Wednesday, May 4, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khutba 224-230 नहजुल बलाग़ा हिन्दी ख़ुत्बा 224-230

224- आपका इरशादे गिरामी
(जिसमें ज़ुल्म से बराअत व बेज़ारी का इज़हार फ़रमाया गया है।)
ख़ुदा गवाह है के मेरे लिये सादान की ख़ारदार झाड़ी पर जाग कर रात गुज़ार लेना या ज़न्जीरों में क़ैद होकरर खींचा जाना इस अम्र से ज़्यादा अज़ीज़ है के रोज़े क़यामत परवरदिगार से इस आलम में मुलाक़ात करूं के किसी बन्दे पर ज़ुल्म कर चुका हूँ या दुनिया के किसी मामूली माल को ग़स्ब किया हो, भला किसी ‘ाख़्स पर भी उस नफ़्स के लिये किस तरह ज़ुल्म करूंगा जो फ़ना की तरफ़ बहुत जल्द पलटने वाला है और ज़मीन के अन्दर बहुत दिनों तक रहने वाला है।
ख़ुदा की क़सम मैंने अक़ील को ख़ुद देखा है के उन्होंने फ़क्ऱ व फ़ाक़े की बिना पर तुम्हाारे  हिस्से गन्दुम में से तीन किलो का मुतालेबा किया था जबके उनके बच्चों के बाल ग़ुरबत की बिना पर परागन्दा हो चुके थे और उनके चेहररों के रंग यूँ बदल चुके थे जैसे उन्हें तेल छिड़क कर सियाह बनाया गया हो और उन्होंने मुझसे बार-बार तक़ाज़ा किया और मगर अपने मुतालबे को दोहराया तो मैंने उनकी तरफ़ कान धर दिये और वह यह समझे के ‘ाायद मैं दीन बेचने और अपने रास्ते काो छोड़कर उनके मुतालबे पर चलने के लिये तैयार हो गयाा हूँ। लेकिन मैंने उनके लिये लोहा गरम किया और फिर उनके जिस्म के क़रीब ले गया ताके इससे इबरत हासिल करें। उन्होंने लोहा देखकर यूँ फ़रयाद ‘ाुरू कर दी जैसे कोई बीमार अपने दर्द व अलम से फ़रयाद करता हो और क़रीब था के उनका जिस्म इसके दाग़ देने से जल जाए। तो मैंने कहा रोने वालियां आपके ग़म में रोएं ऐ अक़ील! आप इस लोहे से फ़रयाद कर रहे हैं जिसे एक इन्सान ने फ़क़त हंसी मज़ाक़ में तपाया है और मुझे उस आग की तरफ़ खींच रहे हैं जिसे ख़ुदाए जब्बार ने अपने ग़ज़ब की बुनियाद पर भड़काया है। आप अज़ीयत से फ़रयाद करें और मैं जहन्नुम से फ़रयाद न करूं।
इससे ज़्यादा ताज्जुब ख़ेज़ बात यह है के एक रात एक ‘ाख़्स (अशअस बिन क़ैस) मेरे पास ‘ाहद में गुन्धा हुआ हलवा बर्तन में रखकर लाया जो मुझे इस क़द्र नागवार था जैसे सांप के थूक या क़ै से गून्धा गया हो। मैंने पूछा के यह कोई इनआम है या ज़कात या सदक़ा जो हम अहलेबैत पर हराम है? उसने कहा के यह कुछ नहीं है, यह फ़क़त एक हदिया है! मैंने कहा के पिसरे मुर्दा औरतें तुझको रोएं तू दीने ख़ुदा के रास्ते से आकर मुझे धोका देना चाहता है, तेरा दिमाग़ ख़राब हो गया है या तू पागल हो गया है या हिज़यान का शिकार रहा है, आखि़र है क्या?

ख़ुदा गवाह है के अगर मुझे हफ़्ताक़लीम की हुकूमत तमाम ज़ेरे आसमान दौलतों के साथ दे दी जाए और मुझसे यह मुतालबा किया जाए के मैं किसी च्यूंटी पर सिर्फ़ इस क़द्र ज़ुल्म करूँ के उसके मुंह से उस छिलके को छीन लूँ जो वह चबा रही है तो हरगिज़ ऐसा नहीं कर सकता हूँ। यह तुम्हारी दुनिया मेरी नज़र में उस पत्ती से ज़्यादा बेक़ीमत है जो किसी टिड्डी के मुुंह में हो और वह उसे चबा रही हो।

भला अली (अ0) को इन नेमतों से क्या वास्ता जो फ़ना हो जाने वाली हैं और उस लज़्ज़त से क्या ताल्लुक़ जो बाक़ी रहने वाली नहीं है। मैं ख़ुदा की पनाह चाहता हूँ, अक़्ल के ख़्वाबे ग़फ़लत मे पड़ जाने और लग़्िज़शों की बुराइयों से और मैं उसी से मदद का तलबगार हूँ।
(((-जनाबे अक़ील आपके बड़े भाई और हक़ीक़ी (सगे) भाई थे लेकिन इसके बावजूद आपने यह आदिलाना बरताव करके वाज़ेह कर दिया के दीने इलाही में रिश्ता व क़राबत का गुज़र नहीं है। दीन का ज़िम्मेदार वही ‘ाख़्स हो सकता है जो माले ख़ुदा को माले ख़ुदा तसव्वुर करे और इस मसले में किसी तरह की रिश्तेदारी और ताल्लुक़ को ‘ाामिल न करे। अमीरूल मोमेनीन (अ0) के किरदार का वह नुमायां इम्तियाज़ है जिसका अन्दाज़ा दोस्त और दुश्मन दोनों को था और कोई भी इस मारेफ़त से बेगाना न था।-)))

225-आपकी दुआ का एक हिस्सा(जिसमें परवरदिगार से बेनियाज़ी का मुतालबा किया गया है)

ख़ुदाया मेरी आबरू को मालदारी के ज़रिये महफ़ूज़ फ़रमा और मेरी मन्ज़िलत को ग़ुरबत की बिना पर निगाहों से न गिरने देना के मुझे तुझसे रिज़्क़ (रोज़ी) मांगने वालों से से मांगना पड़े या तेरी बदतरीन मख़लूक़ात से रहम की दरख़्वास्त करना पड़े और इसके बाद मैं हर अता करने वाले की तारीफ़ करूं और हर इन्कार करने वाले की मज़म्मत में मुब्तिला हो जाऊ जबके इन सब के पसे पर्दा अता व इनकार दोनों का इख़्तेयार तेरे ही हाथ में है और तू ही हर ‘ौ पर क़ुदरत रखने वाला है।

226-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा
(जिसमें दुनिया से नफ़रत दिलाई गई है)

यह एक ऐसा घर है जो बलाओं में घिरा हुआ है और अपनी ग़द्दारी में मशहूर है न इसके हालात को दवाम है और न इसमें नाज़िल होने वालों के लिये सलामती है।
इसके हालात मुख़्तलिफ़ और इसके अतवार बदलने वाले हैं। इसमें पुरकैफ़ ज़िन्दगी क़ाबिले मज़म्मत है और इसमें अम्न व अमान का दूर दूर पता नहीं है। इसके बाशिन्दे वह निशाने हैं जिन पर दुनिया अपने तीर चलाती रहती है और अपनी मुद्दत के सहारे उन्हें फ़ना के घाट उतारती रहती है।

बन्दगाने ख़ुदा! याद रखो इस दुनिया में तुम और जो कुछ तुम्हारे पास है सबका वही रास्ता है जिस पर पहले वाले चल चुके हैं जिनकी उम्रें तुमसे ज़्यादा तवील और जिनके इलाक़े तुमसे ज़्यादा आबाद थे। उनके आसार (पाएदार निशानियां) भी दूर दूर तक फैले हुए थे। लेकिन अब उनकी आवाज़ें दब गई हैं उनकी हवाएं उखड़ गई हैं। इनके जिस्म बोसीदा हो गए हैं। इनके मकानात ख़ाली हो गए हैं और इनके आसार मिट गए हैं। वह मुस्तहकम क़िलों और बिछी हुई मसनदों को पत्थरों और चुनी हुई सिलों और ज़मीन के अन्दर लहद वाली क़ब्रों में तबदील कर चुके हैं। उनके सहनों की बुनियाद तबाही पर क़ायम है और जिनकी इमारत मिट्टी से मज़बूत की गई है। इन क़ब्रों की जगहें तो क़रीब-क़रीब हैं लेकिन इनके रहने वाले सब एक-दूसरे से ग़रीब और अजनबी हैं। ऐसे लोगों के दरम्यान हैं जो बौखलाए हुए हैं और यहों के कामों से फ़ारिग़ होकर वहाँ की फ़िक्र में मशग़ूल हो गए हैं। न अपने वतन से कोई उन्स रखते हैं और न अपने हमसायों से कोई राबेता रखते हैं।
(((-यह फ़िक़रात बेऐनेही इसी तरह इमाम ज़ैनुल आबेदीन (अ0) की मकारमे इख़लाक़ में भी पाए जाते हैं जो इस बात की अलामत है के अहलेबैत (अ0) का किरदार और उनका पैग़ाम हमेशा एक अन्दाज़ का होता है और इसमें किसी तरह का इख़्तेलाफ़ व इन्तेशार नहीं होता है।
इस ख़ुत्बे में दुनिया के हस्बे ज़ैल ख़ुसूसियात का तज़किरा किया गया हैः 1- यह मकान बलाओं में घिरा हुआ है। 2- इसकी ग़द्दारी मारूफ़ है। 3- इसके हालात हमेशा बदलते रहते हैं। 4- इसकी ज़िन्दगी का अन्जाम मौत है। 5- इसकी ज़िन्दगी क़ाबिले मज़म्मत है। 6- इसमें अम्न व अमान नहीं है। 7- इसके बाशिन्दे बलाओं और मुसीबतों का हदफ़ हैं।-)))

बल्कि बिल्कुल क़रीब व जवार और नज़दीकतरीन दयार में हैं और ज़ाहिर है के अब मुलाक़ात का क्या इमकान है जबके बोसीदगी ने उन्हें अपने सीने से दबाकर पीस डाला है और पत्थरों और मिट्टी ने उन्हें खाकर बराबर कर दिया है और गोया के अब तुम भी वहीं पहुंच गए हो जहां वह पहुंच चुके हैं और तुम्हें भी इसी क़ब्र ने गिर्द रख लिया है और इसी अमानतगाह ने जकड़ लिया है।
सोचो! उस वक़्त क्या होगा जब तुम्हारे तमाम मुआमलात आखि़री हद को पहुंच जाएंगे और दोबारा क़ब्रों से निकाल लिया जाएगा, उस वक़्त हर नफ़्स अपने आमाल का ख़ुद मुहासेबा करेगा और सबको मालिके बरहक़ की तरफ़ पलटा दिया जाएगा और किसी की कोई इफ़तर परवाज़ी काम आने वाली नहीं होगी।

227-आपकी दुआ का एक हिस्सा
(जिसमें नेक रास्ते की हिदायत का मुतालेबा किया गया है)
परवरदिगार तू अपने दोस्तों के लिये तमाम उन्स फ़राहम करने वालों से ज़्यादा सबबे उन्स और तमाम अपने ऊपर (तुझ पर) भरोसा करने वालों के लिये सबसे ज़्यादा हाजतरवाई के लिये हाज़िर है। तू उनकी बातिनी कैफ़ियतों को देखता और उनके छिपे हुए भेदों पर निगाह रखता है और उनकी बसीरतों की आखि़री हदों को भी जानता है। उनके इसरार तेरे लिये रौशन और उनके क़ुलूब तेरी बारगाह में फ़रियादी हैं। जब ग़ुरबत उन्हें मुतवहश (घबराहट) करती है तो तेरी याद उन्स का सामान फ़राहम कर देती है और जब मसाएब उन पर उन्डेल दिये जाते हैं तो वह तेरी पनाह तलाश कर लेते हैं इसलिये के उन्हें इस बात का इल्म है के तमाम मामलात की ज़माम  तेरे हाथ में है और तमाम उमूर का फ़ैसला तेरी ही ज़ात से सादर (वाबस्ता) होता है।
ख़ुदाया! अगर मैं अपने सवालात को पेश करने से आजिज़ हूँ और मुझे अपने मुतालेबात की राह नज़र नहीं आती है तो तू मेरे मसालेह की रहनुमाई फ़रमा और मेरे दिल को हिदायत की मन्ज़िलों तक पहुंचा दे के यह बात तेरी हिदायतों के लिये कोई अनोखी नहीं है और तेरी हाजत रवाइयों के सिलसिले में कोई निराली नहीं है।
ख़ुदाया मेरे मामलात को अपने अफ़्व व करम पर महमूल (तय) करना और अद्ल व इन्साफ़ पर महमूल (तय) न करना।

228-आपका इरशादे गिरामी(जिसमें अपने बाज़ असहाब का तज़किरा फ़रमाया है)

अल्लाह फ़ुलां ‘ाख़्स (1) का भला करे के उसने कजी को सीधा किया और मर्ज़ का इलाज किया, सुन्नत को क़ायम किया और फ़ितनों को छोड़ कर चला गया। दुनिया से इस आलम में गया के उसका लिबास हयाते पाकीज़ा था और उसके ऐब बहुत कम थे।

(((- इब्ने अबिल हदीद ने सातवीं सदी हिजरी में यह इनकेशाफ़ किया के इन फ़िक़रात में फ़लां से मुराद हज़रत उमर हैं और फिर उसकी वज़ाहत में 87 सफ़हे स्याह कर डाले हालांके इसका कोई सबूत नहीं है और न सय्यद रज़ी के दौर के नुस्ख़ों में इसका कोई तज़किरा है और फिर इस्लामी दुनिया के सरबराह की तारीफ़ के लिये लफ़्ज़े फ़ुलां के कोई मानी नहीं हैं। ख़ुतबए ‘ाक़शक़िया में लफ़्ज़े फ़ुलां का इमकान है लेकिन मदह में लफ़्ज़े फ़ुलां में अजीब व ग़रीब मालूम होता है। इस लफ़्ज़ से यह अन्दाज़ा होता है के किसी ऐसे सहाबी का तज़किरा है जिसे आम लोग बरदाश्त नहीं कर सकते हैं और अमीरूल मोमेनीन (अ0) उसकी तारीफ़ ज़रूरी तसव्वुर फ़़रमाते हैं)))

उसने दुनिया के ख़ैर को हासिल कर लिया और उसके ‘ार से आगे बढ़ गया। अल्लाह की इताअत का हक़ अदा कर दिया और इससे मुकम्मल तौर पर ख़ौफ़ज़दा होकर वह दुनिया से इस आलम में रूख़सत हुआ के (ख़ुद चला गया और) लोग मुतफ़र्रिक़ (गुमकर्दा) रास्तों पर थे जहां न गुमराह हिदायत पा सकता था और न हिदायत याफ़्ता यक़ीन तक जा सकता था।

229-आपका इरशादे गिरामी
(अपनी बैयते खि़लाफ़त के बारे में)
तुमने बैअत के लिये मेरी तरफ़ हाथ फैलाना चाहा तो मैंने रोक लिया और उसे खींचना चाहा तो मैंने समेट लिया, लेकिन इसके बाद तुम इस तरह मुझ पर टूट पड़े जिस तरह पानी पीने के दिन प्यासे ऊंट तालाब पर गिर पड़ते हैं। यहाँ तक के मेरी जूती का तस्मा टूट गया और अबा कान्धे से गिर गई और कमज़ोर अफ़राद कुचल गए। तुम्हारी ख़ुशी का यह आलम था के बच्चों ने ख़ुशियां मनाईं, बूढ़े लड़खड़ाते हुए क़दमों से आगे बढ़े, बीमार उठते-बैठते पहुंच गए और मेरी बैअत के लिये नौजवान लड़कियाँ भी पर्दे से बाहर निकल आईं (दौड़ पड़ीं)।
(((-किस क़द्र फ़र्क़ है इस बैअत में जिसके लिये बूढ़े, बच्चे, औरतें सब घर से निकल आए और कमाले इश्तियाक़ में साहबे मन्सब की बारगाह की तरफ़ दौड़ पड़े और इस बैअत में जिसके लिये बिन्ते रसूल (स0) के दरवाज़े में आग लगाई गई, नफ़्से रसूल (स0) को गले में रस्सी का फनदा डालकर घर से निकाला गया और सहाबाए कराम को ज़दो कोब किया गया।
क्या ऐसी बैअत को भी इस्लामी बैअत कहा जा सकता है और ऐसे अन्दाज़ को भी जवाज़े खि़लाफ़त की दलील बनाया जा सकता है? अमीरूल मोमेनीन (अ0) ने अपनी बैअत का तज़किरा इसीलिये फ़रमाया है के साहेबाने अक़्ल व ‘ाऊर और अरबाबे अद्ल व इन्साफ़ बैअत के मानी का इदराक कर सकें और ज़ुल्म व जौर जब्र व इसतबदाद को बैअत का नाम न दे सकें और न उसे जवाज़े हुकूमत की दलील बना सकें-)))

230-आपके ख़ुत्बे का एक हिस्सा

यक़ीनन तक़वा इलाही हिदायत की कलीद और आखि़रत का ज़ख़ीरा है, हर गिरफ़्तारी से आज़ादी और हर तबाही से निजात का ज़रिया है। उसके वसीले से तलबगार कामयाब होते हैं, अज़ाब से फ़रार करने वाले निजात पाते हैं और बेहतरीन मतालिब हासिल होते हैं।

लेहाज़ा अमल करो के अभी आमाल बलन्द हो रहे हैं और तौबा फ़ायदामन्द है और दुआ सुनी जा रही है, हालात पुरसुकून हैं, क़लमे आमाल चल रहा है। अपने आमाल के ज़रिये आगे बढ़ जाओ जो उलटे पाँव चल रही है और इस मर्ज़ से जो आमाल से रोक देता है और इस मौत से जो अचानक झपट लेती है, इसलिये के मौत तुम्हारी लज़्ज़तों को फ़ना कर देने वाली, तुम्हारी ख़्वाहिशात को बदमज़ा कर देने वाली और तुम्हारी मन्ज़िलों को दूर कर देने वाली है। वह ऐसी ज़ाएर है जिसे कोई पसन्द नहीं करता है और ऐसी मुक़ाबिल है जो मग़लूब नहीं होती है और ऐसी क़ातिल है जिससे खँ़ूबहा का मुतालबा नहीं होता है। उसने अपने फन्दे तुम्हारे गलों में डाल रखे हैं और उसकी हलाकतों ने तुम्हें घेरे में ले लिया है और इसके तीरों ने तुम्हें निशाना बना लिया है। इसकी सतवत (ग़लबा व तसलत) तुम्हारे बारे में अज़ीम है और इसकी तादियां मुसलसल हैं और इसका वार उचटता (वार ख़ाली जाने का इमकान) भी नहीं है। क़रीब है के इसके सहाबे मर्ग की तीरगियां, इसके मर्ज़ की सख़्ितयां, इसकी जाँकनी की अज़ीयतें, इसकी दम उखड़ने की बेहोशियाँ, इसके हर तरफ़ छा जाने की तारीकियां और बदमज़गियां, इसकी सख़्ितयों के अन्धेरे तुम्हें अपने घेरे में ले लें। गोया वह अचानक उस वारिद हो गई के तुम्हारे राज़दारों को ख़ामोश कर दिया, साथियों को मुन्तशिर कर दिया, आसार को महो कर दिया, दयार को मोअत्तल कर दिया और वारिसों को आमादा कर दिया, अब वह तुम्हारी मीरास को तक़सीम कर रहे हैं उन ख़ास अज़ीज़ों के दरम्यान जो काम नहीं आए और सन्जीदा रिश्तेदारों के दरम्यान जिन्होंने मौत को रोका नहीं (रोक न सके) और उन ख़ुश होने वालों के दरम्यान जो हरगिज़ बेचैन नहीं हैं।
अब तुम्हारा फ़र्ज़ है के सई करो, कोशिश करो, तैयारी करो, आमादा हो जाओ, उस ज़ादे राह की जगह से ज़ादे सफ़र ले लो और ख़बरदार दुनिया मुम्हें उस तरह धोका न दे सके जैसे पहले वालों को दिया है जो उम्मतें गुज़र गईं और जो नस्लें तबाह हो गईं, जिन्होंने इसका दूध दोहा था, उसकी ग़फ़लत से फ़ायदा उठाया था, उसके बाक़ीमान्दा दिनों को गुज़ारा था और इसकी ताज़गियों को मुर्दा बना दिया था अब उनके मकानात क़ब्र बन गए हैं और उनके अमवाल मीरास क़रार पा गए हैं। न उन्हें अपने पास आने वालों की फ़िक्र है और न रोने वालों की परवाह है और न पुकारने वालों की आवाज़ पर लब्बैक कहते हैं।

इस दुनिया से बचो के यह बड़ी धोकेबाज़, फ़रेबकार, ग़द्दार, देने वाली और छीनने वाली और लिबास पिन्हाकर उतार लेने वाली है। न इसकी आसाइशें रहने वाली हैं और न इसकी तकलीफ़ें ख़त्म होने वाली हैं और न इसकी बलाएं थमने वाली हैं।

कुछ ज़ाहिदों के बारे में

यह उन्हीं दुनियावालों में मकीन अहले दुनिया नहीं थे, ऐसे थे जैसे इस दुनिया के न हों। देख भाल कर अमल किया और ख़तरात से आगे निकल गए। गोया इनके बदन अहले आखि़रत के दरम्यान करवटें बदल रहे हैं और वह यह देख रहे हैं के अहले दुनिया इनकी मौत को बड़ी अहमियत दे रहे हैं हालांके वह ख़ुद इन ज़िन्दों के दिलों की मौत को ज़्यादा बड़ा हादसा क़रार दे रहे हैं (जो ज़िन्दा हैं मगर उनके दिल मुर्दा हैं)।

(((-मौत का अजीबो ग़रीब कारोबार है के मालिक को दुनिया से उठा ले जाती है और उसका माल ऐसे अफ़राद के हवाले कर देती है जो ज़िन्दगी में काम आए और न मरहले ही में साथ दे सके। क्या इससे ज़्यादा इबरत का कोई मक़ाम हो सकता है के इन्सान ऐसी मौत से ग़ाफ़िल रहे और चन्द रोज़ा ज़िन्दगी की लज़्ज़तों में मुब्तिला होकर मौत के जुमला ख़तरात से बेख़बर हो जाए।
दुनिया की इससे बेहतर कोई तारीफ़ नहीं हो सकती है के यह एक दिन बेहतरीन लिबास से इन्सान को आरास्ता करती है और दूसरे दिन उसे उतार कर सरे राह बरहना कर देती है। यही हाल ज़ाहिरी लिबास का भी होता है और यही हाल मानवी लिबास का भी होता है। हुस्न देकर बदशक्ल बना देती है। जवानी देकर बूढ़ा कर देती है, ज़िन्दगी देकर मुर्दा बना देती है तख़्त व ताज देकर कुन्ज व क़ब्र के हवाले कर देती है और साहेबे दरबार व बारगाह बनाकर क़ब्रिस्तान के वहशतकदे में छोड़ आती है।-)))

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