़िल ही की तरफ़ बढ़े ंतो तुम अपने इताअत गुज़ारों को लेकर नाफ़रमानों के मुक़ाबले में उठ खड़े हो और अपने फ़रमाबरदारों के वसीले से इन्हेराफ़ करने वालों से बेनियाज़ हो जाओ के बादल नाख़्वास्ता हाज़िरी देने वालों की हाज़िरी से ग़ैबत बेहतर है (जो बददिली से साथ हो उसका न होना होने से बेहतर है) और उनका बैठ जाना ही उठ जाने से ज़्यादा मुफ़ीद है।

मकतूब-5(आज़रबैजान के आमिल अशअस बिन क़ैस के नाम)
यह तुम्हारा मन्सब कोई लुक़्मए तर नहीं है बल्कि तुम्हारी गर्दन पर अमानते इलाही है और तुम एक बलन्द हस्ती के ज़ेरे निगरानी हिफ़ाज़त पर माामूर हो, तुम्हें रिआया के मामले में इस तरह के एक़दाम का हक़ नहीं है और ख़बरदार किसी मुस्तहकम दलील के बग़ैर किसी बड़े काम में हाथ मत डालना, तुम्हारे हाथों में जो माल है यह भी परवरदिगार के असवाल का एक हिस्सा है और तुम इसके ज़िम्मेदार हो जब तक मेरे हवाले न कर दो, बहरहाल ‘ाायद इस नसीहत की बिना पर मैं तुम्हारा बुरा वाली न हूंगाा, वस्स्सलाम।

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