231-आपका इरशादे गिरामी
(अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने बसरा की तरफ़ जाते हुए मक़ामे ज़ीक़ार में यह ख़ुत्बा इरशाद फ़रमाया, इसका वाक़दी ने किताबुल जमल में ज़िक्र किया है)
रसूले अकरम (स0) को जो हुक्म था उसे आप (स0) ने खोल कर बयान कर दिया और अल्लाह के पैग़ामात पहुंचा दिये, अल्लाह ने आप (अ0) के ज़रिये बिखरे हुए अफ़राद की ‘ाीराज़ाबन्दी की, सीनों में भरी हुई सख़्त अदावतों और दिलों में भड़क उठने वाले कीनों के बाद ख़विश व अक़ारब को आपस में ‘ाीरो ‘ाकर कर दिया।
232-आपका इरशादे गिरामी(अब्दुल्लाह इब्ने ज़मा जो आपकी जमाअत में महसूब होता था आप (अ0) के ज़मानए खि़लाफ़त में कुछ माल तलब करने के लिये हज़रत (अ0) के पास आया तो आप (अ0) ने इरशाद फ़रमाया)
यह माल न मेरा है न तुम्हारा बल्कि मुसलमानों का हक़्क़े मुश्तरका और उनकी तलवारों का जमा किया हुआ सरमाया है। अगर तुम उनके साथ जंग में ‘ारीक हुए होते तो तुम्हारा हिस्सा भी उनके बराबर होता, वरना उनके हाथों की कमाई दूसरों के मुंह का निवाला बनने के लिये नहीं है।
233-आपका इरशादे गिरामी
मालूम होना चाहिये के ज़बान इन्सान (के बदन का) एक टुकड़ा है जब इन्सान (का ज़ेहन) रूक जाए तो फिर कलाम उनका साथ नहीं दिया करता और जब उसके (मालूमात में) वुसअत हो तो फ़िर कलाम ज़बान को रूकने की मोहलत नहीं दिया करता और हम (अहलेबैत) अक़लीम सुख़न के फ़रमान रवा हैं। वह हमारे रगो पै में समाया हुआ है और उसकी ‘ााख़ें हम पर झुकी हुई हैं।
ख़ुदा तुम पर रहम करे इस बात को जान लो के तुम ऐसे दौर में हो जिसमें हक़ गो (हक़ बोलने वाले) कम, ज़बानें सिद्क़ बयानी से कुन्द और हक़ वाले ज़लील व ख़्वार हैं। यह लोग गुनाह व नाफ़रमानी पर जमे हुए हैं और ज़ाहिरदारी व निफ़ाक़ की बिना पर एक-दूसरे से सुलह व सफ़ाई रखते हैं। इनके जवान बदख़ू, इनके बूढ़े गुनहगार, इनके आलिम मुनाफ़िक़ और उनके वाएज़ चापलूस हैं, न छोटे बड़ों की ताज़ीम करते हैं और न मालदार फ़क़ीर व बेनवा की दस्तगीरी करते हैं।
234- आपका इरशादे गिरामी
ज़ालब यमानी ने इब्ने क़तीबा से और उसने अब्दुल्लाह इब्ने यज़ीद से उन्होंने मालिक इब्ने वहीह से रिवायत की है के उन्होंने कहा के हम अमीरूल मोमेनीन (अ0) की खि़दमत में हाज़िर थे के लोगों के इख़्तेलाफ़ (सूरत व सीरत) का ज़िक्र छिड़ा तो आप (अ0) ने फ़रमाया-
इनके मबदातीनत ने इनमें तफ़रीक़ पैदा कर दी है और यह इस तरह के वह ‘ाूरा ज़ार व ‘ाीरीं ज़मीन और सख़्त व नर्म मिट्टी से पैदा हुए हैं लेहाज़ा वह ज़मीन के कुर्ब के एतबार से मुत्तफ़िक़ होते और इख़्तेलाफ़ के तनासुब से मुख़्तलिफ़ होते हैं (इस पर कभी ऐसा होता है के) पूरा ख़ुश ‘ाक्ल इन्सान अक़्ल में नाक़िस और बलन्द क़ामत आदमी पस्त हिम्मत हो जाता है और नेकोकार, बदसूरत और कोताह क़ामत दूरअन्देश होता है और तबअन नेक सरष्त कसी बुरी आदत को पीछे लगा लेता है, और परेशान दिन वाला परागान्दा अक़्ल और चलती हुई ज़बान वाला होशमन्द दिल रखता है।
235-आपका इरशादे गिरामी
(रसूलल्लाह (स0) को ग़ुस्ल कफ़न देते वक़्त फ़रमाया )
(रसूलल्लाह (स0) को ग़ुस्ल कफ़न देते वक़्त फ़रमाया )
या रसूलल्लाह (स0)! मेरे माँ बाप आप (स0) पर क़ुरबान हों। आप (स0) के रेहलत फ़रमा जाने से नबूवत, ख़ुदाई एहकाम और आसमानी ख़बरों का सिलसिला क़ता हो गया जो किसी और (नबी) के इन्तेक़ाल से क़ता नहीं हुआ था (आप (स0) ने) इस मुसीबत में अपने अहलेबैत (अ0) को मख़सूस किया यहाँ तक के आप (अ0) ने दूसरों के ग़मों से तसल्ली दे दी और (इस ग़म को) आम भी कर दिया के सब लोग आप (अ0) के (सोग में) बराबर के ‘ारीक हैं। अगर आप (अ0) ने सब्र का हुक्म और नाला व फ़रियाद से रोका न होता तो हम आप (अ0) के ग़म में आंसुओं का ज़ख़ीरा ख़त्म कर देते और यह दर्द मन्नत पज़ीद दरमाँ न होता और यह ग़म व हुज़्न साथ न छोड़ता। (फिर भी यह) गिरया व बुका और अन्दोह व हुज़्न आपकी मुसीबत के मुक़ाबले में कम होता, लेकिन मौत ऐसी चीज़ है के जिसका पलटाना इख़्तेयार में नहीं है और न इसका दूर करना बस में है, मेरे माँ-बाप आप (अ0) पर निसार हों हमें भी अपने परवरदिगार के पास याद कीजियेगा और हमारा ख़याल रखियेगा।
236-आपका इरशादे गिरामी(इसमें पैग़म्बर (स0) की हिजरत के बाद अपनी कैफ़ियत और फिर उन तक पहुंचने तक की हालत का तज़किरा किया है)
मैं रसूलल्लाह (स0) के रास्ते पर रवाना हुआ और आपके ज़िक्र के ख़ुतूत पर क़दम रखता हुआ मक़ामे अर्ज तक पहुंच गया।
सय्यद रज़ी - यह टुकड़ा एक तवील कलाम का जुज़ है और (फाता ज़िक्रा) ऐसा कलाम है जिसमें मुन्तहा दरजे का इख़्तेसार और फ़साहत मलहूज़ रखी गई है। इससे मुराद यह है के इब्तेदाए सफ़र से लेकर यहाँ तक के मैं इस मुक़ामे अरज तक पहुंचा बराबर आप (अ0) की इत्तेलाआत मुझे पहुंच रही थीं। आप (अ0) ने इस मतलब को इस अजीब व ग़रीब कनाया में अदा किया है।
आपका इरशादे गिरामी - 237
आमाल बजा लाओ, अभी जबके तुम ज़िन्दगी की फ़िराख़ी व वुसअत में हो आमाल नामे खुले हुए हैं और तौबा का दामन फैला हुआ है। अल्लाह से रूख़ फ़ेर लेने वाले को पुकारा जा रहा है और गुनहगारों को उम्मीद दिलाई जा रही है क़ब्ल इसके के अमल की रोशनी गुल हो जाए और मोहलत हाथ से जाती रहे और मुद्दत ख़त्म हो जाए और तौबा का दरवाज़ा बन्द हो जाए और मलाएका आसमान पर चढ़ जाएं चाहिये के इन्सान ख़ुद अपने से (ख़ुद से) अपने वास्ते और ज़िन्दा से मुर्दा के लिये और फ़ानी से बाक़ी की ख़ातिर और जाने वाली ज़िन्दगी से हयाते जावेदानी के लिये नफ़ा व बहबूद हासिल करे वह इन्सान जिसे एक मुद्दत तक उम्र दी गई है और अमल की अन्जाम दही के लिये मोहलत भी मिली है उसे अल्लाह से डरना चाहिये मर्द वह है जो अपने नफ़्स को लगाम दे के उसकी बागें चढ़ाकर अपने क़ाबू में रखे और लगाम के ज़रिये उसे अल्लाह की नाफ़रमानियों से रोके और उसकी बागें थाम कर अल्लाह की इताअत की तरफ़ खींच ले जाए।
238-आपका इरशादे गिरामी(दोनों सालेसों (अबू मूसा व अम्रो इब्ने आस) के बारे में और अहले ‘ााम की मज़म्मत में फ़रमाया)
वह तून्द ख़ू औ बाश और कमीने बदक़माश हैं के जो हर तरफ़ से इकट्ठा कर लिये गये हैं और मख़लूतुलनसब लोगों में से चुन लिये गए हैं, वह उन लोगों में से हैं जो जेहालत की बिना पर इस क़ाबिल हैं के उन्हें (अभी इस्लाम के मुताल्लिक़) कुछ बताया जाए और ‘ााइस्तगी सिखाई जाए (अच्छाई और बुराई की तालीम) दी जाए और (अमल की) मशक़ कराई जाए और उन पर किसी निगरान को छोड़ा जाए और उनके हाथ पकड़कर चलाया जाए, न तो वह मुहाजिर हैं न अन्सार और न इन लोगों में से हैं जो मदीने में फरोकश थे।
देखो! अहले ‘ााम ने तो अपने लिये ऐसे ‘ाख़्स को मुन्तख़ब किया है जो उनके पसन्दीदा मक़सद के बहुत क़रीब है और तुमने ऐसे ‘ाख़्स को चुना है जो तुम्हारे नापसन्दीदा मक़सद से इन्तेहाई नज़दीक है। तुमको अब्दुल्लाह इब्ने क़ैस (अबू मूसा) का कल वाला वक़्त याद होगा (के वह कहता फिरता था) के ‘‘यह जंग एक फ़ित्ना है लेहाज़ा अपनी कमानों के चिल्लों को तोड़ दो और तलवारों को न्यामों में रख लो’’ अगर वह अपने इस क़ौल में सच्चा था तो (हमारे साथ) चल खड़ा होने में ख़ताकार है के जबके इस पर कोई जब्र भी नहीं और अगर झूठा था तो इस पर (तुम्हें) बे एतमादी होना चाहिये लेहाज़ा अम्रो इब्ने आस के धकेलने के लिये अब्दुल्लाह इब्ने आस को मुन्तख़ब करो, इन दोनों की मोहलत ग़नीमत जानो और इसलामी (‘ाहरों की) सरहदों को घेर लो क्या तुम अपने ‘ाहरों को नहीं देखते के उन पर हमले हो रहे हैं और तुम्हारी क़ूवत व ताक़त को निशाना बनाया जा रहा है।
239- आपका इरशादे गिरामी(इसमें आले मोहम्मद अलैहिस्सलाम का ज़िक्र किया गया है)
यह लोग इल्म की ज़िन्दगी और जेहालत की मौत हैं। इनका हिल्म उनके इल्म से और इनका ज़ाहिर इनके बातिन से और इनकी ख़मोशी उनके कलाम से बाख़बर करती है। यह न हक़ की मुख़ालेफ़त करते हैं और न हक़ के बारे में कोई इख़्तेलाफ़ करते हैं। यह इस्लाम के सुतून और हिफ़ाज़त के मराकज़ हैं। उन्हीं के ज़रिये हक़ अपने मरकज़ की तरफ़ वापस आया है और बातिल अपनी जगह से उखड़ गया है और इसकी ज़बान जड़ से कट गई है। उन्होंने दीन को इस तरह पहचाना है जो समझो और निगरानी का नतीजा है। सिर्फ़ सुनने और रिवायत का नतीजा नहीं है। इसलिये के (यू ंतो) इल्म की रिवायत करने वाले बहुत हैं और (मगर) इसका ख़याल रखने वाले बहुत कम हैं।
(((-इब्ने अबी अलहदीद ने इ समक़ाम पर ख़ुद अबू मूसा अशअरी की ज़बान से यह हदीस नक़ल की है के सरकारे दो आलम (स0) ने फ़रमाया के जिस तरह बनी इसराईल में दो गुमराह हकम थे उसी तरह इस उम्मत में भी होंगे। तो लोगों ने अबू मूसा से कहा के कहीं आप ऐसे न हो जाएं, उसने कहा यह नामुमकिन है,, और इसके बाद जब वक़्त आया तो तमए दुनिया ने ऐसा ही बना दिया जिसकी ख़बर सरकारे दो आल (स0) ने दी थी।
हैरत की बात है के हकमीन के बारे में रिवायत ख़ुद अबू मूसा ने बयान की है और जो आपके सिलसिले में रिवायत ख़ुद उम्मुल मोमेनीन आइशा ने नक़्ल की है, लेकिन इसके बावजूद न उस रिवायत का कोई असर अबू मूसा पर हुआ और न इस रिवायत का कोई असर हज़रत आइशा पर।
इस सूरतेहाल को क्या कहा जाए और उसे क्या नाम दिया जाए, इन्सान का ज़ेहन सही ताबीर से आजिज़ है, और ‘‘नातक़ा सर ब गरीबां है इसे क्या कहिये।’’
सरकारे दो आलम (स0) ने एक तरफ़ नमाज़ को इस्लाम का सुतून क़रार दिया है और दूसरी तरफ़ अहलेबैत (अ0) के बारे में फ़रमाया है के जो मुझ पर और इन पर सलवात न पढ़े उसकी नमाज़ बातिल और बेकार है, जिसका खुला हुआ मतलब यह है के नमाज़ इस्लाम का सुतून है और मोहब्बते अहलेबैत (अ0) नमाज़ का सुतूने अकबर है। नमाज़ नहीं है तो इस्लाम नहीं है और अहलेबैत (अ0) नहीं हैं तो नमाज़ नहीं है-)))
हैरत की बात है के हकमीन के बारे में रिवायत ख़ुद अबू मूसा ने बयान की है और जो आपके सिलसिले में रिवायत ख़ुद उम्मुल मोमेनीन आइशा ने नक़्ल की है, लेकिन इसके बावजूद न उस रिवायत का कोई असर अबू मूसा पर हुआ और न इस रिवायत का कोई असर हज़रत आइशा पर।
इस सूरतेहाल को क्या कहा जाए और उसे क्या नाम दिया जाए, इन्सान का ज़ेहन सही ताबीर से आजिज़ है, और ‘‘नातक़ा सर ब गरीबां है इसे क्या कहिये।’’
सरकारे दो आलम (स0) ने एक तरफ़ नमाज़ को इस्लाम का सुतून क़रार दिया है और दूसरी तरफ़ अहलेबैत (अ0) के बारे में फ़रमाया है के जो मुझ पर और इन पर सलवात न पढ़े उसकी नमाज़ बातिल और बेकार है, जिसका खुला हुआ मतलब यह है के नमाज़ इस्लाम का सुतून है और मोहब्बते अहलेबैत (अ0) नमाज़ का सुतूने अकबर है। नमाज़ नहीं है तो इस्लाम नहीं है और अहलेबैत (अ0) नहीं हैं तो नमाज़ नहीं है-)))
240-आपका इरशादे गिरामी(जिन दिनों में उस्मान इब्ने अफ़्फ़ान मुहासेरे में थे तो अब्दुल्लाह इब्ने अब्बास उनकी एक तहरीर लेकर अमीरूल मोमेनीन (अ0) के पास आए जिसमें आपसे ख़्वाहिश की थी के आप अपनी जागीरी नबा की तरफ़ चले जाएं ताके खि़लाफ़त के लिये जो हज़रत का नाम पुकारा जा रहा है उसमें कुछ कमी आ जाए और वह ऐसी दरख़्वास्त पहले भी कर चुके थे जिस पर हज़रत ने इब्ने अब्बास से फ़रमाया) -
ऐ इब्ने अब्बास! उस्मान तो बस यह चाहते हैं के वह मुझे अपना ‘ातरआब कश बना लें जो डोल के साथ कभी आगे बढ़ता है और कभी पीछे हटता है, उन्होंने पहले भी यही पैग़ाम भेजा था के मैं (मदीने) से बाहर निकल जाऊं और इसके बाद यह कहलवा भेजा के मैं पलट आऊं, अब फिर वह पैग़ाम भेजते हैं के मैं यहां से चला जाऊँ (जहां तक मुनासिब था) मैंने उनको बचाया, अब तो मुझे डर है के मैं (उनको मदद देने से) कहीं गुनहगार न हो जाऊं।
241- आपका इरशादे गिरामी
ख़ुदा वन्दे आलम तुमसे अदाए ‘ाुक्र का तलबगार है और तुम्हें अपने इक़तेदार का मालिक बनाया है और तुम्हें इस (ज़िन्दगी के) महदूद मैदान में मोहलत दे रखी है ताके सबक़त का इनआम हासिल करने में एक-दूसरे से बढ़ने की कोशिश करो, कमरें मज़बूती से कस लो, और दामन गरदान लो, बलन्द हिम्मती और दावतों की ख़्वाहिश एक साथ नहीं चल सकती। रात की गहरी नीन्द दिन की महूमों में बड़ी कमज़ोरी पैदा करने वाली है और (इसकी) अन्धयारियां हिम्मत व जुरात की याद को बहुत मिटा देने वाली हैं।
No comments:
Post a Comment