Wednesday, May 11, 2011

Nahjul Balagha Hindi Khat 25-27 नहजुल बलाग़ा हिन्दी 25-27 ख़त

25-आपकी वसीयत(जिसे हर उस ‘ाख़्स को लिख कर देते थे जिसे सदक़ात का आमिल क़रार देते थे)

सय्यद रज़ी- मैंने यह चन्द जुमले इसलिये नक़्ल कर दिये हैं ताके हर ‘ाख़्स को अन्दाज़ा हो जाए के हज़रत किस तरह सुतूने हक़ को क़ायम रखते थे और हर छोटे बड़े और पोशीदा व ज़ाहिर उमूर में अद्ल के नमूने क़ायम फ़रमाते थे।

ख़ुदाए वहदहू लाशरीक का ख़ौफ़ लेकर आगे बढ़ो और ख़बरदार न किसी मुसलमान को ख़ौफ़ज़दा करना और न किसी की ज़मीन पर जबरन अपना गुज़र करना और जितना उसके माल में अल्लाह का हक़ निकलता हो उससे ज़र्रा बराबर ज़ायद (ज़्यादा) न लेना, और जब किसी क़बीले पर वारिद होना तो उनके घरों में घुसने के बजाए पहले उनके चश्मे और कनवीं पर वारिद होना और उसके बाद सुकून व वेक़ार के साथ उनकी तरफ़ जाना और उनके दरम्यान खड़े होकर सलाम करना और सलाम करने में बुख़ल से काम न लेना, इसके बाद उन से कहना के बन्दगाने ख़ुदा मुझे तुम्हारी तरफ़ परवरदिगार के वली और जानशीन ने भेजा है ताके मैं तुम्हारे अमवाल में से परवरदिगार का हक़ ले लूँ तो क्या तुम्हारे अमवाल में कोई हक़्क़े अल्लाह है जिसे मेरे हवाले कर सको? अगर कोई ‘ाख़्स इन्कार कर दे तो उससे ज़्यादा तकरार न करना और अगर कोई ‘ाख़्स इक़रार करे तो उसके साथ इस अन्दाज़ से जाना के न किसी को ख़ौफ़ज़दा करना न धमकी देना, न सख़्ती का बरताव करना और न बेजा दबाव डालना जो सोना या चान्दी दे दें वह ले लेना और अगर चैपाया या ऊंट हों तो उनके मरकज़ पर अचानक बिला इजाज़त वारिद न हो जाना के ज़्यादा हिस्सा तो मालिक ही का है, उसके बाद जब चैपायों के मरकज़ तक पहुंच जाना तो किसी ज़ालिम व जाबिर की तरह दाखि़ल न होना न किसी जानवर को भड़का देना और न किसी को ख़ौफ़ज़दा कर देना और मालिक के साथ भी ग़लत बरताव न करना बल्कि माल को दो हिस्सों में तक़सीम करके मालिक को इख़्तेयार देना के वह जिस हिस्से को इख़्तेयार कर ले उस पर कोई एतराज़ न करना, फिर बाक़ी को दो हिस्सों पर तक़सीम करना और उसे इख़्तेयार देना और फिर उसके हिस्से पर एतराज़ न करना, यहांतक के उतना ही माल बाक़ी रह जाए जिससे हक़्क़े ख़ुदा अदा हो सकता है तो इसी को ले लेना बल्कि अगर कोई ‘ाख़्स पहले इन्तेख़ाब को मुस्तर्द करके दोबारा इन्तेख़ाब करना चाहे तो उसे इसका मौक़ा दो और सारे माल को मिलाकर फ़िर पहले की तरह तक़सीम करना और आखि़र में इस बचे माल में से हक़्क़े अल्लाह ले लेना, बस इसका ख़याल रखना के बूढ़ा, ज़ईफ़ कमर शिकस्ता, कमज़ोर और ऐबदार ऊंट न लेना और उन ऊंटों का अमीन भी उसी को बनाना जिसके दीन का एतबार हो और जो मुसलमानों के माल में नर्मी का बरताव करता हो। ताके वह वली तक माल पहुंचा दे और वह उनके दरम्यान तक़सीम कर दे, इस मौज़ू पर सिर्फ़ उसे वकील बनाना जो मुख़लिस, ख़ुदातरस अमानतदार और निगराँ हो, न सख़्ती करने वाला हो, न ज़ुल्म करने वाला, न थका देने वाला हो न शिद्दत से दौडाने वाला, इसके बाद जिस क़द्र माल जमा हो जाए वह मेरे पास भेज देना ताके मैं अम्रे इलाही के मुताबिक़ उसके मरकज़ तक पहुंचा दूँ।

अमानतदार को माल देते वक़्त इस बात की हिदायत दे देना के ख़बरदार ऊंटनी और उसके बच्चे को जुदा न करे और सारा दूध न निकाल ले जो बच्चे के हक़ में मुज़िर हो, सवारी में भी शिद्दत से काम न ले और उसके और दूसरी ऊंटनियों के दरम्यान अद्ल व मसावात से काम ले।

(((-दुनिया में कौन ऐसा सरबराहे ममलेकत है जो अपने एहकाम को इतनी ‘ादीद पाबन्दियों में जकड़ दे और अपनी रिआया को इस क़द्र सहूलत दे दे, दुनिया के हुक्काम में तो इसका तसव्वुर भी नहीं किया जा सकता है, हैरतअंगेज़ अम्र यह है के इस्लाम के ख़ोलफ़ा में भी दूर-दूर तक इस किरदार का पता नहीं मिलता है और हुकूमत का आग़ाज़ ही जब्र, ज़ोर और असीरी व ख़ानासोज़ी से होता है।
ज़रूरत है के इस वसीयत नामे को बग़ौर पढ़ा जाए और इसकी एक-एक दिफ़ा पर ग़ौर किया जाए ताके यह अन्दाज़ा हो के इस्लामी सल्तनत में रिआया का क्या मरतबा होता है। हक़्क़े अल्लाह की अदायगी में किस क़द्र सहूलत फ़राहम की जाती है और इन्सानों की तरह जानवरों के साथ किस तरह बरताव किया जाता है।-)))

थके मान्दे ऊंट को दम लेने का मौक़ा दे और जिसके खुर घिस गए हों या पांव शिकस्ता हों उनके साथ नर्मी का बरताव करे, रास्ते में तालाब पड़ें तो उन्हें पानी पीने के लिये ले जाए और सरसब्ज़ रास्तों को छोड़कर बेआब व ग्याह रास्तों पर न ले जाए वक़्तन-फ़वक़्तन आराम देता रहे और पानी और सब्ज़े के मुक़ामात पर ठहरने की मोहलत दे यहाँ तक के हमारे पास इस आलम में पहुुचे तो हुक्मे ख़ुदा से तन्दरूस्त हो गए हों व उनकी हड्डियों के गूदे बढ़ चुके हों। थके मान्दे और दरमान्दा न हों ताके किताबे ख़ुदा और सुन्नते रसूल (स0) के मुताबिक़ उन्हें तक़सीम कर सकें के यह बात तुम्हारे लिये भी अज्रे अज़ीम का बाएस और हिदायत से क़रीबतर है, इन्शाअल्लाह।

26-आपका अहदनामा
(बाज़ अमाल (आमिलों) के लिये जिन्हें सदक़ात की जमाआवरी के लिये रवाना फ़रमाया था)

मैं उन्हें हुक्म देता हूँ के अपने पोशीदा उमूर और मख़फ़ी आमाल में भी अल्लाह से डरते रहें जहां उसके अलावा कोई दूसरा गवाह और निगरां नहीं होता है और ख़बरदार ऐसा न हो के ज़ाहेरी मामेलात में ख़ुदा की इताअत करें और मख़फ़ी मसाएल में इसकी मुख़ालेफ़त करें, इसलिये के जिसके ज़ाहिर व बातिन और क़ौल व फ़ेल में इख़्तेलाफ़ नहीं होता है वही अमानते इलाही का अदा करने वाला और इबादते इलाही में मुख़लिस होता है और फ़िर हुक्म देता हूं के ख़बरदार लोगों से बुरे तरीक़े से पेश न आएं और उन्हें परेशान न करें और न उनसे इज़हारे इक़तेदार के लिये किनाराकशी करें के बहरहाल यह सब भी दीनी भाई हैं और हुक़ूक़ की अदाएगी में मदद करने वाले हैं।

देखो इन सदक़ात में तुम्हारा हिस्सा मुअय्यन है और तुम्हारा हक़ मालूम है लेकिन फ़ोक़रा व मसाकीन और फ़ाक़ाकश अफ़राद भी इस हक़ में तुम्हारे ‘ारीक हैं, हम तुम्हें तुम्हारा पूरा हक़ देने वाले हैं लेहाज़ा तुम्हें भी इनका पूरा हक़ देना होगा के अगर ऐसा नहीं करोगे तो क़यामत के दिन सबसे ज़्यादा दुश्मन तुम्हारे होंगे और सबसे ज़्यादा बदबख़्ती इसी के लिये है जिसके दुश्मन बारगाहे इलाही में फ़ोक़रा व मसाकीन, साएलीन, महरूमीन, मक़रूज़ और ग़ुरबत ज़दा मुसाफ़िर हों और जिस ‘ाख़्स ने भी अमानत को मामूली तसव्वुर किया और ख़यानत की चरागाह में दाखि़ल हो गया और अपने नफ़्स और दीन को ख़यानतकारी से नहीं बचाया, उसने दुनियां में भी अपने को ज़िल्लत और रूसवाई की मन्ज़िल में उतार दिया और आखि़रत में तो ज़िल्लत व रूसवाई उससे भी ज़्यादा है और याद रखो के बदतरीन ख़यानत उम्मत के साथ ख़यानत है और बदतरीन फ़रेबकारी सरबराहे दीन के साथ फ़रेबकारी का बरताव है।

(((-काश दुनिया के तमाम हुक्काम को यह एहसास पैदा हो जाए के फ़ोक़रा व मसाकीन इस दुनिया में बे आसरा और बे सहारा हैं लेकिन आखि़रत में उनका भी वाली व वारिस है और वहां किसी साहबे इक़्तेदार का इक़्तेदार काम आने वाला नहीं है। अदालते इलाही में ‘ाख़्िसयात का कोई असर नहीं है हर ‘ाख़्स को अपने आमाल का हिसाब देना होगा और इसके मवाख़ेज़ा और मुहासेबा का सामना करना होगा। वहाँ न किसी की कुर्सी काम आ सकती है और न किसी का तख़्त व ताज।
अफ़राद के साथ ख़यानत तो बरदाश्त भी की जा सकती है के वह इन्फ़ेरादी मामला होता है और उसे अफ़राद माफ़ कर सकते हैं लेकिन क़ौम व मिल्लत के साथ ख़यानत नक़ाबिले बरदाश्त है के इसकी मुद्दई तमाम उम्मत होगी और इतने बड़े मुक़दमे का सामना करना किसी इन्सान के बस का काम नहीं है-)))

27- आपका अहदनामा
(मोहम्मद बिन अबीबक्र के नाम- जब उन्हें मिस्र का हाकिम बनाया)

लोगों के सामने अपने ‘ाानों को झुका देना और अपने बरताव को नरम रखना, कुशादारोई से पेश आना और निगाह व नज़र में भी सब के साथ एक जैसा सुलूक करना ताके बड़े आदमियों को यह ख़याल न पैदा हो जाए के तुम उनके मफ़ाद में ज़ुल्म कर सकते हो और कमज़ोरों को तुम्हारे इन्साफ़ की तरफ़ से मायूसी न हो जाए, परवरदिगार रोज़े क़यामत तमाम बन्दों से उनके तमाम छोटे और बड़े ज़ाहिर और मख़फ़ी आमाल के बारे में मुहासेबा करेगा उसके बाद अगर वह अज़ाब करेगा तो तुम्हारे ज़ुल्म का नतीजा होगा और अगर माफ़ कर देगा तो उसके करम का नतीजा होगा।

बन्दगाने ख़ुदा! याद रखो के परहेज़गार अफ़राद दुनिया और आखि़रत के फ़वाएद लेकर आगे बढ़ गए वह अहले दुनिया के साथ उनकी दुनिया में ‘ारीक रहे लेकिन अहले दुनिया उनकी आखि़रत में ‘ारीक न हो सके, वह दुनिया में बेहतरीन अन्दाज़ से ज़िन्दगी गुज़ारते रहे जो सबने खाया उससे अच्छा पाकीज़ा खाना खाया और वह तमाम लज़्ज़तें हासिल कर लीं जो ऐश परस्त हासिल करते हैं और वह सब कुछ पा लिया जो जाबिर और तकब्बुर अफ़राद के हिस्से में आता है। इसके बाद वह ज़ादे रराह लेकर गए जो मन्ज़िल तक पहुंचा दे और वह तिजारत करके गए जिसमें फ़ायदा ही फ़ायदा हो, दुनिया में रहकर दुनिया की लज़्ज़त हासिल की और यह यक़ीन रखे रहे के आखि़रत में परवरदिगार के जवारे रहमत में होंगे, जहां न उनकी आवाज़ ठुकराई जाएगी और न किसी लज़्ज़त में इनके हिस्से में कोई कमी होगी।

बन्दगाने ख़ुदा! मौत और उसके क़ुर्ब से डरो उसके लिये सरो सामान मुहैया कर लो के वह एक अज़ीम अम्र और बड़े हादसे के साथ आने वाली है, ऐसे ख़ैर के साथ जिसमें कोई ‘ार न हो या ऐसे ‘ार के साथ जिसमें कोई ख़ैर न हो, जन्नत या जहन्नम की तरफ़ उनके लिये अमल करने वालों से ज़्यादा क़रीबतर कौन हो सकता है तुम वह हो जिसका मौत मुसलसल पीछा किये हुए है, तुम ठहर जाओगे तब भी तुम्हें पकड़ेगी और फ़रार करोगे तब भी अपनी गिरफ़्त में ले लेगी वह तुम्हारे साथ तुम्हारे साये से ज़्यादा चिपकी हुई है। उसे तुम्हारी पेशानियों के साथ बान्ध दिया गया है और दुनिया तुम्हारे पीछे से बराबर लपेटी जा रही है, इस जहन्नम से डरो जिसकी गहराई बहुत दूर तक है और इसकी गर्मी बेहद ‘ादीद है और इसका अज़ाब भी बराबर ताज़ा होता रहेगा।

वह घर ऐसा है जहां न रहमत का गुज़र है और न वहां कोई फ़रयाद सुनी जाती है और न किसी रंज व ग़म की कशाइश का कोई इमकान है अगर तुम लोग यह कर सकते हो के तुम्हारे दिल में ख़ौफ़े ख़ुदा ‘ादीद हाो जाए और तुम्हें इससे हुस्ने ज़न हासिल हो जाए तो इन दोनों को जमा कर लाो के बन्दे का हुस्ने ज़न उतना ही होता है जितना ख़ौफ़े ख़ुदा होता है और बेहतरीन हुस्ने ज़न रखने वाला वही है जिसके दिल में ‘ादीदतरीन ख़ौफ़े ख़ुदा पाया जाता हो, मोहम्मद बिन अबी बक्र! याद रखो के मैंने तुमको अपने बेहतरीन लश्कर अहले मिस्र पर हाकिम क़रार दिया है।

(((-बेहतरीन ज़िन्दगी से मुराद क़स्रे ‘ााही में क़याम और लज़ीज़तरीन ग़िज़ाएं नहीं हैं, बेहतरीन ज़िन्दगी से मुराद तमाम असबाब हैं जिनसे ज़िन्दगी गुज़र जाए और इन्सान किसी हराम और नाजाएज़ में मुब्तिला न हो।
मौत के आने का मतलब यह नहीं है के आखि़रत में या सिर्फ़ ख़ैर है या सिर्फ़ ‘ार और मख़लूत आमाल वालों की कोई जगह नहीं है, मक़सद यह है के आखि़रत के सवाब व अज़ाब का फ़लसफ़ा यही है के इसमें किसी तरह का इख़लाात व इमतेराज नहीं है, दुनिया के हर आराम में तकलीफ़ ‘ाामिल है और हर तकलीफ़ में आराम का कोई न कोई पहलू ज़रूर है लेकिन आखि़रत में अज़ाब का एक लम्हा भी वह है जिसमें किसी राहत का तसव्वुर नहीं है और सवाब का एक लम्हा भी वह है जिसमें किसी तकलीफ़ का कोई इमकान नहीं है। लेहाज़ा इन्सान का फ़र्ज़ है के उस अज़ाब से डरे और इस सवाब का इन्तेज़ाम कर ले-)))

अब तुमसे मुतालेबा यह है के अपने नफ़्स की मुख़ालफ़त करना और अपने दीन की हिफ़ाज़त करना चाहे तुम्हारे लिये दुनिया में सिर्फ़ एक ही साअत बाक़ी रह जाए और किसी मख़लूक़ को ख़ुश करके ख़ालिक़ को नाराज़ न करना के ख़ुदा हर एक के बदले काम आ सकता है लेकिन इसके बदले कोई काम नहीं आ सकता है।

नमाज़ उसके मुक़र्ररा औक़ात में अदा करना, न ऐसा हो के फ़ुर्सत हासिल करने के लिये पहले अदा कर लो और न ऐसा हो के मशग़ूलियत की बिना पर ताख़ीर कर दो। याद रखो के तुम्हारे हर अमल को नमाज़ का पाबन्द होना चाहिये।

याद रखो के इमामे हिदायत और पेशवाए हलाकत एक जैसे नहीं हो सकते हैं नबी का दोस्त और दुश्मन यकसाँ नहीं होता है। रसूले अकरम (स0) ने ख़ुद मुझसे फ़रमाया है के ‘‘मैं अपनी इमामत के बारे में न किसी मोमिन से ख़ौफ़ज़दा हूँ और न मुशरिक से, मोमिन को अल्लाह उसके ईमान की बिना पर बुराई से रोक देगा और मुशरिक को उसके शिर्क की बिना पर मग़लूब कर देगा, सारा ख़तरा उन लोगों से है जो ज़बान के आलिम हों और दिल के मुनाफ़िक़। कहते वही हैं जो तुम सब पहचानते हो और करते वह हैं जिसे तुम बुरा समझते हो।’’

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